एवीएसडी नामक बीमारी की एम्स में हुई सफल सर्जरी

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश के सीटीवीएस विभाग के चिकित्सक इन दिनों छोटे बच्चों व युवाओं के दिल के जटिल ऑपरेशन सफलतापूर्वक अंजाम दे रहे हैं। विभाग में ए.वी.एस.डी नामक गंभीर बीमारी से ग्रसित तीन मरीजों की सफल सर्जरी पर एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने चिकित्सकों की प्रशंसा की और उन्हें और मरीजों की सेवा और बेहतर ढंग से करने के लिए प्रोत्साहित किया। निदेशक एम्स ने कहा कि संस्थान में मरीजों को वर्ल्डक्लास स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जा रही हैं, जिससे उन्हें किसी भी मर्ज के इलाज के लिए उत्तराखंड से बाहर के अस्पतालों में अपने उपचार के लिए परेशान नहीं होना पड़े।
एम्स ऋषिकेश में सहारनपुर, उत्तरप्रदेश निवासी एक 20 वर्षीय युवक जो कि 20 साल से दिल की जन्मजात गंभीर बीमारी ए.वी.एस.डी से जूझ रहा था, मगर आसपास उच्चतम मेडिकल सुविधाओं के अभाव के चलते इलाज नहीं करा पा रहा था। उक्त मरीज की ए.वी.एस.डी नामक बीमारी का एम्स के सीटीवीएस विभाग में सफलतापूर्वक हार्ट सर्जरी की गई।

इस जटिल शल्य चिकित्सा को अंजाम देने वाले पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जन डा. अनीश गुप्ता ने बताया ​कि इस 20 वर्षीय युवक के दिल में छेद होने के साथ ही दो वाल्व लीक कर रहे थे, इसकी वजह इन वाल्व का जन्म से ही पूर्णरूप से विकसित नहीं होना था। इस ऑपरेशन में हार्ट के ब्लॉक होने एवं पेसमेकर डालने का भी खतरा होता है। मगर डा. अनीश ने चिकित्सकीय टीम के सहयोग से इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है।
इससे कुछ समय पूर्व पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जन डा. अनीश हरिद्वार निवासी एक अन्य 20 वर्षीय युवक और हल्द्वानी के एक 4 साल के बच्चे का भी ए.वी.एस.डी का सफल ऑपरेशन कर चुके हैं। निदेशक प्रो. रविकांत ने इस जटिल सर्जरी के लिए चिकित्सकीय टीम की सराहना की है, साथ ही काॅर्डियक एनिस्थीसिया के डा. अजेय मिश्रा व पीडियाट्रिक काॅर्डियोलॉजिस्ट डा. यश श्रीवास्तव की भी पीठ थपथपाई।
क्या है ए.वी.एस.डी बीमारी यह एक जन्मजात दिल की बीमारी है। जिसमें दिल के अंदर की बनावट पूरी नहीं होती है। यह दो प्रकार से होता है। पार्शियल या कम्प्लीट। इस बीमारी में मनुष्य के दिल में एक या दो छेद होने के साथ ही दो वाल्व भी अधूरे विकसित होते हैं, जो कि लीक करने लगते हैं। इस स्थिति में दिल में दो छेद वाले बच्चों का जन्म से पहले साल में ही ऑपरेशन करना होता है अन्यथा यह बीमारी लाइलाज हो जाती है। मगर दिल में एक छेद वाले (प्राइमम एएसडी) रोग से ग्रसित बच्चे जब कुछ बड़े हो जाते हैं, उन्हें इसके बाद इस बीमारी से दिक्कत बढ़ने लगती है।