जानिए, क्यों? आर्मी के 100 अफसर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

नवनियुक्त रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने नई चुनौती आ गयी है। अधिकारियों के प्रमोशन में कथित ‘भेदभाव व अन्याय’ की शिकायत के साथ आर्मी के 100 से भी ज्यादा लेफ्टिनेंट कर्नल और मेजर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
भेदभाव व नाइंसाफी
आर्मी के अफसरों द्वारा दायर की गयी याचिका में कहा गया है, सेना और केंद्र सरकार के इस कृत्य (प्रमोशन में भेदभाव) से याचिकाकर्ताओं के प्रति अन्याय हुआ है, इससे अफसरों के मनोबल पर असर पड़ता है जिससे देश की सुरक्षा भी प्रभावित हो रही है।
सरकार की चिंता
सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जब तक प्रमोशन में समानता न लाई जाए तब तक सर्विसेज कोर के अफसरों को कॉम्बैट ऑर्म्स के साथ तैनात न किया जाए।
याचिकाकर्ताओं का सवाल
लेफ्टिनेंट कर्नल पी. के. चौधरी के नेतृत्व में अपने संयुक्त याचिका में अफसरों ने कहा है कि सर्विसेज कोर के अफसरों को ऑपरेशनल क्षेत्र में तैनात किया गया है। कॉम्बैट ऑर्म्स कोर के अफसरों को भी ऐसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने अपनी वकील नीला गोखले के जरिए पूछा है कि तब कॉम्बैट ऑर्म्स के अफसरों को जिस तरह का प्रमोशन दिया जा रहा है, उससे उन्हें क्यों वंचित किया जा रहा है।
सेना और सरकार का दोहरा मापदंड
याचिका में कहा गया है, सेना और सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। ऑपरेशन एरियाज में तैनाती के वक्त तो सर्विसेज कोर के अफसरों को ऑपरेशनल के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन जब बात प्रमोशन की आती है तो उन्हें नॉन-ऑपरेशनल मान लिया जाता है। यह याचियों और दूसरे मिड-लेवल आर्मी अफसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से मांग की है कि सिग्नल्स जैसे दूसरे कोर के अफसरों को तैनाती के वक्त ऑपरेशनल जैसा माना जा रहा है। ऑपरेशनल एरियाज में तैनाती के बाद वे उन सभी कामों को करते हैं जिन्हें ऑपरेशनल कोर के अफसर करते हैं, ऐसे में उनके साथ भेदभाव क्यों हो रहा है। वो सेना और भारत सरकार को आदेश दे कि कॉम्बैट सर्विसेज भारतीय सेना की अभिन्न और सक्रिय अंग हैं और उन्हें नियमित सेना के समान ही सुविधाएं मिलनी चाहिए, अन्यथा सरकार और सेना आपद स्थिति को छोड़कर ‘सक्रिय इलाकों’ में सर्विसेज कॉर्प्स की तैनाती न किया करें।