राज्य स्तरीय वनाग्नि संकट प्रबंधन सेल की बैठक हर वर्ष फरवरी माह में आयोजित हो-मुख्य सचिव

मुख्य सचिव डॉ. एस. एस. संधु की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय वनाग्नि संकट प्रबंधन सेल की बैठक आयोजित हुई। बैठक के दौरान मुख्य सचिव ने वन विभाग को निर्देश दिए कि फायर अलर्ट पर तुरंत रिस्पांस दिया जाए उन्होंने कहा कि वनाग्नि को रोकने के लिए राज्य स्तरीय वनाग्नि संकट प्रबंधन सेल की बैठक हर वर्ष फरवरी माह में आयोजित कर ली जाए।
मुख्य सचिव ने कहा कि जंगलों में लगने वाली आग एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिसे बहुत ही गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जंगलों में लगी आग को रोकने के लिए स्थानीय लोगों का अधिक से अधिक सहयोग लिया जाए, इसके लिए उन्हें किसी प्रकार का प्रोत्साहन भी दिया जा सकता है। उन्होंने इसमें गैर सरकारी सामाजिक संस्थानों को भी शामिल किए जाने के निर्देश दिए।
मुख्य सचिव ने आग बुझाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि वनों में आग लगने के कारणों में पिरुल महत्वपूर्ण है इसके लिए जंगलों से पिरूल के निस्तारण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने पिरुल से पैलेट्स तैयार कर खाना बनाने के ईंधन के रूप में प्रयोग करने को बढ़ावा दिए जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि आमजन इसका प्रयोग कर सकें इसके लिए अधिक से अधिक उद्यमियों को इसके पैलेट्स तैयार किए जाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा, ताकि पिरुल के पैलेट्स की उपलब्धता सालभर रहे। साथ ही मिड डे मील में बनने वाले भोजन के लिए इसे चूल्हे के ईंधन के तौर पर इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जाए।
इस अवसर पर प्रमुख सचिव आर के सुधांशु, वन विभाग प्रमुख (हॉफ) अनूप मलिक एवं सचिव विजय कुमार यादव सहित अन्य उच्चाधिकारी उपस्थित रहे।

राज्य हित में है पिरुल को स्वरोजगार से जोड़ना-मुख्य सचिव

मुख्य सचिव डॉ. एस.एस. संधु ने मंगलवार को सचिवालय में पिरूल (चीड़ की पत्ती) के निस्तारण एवं अन्य उपयोगों के सम्बन्ध में सम्बन्धित अधिकारियों के साथ बैठक की। इस अवसर पर पिरूल से विद्युत उत्पादन हेतु लगाए गए कुछ प्लांट संचालक भी उपस्थित थे।
मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि जंगलों को आग से बचाने के लिए पिरूल का निस्तारण आवश्यक है। उन्होंने पिरूल के निस्तारण के लिए उसके विभिन्न उपयोगों पर शोध किए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पिरूल से ब्रिकेट्स बनाकर ईंधन के रूप में उपयोग की सम्भावनाएं तलाशी जाएं। उन्होंने कहा कि प्रयोग के रूप में स्कूलों में मिड डे मील के लिए प्रयोग हो रहे रसोई गैस आदि के उपलब्ध न होने के समय इन बिकेट्स को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे पिरूल का उपयोग हो सकेगा, इस रोजगार से जुड़े लोगों को एक बाजार भी मिलेगा। साथ ही, जंगलों को आग से बचाया जा सकेगा। उन्होंने पिरूल के निस्तारण के लिए अन्य राज्य क्या कर रहे हैं, इसका भी अध्ययन कराए जाने के निर्देश दिए।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि पिरूल को वन उत्पाद की श्रेणी से बाहर किए जाने हेतु शीघ्र शासनादेश किया जाए। इससे पिरुल एकत्र करने वाले लोगों को पिरूल एकत्र करने में सुविधा होगी। उन्होंने पिरूल से विद्युत उत्पादन हेतु लगाए गए प्लांट्स का स्वयं दौरा करने की भी बात कही। कहा कि पिरूल से विद्युत उत्पादन को व्यवहार्य बनाए जाने के लिए और क्या सुधार किया जा सकता है और पॉलिसी में और क्या बदलाव किया जा सकता है, इस पर भी विचार किया जाए।
इसके उपरांत मुख्य सचिव ने प्रदेश के सभी सरकारी कार्यालयों में सोलर प्लांट्स को लगाए जाने हेतु सम्बन्धित अधिकारियों के साथ बैठक की। मुख्य सचिव ने कहा कि सभी सरकारी भवनों एवं स्कूलों की छत पर सोलर प्लांट्स लगाए जाने हेतु शीघ्र कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। उन्होंने कहा कि एक ओर सोलर एनर्जी पर्यावरण के अनुकूल है, वहीं दूसरी ओर यह विद्युत व्यय को बहुत कम करने में सक्षम है। इसे पूरे प्रदेश में जहां भी संभव हो, सरकारी भवनों में शुरू कराया जाना चाहिए।
इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन, सचिव अरविन्द सिंह ह्यांकी, बी.वी.आर.सी. पुरुषोत्तम, विजय कुमार यादव, निदेशक उरेडा रंजना राजगुरु, सचिव वन, अधीक्षण अभियन्ता यूपीसीएल एन.एस. बिष्ट एवं पिरूल प्लांट संचालक महादेव सिंह सहित अन्य सम्बन्धित विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे।