आखिर सुप्रीम कोर्ट ने क्यो बोला निर्वाचित सरकार भी है जो काम कर रही है

सुप्रीम कोर्ट ने जोशीमठ मामले पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने इसपर सुनवाई के लिए अब 16 जनवरी की अगली तारीख दी है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर मामले में शीर्ष अदालत आने की जरूरत नहीं है। इस पर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित संस्थाएं काम कर रही हैं। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। बता दें कि याचिकाकर्ता स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने शीर्ष अदालत में अपील करते हुए कहा था कि मामले में तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है और इस संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने गरीब सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण जारी रखने का किया ऐलान

उच्‍चतम न्‍ययालय की पांच न्‍यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज तीन-दो के बहुमत से 103वें संविधान संशोधन की वैधता बरकरार रखी है जिसमें दाखिलों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है।

न्‍यायाधीश दिनेश माहेश्वरी, न्‍यायाधीश बेला त्रिवेदी और न्‍यायाधीश जेबी पारदीवाला ने अधिनियम के पक्ष में राय दी है जबकि न्यायमूर्ति एस रवींद्र भटट ने कानून को भेदभावपूर्ण और बुनियादी ढांचे का उल्लंघन बताते हुए इस पर असहमति व्‍यक्‍त की। प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित ने न्यायमूर्ति एस रवींद्र भटट की राय का समर्थन किया।

न्‍यायमूर्ति त्रिवेदी ने फैसला सुनाया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने संबंधी कानून भेदभावपूर्ण नहीं है। न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि आर्थिक मानदंड को ध्यान में रखते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने संबंधी कानून बुनियादी ढांचे या समानता संहिता का उल्लंघन नहीं करता। उनका कहना था कि इस प्रावधान से 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने की सीमा के किसी प्रावधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

बता दें कि जनवरी 2019 में संसद ने 103वें संविधान संशोधन को मंजूरी दी थी और इसे तुरंत ही उच्‍चतम न्‍यायालय में चुनौती दी गई थी। पहले इस मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों ने की थी लेकिन बाद में 2019 में इसे पांच-न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया। संविधान पीठ ने सितम्‍बर में छह दिन से अधिक समय तक इस मामले की सुनवाई की और अपना फैसला सुरक्षि‍त रखा था। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण दिए जाने को बराकरार रखने के उच्‍चतम न्‍यायालय के फैसले का स्‍वागत किया है। ट्वीट संदेश में पार्टी महासचिव बी एल संतोष ने कहा कि गरीब कल्‍याण का एक और श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी को जाता है। उन्‍होंने कहा कि सामाजिक न्‍याय की दिशा में यह एक बड़ा निर्णय है।

महिला आरक्षण पर बोले सीएम राज्य की महिलाओं के सर्वागींण विकास के लिए जरुरी है आरक्षण

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। उन्होंने महिला क्षैतिज आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट से रोक मिलने का स्वागत किया है। राज्य सरकार ने एक साल के भीतर सरकारी विभागों में 19 हजार भर्तियां करने का लक्ष्य रखा है।
शुक्रवार को महिला क्षैतिज आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सीएम धामी ने त्वरित टिप्पणी की है। सीएम धामी की मंजूरी के बाद ही महिला आरक्षण को यथावत रखने के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। उसी पर सर्वाेच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर स्टे दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के प्रदेश की महिलाओं के हित में दिए गए फ़ैसले स्वागत किया। कहा कि हमारी सरकार प्रदेश की महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। राज्य सरकार ने महिला आरक्षण को यथावत् बनाए रखने के लिए अध्यादेश लाने के लिए भी पूरी तैयारी कर ली थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में भी समय से अपील करके प्रभावी पैरवी सुनिश्चित की।
सीएम धामी पहले ही साफ कर चुके हैं कि एक वर्ष के भीतर सरकार ने विभिन्न सरकारी विभागों में 19 हजार नई भर्तियों का फैसला लिया है। ताजा आदेश के बाद अब इन भर्तियों में तेजी आने की उम्मीद है। दरअसल, पहले उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग भर्ती घपला और फिर हाईकोर्ट के 30 फीसदी महिला आरक्षण पर रोक के बाद भर्ती प्रक्रिया थम गई। इससे बेरोजगार अभ्यर्थियों में आक्रोश पनप रहा था, लेकिन अब फिर भर्तियों की राह जोर पकड़ सकती हैं।

