खराब इंजन को बदलना छोड़ सही डिब्बे बदल रही मोदी सरकारः खरोला


मोदी सरकार के नए मंत्रिमंडल पर कांग्रेस के प्रदेश महासचिव राजपाल खरोला ने कटाक्ष किया है। बोले, मोदी सरकार का इंजन खराब हो चुका है, खराब इंजन को बदलने के बजाए सरकार डिब्बे बदलने पर ध्यान दे रही है।

खरोला, ने कहा की स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को मंत्री पद से हटाकर मोदी सरकार ने इस बात पर मुहर लगा दी है की कोरोना काल में लाखो लोगो की मौत की जिम्मेदार वे खुद है, इसके अलावा कानून मंत्री, शिक्षा मंत्री आदि अहम मंत्रालय के मंत्रियों को हटाना ये स्पष्ट करता है की मोदी सरकार की उलटी गिनतिया शुरू हो गई है।

खरोला, ने कहा की केंद्र सरकार से उत्तराखंड को नए मंत्रिमंडल विस्तार से काफी उम्मीद दी, पर उत्तराखंड वासियों की उम्मीद में पानी फेरते हुए निशंक को शिक्षा मंत्रालय से हटाकर व अजय भट्ट को केंद्रीय राज्यमंत्री देकर राज्य के भाजपा नेताओं की केंद्र में पैठ को भी उजागर कर दिया।

खरोला, ने कहा की जब कोरोना काल में अन्तराष्ट्रीय मिडिया ने केंद्र सरकार को आयना दिखाकर सरकार के नाटकीय कामकाज से देश दुनिया को रूबरू कराया तब सरकार ने देश वासियों को मुफ्त वैक्सीन लगाने की सुध ली, और अब जब अन्तराष्ट्रीय पटल पर समूचे देश की छवि धूमिल हो चुकी है उस वक्त प्रधानमंत्री ने खुद अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को दे देना चाहिए था पर देश की जनता को बरगलाने के लिए इंजन के डब्बो को बदलने का कार्य कर रही है।

खरोला, ने कहा की देश की जनता मोदी सरकार की निति और नियत से वाकिफ हो चुकी है और आने वाले राज्यों के चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव में जनता भाजपा का सूपड़ा साफ करेगी।

इंदिरा गांधी के बलिदान को कांग्रेस ही नहीं भारत वर्ष याद करेगाः मधु जोशी

स्वर्गीय इंदिरा गांधी के बलिदान दिवस पर कांग्रेस की ब्लॉक अध्यक्ष चंद्रकांता जोशी और महानगर अध्यक्ष मधु जोशी ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।

मौके पर चंद्रकांता जोशी ने कहा कि उन्हें इंदिरा गांधी के बाल्यकाल ने बहुत प्रभावित किया। बाल्यकाल से इंदिरा गांधी लगातार संघर्षशील रही और अलग-अलग समूह का निर्माण कर कुछ ना कुछ समाज सेवा के कार्य में निरंतर लगी रहती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि वह राजनीति के सर्वोच्च शिखर तक भी पहुंच गई।

महानगर अध्यक्ष मधु जोशी ने कहा कि प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के बलिदान को कांग्रेस ही नहंी, बल्कि संपूर्ण भारत वर्ष भी हमेशा याद रखेगा। इंदिरा गांधी के पद चिन्हों पर चल कर कांग्रेस ने काफी तरक्की की और जनमानस के हृदय में भी स्थान बनाया। कहा कि वर्तमान में उनके जैसे बलिदानी नेताओं और नेत्रीयों का होना बहुत मुश्किल है। मौके पर रेशमा, तारा कश्यप, धनवंतरी , सुमन, विद्यावती देवी, बाला, मंजू, सुधा त्यागी, सविता थपलियाल, पुष्पा शर्मा आदि ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

तो हरीश ने अपने चहेते को कमान देने के लिए इस्तीफे का दाव चला

लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए राष्ट्रीय महासचिव और असम प्रभारी के पदभार से इस्तीफा देकर हरीश रावत ने प्रदेश में कांग्रेस की सियासत को गर्मा दिया है। रावत के इस्तीफे के बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष प्रीतम सिंह समेत प्रदेश पदाधिकारियों पर भी इस्तीफे को लेकर दबाव बढ़ गया है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद जिस तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने पद छोड़ा है, उससे कांग्रेस की अंदरूनी सियासत में हलचल और असमंजस बढ़ गया है। अपने इस्तीफे के बाद राहुल गांधी पार्टी के अन्य पदाधिकारियों को भी निशाने पर ले चुके हैं। इस बीच राष्ट्रीय महासचिव और असम प्रभारी के पद से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी इस्तीफा दे दिया है। यह दीगर बात है कि इसकी जानकारी उन्होंने फेसबुक पोस्ट पर दी। हरीश रावत उत्तराखंड की सियासत से गहरे जुड़े रहे हैं। उत्तराखंड में भी कांग्रेस को लोकसभा की पांचों सीटों पर हार मिली। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत नैनीताल संसदीय सीट, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह टिहरी संसदीय सीट और राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा अल्मोड़ा संसदीय सीट से पार्टी प्रत्याशी थे।
इन तीनों दिग्गजों को भी हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और असम के प्रभारी के तौर पर हरीश रावत ने इस्तीफा तो दिया ही, साथ ही लोकसभा चुनाव में हार के लिए पार्टी की संगठनात्मक कमजोरी के लिए भी पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया। असम में पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहने के लिए भी बतौर प्रभारी उन्होंने खुद को उत्तरदायी ठहराने से गुरेज नहीं किया।
रावत के इस स्टैंड को प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर दबाव बढ़ाने वाला माना जा रहा है। हालांकि इससे प्रदेश में पार्टी के भीतर गुटबंदी तेज होने के आसार हैं। प्रदेश में कांग्रेस के भीतर प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की सियासी जुगलबंदी को हरीश रावत खेमे से गाहे-बगाहे चुनौती मिलती रहती है। हालांकि श्रीनगर और बाजपुर में आठ जुलाई को होने वाले नगर निकाय चुनाव में पार्टी को कामयाबी दिलाने को पार्टी के सभी दिग्गज नेता एकजुट दिख रहे हैं। पहले बाजपुर और फिर गुरुवार को श्रीनगर नगरपालिका परिषद अध्यक्ष पद के चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में सभी दिग्गजों ने एक साथ प्रचार भी किया। फिलहाल पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मीडिया से बातचीत में प्रदेश में कांग्रेस के भीतर किसी तरह की गुटबाजी होने से साफ इन्कार किया है।

