श्री भरत मंदिर में आयोजित भागवत कथा का चतुर्थ दिन, वामन अवतार की कथा का हुआ वर्णन

ब्रह्मलीन पूज्य महंत अशोक प्रपन्नाचार्य जी महाराज की पुण्य स्मृति मे आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर भगवान के वामन अवतार की कथा का श्रवण कराया गया।

कथा व्यास डा. राम कमल दास वेदांती जी ने बताया कि वामन अवतार भगवान विष्णु के दशावतारो में पांचवा अवतार और मानव रूप में अवतार था। जिसमें भगवान विष्णु ने एक वामन के रूप में इंद्र की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया। वामन अवतार की कहानी असुर राजा महाबली से प्रारम्भ होती है। महाबली प्रहलाद का पौत्र और विरोचना का पुत्र था। महाबली एक महान शासक था जिसे उसकी प्रजा बहुत स्नेह करती थी। उसके राज्य में प्रजा बहुत खुश और समृद्ध थी। उसको उसके पितामह प्रहलाद और गुरु शुक्राचार्य ने वेदों का ज्ञान दिया था।

उन्होंने बताया कि समुद्रमंथन के दौरान जब देवता अमृत ले जा रहे थे। तब इंद्रदेव ने बली को मार दिया था जिसको शुक्राचार्य ने पुनः अपन मन्त्रो से जीवित कर दिया था। महाबली ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। जिसके फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा ने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। बली भगवान ब्रह्मा के आगे नतमस्तक होकर बोला “प्रभु, मै इस संसार को दिखाना चाहता हूँ कि असुर अच्छे भी होते हैं। मुझे इंद्र के बराबर शक्ति चाहिए और मुझे युद्ध में कोई पराजित ना कर सके।ष् भगवान ब्रह्मा ने इन शक्तियों के लिए उसे उपयुक्त मानकर बिना प्रश्न किये उसे वरदान दे दिया।
उन्होंने बताया कि शुक्राचार्य एक अच्छे गुरु और रणनीतिकार थे जिनकी मदद से बली ने तीनो लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। बली ने इंद्रदेव को पराजित कर इंद्रलोक पर कब्जा कर लिया। एक दिन गुरु शुक्राचार्य ने बली से कहा अगर तुम सदैव के लिए तीनो लोकों के स्वामी रहना चाहते हो तो तुम्हारे जैसे राजा को अश्वमेध यज्ञ अवश्य करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि बली अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए यज्ञ की तैयारी में लग गया। बली एक उदार राजा था जिसे सारी प्रजा पसंद करती थी। इंद्र को ऐसा महसूस होने लगा कि बली अगर ऐसे ही प्रजापालक रहेगा तो शीघ्र सारे देवता भी बली की तरफ हो जायेंगे। इंद्रदेव देवमाता अदिति के पास सहायता के लिए गए और उन्हें सारी बात बताई। देवमाता ने बिष्णु भगवान से वरदान माँगा कि वे उनके पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लेकर बली का विनाश करें। जल्द ही अदिति और ऋषि कश्यप के यहाँ एक सुंदर बौने पुत्र ने जन्म लिया। पांच वर्ष का होते ही वामन का जनेऊ समारोह आयोजित कर उसे गुरुकुल भेज दिया। इस दौरान महाबली ने 100 में से 99 अश्वमेध यज्ञ पुरे कर लिए थे। अंतिम अश्वमेध यज्ञ समाप्त होने ही वाला था कि तभी दरबार में दिव्य बालक वामन पहुँच गया। महाबली ने कहा कि आज वो किसी भी व्यक्ति को कोई भी दक्षिणा दे सकता है। तभी गुरु शुक्राचार्य महाबली को महल के भीतर ले गये और उसे बताया कि ये बालक ओर कोई नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं वो इंद्रदेव के कहने पर यहाँ आए हैं और अगर तुमने इन्हें जो भी मांगने को कहा तो तुम सब कुछ खो दोगे।
उन्होंने बताया कि महाबली अपनी बात पर अटल रहे और कहा मुझे वैभव खोने का भय नहीं है बल्कि अपने प्रभु को खोने का है इसलिए मै उनकी इच्छा पूरी करूंगा। महाबली उस बालक के पास गया और स्नेह से कहा “आप अपनी इच्छा बताइये”। उस बालक ने महाबली की और शांत स्वभाव से देखा और कहा “मुझे केवल तीन पग जमीन चाहिए जिसे मैं अपने पैरों से नाप सकूं”। महाबली ने हँसते हुए कहा “केवल तीन पग जमीन चाहिए, मैं तुमको दूँगा। जैसे ही महाबली ने अपने मुँह से ये शब्द निकाले वामन का आकार धीरे धीरे बढ़ता गया। वो बालक इतना बढ़ा हो गया कि बाली केवल उसके पैरों को देख सकता था। वामन आकार में इतना बढ़ा था कि धरती को उसने अपने एक पग में माप लिया।
दुसरे पग में उस दिव्य बालक ने पूरा आकाश नाप लिया। अब उस बालक ने महाबली को बुलाया और कहा मैंने अपने दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया है। अब मुझे अपना तीसरा कदम रखने के लिए कोई जगह नहीं बची, तुम बताओ मैं अपना तीसरा कदम कहाँ रखूँ।
महाबली ने उस बालक से कहा “प्रभु, मैं वचन तोड़ने वालों में से नहीं हूँ आप तीसरा कदम मेरे शीश पर रखिये। भगवान विष्णु ने भी मुस्कुराते हुए अपना तीसरा कदम महाबली के सिर पर रख दिया। वामन के तीसरे कदम की शक्ति से महाबली पाताल लोक में चला गया। अब महाबली का तीनो लोकों से वैभव समाप्त हो गया और सदैव पाताल लोक में रह गया। इंद्रदेव और अन्य देवताओं ने भगवान विष्णु के इस अवतार की प्रशंशा की और अपना साम्राज्य दिलाने के लिए धन्यवाद दिया।
चतुर्थ दिवस की पावन पवित्र कथा मे श्री भरत मंदिर में पूर्व मुख्यमंत्री माननीय हरीश रावत जी ने व्यास जी महाराज का आशीर्वाद लिया श्री भरत मंदिर के महंत वत्सल प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी को प्रसाद और तुलसी का पौधा भेंट किया और इस अवसर पर श्री भरत मंदिर के महंत वत्सल प्रपन्नाचाय, हर्ष वर्धन शर्मा, वरुण शर्मा, मधु सूदन शर्मा, शेखर शर्मा, दीप शर्मा , राजीव मोहन अग्रवाल, राजपाल खरोला, दीप शर्मा, महन्त रवि शास्त्री, मेजर गोविंद सिंह रावत आदि उपस्थित थे।

