कोरोना को हराने के लिए सर्तकता और बचाव जरुरीः मुख्यमंत्री

(एनएन सर्विस)
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा है कि कोविड-19 को लेकर सर्विलांस, कान्टेक्ट ट्रेसिंग, सैम्पल टेस्टिंग, क्लिनिकल मैनेजमेंट और जन जागरूकता, इन पांच बातों पर विशेष जोर दिया जा रहा है। कोविंड-19 से लड़ाई के लिये हर प्रकार की तैयारी की गई है। स्थिति काफी कुछ नियंत्रण में होने पर भी हम पूरी तरह सतर्क हैं। राज्य में कोविड के दृष्टिगत हैल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर को काफी मजबूत किया गया है। टेस्टिंग लैब, आईसीयू, वेंटिलेटर, पीपीई किट, एन 95 मास्क, आक्सीजन सपोर्ट की पर्याप्त व्यवस्था मौजूद है। नियमित सर्विलांस सुनिश्चित किया जा रहा है। घर-घर जाकर कोरोना जैसे संदिग्ध लक्षणों वाले लोगों का पता लगाया जा रहा है। इसमें आशा और आंगनबाङी कार्यकत्रियों द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है। लगभग सभी जिलों में सर्विलांस का एक राउंड पूरा किया जा चुका है। कई जिलों में दूसरा तो कुछ में तीसरा राउंड चल रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सेम्पल टेस्टिंग में पहले की तुलना में काफी सुधार किया गया है। कोरोना संक्रमण के शुरूआत में राज्य में एक भी टेस्टिंग लेब नहीं थी जबकि अब उत्तराखंड में 5 सरकारी और 2 प्राईवेट लेब में कोविड-19 संक्रमण के सैम्पल की जांच की जा रही है। इसके अतिरिक्त एनसीडीसी दिल्ली व पीजीआई चंडीगढ़ में भी सेम्पल टेस्टिंग के लिए भेजे जा रहे हैं। सेम्पल टेस्टिंग की सुविधा जिला स्तर पर कराने के लिए सभी जिलों को ट्रूनेट मशीनें उपलब्ध करा दी गई हैं। प्रदेश के चिकित्सालयों में फ्लू क्लिनिक के माध्यम से आ रहे समस्त श्वास व इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षणों वाले मरीजों का कोविड-19 संक्रमण जांच के लिए सेम्पल लिए जा रहे हैं। सेम्पल टेस्टिंग की संख्या बढाने के लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। प्रति मिलियन जनसंख्या पर 6408 सेम्पल लिए जा रहे हैं। जल्द ही इसे देश के औसत के बराबर कर लिया जाएगा। देहरादून व नैनीताल दो जिलों में प्रति मिलियन सेम्पल राष्ट्रीय औसत से अधिक हैं। देहरादून जिले का औसत तो राष्ट्रीय औसत से दोगुना है। अन्य जिलों को भी सेम्पल टेस्टिंग बढाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए जरूरी संसाधन बढाए जा रहे हैं।
प्रदेश में बनाए गए डेडिकेटेड कोविड केयर सेंटर में हर आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। वर्तमान में राज्य में 325 कोविड केयर सेंटर स्थापित हैं। इनमें कुल बेड क्षमता 22890 है जिनमें से 289 बेड उपयोगरत हैं जबकि 22601 बेड रिक्त हैं। इस प्रकार कोविड केयर सेंटर में पर्याप्त संख्या में बेड की उपलब्धता है।
राज्य में कोविड फेसिलिटी में आक्सीजन सपोर्ट बेड की संख्या 15 मई को 673 थी जो कि अब बढ़कर 1126 हो गई है। कोविड फेसिलिटी में आईसीयू बेड की संख्या 15 मई को 216 से बढाकर 247 और वेंटिलेटर की संख्या 116 से बढाकर 159 कर दी गई है। कोविड केयर सेंटर में सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। सफाई पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। एक तरफ सैम्पल टेस्टिंग में लगातार वृद्धि हो रही है वहीं रिकवरी रेट और डबलिंग रेट भी राष्ट्रीय औसत से कहीं बेहतर है और इनमें लगातार सुधार हो रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस तरह से राज्य में सतर्कता बरती जा रही, उम्मीद है कि हम जल्द ही हालात पर नियंत्रण पा लेंगे। सभी जिलों में अधिकारी और कर्मचारी अपनी पूरी सजगता के साथ मिशनरी मोड में काम कर रहे हैं। उच्च स्तर से भी लगातार मानिटरिंग की जा रही है। जहां कमियां पाई जाती हैं उन्हें तत्काल दूर किया जाता है। इन लगभग चार माह में प्राप्त अनुभव से प्रशासनिक क्षमता में वृद्धि हुई है।

