सेना की भर्ती में फर्जी सर्टिफिकेट लेकर सात पहुंचे, पुलिस ने पकड़कर की पूछताछ

चंपावत के बनबसा सेना छावनी में आयोजित भर्ती के दौरान सात ऐसे युवक यूपी और हरियाणा के पाए गए। जो फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सेना में भर्ती को पहुंचे थे। मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) और मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने फर्जी दस्तावेजों के साथ इन सातों को पकड़ा लिया है। इनसे पूछताछ के बाद एलआईयू और पुलिस ने फर्जी प्रमाण पत्र बनाने वाले बुलंदशहर, यूपी निवासी सरगना को कार ड्राइवर व एक अन्य के साथ बनबसा में दबोच लिया।

उनके पास यूपी के हाईस्कूल-इंटर और बागेश्वर जिले की तहसीलों के फर्जी निवास प्रमाण पत्र बरामद हुए हैं। पुलिस के अलावा विभिन्न जांच एजेंसियां उनसे पूछताछ कर रही हैं। बनबसा सेना छावनी में मंगलवार सुबह कुछ युवकों के फर्जी दस्तावेजों के साथ पहुंचने की सूचना मिली।

पुलिस पूछताछ के बाद मुख्य आरोपी को भी दबोच लिया गया। पकड़े गए युवकों में दीपक भाटी (30) निवासी शाहजहांपुर-बल्लभगढ़, फरीदाबाद एवं उसका भाई जगदीश भाटी (22), प्रमोद कुमार (20) निवासी मोखमपुर गौतमबुद्ध नगर यूपी, पंकज कुमार (22) निवासी बागपुर, पलवल (हरियाणा), लोकेश चौहान (20) निवासी मित्रौल पलवल, अनुज रावत (23) निवासी दुरियाई दादरी गौतमबुद्ध नगर, कुणाल चौधरी (20) निवासी दुरियाई गौतमबुद्ध नगर शामिल हैं। पकड़े गए सरगना समेत सभी युवकों के खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471,120बी लगाई है।

पुलिस ने लगाया जोर, तो हुआ शराब कांड का सरगना गिरफ्तार

उत्तराखंड का जनपद देहरादून के पथरिया पीर में जहरीली शराब के सेवन से हुई छह लोगों की मौत के मामले में पुलिस मुख्य सरगना को गिरफ्तार कर लिया है। 22 सितंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के सख्त रूख के बाद पुलिस ने जोर लगाया तो पूर्व पार्षद को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अरूण मोहन जोशी ने बताया कि वांछित चल रहे भाजपा से निष्कासित पूर्व पार्षद अजय सोनकर उर्फ घोंचू को गिरफ्तार कर लिया गया है। घोंचू की योजना कोर्ट में आत्मसमर्पण करने की थी, लेकिन पुलिस ने घेराबंदी कर उसे दबोच लिया। कानून से बचने के लिए घोंचू ने खूब जुगाड़ लगाए थे, लेकिन कामयाब नहीं हो पाया।

उन्होंने बताया कि पथरिया पीर में छह लोगों की मौत के बाद से यह बात सामने आ रही थी कि गौरव, राजू उर्फ राजा नेगी और पूर्व पार्षद अजय सोनकर उर्फ घोंचू इलाके में अवैध रूप से शराब बेचते थे।

बीमार बच्चे पर दो दिन तक नर्स से करवाया गया एक्सपेरिमेंट, परिजनों को नहीं बताया

चिल्ड्रन होम अकादमी में 20 सितंबर को हुई छात्र अभिषेक रविदास निवासी जालंधर पंजाब की मौत मामले में बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी सोमवार को स्कूल पहुंची। यहां स्कूल प्रबंधन, समस्त स्टाफ और बच्चों से बातचीत के बाद उन्होंने यहां निठारी कांड यानी मानव अंग तस्करी की आशंका जताई हैं।

