जीएसटी क्षतिपूर्ति की अवधि को आगे बढ़ाने का अनुरोध

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में चंडीगढ़ में 47वीं जीएसटी कॉउंसिल की दो दिवसीय बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में उत्तराखंड के वित्त मंत्री डॉ. प्रेमचंद अग्रवाल शामिल हुए। बैठक के बीच डॉ अग्रवाल ने केंद्रीय मंत्री से मुलाकात की। उन्होंने जीएसटी परिषद को जीएसटी लागू होने के बाद उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति की जानकारी दी और जीएसटी क्षतिपूर्ति की अवधि को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। इस सन्दर्भ में डॉ अग्रवाल ने केंद्रीय मंत्री को ज्ञापन भी दिया।
बुधवार को बैठक के दूसरे दिन केंद्रीय मंत्री से हुई मुलाकात में वित्त मंत्री डॉ. अग्रवाल ने बताया कि राज्य के गठन के समय वर्ष 2000-2001 में प्राप्त संग्रह 233 करोड़ था, नया राज्य गठन होने के बावजूद उत्तराखंड लगातार इस ओर वृद्धि प्राप्त कर रहा था। वर्ष 2016-17 में प्राप्त संग्रह राज्य गठन के समय से लगभग 31 गुना बढ़कर रू0 7,143 करोड़ हो गया था। इस अवधि राजस्व प्राप्ति के दृष्टिगत राज्य लगभग 19 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा था और वृद्धि दर के आधार पर देश के अग्रणी राज्यों में शामिल था। जबकि जीएसटी लागू होने के उपरान्त राज्य के राजस्व में अपेक्षित वृद्धि दर्ज नहीं की जा सकी है।
वित्त मंत्री ने इसके प्रमुख कारण भी गिनाये। उन्होंने कहा कि संरचनात्मक परिवर्तन, न्यून उपभोग आधार, एसजीएसटी के रूप में भुगतान किए गए करों का आईजीएसटी के माध्यम से बहिर्गमन, वस्तुओं पर वैट की तुलना में कर की प्रभावी दर कम होना, राज्य में सेवा का अपर्याप्त आधार तथा जीएसटी के अन्तर्गत वस्तुओं तथा सेवाओं पर कर दर में निरन्तर कमी होना हैं।
वित्त मंत्री डॉ. अग्रवाल ने कहा कि राज्य द्वारा प्राप्त वास्तविक राजस्व के कम रहने के कारण राज्य की जीएसटी प्रतिपूर्ति की आवश्यकता में निरंतर वृद्धि हुयी है। यह सम्भावित है कि क्षतिपूर्ति अवधि की समाप्ति के उपरान्त वर्ष 2022-23 में ही राज्य को लगभग सीधे तौर पर रू 5000 करोड़ की हानि होने की संभावना है। जो उत्तराखंड के भौगोलिक और आर्थिक दृष्टि से सही नही है।
वित्त मंत्री डॉ. अग्रवाल ने बताया कि उत्तराखण्ड राज्य की चीन और नेपाल के साथ एक लम्बी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा है, जिसके कारण राज्य का अत्यधिक सामरिक महत्व है। सीमांत पर्वतीय राज्य होने के कारण सुविधाओं के अभाव में पलायन राज्य की एक मुख्य समस्या रहा है। सीमांत क्षेत्रों से पलायन राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त संवेदनशील है इसीलिए राज्य में आधार संरचना का विकास किया जाना अत्यधिक आवश्यक है। इस प्रकार राज्य में आधार संरचना विकसित किये जाने तथा अन्य विकास कार्यों के लिए अतिरिक्त राजस्व संसाधनों की आवश्यकता है।
वित्त मंत्री डॉ. अग्रवाल ने कहा कि जीएसटी क्षतिपूर्ति पर राज्य की अत्यधिक निर्भरता होने के कारण क्षतिपूर्ति व्यवस्था के अभाव में राज्य के विकास एवं जन कल्याणकारी कार्य प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे।
वित्त मंत्री डॉ. अगवाल ने इस बात पर जोर दिया कि जीएसटी क्षतिपूर्ति की अवधि जून, 2022 के पश्चात भी अग्रेत्तर वर्षों के लिये बढ़ाया जाना राज्य के हित में आवश्यक है। इस संदर्भ में डॉ अग्रवाल ने ज्ञापन भी दिया।
इस मौके पर केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सकारात्मक कार्यवाही का भरोसा दिया। वहीं, डॉ अग्रवाल ने केंद्रीय मंत्री को वर्षाकाल के बाद चारधाम यात्रा पर आने का निमंत्रण भी दिया, जिसे केंद्रीय मंत्री ने स्वीकार भी किया।