फर्जी क्लेम पाने को प्राईवेट अस्पताल कर रहे सरकार से धोखाधड़ी

अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना में सूचीबद्ध प्राईवेट अस्पताल फर्जीवाड़े से बाज नही आ रहे है। फर्जी ढंग से क्लेम हड़पने की होड़ में सभी हदें पार कर सरकार के साथ धोखाधड़ी कर रहे है। नया मामला काशीपुर स्थित एमपी मेमोरियल अस्पताल से जुड़ा है।
जहां योजना में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा सामने आया है। यहां डिस्चार्ज होने के बाद भी मरीज कई-कई दिन तक अस्पताल में भर्ती दिखाए गए। इतना ही नहीं आइसीयू में भी क्षमता से अधिक रोगियों का उपचार दर्शाया गया है। ताज्जुब ये कि डायलिसिस एमबीबीएस डॉक्टर द्वारा किया जा रहा है। वह भी क्षमता से कई अधिक। फर्जीवाड़ा यहीं नहीं रुका। ऐसे भी प्रकरण हैं जहां बिना इलाज क्लेम प्राप्त किया गया है। जिसकी मरीज को भनक तक नहीं है।
यह सारी अनियमितताएं उजागर होने पर तमाम भुगतान पर रोक लगाते हुए अस्पताल की सूचीबद्धता तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दी गई है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी युगल किशोर पंत के अनुसार राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभिकरण के सिस्टम पर अस्पताल की लॉगइन आइडी भी ब्लॉक की गई है। वहीं, अस्पताल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इसका उसे 15 दिन के भीतर जवाब देना होगा।

डिस्चार्ज होने के बाद भी रिकॉर्ड में भर्ती रहे मरीज
अस्पताल में एकाध नहीं कई स्तर पर गड़बडियां पकड़ में आई हैं। अभिलेखों के परीक्षण में 85 मामले ऐसे पाए गए हैं जिनमें मरीज जितने दिन वास्तव में अस्पताल में भर्ती रहे हैं, उससे ज्यादा दिनों के लिए मरीजों को अस्पताल में भर्ती दिखाकर अधिक धनराशि का क्लेम प्रस्तुत किया गया। 22 मामले ऐसे मिले जिनमें मरीज को डिस्चार्ज करने के बाद प्री-ऑथ इनीशियेट किया गया है।

दस बेड का आइसीयू, 20 मरीज भर्ती
अस्पताल में आइसीयू में उपचारित 263 मरीजों के भर्ती व डिस्चार्ज तिथि का अध्ययन करने पर चैंकाने वाली तस्वीर सामने आई है। आइसीयू में दस बेड हैं, पर विभिन्न दिवसों पर 11 से 20 मरीजों तक का उपचार करना दिखाया गया है। उस पर आइसीयू में केवल अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के मरीज भर्ती दिखाए गए हैं। जबकि काशीपुर का क्षेत्र उप्र से लगा हुआ है और वहां से भी मरीज उपचार के लिए यहां आते हैं। ऐसे में इस बात पर भी संदेह जताया गया है कि योजना से इतर आइसीयू में किसी अन्य का उपचार ही नहीं किया गया।