निरीक्षण के दौरान उन्होंने पाया कि बीमार छात्र को स्कूल के छोटे से अस्पताल में नर्स की देखरेख में रखा गया। इसके लिए अध्यक्ष ने स्कूल प्रबंधन को कड़ी फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि जब छात्र दो दिन से बीमार था, तो उसे अस्पताल के बजाए अपने स्कूल के ही छोटे से अस्पताल में क्यों रखा गया? स्कूल के अस्पताल में आखिर चिकित्सक की तैनाती क्यों नहीं है? नर्स सिर्फ प्राथमिक उपचार दे सकती है, बीमार बच्चे के साथ दो दिन तक प्रयोग नहीं कर सकती।

आखिर हॉस्टल के बगल में कब्रिस्तान कैसे बना दिया गया
आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी ने बताया कि आखिर हॉस्टल के बगल में ही स्कूल प्रबंधन ने कब्रिस्तान कैसे बना दिया? इसकी इजाजत उन्हें कैसे मिली? स्कूल प्रबंधन से पूछा कि कब्रिस्तान में दफन होने वाले का नाम, पता, जन्मतिथि सहित अंतिम क्रिया की तिथि उसकी कब्र के ऊपर क्यों नहीं लगाई गई है? इस पर स्कूल प्रबंधन ने गोलमोल जवाब दिया।

25 जुलाई 2019 से पहले तीन बच्चे वाले प्रत्याशी भी लड़ पाएंगे पंचायत चुनाव

देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को बड़ा झटका देते हुए ग्राम पंचायत चुनाव में तीन बच्चों वाले मामले में प्रत्याशियों के पक्ष में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह का समय जवाब देने का दिया है। कोर्ट के आदेश के बाद ग्राम प्रधान, उप प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य के पद पर 25 जुलाई 2019 से पहले तीन बच्चे वाले प्रत्याशियों का चुनाव लडने का रास्ता साफ हो गया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में 25 जुलाई 2019 को कट ऑफ डेट माना था। इस तिथि के बाद दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशी अयोग्य माने जाएंगे।

पंचायत जनाधिकार मंच के प्रदेश संयोजक व पूर्व ब्लॉक प्रमुख जोत सिंह बिष्टड्ढ, कोटाबाग के मनोहर लाल, पिंकी देवी समेत 21 लोगों ने हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर कर सरकार के पंचायत राज एक्ट में किए संशोधन को चुनौती दी थी। जिसमें दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशियों को पंचायत चुनाव लडने के लिए अयोग्य करार दिया गया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस संशोधित एक्ट को लागू करने के लिए ग्रेस पीरियड नहीं दिया गया। संशोधन को बैक डेट से लागू करना विधि सम्मत नहीं है। पिछले दिनों मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए इस संशोधन को लागू करने की कट ऑफ डेट 25 जुलाई 2019 नियत कर दी। इस आदेश के बाद कट ऑफ डेट के पहले दो से अधिक बच्चों वाले ग्राम पंचायत प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर के प्रत्याशी चुनाव लडने के योग्य हो गए। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। सोमवार को जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली संयुक्त पीठ ने राज्य सरकार के हाई कोर्ट के आदेश में स्थगनादेश की अपील को नहीं माना। साथ ही याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया। राज्य सरकार के एसएलपी दाखिल करने की भनक लगने के बाद पंचायत जनाधिकार मंच द्वारा सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की गई थी।

