वृश्चिक लग्न में होंगे भगवान केदारनाथ के कपाट बंद

-एक नवंबर को डोली शीतकालीन गद्दीस्थल के लिए होगी रवाना
-भगवान तुंगनाथ के कपाट सात नवम्बर को धनु लग्न में होंगे बन्द
-मद्महेश्वर के कपाट 22 नवम्बर को साढ़े आठ बजे वृश्चिक लग्न में होंगे बंद

रुद्रप्रयाग।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अग्रणी व पर्वतराज हिमालय की गोद में बसे भगवान केदारनाथ, द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर व तृतीय केदार के नाम से विख्यात भगवान तुंगनाथ धामों के कपाट बन्द होने की तिथियां विजयादशमी पर्व पर पंचाग गणना, पौराणिक परम्पराओं तथा रीति-रिवाजो के अनुसार शीतकालीन गद्दी स्थलों में घोषित की गई।
विजयादशमी पर्व पर भगवान केदारनाथ व भगवान मद्महेश्वर के शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ व तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के शीतकालीन गद्दी स्थल तुंगनाथ मन्दिर मक्कूमठ में मन्दिर समिति के अधिकारियों, वेदपाठियों व हक-हकूकधारियों की मौजूदगी में तीनों धामों के कपाट बन्द होने की तिथि पंचाग गणना के अनुसार घोषित कर दी गयी। पंचाग गणना के अनुसार एक नवम्बर को प्रातः चार बजे से पूर्व श्रद्धालुओं द्वारा भगवान केदारनाथ का जलाभिषेक किया जायेगा तथा प्रातः चार से छः बजे तक भगवान केदारनाथ की विशेष पूजा-अर्चना की जायेगी। जबकि छः बजे से साढे़ सात बजे तक भगवान केदारनाथ के स्वयं भूलिंग को अनेक प्रकार की पूजार्थ सामाग्रीयों से समाधि दी जायेगी तथा ठीक साढे आठ बजे वृश्चिक लग्न में भगवान केदारनाथ के कपाट शीतकाल के लिये पौराणिक परम्पराओं व रीति-रिवाजों के साथ बन्द कर दिये जायेंगे। कपाट बन्द होते ही भगवान केदारनाथ शीतकाल के छः माह के लिये समाधि लेकर विश्व कल्याण के लिये तपस्यारत हो जायंगे।
कपाट बन्द होने के बाद भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली अपनी केदारपुरी से शीतकालीन गद्दी स्थल के लिये रवाना होगी तथा लिनचौली, रामबाड़ा, जंगलचट्टी, गौरीकुण्ड, सोनप्रयाग, सीतापुर यात्रा पडावों पर श्रद्धालुओं को आशीष देकर प्रथम रात्रि प्रवास के लिये रामपुर पहुंचेगी। दो नवम्बर को रामपुर से प्रस्थान कर शेरसी, बड़ासू, फाटा, मैखण्डा, नारायणकोटी, नाला यात्रा पड़ावों से होते हुए द्वितीय रात्रि प्रवास के लिये विश्वनाथ मन्दिर गुप्तकाशी पहुंचेगी। तीन नवम्बर को विश्वनाथ मन्दिर गुप्तकाशी से प्रस्थान कर भैंसारी, विद्यापीठ, जाबरी होते हुए अपने शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मन्दिर पहुंचकर विराजमान होगी तथा चार नवम्बर से भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा ओंकारेश्वर मन्दिर में विधिवत शुरु होगी। तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के कपाट भी सात नवम्बर को सुबह दस बजे धनु लग्न में शीतकाल के लिये बन्द कर दिये जायेंगे। कपाट बन्द होने के बाद भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली अपने धाम से शीतकालीन गद्दी स्थल के लिये रवाना होगी और सुरम्य मखमली बुग्यालों से होते हुए प्रथम रात्रि प्रवास के लिये चोपता पहुंचेगी।
आठ नवम्बर को भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली चोपता से प्रस्थान होकर बनियाकुण्ड, दुगलबिट्टा, मक्कूबैंड होते हुए बणतोली पहुंचेगी। जहां पर विभिन्न गांवों के श्रद्धालुओं द्वारा भगवान तुंगनाथ को अर्घ्य लगाकर विश्व कल्याण व क्षेत्र की खुशहाली की कामना की जायेगी। बणतोली में अर्घ्य लगने के बाद भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली अन्तिम रात्रि प्रवास के लिये भनकुण्ड पहुंचेगी तथा नौ नवम्बर को भनकुण्ड से प्रस्थान कर आकाश कामनी नदी पहुंचने पर गंगा स्नान करेगी और शीतकालीन गद्दी स्थल मक्कूमठ पहुंचने पर छः माह शीतकाल के लिये विराजमान होगी तथा दस नवम्बर से भगवान तुंगनाथ की शीतकालीन पूजा मक्कूमठ में विधिवत शुरु होगी।

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द्वितीय केदार के नाम से विख्यात भगवान मद्महेश्वर के कपाट 22 नवम्बर को साढ़े आठ बजे वृश्चिक लग्न में शीतकाल के लिये बन्द कर दिये जायंगे। कपाट बन्द होने के बाद भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली अपने धाम से रवाना होकर मैखम्बा, कुनचट्टी, नानौ, खटारा, बनातोली होते हुये प्रथम रात्रि प्रवास के लिये गौण्डार गांव पहुंचेगी। 23 नवम्बर को गौण्डार से प्रस्थान कर द्वितीय रात्रि प्रवास के लिये राकेश्वरी मन्दिर रांसी पहुंचेगी। 24 नवम्बर से राकेश्वरी मन्दिर रांसी से प्रस्थान कर उनियाणा, राऊलैंक, बुरुवा, मनसूना यात्रा पडावों पर श्रद्धालुओं को आशीष देते हुये अन्तिम रात्रि प्रवास गिरिया गांव में करेगी। 25 नवम्बर को गिरिया से प्रस्थान कर फाफंज, सलामी, मंगोलचारी, ब्राह्मणखोली, डंगवाडी होते हुये अपने शीतकालीन गद्दी स्थल ओकारेश्वर मन्दिर में विराजमान होगी तथा 26 नवम्बर से भगवान मद्महेश्वर की शीतकालीन पूजा ओंकारेश्व मन्दिर में विधिवत शुरु होगी। जबकि भगवान मद्महेश्वर की डोली के ऊखीमठ आगमन पर लगने वाला त्रिदिवसीय मद्महेश्वर मेला 24 नवम्बर से शुरु होगा। इस मौके पर कार्याधिकारी अनिल शर्मा, प्रधान पुजारी राजशेखर लिंग, बागेश लिंग, शशिधर लिंग, पूर्व प्रमुख लक्ष्मी प्रसाद भट्ट, प्रबन्धक प्रकाश पुरोहित वैदपाठी यशोधर प्रसाद मैठाणी, विश्वमोहन जमलोकी, गिरिश देवली, सतश्वर प्रसाद सेमवाल, शिवशरण पंवार, राजीव गैरोला सहित मन्दिर समिति के अधिकारिया, कर्मचारी व हक-हकूकधारी मौजूद थे।