एक्ट बनाने से नहीं फंसेगा फेंच
उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में अभी महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण सिर्फ एक जीओ के आधार पर मिल रहा है। 18 जुलाई, 2001 को नित्यानंद स्वामी सरकार ने इसकी शुरूआत की थी। तब 20 फीसदी आरक्षण का प्रावधान था। तब से सरकार ने इसके लिए कोई एक्ट नहीं बनाया है, जिससे भविष्य में भी इस जीओ को चुनौती मिल सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य सरकार को यह लाभ यथावत देने के लिए अध्यादेश या फिर विधानसभा के पटल पर विधेयक लाना होगा, ताकि इसे कानूनी तरह से अमली जामा पहनाया जा सके। पिछले माह हुई बैठक में कैबिनेट मुख्यमंत्री को महिला आरक्षण को लेकर अध्यादेश लाने की मंजूरी देने को अधिकृत भी कर चुकी है।

न्याय विभाग से भी इसका परीक्षण कराया जा चुका है। चूंकि, फिलहाल सरकार को राहत मिल चुकी है तो अध्यादेश या फिर विधेयक दोनों में कोई एक विकल्प सरकार चुन सकती है। एक्ट बनने से भविष्य में राज्य में महिला आरक्षण पर पेंच नहीं फंसेगा।

एसएलपी में ये दिए थे तर्क
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसएलपी में आरक्षण यथावत रखने के लिए विभिन्न तर्क दिए थे। इसमें कहा गया था कि उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं और पर्वतीय महिलाओं की विकट जीवन शैली है। चूल्हे से लेकर खेत-खलिहान सभी उन्हीं के जिम्मे है। वहीं, सरकारी नौकरियों में महिलाओं का प्रतिनिधत्व काफी कम है। लिहाजा समाज के मुख्य धारा में महिलाओं को शामिल करने के लिए उनके लिए क्षैतिज आरक्षण जरूरी है।

कई राज्यों में है महिला आरक्षण
विभिन्न राज्यों में सभी महिलाओं को सरकारी नौकरियों में क्षैतिज आरक्षण देने का प्रावधान है। इनमें बिहार में सबसे अधिक 35 फीसदी आरक्षण है, जबकि मध्यप्रदेश और राजस्थान में 30-30 फीसदी आरक्षण है। यूपी ने भी 20 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया था, लेकिन वर्ष 2019 में इलाहाबादा हाईकोर्ट में चुनौती मिलने के बाद इस पर रोक लगी है।

कब क्या हुआ
18 जुलाई, 2001 में नौकरियों में मिला था स्थानीय महिलाओं को 20 फीसदी आरक्षण
24 जुलाई, 2006 में एनडी सरकार में इसमें बढ़ोत्तरी कर 30 फीसदी किया
10 अक्तूबर,2022 में हाईकोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगाई
24 अगस्त, 2022 को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन की दायर

वहीं, वित्त, संसदीय, शहरी विकास व आवास, पुनर्गठन व जनगणना मंत्री डा. प्रेमचंद अग्रवाल ने राज्य में 30 प्रतिशत महिला आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का स्वागत किया है। राज्य सरकार ने इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट में ठोस पैरवी की थी। उसी के परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को यथावत रखने का आदेश सुनाया है। डा. अग्रवाल ने कहा कि जहां उत्तराखंड राज्य यहां की महिलाओं के संघर्ष के बाद प्राप्त हुआ। महिलाओं के लिए यह राज्य सदैव ऋणी रहेगा। उत्तराखंड में महिलाओं को मां, बहन और बेटी के रूप में पूजा जाता है।
डा. अग्रवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस वक्त में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब पूरा उत्तराखंड अपना लोकपर्व इगास मना रहा है। आज ही के दिन ग्राम्य विकास विभाग द्वारा लखपति दीदी योजना परवान चढ़ी है। डा. अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने लखपति दीदी योजना में स्वयं सहायता समूह के माध्यम से एक वर्ष में एक लाख से अधिक की आय अर्जित करने वाली महिलाओं को लखपति दीदी के रूप में सम्मानित किया।
डा. अग्रवाल ने कहा कि राज्य सरकार महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कार्यरत है, 2025 तक सरकार ने सवा लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य निश्चित किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक, धामी सरकार की पैरवी आई काम