जीएसटी काउंसिल ने मामना राज्यों को भारी राजस्व का नुकसान

जीएसटी काउंसिल की करीब 5 घंटों तक चली विशेष बैठक में राज्यों के राजस्व की भरपाई के मुद्दे पर गंभीर चर्चा की गई। काउंलिस की बैठक में इस एक खास मुद्दे पर कई विकल्पों को ध्यान में रखकर चर्चा हुई। सभी राज्यों के वित्त मंत्री इस बात पर सहमत थे कि साल 2020-21 कोविड की वजह से काफी मुश्किल भरा रहा है और इस वजह से जीएसटी राजस्व में और ज्यादा गिरावट देखी गई। काउंसिल का आकलन है कि इस साल के लिए राज्यों को राजस्व का कुल घाटा 2 लाख 35 हजार करोड़ का हो सकता है।
काउंसिल में इस मुद्दे पर साफ चर्चा हुई कि ये घाटा केवल जीएसटी की वजह से नहीं हुआ है बल्कि कोविड की वजह से भी राज्यों को काफी नुकसान हुआ है। जीएएसटी का असर समझें तो इस साल के लिए ये घाटा 97,000 करोड़ रूपए का हो सकता है। चर्चा के बाद राज्यों के सामने दो विकल्प दिए गए हैं। वे चाहें तो जीएसटी राजस्व घाटे के 97000 करोड़ के लिए आरबीआई से कम ब्याज दर पर कर्ज ले सकते हैं। इस विकल्प में उन्हें कम उधार लेना पड़ेगा और साल 2022 के बाद कंपन्सेशन सेस के जरिए जो संग्रह किया जाएगा उससे घाटे की भरपाई की जाएगी।
दूसरे विकल्प में राज्य कुल 2,35,000 करोड़ की राशि के घाटे की भरपाई के लिए आरबीआई से उधार ले सकते हैं जिसमें कोविड की वजह से नुकसान भी शामिल है। चर्चा के बाद एक बात साफ हो गई कि जीएसटी के नुकसान के लिए उधार केन्द्र सरकार को नहीं लेना होगा। अब ये विकल्प राज्यों के ऊपर छोड़ दिया गया है। दोनों विकल्पों पर चर्चा के लिए राज्यों को 7 दिनों का वक्त दिया गया है और परिषद सात दिनों के बाद फिर से इन विकल्पों पर अंतिम फैसला लेगी।

जानिए कैसा था पंत का जीवन, क्यों हर किसी की यादों में जिंदा है प्रकाश पंत

प्रकाश पंत के बारे में अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि फार्मासिस्ट होने के बावजूद उन्होंने वित्त, संसदीय व विधायी कार्यों में महारथ हासिल की। वित्त विशेषज्ञ के तौर पर जीएसटी काउंसिल में उन्हें और उनके सुझावों को भरपूर तवज्जो दी गई। कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। ये पंक्तियां कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत पर सटीक बैठती हैं।
1977 में छात्र राजनीति में वह सक्रिय हुए और सैन्य विज्ञान परिषद में महासचिव चुने गए। पेशे से फार्मासिस्ट पंत ने 1984 में सरकारी सेवा को त्याग कर समाजसेवा के लिए सियासत का रास्ता चुना। 1988 में नगर पालिका परिषद पिथौरागढ़ के सदस्य चुने जाने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अविभाजित उत्तर प्रदेश में 1998 में वह विधान परिषद के सदस्य चुने गए और वहां भी अपने सवालों के जरिये छाप छोड़ी।
9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का जन्म हुआ तो उन्हें अंतरिम विधानसभा के स्पीकर की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान उन्होंने अपने संसदीय ज्ञान और विधायी कौशल का बखूबी परिचय दिया। 2007 में भाजपा की सरकार में पंत संसदीय कार्य, विधायी, पेयजल, श्रम, निर्वाचन, पुनर्गठन व बाह्य सहायतित परियोजनाएं मंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।
इस दौरान भी उनके संसदीय ज्ञान और विधायी कौशल को हर किसी ने सराहा। भाजपा की मौजूदा सरकार में भी वह कैबिनेट मंत्री के रूप में संसदीय कार्य, विधायी, भाषा वित्त, आबकारी, पेयजल एवं स्वच्छता, गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग का दायित्व देख रहे थे। इस कार्यकाल में तो वह वित्त के विशेषज्ञ के तौर पर उभरे, तो हर मोर्चे पर सरकार को संभालते भी आए। वित्त में उनकी महारथ को जीएसटी काउंसिल ने भी सराहा। काउंसिल में पंत को भरपूर तवज्जो दी गई और वित्त मंत्रियों के समूह में उन्हें भी शामिल किया गया। वित्त पर अपनी मजबूत पकड़ के साथ ही जीएसटी की बारीकियों की जानकारी के बूते उन्होंने कई सुझाव काउंसिल को दिए।
जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के मद्देनजर वार्षिक टर्नओवर की सीमा से संबंधित मसले को सुलझाने में उनकी अहम भूमिका रही। यही नहीं, जीएसटी के फायदों के बारे में व्यापारियों व कारोबारियों को समझाने और उनकी दिक्कतों को हल करने के चलते वह व्यापार व कारोबारी जगत से जुड़े लोगों में खासे लोकप्रिय थे। उनके संसदीय ज्ञान और विधायी कौशल का हर कोई मुरीद था। सत्ता पक्ष भी और विपक्ष भी। जब कभी सरकार किसी विषय पर कहीं भी उलझी तो उसे निकालने में वह संकटमोचक बनकर उभरे। प्रदेश हित को उन्होंने सर्वोपरि रखा और इसके लिए सदन और सदन के बाहर संघर्ष किया। मौजूदा विधानसभा के अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल कहते हैं कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से कैबिनेट मंत्री पंत का सहयोग मिलता रहा। उनके संसदीय ज्ञान को हमेशा याद रखा जाएगा।