आरोपी चाहे धरती पर हो या आकाश में, हर हाल में गिरफ्तार करें पुलिसः टीएसआर

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गृह, आबकारी व पुलिस विभाग के अधिकारियों को रविवार को तलब किया। उन्होंने अधिकारियों से पथरिया पीर, देहरादून की घटना व इसके बाद की गई कार्यवाही की विस्तार से जानकारी ली। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस पूरे मामले में जिस व्यक्ति का मुख्य आदमी का नाम सामने आ रहा है, उसे जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए। वह आदमी चाहे धरती पे हो, आसमान में हो या पाताल में हो, हर हाल में पकङा जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर किसी के संरक्षण की बात पाई जाती है, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पूरे घटनाक्रम की गहराई से जांच की जाए। उन्होंने सख्त नाराजगी जताते हुए कहा कि शहर के बीचों बीच कुछ चल रहा हो और हमारी एजेंसियों को पता न चले, कैसे हो सकता है। घटना के हर पहलू की बारीकी से जांच की जाए। इसमें जो भी दोषी या जिम्मेदार पाया जाएगा उस पर सख्त कार्यवाही की जाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे प्रदेश में पुलिस व आबकारी विभाग अवैध शराब की छापेमारी के अभियान चलाए। इसमें जिन लोगों की भी मिलीभगत हो, उन्हें पकड़ा जाए और सख्त से सख्त एक्शन लिया जाए। मुख्यमंत्री ने महकमें के अधिकारियों से कहा कि अगर अवैध शराब का व्यापार करने वालों के खिलाफ कार्यवाही को और सख्त करने के लिए आबकारी एक्ट में किसी प्रकार के संशोधन की जरूरत हो तो उसका प्रस्ताव तैयार करें। अवैध शराब या नशे के व्यापार को रोकने में आम जनता का भी सहयोग लिया जाए। कहीं से भी इस प्रकार की कोई शिकायत आती है तो उसे पूरी गम्भीरता से लिया जाए।
बैठक में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, डीजी लाॅ एंड आर्डर अशोक कुमार, प्रमुख सचिव आनंदबर्द्धन, सचिव नितेश झा, आईजी गढ़वाल रेंज अजय रौतेला, आयुक्त आबकारी सुशील कुमार, जिलाधिकारी देहरादून सी.रविशंकर, एसएसपी अरूण मोहन जोशी मौजूद थे।

इस बैंक के संशोधित शुल्क से आप फायदे में रहे कि नुकसान में!

भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, भारतीय स्टेट बैंक ने एटीएम सेवाओं के साथ-साथ जमा और निकासी के लिए अपने सेवा शुल्क में संशोधन किया है। संशोधित शुल्क 1 अक्टूबर से प्रभावी होंगे। ऋणदाता ने इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग लेनदेन पर मासिक सीमा को भी पूरी तरह से समाप्त कर दिया है। नए बदलावों के प्रभाव में आने के बाद ग्राहक जल्द ही असीमित लेनदेन का आनंद ले सकते हैं, बजाय पिछले महीने में 25,000 रुपये तक के बचत खाते के शेष के साथ ग्राहकों के लिए अधिकतम सीमा 40 की।
