अपना स्तर खुद घटा रहे मीडिया संस्थान, भ्रामक खबरों से बचना चाहिए

उत्तराखंड में आज दिनभर से एक खबर को लेकर जमकर चर्चा हो रही है। दरअसल इस चर्चा का विषय मीडिया की घटती विश्वसनीयता है। यह इसलिए क्यूंकि आज सुबह से ही राज्य सरकार के दो विज्ञापन को लेकर आधारहीन खबरें प्रकाशित की जा रही हैं। हैरानी की बात यह है कि बिना तथ्यों की जानकारी के एक मनगढ़ कहानी बनाकर खबर के रूप में प्रसारित किया जा रहा है। दरअसल ताजा मामला मुख्यमंत्री वात्सल्य योजना के विज्ञापन से जुड़ा हुआ है। जिस पर कतिपय समाचार पोर्टल पर मुख्यमंत्री के तस्वीर के साथ विभागीय मंत्री की फोटो न लगाए जाने को लेकर भ्रामक स्थिति उत्पन्न की जा रही है।

एक नजर कोर्ट के आदेश पर

दरअसल 13 मई 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक मामले की सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया गया था कि सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश की फोटो ही लगाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद कर्नाटक सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार समेत कई राज्यों की सरकार ने इस बार सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से पुनर्विचार याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई करते हुए ’18 मार्च 2016 को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष की पीठ ने यह आदेश संशोधित करते हुए निर्णय दिया कि सरकारी विज्ञापन में मुख्यमंत्री की फोटो लगाई जा सकेगी, इसके अलावा कोर्ट ने इसी आदेश में विभागों के कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्रियों को भी फोटो लगाने हेतु अनुमति प्रदान की है. इस आदेश के तीसरे बिंदु में स्पष्ट कहा गया है कि यदि विभागीय मंत्री की फोटो लगती है तो उसमें मुख्यमंत्री की तस्वीर नहीं लगाई जाएगी यानी कि राज्य सरकार के विज्ञापन में या तो मुख्यमंत्री या फिर विभागीय मंत्री की तस्वीर ही लगाई जाएगी।

मनगढ़त खबरें लिखकर टीआरपी बटोरने की कोशिश
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ज्यादातर राज्य सरकारों द्वारा सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री की ही तस्वीर लगाई जाती हैं, यह बात अलग है कि अगर विभाग अलग से विज्ञापन प्रकाशित कर रहा है तो उसमें विभागीय मंत्री की तस्वीर लगाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी के बिना कतिपय न्यूज पोर्टल इस तरह के मनगढ़त खबरें लिखकर टीआरपी बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। लिहाजा जनता के बीच भी भ्रामक जानकारी दी जा रही है।