क्षमता से कई अधिक डायलिसिस
अस्पताल में सबसे बड़ी खामी डायलिसिस को लेकर सामने आई है। यहां दो मरीजों की एक दिन में दो बार डायलिसिस होना दर्शाया गया है। जबकि ऐसा संभव नहीं है। तीन अक्टूबर 2018 से नौ जून 2019 तक यहां कुल 1773 डायलिसिस होना दर्शाया गया है। अस्पताल में पांच डायलिसिस मशीन हैं। जिनमें मानकों के अनुसार प्रति दिन दस मरीजों का ही डायलिसिस किया जा सकता है। पर डायलिसिस इससे कई अधिक दिखाए गए हैं।

एमबीबीएस कर रहे डायलिसिस, दर्शाया एमडी
अस्पताल में डायलिसिस कर रहे डॉक्टर न तो नेफ्रोलॉजिस्ट हैं, न एमडी और न इसके विशेषज्ञ हैं। यानी एक ऐसे व्यक्ति द्वारा डायलिसिस किया जा रहा है जो इसके योग्य ही नहीं हैं। अस्पताल ने सूचीबद्धता के अपने आवेदन में भी किसी नेफ्रोलॉजिस्ट का उल्लेख नहीं किया था। उक्त डॉक्टर को एमडी मेडिसिन दर्शाया गया है। जबकि उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल में वह केवल एमबीबीएस डॉक्टर के रूप में पंजीकृत हैं।

अनुबंध में पांच, नौ विशेषज्ञताओं में कर रहे इलाज
अस्पताल के अनुबंध में केवल जनरल मेडिसिन, स्त्री एवं प्रसूति रोग, हड्डी रोग, जनरल सर्जरी व नियोनेटोलॉजी का ही उल्लेख है। पर इन पांच विशेषज्ञता से अलग 29 अन्य मरीजों का उपचार भी यहां किया गया। जिनमें यूरोलॉजी, पीडियाट्रिक सर्जरी, पोलीट्रॉमा और प्लास्टिक व रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के मामले शामिल हैं।

सारे नियम किए दरकिनार
अस्पताल ने सूचीबद्धता के आवेदन में हॉस्पिटल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट कॉलम में एनए अंकित किया गया है। यानी हॉस्पिटल को चलाने के लिए प्रासंगिक कानूनध्नियम के अंतर्गत सर्टिफिकेट भी नहीं है। नेशनल काउंसिल फॉर क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट द्वारा तय न्यूनतम मानकों के अनुसार अस्पताल में प्रत्येक विशेषज्ञता के लिए न्यूनतम एक एमबीबीएस डॉक्टर 24 घंटे अस्पताल में उपलब्ध होना चाहिये। पर अस्पताल इस नियम का भी पालन नहीं कर रहा है।

सरकारी चिकित्सक भी दे रहे सेवा
अस्पताल में एक चिकित्सक डॉ. एके सिरोही द्वारा भी इलाज करना दर्शाया गया है। जबकि वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र महुआखेड़ागंज ऊधमसिंहनगर में पूर्णकालिक संविदा चिकित्सक हैं। इनका सूचीबद्धता के आवेदन में कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया था।

बिना इलाज ले लिया क्लेम
एमपी मेमोरियल अस्पताल में एक से बड़े एक फर्जीवाड़े अंजाम दिए गए हैं। अस्पताल ने एक मोहल्ले में स्वास्थ्य शिविर लगाया था। जहां लोगों को अल्ट्रासाउंड में छूट प्रदान की गई। इनमें एक महिला को दिक्कत बता भर्ती होने की सलाह दी गई। जहां उसकी फोटो खींचकर कुछ जांचें लिख दी गई और उसे घर भेज दिया। आयुष्मान कार्ड की फोटो खींचकर उसे वापस कर दिया गया। अगले दिन वह रिपोर्ट लेने आई तो कहा गया कि भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है। जबकि उसे एंट्रिक फीवर के इलाज के लिए इमरजेंसी में भर्ती दिखाया गया। गलत ढंग से उसका क्लेम प्रस्तुत किया गया।