श्री भरत में आयोजित भागवत कथा का दूसरा दिन, सीएम ने की शिरकत

ब्रह्मलीन पूज्य महंत अशोक प्रपन्नाचार्य जी महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमदभागवत कथा के द्वितीय दिवस ध्रुव चरित्र का मार्मिक वर्णन प्रस्तुत हुआ। इस मौके पर कथा मर्मज्ञ अंतर्राष्ट्रीय संत पूज्य डा रामकमल दास वेदांती जी महाराज ने श्रोताओं को बताया कि नारद शिष्य ध्रुव ने अटल तपस्या से भगवान का मनमोह लिया। जिससे अपना और अपने परिवार का नाम अक्षय कर लिया। इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी पहुंचे और भागवत कथा का श्रवण किया।

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि भागवत ही भगवान है। भागवत भगवान का अक्षरावतार है। वक्ता का चरित्र स्वच्छ होना चाहिए, वहीं श्रोता भगवान के प्रति समर्पित होना चाहिए। वक्ता प्रेरणा का पुंज होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान जीव का उद्धार करते हैं।

सीएम धामी ने कहा कि उत्तराखंड की देवभूमि सदैव देवत्व के भाव की है जहां धर्म, संस्कृति और संस्कारों की गंगा निरंतर प्रवाहमान रहती है। उन्होंने कहा कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी का धर्म स्थानों के प्रति श्रेष्ठता का भाव है सम्पूर्ण देश और उत्तराखंड मे धर्म पीठों और मंदिरों के पुनर्निर्माण सौंदर्य के लिए प्रधानमंत्री कृत संकल्प लेकर उद्धार कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार के पावन पुनीत धर्म कार्यों में कोई बुलाया नहीं जाता बल्कि जिस पर भगवान की कृपा होती है वही ऐसे पावन पवित्र अनुष्ठानों में आते हैं उन्हीं लोगों को यह सौभाग्य मिलता है जिनके पुण्य श्रेष्ठ होते है। इस मौके पर व्यास पीठ पर पूज्य संत डॉ राम कमल दास वेदांती जी का आशीर्वाद प्राप्त किया।

इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती, श्री भरत मंदिर के महंत वत्सल प्रपन्नाचार्य जी महाराज, श्री हर्षवर्धन शर्मा, वरुण शर्मा, विजय बड़थ्वाल, विनय उनियाल, मधुसुधन शर्मा, महामंडलेश्वर रामेश्वर दास जी महाराज, महन्त रवि प्रपन्नाचार्य, महामंडलेश्वर विष्णु दास जी महाराज, परमानंद दास जी महाराज आदि उपस्थित थे।