चला गया उत्तराखंड की सियासत का महारथी

काबीना मंत्री प्रकाश पंत यानी मृदु व्यवहार, बेहद सरल, सौम्य और मुस्कराता चेहरा। पक्ष हो या विपक्ष समेत तमाम सियासी दलों के विधायक हों या अन्य नेता सभी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सहयोग करने को हमेशा प्रकाश पंत तत्पर रहे। महज 59 साल की आयु में उत्तराखंड की सियासत का ये अजातशत्रु एकाएक गंभीर बीमारी के चंगुल में फंसकर सभी को छोड़कर चला गया। सत्तारूढ़ दल भाजपा के साथ ही विपक्षी दलों ने भी उनके निधन को राज्य के लिए सदमा बताया है। पंत की शख्सियत को बयां करते हुए कांग्रेस विधायक काजी निजामुद्दीन कहते हैं कि वह मेरे गुरु रहे हैं। मेरे पिता काजी मोईनुद्दीन भी उनका बहुत आदर करते थे। अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही प्रकाश पंत राज्य में भाजपा की सियासत का अहम हिस्सा रहे।

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प्रदेश भाजपा के दिग्गजों में शुमार होने के बावजूद प्रकाश पंत ने पार्टी के भीतर भी और बाहर विपक्षी दलों के साथ भी राजनीतिक द्वेष-विदेश से दूरी बनाए रखी। भाजपा की वर्ष 2007 में बगैर बहुमत के सत्ता में वापसी के दौरान राजनीतिक अनिश्चितता के दौर रहा हो या वर्ष 2017 में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिलने के दौरान मुख्यमंत्री पद के लिए भी उनका नाम उछला, लेकिन पंत ने खुद को पद के विवाद से भी दूर रखा।
उनके इस व्यवहार को भी पार्टी के भीतर सम्मान की नजर से देखा जाता रहा है। पंत की खासियत ये भी रही कि उन्होंने मेहनत से जुटाए ज्ञान को बांटने में दलीय आग्रह को दूर रखा। इस वजह से विपक्षी दलों के विधायक भी उनके प्रशंसक रहे। पहले स्पीकर और फिर विधायी व संसदीय कार्यमंत्री रहते हुए विधायी ज्ञान में जो महारत हासिल की, उसे सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के विधायकों से भी उन्होंने साझा किया। इसी वजह से कांग्रेस के विधायक काजी निजामुद्दीन उनके निधन को संसदीय लोकतंत्र के लिए गहरा आघात करार दिया। उन्होंने कहा कि पंत के सानिध्य में घंटों बैठकर उन्होंने विधायी ज्ञान हासिल किया। उनके पिता व अंतरिम सरकार में विधायक रहे काजी मोईनुद्दीन ने पंत को खास इज्जत दी। उनके कहने पर ही उन्होंने प्रकाश पंत से बतौर गुरु संसदीय ज्ञान हासिल किया।
पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भावुक टिप्पणी की कि प्रकाश पंत के निधन की खबर ने तन-मन दोनों को तोड़कर रख दिया। उत्तराखंड की राजनीति का अजातशत्रु चला गया। परिजनों व तुम्हारे चाहने वालों के लिए सांत्वना के शब्द ढूंढकर भी नहीं मिल पा रहे हैं।