उत्तराखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने राज्य को नजूल भूमि पर नीति बनाने और अनधिकृत कब्जाधारियों व अतिक्रमणों को नियमित करने के लिए एक नीति बनाने और लागू करने के लिए स्वतंत्र कर दिया।
शीर्ष कोर्ट ने यह आदेश देते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट के 19 जून 2018 के फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें हाईकोर्ट ने मार्च 2009 की नजूल नीति को निरस्त कर दिया था। उत्तराखंड सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। राज्य सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता और उप-एडवोकेट जनरल जतिंदर कुमार सेठी ने बहस की। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को भूमि का प्रबंधन करने का अधिकार है। वहीं, राज्य में आवासन देखने की जिम्मेदारी भी सरकार की है।
जस्टिस एसए नजीर और कृष्ण मुरारी की पीठ ने सरकारी पक्ष की दलीलें सुनने के बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट के उक्त आदेश पर रोक लगा दी। अब सरकार राज्य में हजारों एकड़ नजूल भूमि पर कब्जा किए लोगों के कब्जे नियमित कर सकेगी। चुनाव के मौसम में सरकार के लिए यह भारी जीत है।

परिसम्पत्ति विवाद में दिखा, धामी के नेतृत्व में सुरक्षित है उत्तराखंड का भविष्य

उत्तराखंड के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वो कर दिखाया, जो उत्तराखंड के दिग्गज सीएम भी 21 सालों में नहीं कर पाए, इसकी मुख्य वजह युवा मुख्यमंत्री की युवा सोच और सरलता से मसले सुलझाने वाली वो बुद्धिमता है, जो किसी को भी अपना कायल बना सकती है।
उत्तर प्रदेश के अलग होने के बाद उत्तराखंड को 21 सालों तक अपने हक के लिए इंतजार करना पड़ा। यह कार्य राज्य के गठन के तुरंत बाद हो जाना चाहिए था, लेकिन दोनों राज्यों के नेताओं और नौकरशाहों के बीच कई बार की बैठकों के बाद भी इस मामले में सहमति नहीं बन सकी। उस वक्त भी नहीं, जब दोनों राज्यों की सत्ता की बागडोर बीजेपी के हाथों में थी। ऐसे दौर कई बार आये, लेकिन मसला सुलझ नहीं सका। हालांकि इससे पहले ही ये विवाद आपसी सुलह-समझौते की संभावनाओं को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था। दोनों राज्यों के बीच विवाद बढ़ने पर करीब एक दशक पहले सुप्रीम कोर्ट को दखल देकर यथास्थिति कायम रखने के आदेश देने पड़े थे।

राजनैतिक नहीं बल्कि पारिवारिक समझौते से हल हुआ परिसंपत्ति विवाद
समय बीतता गया और साल दर साल मुख्य सचिव से लेकर मुख्यमंत्री स्तर तक बैठकों के दौर चलता रहा। इस सब क़वायदों के बाद नतीजा वही ढाक के तीन पात। वक्त गुजरने के साथ-साथ यूपी से अपने अधिकार वाली सम्पत्तियों को हासिल करने की उम्मीद कमजोर पड़ती जा रही थी। योगी सरकार के कार्यकाल में भी शीर्ष स्तर पर बैठकें हुईं, लेकिन कामयाबी सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री धामी ने हासिल की।
मुख्यमंत्री धामी ने परिसम्पत्तियों विवाद की पहली बैठक में ही कह डाला कि “यूपी और उत्तराखंड बड़े भाई छोटे भाई की तरह हैं, और आज ही और विवाद का हल निकाल दिया जाए” धामी की सूझबूझ और सटीक तर्कों से योगी आदित्यनाथ संतुष्ट नज़र आए और “ऑन दा स्पॉट” फ़ैसला हो गया। धामी की ये विशेषता उनकी सरलता और मिठास के साथ मिलकर एक ऐसे सफर का आगाज करती हैं जो आम आदमी के ख्वाबों से जुड़ा है।
ये पूरा घटनाक्रम सब उस दौर में हुआ है, जब उत्तराखंड का आवाम यूपी के साथ सम्पत्तियों का न्यायसंगत बंटवारा होने की राह देखते देखते निराश होने लगा था। ऐसे दौर में सीएम सिंह धामी की यह ऐतिहासिक कामयाबी लोगों के दिलों में यह विश्वास पैदा करने वाली है कि उत्तराखंड अब ऐसे हाथों में है, जो राज्य के हितों की रक्षा करना जानते हैं।

