शिक्षकों के संवेदनशील बनने से लाई जा सकती है शिक्षा में गुणवत्ता

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शिक्षकों को शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिये नैतिकता, ईमानदारी और सत्यनिष्ठा जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षक शिक्षा के साथ बच्चों को संस्कार भी दें। कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहना चाहिए। यही बच्चे आने वाले समय में देश का भविष्य तय करेंगे।

उत्तराखंड के उच्च शिक्षा विभाग और पतंजलि विश्वविद्यालय की ओर से पतंजलि योगपीठ में आयोजित दो दिवसीय ज्ञानकुंभ में 18 राज्यों के उच्च शिक्षामंत्री व उच्च शिक्षा सचिव और 131 विश्वविद्यालयों के कुलपति भाग ले रहे हैं। इसमें उच्चतर शिक्षा में गुणात्मक सुधार और भविष्य की चुनौतियों पर मंथन किया जा रहा है। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा के तीन प्रमुख स्तंभ हैं। शिक्षक, विद्यार्थी और प्रबंधन। इनमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षक की है।

उन्होंने आचार्य चाणक्य, पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण देते हुए शिक्षक की भूमिका को रेखांकित किया। कहा कि यह शिक्षक का दायित्व है कि वह शिष्य की प्रतिभा को पहचान उसे निखारे। भारत रत्घ्घ्न डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन का उदाहरण देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि उनके गुरु ने डॉ. भीमराव की मेधा को पहचाना था और उन्हें अपना उपनाम आंबेडकर दिया। आयोजन के लिए उत्तराखंड सरकार की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इस मंथन से निकलने वाले परिणाम की उन्हें भी प्रतीक्षा रहेगी।

योग गुरु बाबा रामदेव के कार्य को सराहते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि बाबा ने योग को कंदराओं से निकाल घर-घर पहुंचा दिया। इससे पहले कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने शिक्षा में तकनीक का समावेश करने के साथ ही संस्कृत को बढ़ावा देने पर जोर दिया। वहीं योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि भारत को विश्व गुरु बनाना है तो हर नागरिक को शिक्षित करना होगा। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ज्ञानकुंभ के आयोजन पर प्रकाश डालते हुए देश में उच्च शिक्षा के हालात रखे।