एसबीआई ने शहरी केंद्रों के लिए औसत मासिक शेष (एएमबी) को 5,000 रुपये से घटाकर 3,000 रुपये कर दिया है। संशोधित नियम के तहत, जो खाताधारक बचत बैंक खाते में एएमबी के रूप में 3,000 रुपये का रखरखाव नहीं करते हैं और 50 प्रतिशत (1,500 रुपये) से कम आते हैं, उनसे 10 रुपये जीएसटी वसूला जाएगा। अगर खाताधारक 75 फीसदी से कम गिरता है, तो 15 रुपये जीएसटी का जुर्माना लगाया जाएगा।
वहीं, भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) और रियल-टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) शुल्क माफ कर दिए। एसबीआई ग्राहकों के लिए जबकि एनईएफटी और आरटीजीएस लेनदेन निःशुल्क हैं, बैंक शाखा में फंड ट्रांसफर करने पर शुल्क लगेगा।
बचत खाते में नकद जमा प्रति माह 3 लेनदेन तक मुफ्त होगा। उसके बाद, खाताधारक से प्रत्येक लेनदेन के लिए 50 रुपये से अधिक जीएसटी लिया जाएगा। गैर-घरेलू शाखा में नकदी जमा करने की अधिकतम सीमा 2 लाख रुपये प्रतिदिन है। वहीं, 25,000 रुपये के एएमबी वाले खाताधारक एक महीने में दो मुफ्त नकद निकासी का लाभ उठा सकते हैं। 25,000 से 50,000 रुपये के एएमबी वाले लोगों को प्रति माह 10 मुफ्त नकद निकासी मिलती है। हालांकि, 50,000-1 लाख रुपये के ब्रैकेट में ग्राहकों को 15 मुफ्त नकद निकासी मिलेगी। मुफ्त सीमा से परे लेनदेन के लिए शुल्क 50 रुपये से अधिक जीएसटी है।
जिन ग्राहकों के पास अपने बचत खातों में 25,000 रुपये तक का एएमबी है, उन्हें एसबीआई के एटीएम में पांच मुफ्त लेनदेन का आनंद मिलेगा। इसमें वित्तीय और गैर-वित्तीय लेनदेन शामिल हैं। उच्च एएमबी वाले लोगों के लिए कोई टोपी नहीं है। साथ ही, गैर-मेट्रो शहरों के सभी ग्राहक अन्य बैंकों के एटीएम में प्रति माह पांच मुफ्त लेनदेन का लाभ उठा सकते हैं। महानगरों में ग्राहकों के लिए छत गैर-एसबीआई एटीएम में तीन मुफ्त लेनदेन है।
उल्लिखित सीमाओं से परे वित्तीय लेनदेन एसबीआई के एटीएम पर 10 रुपये और गैर-एसबीआई एटीएम पर 20 रुपये का शुल्क लगेगा। गैर-वित्तीय लेनदेन में इस्तेमाल किए गए एटीएम के आधार पर 5-8 रुपये से अधिक जीएसटी लगेगा। इसमें बैलेंस पूछताछ, चेक बुक अनुरोध रखने, करों का भुगतान और धन हस्तांतरण जैसी सेवाएं शामिल हैं। अपर्याप्त संतुलन के कारण अस्वीकृत लेनदेन पर 20 रुपये से अधिक जीएसटी का शुल्क लगेगा। आपको बता दें कि एसबीआई शाखा और एटीएम लेनदेन के बीच एकतरफा अंतर-परिवर्तनीयता की अनुमति देता है। इसका मतलब यह है कि 25,000 रुपये तक के एएमबी वाले ग्राहक को मेट्रो शहरों में अधिकतम 10 मुफ्त डेबिट लेनदेन की अनुमति होगी, बशर्ते वे एसबीआई एटीएम का उपयोग करें और शाखा में दो मुफ्त नकद निकासी लेनदेन का लाभ न लें। इसी तरह, गैर-महानगरों में लोग 12 मुक्त डेबिट लेनदेन का आनंद ले सकते हैं।
आपको पता होना चाहिए कि बैंक द्वारा दिए गए सभी डेबिट कार्ड मुफ्त नहीं हैं। एसबीआई ने गोल्ड डेबिट कार्ड जारी करने के लिए 100 रुपये और जीएसटी को छोड़कर प्लैटिनम कार्ड के लिए 300 रुपये का शुल्क लिया है। इसके अलावा, यदि आपका एटीएम कार्ड या किट गलत पते पर जमा करने के कारण कूरियर द्वारा लौटाया जाता है, तो आपको 100 रुपये से अधिक का भुगतान करना होगा।