उत्कृष्ट विधायक चुने गए थे प्रकाश पंत
काबीना मंत्री प्रकाश पंत को वर्ष 2008 में उत्कृष्ट विधायक के पुरस्कार से भी नवाजा गया था। उत्कृष्ट विधायक पुरस्कार की शुरुआत उक्त वर्ष से हुई थी। गंभीर बीमारी के चलते काबीना मंत्री प्रकाश पंत के असामयिक निधन से उत्तराखंड की सियासत में लंबे समय तक रिक्तता महसूस की जाएगी। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अंतरिम सरकार के पहले स्पीकर रहने के बाद उन्हें भाजपा की सरकारों में सात वर्ष तक विधायी एवं संसदीय कार्यमंत्री रहने का मौका मिला। वर्ष 2007 में प्रदेश की भाजपा सरकार और फिर 2017 में वर्तमान भाजपा सरकार में वह विधायी एवं संसदीय कार्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाले हुए थे। उत्तराखंड में अभी तक यह जिम्मेदारी सबसे ज्यादा संभालने का रिकार्ड उन्हीं के नाम है। उन्होंने लगातार दूसरी बार वित्त मंत्री का प्रभार भी संभाला।

राष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में याद रहेंगे पंत
कैबिनेट में वित्त मंत्री प्रकाश पंत राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज भी थे। पंत ने कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग कर मेडल प्राप्त किए हैं। निशानेबाजी के शौकीन पंत अपने व्यस्त कार्यक्रम में से भी शूटिंग के लिए समय निकाल ही लेते थे। उत्तराखंड के लोकप्रिय नेता प्रकाश पंत का बुधवार को गंभीर बीमारी के चलते निधन हो गया। राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने वाले प्रकाश पंत राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी थे। पंत ने वर्ष 2004 में कोयम्बटूर में हुई जीबी मावलंकर शूटिंग प्रतियोगिता में लक्ष्य को सटीक भेदते हुए रजत पदक पर निशाना लगाया था।
इस प्रतियोगिता में प्रकाश पंत ने वेटरन वर्ग में एमपी-एमएलए कोटे से प्रतिभाग किया था। इसके अलावा 2004 में ही देहरादून में हुई राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पंत ने स्वर्ण पदक पर निशाना साधा था। उत्तरांचल राज्य रायफल संघ के महासचिव शूटर सुभाष राणा ने बताया कि संघ द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में वह लगातार हिस्सा लेते रहते थे। इसके अलावा जब भी वह फ्री रहते थे, ऐकेडमी में निशानेबाजी करने आते थे। उन्होंने उत्तरांचल राज्य रायफल संघ की ओर से प्रकाश पंत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की।

पंत को याद कर जब भावुक हो गए सीएम त्रिवेंद्र
प्रकाश पंत के असामयिक निधन से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत उस समय भावुक हो गए, जब उन्होंने पंत के साथ बिताए 30 साल की स्मृतियों का जिक्र किया। एक वीडियो में मुख्यमंत्री ने पंत की स्मृतियों को मीडिया से साझा किया। उन्होंने बताया कि किस तरह महज 40 साल की छोटी उम्र में अपनी काबिलियत के बूते वे पहली अंतरिम विधानसभा के अध्यक्ष बने। फरवरी में बजट सत्र के दौरान बजट भाषण पढ़ते हुए जब पंत बेसुध हुए, उस वक्त का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि उन्हें इसके बाद दिल्ली में संजय गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में भर्ती कराया गया।
टेस्ट के नतीजे आने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने मुझे बताया कि प्रकाश पंत को एडवांस स्टेज का कैंसर है, जो बहुत रेयर किस्म का है। बहुत चिंता हुई। जब उन्हें उपचार के लिए अमेरिका ले जाया जा रहा था तो एक रात पहले मैंने उनसे रात 11 बजे अस्पताल में मुलाकात की। तब प्रकाश पंत ने मुझे कहा, मैं अमेरिका से स्वस्थ होकर लौटूंगा। आज उनके निधन की सूचना मिली। ये बयां करते करते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का गला रुंध गया और आंखों से आंसू छलक आए।

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