हार के बाद कौन सा दांव खेल रहे हरीश रावत

देहरादून।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को विधानसभा चुनाव ने भले ही मायूस किया हो, लेकिन उनके हौसले अभी पस्त नहीं हुए हैं। दावतों का सिलसिला जारी रख वह खुद को सूबे की सियासत के केंद्र में बनाए रखने का कोई मौका चूकने को तैयार नहीं हैं। लेकिन, दो माह के भीतर उनकी दावतों का अंदाज कुछ अलहदा ही है।
विधानसभा चुनाव में हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर की जिन दो सीटों पर मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जो दांव खेला था, उसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने दून शहर से दूरी बनाकर पहाड़ की तलहटी को अपने आशियाने के लिए चुना। इसके बाद पहाड़ को केंद्र में रखकर उनकी दावतों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उससे पार्टी के बाहर और भीतर उनके प्रतिद्वंद्वी भी खासे सकते में हैं। हरदा सुर्खिया बटोरने में उनसे कहीं आगे हैं।
पहाड़ के उत्पादों को उनकी दावतों में मिल रही तरजीह को उनके पहाड़ को केंद्र में रखकर बुने जा रहे सियासी एजेंडे से जोड़कर देखा जा रहा है। इस एजेंडे के निशाने पर वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव भी हैं। विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जा चुका है, लिहाजा हरीश रावत यह जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में उनकी सियासी हैसियत उनकी सक्रियता से ही साबित होनी है। ऐसे में हरदा अभी से फूंक-फूंककर कदम बढ़ाते दिख रहे हैं। पहाड़ की सियासत में रिवर्स पलायन को उनकी रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है। इसके बूते ही पलायन से शहरों में उभर गए मतदाताओं के पहाड़ों पर भी उनकी नजरें टिकी हैं।

क्या वेंकैया नाडयू फिर फेरेंगे विपक्ष के मंसूबों पर पानी?

नई दिल्ली।
कांग्रेस की अगुवाई में 18 विपक्षी दलों द्वारा गोपाल कृष्ण गांधी को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाए जाने के बाद बीजेपी पर दबाव था कि इस पद के लिए किसी कद्दावर शख्सियत को मैदान में उतारे। आखिरकार बीजेपी ने वेंकैया नाडयू पर दांव खेला। नायडू पार्टी और एनडीए के लिए संकटमोचक रहे हैं फिर भी उनपर उपराष्ट्रपति के लिए दांव खेलने का फैसला बीजेपी का बहुत सोच-समझकर लिया गया फैसला है।
उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। ऐसे में नायडू के लंबे संसदीय अनुभव का लाभ मिलेगा। उनकी जीत तय मानी जा रही है। वह अबतक के सभी उपराष्ट्रपतियों में राज्यसभा का सबसे ज्यादा अनुभव रखने वाले होंगे। इसके अलावा वह संसदीय कार्य मंत्री भी रहे हैं। अबतक कोई भी उपराष्ट्रपति संसदीय कार्यमंत्री नहीं रहा है। मोदी सरकार को राज्यसभा के उपसभापति के तौर पर उपराष्ट्रपति पद की संवेदनशीलता का बखूबी अंदाजा है और यह उसके फैसले में भी झलक रहा है।
वेंकैया नायडू 1998 से अब तक लगातार राज्यसभा का सदस्य रहे हैं। उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के बाद उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया है। उन्होंने राज्यसभा में कर्नाटक और राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया है, इस तरह उन्होंने सदन में उत्तर और दक्षिण भारत दोनों का प्रतिनिधित्व किया है। वह बीजेपी के कद्दावर नेता रहे हैं। उनके पास राजनीतिक, संसदीय और प्रशासनिक तीनों अनुभव हैं।
राज्यसभा में अपने सबसे ज्यादा अनुभवी सदस्यों में से एक को उपराष्ट्रपति पद के लिए उतारकर मोदी सरकार ने इस पद की अहमियत को तवज्जो दिया है। इसके अलावा नायडू की ईमानदारी भी संदेह से परे हैं। एक किसान के बेटे वेंकैया नायडू ग्रासरूट लेवल से उठे हैं और आज वह जो कुछ भी हैं उसके पीछे उनकी मेहनत और लगन है।
नायडू विधायक और सांसद रह चुके हैं। एक राष्ट्रीय दल के अध्यक्ष रह चुके हैं। वह केंद्र में शहरी विकास के साथ-साथ ग्रामीण विकास मंत्रालय की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, इससे वह ग्रामीण भारत और शहरी भारत दोनों के आकांक्षाओं से अच्छी तरह परिचित हैं। नायडू को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने राजनीतिक शख्स को इस उच्च संवैधानिक पद पर बैठाने की अपनी प्रतिबद्धता को दिखाया है। इससे पहले बीजेपी ने लंबे संसदीय जीवन वाले अपने कद्दावर नेता भैरो सिंह शेखावट को इस पद के लिए चुना था।