क्या हकीकत में देश की सबसे बड़ी एफआइआर उत्तराखंड में लिखी जा रही? जानिए…

कहा जा रहा है कि देश की सबसे बड़ी एफआइआर अपने राज्य में दर्ज होने जा रही है। अभी तक पांच दिन में 43 पेज की लिखत-पढ़त हो चुकी है। जबकि अभी 11 पेज और लिखा जाना बाकी है। इन पेजों के लेखाजोखा में पुलिस के भी पसीने छूट रहे हैं। इसके पीछे का कारण स्वास्थ्य विभाग है। जिसने आयुष्मान योजना में हुए घोटाले की जांच रिपोर्ट ही पुलिस को एफआइआर के रूप में दे दी है। वहीं एसएसपी ऊधमसिंहनगर बरिंदरजीत सिंह का इस बारे में कहना है कि देश की सबसे बड़ी एफआइआर है, ऐसा कहना संभव नहीं है। इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। एफआइआर लंबी है, इसलिए समय अधिक लग रहा है। विवेचक को विवेचना करने में ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। तथ्यों के आधार पर विवेचना की जाएगी।
आपको बता दें कि स्वास्थ्य विभाग की टीम ने अटल आयुष्मान योजना के तहत एमपी मेमोरियल अस्पताल और देवकी नंदन अस्पताल में भारी अनियमितताएं पकड़ी थीं। जांच में सामने आया कि अस्पताल के संचालक नियमों के खिलाफ मरीजों के फर्जी इलाज के बिलों का क्लेम वसूल रहे हैं। एमपी अस्पताल में मरीजों के डिस्चार्ज होने के बाद भी उनको कई-कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती दिखाया गया। इसके अलावा आइसीयू में भी क्षमता से ज्यादा रोगियों का इलाज होना बताया गया। मामले की पूरी जांच के बाद स्वास्थ्य विभाग ने पूरी जांच रिपोर्ट ही पुलिस को एफआइआर दर्ज करने के लिए दे दी। स्वास्थ्य विभाग की जांच ही पुलिस के गले की फांस बनी हुई है। यदि स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जांच का निष्कर्ष निकालकर दिया गया होता तो पुलिस को इतनी दिक्कतें नहीं झेलनी पड़तीं। हालांकि बांसफोड़ान पुलिस चैकी में देवकी नंदन अस्पताल संचालक पुनीत बंसल के खिलाफ 22 पेज की एफआइआर लिखी जा चुकी है। जबकि अभी एमपी मेमोरियल अस्पताल के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने का सिलसिला जारी है।
एफआइआर को लिखने में लिपिक के सामने सबसे बड़ी दिक्कत भाषाएं बनी हुई हैं। स्वास्थ्य विभाग के द्वारा एफआइआर लिखने को दी गई जांच रिपोर्ट हिंदी-अंग्रेजी और गणित की भाषा में है। जिससे एक पेज लिखने में घंटों का समय लग रहा है। हालांकि मैनुअली लिखे जाने के साथ ही एफआइआर को साथ ही साथ पुलिस के सॉफ्टवेयर सीसीटीएनएस दर्ज किया जा रहा है। कटोराताल पुलिस चैकी में एमपी मेमोरियल अस्पताल के खिलाफ लिखी जा रही एफआइआर में अभी तक आठ रिफिल लग चुके हैं। जबकि अभी तीन-चार रिफिल और खर्च हो सकते हैं। इतना ही नहीं एफआइआर को लिखने में लिपिक को प्रतिदिन 14 घंटे का समय देना पड़ रहा है। जिसके बाद अन्य काम किए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद हरकत में आया स्वास्थ्य विभाग, मिली सबसे बड़ी राहत

उत्तराखंड सरकार ने प्रदेशवासियों को बड़ी राहत देते हुए आयुष्मान कार्डधारकों को सुविधा दी है कि डेंगू के मरीज अब सीधे प्राइवेट अस्पतालों में अपना इलाज करा सकेंगे। स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पतालों को डेंगू के मरीजों को आयुष्मान कार्ड के आधार पर भर्ती कर इलाज कराने की सुविधा प्रदान कर दी है। विभाग ने निजी अस्पतालों से कहा है कि मरीज को भर्ती करने के बाद इसकी सूचना आयुष्मान की नोडल एजेंसी को देनी होगी।
डेंगू के मामले लगातार बढ़ने और सरकारी अस्पतालों में भीड़ बढ़ने के बाद सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है। वहीं, सामने आया है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज न मिलने के कारण भी मरीजों को निजी अस्पतालों में भर्ती होना पड़ रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए निजी अस्पतालों में इलाज कराना मुश्किल हो रहा है और वहीं, सरकारी अस्पतालों में बैड खाली नही होने से उनकी जिंदगी दांव पर लगी हुई है।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर सचिव स्वास्थ्य नितेश झा ने अधिकारियों की बैठक ली और यह निर्णय लिया कि आयुष्मान कार्डधारकों को निजी अस्पतालों में डेंगू का इलाज करने के लिए अधिकृत किया जाए। साथ ही लोगों मंे यह अपील भी पहुंचाने का निर्णय लिया गया कि डेंगू होने पर केवल गंभीर स्थिति में ही अस्पतालों में भर्ती हुआ जाए। इसका इलाज घर पर भी संभव हो सकता है।
सचिव स्वास्थ्य नितेश झा ने बताया कि आयुष्मान कार्डधारक निजी अस्पतालों में अपना इलाज करा सकते हैं। इसके लिए अस्पतालों को एडवाइजरी भी दी जा रही है। निजी अस्पतालों को मरीज भर्ती करने के बाद इसकी सूचना आयुष्मान एजेंसी को देनी होगी। ताकि उनके बिल के भुगतान की प्रक्रिया नियमानुसार की जा सके।

आरक्षण प्रकिया को चुनौती देने वाली याचिका हाइकोर्ट ने खारिज की

हाई कोर्ट ने पंचायत चुनाव में आरक्षण निर्धारण को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को आज खारिज कर दिया। कोर्ट ने सरकार द्वारा अपनाई गई आरक्षण प्रक्रिया को सही ठहराया है और कहा है कि चुनाव अधिसूचना जारी होने के कारण याचिका निरस्त की जा सकती है। हाइ कोर्ट के आदेश के बाद पंचायतों में आरक्षण बदलाव की संभावनाओं और अटकलों पर पूरी तरह से विराम लग गया है। इससे अब तक पसोपेश में चल रही राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग दोनों को ही बड़ी राहत मिली है।
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने किच्छा ऊधमसिंह नगर निवासी लाल बहादुर कुशवाहा की जनहित याचिका पर सुनवाई की। जिसमें सरकार की ओर से पंचायत आरक्षण की 13 अगस्त और 22 अगस्त की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि सरकार द्वारा आरक्षण व्यवस्था को दो भागों में विभाजित किया है। एक जिन ग्राम पंचायतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है, उसमें आरक्षण चैथे चक्र में लागू करने की व्यवस्था है, दूसरी वह ग्राम पंचायतें जिनमें नए वार्ड बने हैं या 50 फीसद नए सदस्य जुड़े हैं। या कोई नई ग्राम पंचायत बनी है, उसमें प्रथम चक्र में आरक्षण लागू करने की व्यवस्था की गई है। याचिकाकर्ता का कहना था कि यह आरक्षण व्यवस्था उत्तर प्रदेश पंचायती राज व्यवस्था-1994 के प्रावधानों का उल्लंघन है, लिहाजा सरकार का नोटिफिकेशन निरस्त होने योग्य है। खंडपीठ ने सरकार के द्वारा की गई आरक्षण प्रक्रिया को सही ठहराते हुए आत जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

सतपाल और पांडेय ने क्यों की योगी सरकार की तारीफ, मानेंगे यूपी सरकार का फैसला!

उत्तर प्रदेश में लंबे समय से मंत्रियों का आयकर सरकार ही भर रही थी। इस पर अब योगी सरकार ने रोक लगाई है। उत्तराखंड चूंकि पहले उत्तर प्रदेश का ही अंग था इस कारण अविभाजित उत्तर प्रदेश से चली आ रही व्यवस्था यहां भी बदस्तूर जारी है। यानी मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों का आयकर सरकार ही भर रही है। उत्तराखंड में मंत्रियों को वेतन भत्ते मिलाकर प्रतिमाह 4.40 लाख रुपये दिए जाते हैं। इनमें से 90 हजार रुपये केवल वेतन है। शेष अन्य भत्ते हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के आयकर स्वयं भरने के निर्णय के बाद अब उत्तराखंड में भी इस दिशा में सकारात्मक पहल होती नजर आ रही है। त्रिवेंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और अरविंद पांडेय ने इसकी पैरवी की है।
कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि मंत्रियों को सरकारी खजाने से नहीं, बल्कि अपना आयकर स्वयं भरना चाहिए। वह अपना आयकर स्वयं भरते हैं। वह इसका परीक्षण भी करेंगे। वहीं, कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि वह तो विधायक निधि के पक्ष में भी नहीं रहे हैं। इस कारण उनकी भावना को समझा जा सकता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के मंत्रियों को 1.64 लाख रुपये प्रतिमाह वेतन भत्तों के रूप में दिए जाते हैं और उनका मूल वेतन 40 हजार रुपये हैं। इस लिहाज से उत्तराखंड के मंत्रियों का वेतन कहीं अधिक है। इसे देखते हुए प्रदेश में भी मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों द्वारा आयकर भरने की मांग उठने लगी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी इसका परीक्षण करने की बात कर चुके हैं। अब दो मंत्रियों ने मंत्रियों के स्वयं आयकर भरने को लेकर उठ रही मांग के समर्थन में कदम आगे बढ़ाए हैं। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि वह अपना टैक्स स्वयं भरते हैं। मंत्रियों को सरकारी खजाने से नहीं बल्कि स्वयं टैक्स भरना चाहिए। बाकि वह मामले का अध्ययन करेंगे।