देशभर में चेक बाउंस के 25 फीसदी मामले, विशेष कोर्ट की उठी मांग

केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चेक इस ओनर मामले का नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1807 सी की धारा 138 के तहत ट्रायल करने के लिए अतिरिक्त कोर्ट बनाने पर विचार करें मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा कि देशभर में कोर्ट चेक बाउंसिंग मामले से अटे पड़े हैं। साढ़े तीन करोड़ लंबित केसों में चेक बाउंसिंग के केसों का लगभग 25 फीसदी हिस्सा है, सरकार को इस पर जल्द विचार करना होगा।

हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट के निरस्त करने पर तीर्थनगरी में हुई आतिशबाजी

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की बेदाग छवि को धूमिल करने के विपक्ष के षड्यंत्र का दूसरे ही दिन में पर्दाफाश हो गया। लोगों ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए आतिशबाजी व मिष्ठान वितरण कर अपनी खुशी जाहिर की।

गढ़वाल मंडल विकास निगम के निदेशक आशुतोष शर्मा के नेतृत्व में त्रिवेणी घाट चैक पर युवा जन एकत्रित हुए। आशुतोष शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की बेदाग छवि व पारदर्शितापूर्ण शासन चलाने की उनकी शैली से विपक्ष व उत्तराखंड के हितों की अनदेखी करने वाले बहुत परेशान हो चुके हैं भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति ने इन लोगों के बुनियाद हिला दी है जिसके चलते यह लोग उनके खिलाफ साजिश करने में लगे हुए हैं और हर बार इनके मंसूबों पर पानी फिर जाता है।

उन्होंने ऐसे साजिश करने वालों को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर वह अपनी ऐसी निकृष्ट हरकतों से बाज नहीं आए तो उनके विरुद्ध सड़कों पर मोर्चा खोला जाएगा। मौके पर पूर्व राज्यमंत्री संदीप गुप्ता, टैक्सी यूनियन के महामंत्री विजेंद्र कंडारी, पूर्व सैनिक व समाजसेवी जनार्दन नवानी, वरिष्ठ भाजपा नेता विपिन शर्मा, शैलेंद्र चैहान, नीतू शर्मा, गजेंद्र सिंह बिष्ट, घाट रोड लघु व्यापार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण सिंह, जिला अध्यक्ष राहुल पाल, वरिष्ठ अधिवक्ता चंदन सिंह राणा, युवा मोर्चा के मंडल ऋषिकेश के अध्यक्ष अक्षय खेरवाल, गज्जू सिंह, धर्मपाल सिंह, कुंवर सिंह, विक्रम सिंह, मनीष मौर्य आदि उपस्थित रहे।

हाईकोर्ट के फैसले पर हैरानी जताई, कहा-समीक्षा करेंगे, फिलहाल अन्य कोई नही की कोई टिप्पणी

-विपक्षी खेमे में फैसला आने के बाद बची खलबली

आखिरकार देश की सर्वोच्च अदालत में सत्य की जीत हुई। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ हाईकोर्ट के सीबीआई जांच कराने वाले आदेश ने हैरान जरूर किया था। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द करते हुए आश्चर्य जताया कि हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश कैसे पारित किया? जबकि मुख्यमंत्री इस मामले में पक्षकार ही नहीं थे। उनके खिलाफ जांच की कोई मांग भी नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए सीबीआई जांच के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है, साथ ही सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किए हैं। इनका जवाब दाखिल करने का चार सप्ताह का समय भी दिया है।

एससी में सीएम के वकील ने कहा, बेवजह नाम घसीटा गया
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के वकील ने कहा कि राज्य की जनता ने उन्हें चुना है, राजनीतिक लाभ के लिए विवाद में उनका नाम बेवजह डाला गया है। उन्होंने कोर्ट में यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट में उमेश शर्मा ने सीबीआई जांच जैसा कोई मांग नहीं की थी। उमेश शर्मा की याचिका में सिर्फ उसके खिलाफ देहरादून में दर्ज एफआइआर को रद्द करने की मांग की गई थी। इसके विपरीत हाईकोर्ट ने न सिर्फ उमेश के खिलाफ दर्ज एफआइआर रद्द करने का आदेश सुनाया बल्कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआई जांच करने का आदेश दे दिया। सीएम ने अपनी याचिका में लगाए गए आरोप को फर्जी और आधारहीन कहा।

मूल मुद्दा तो भटक गया…
दरअसल देहरादून के राजपुर थाने में पत्रकार उमेश शर्मा सहित अन्य के खिलाफ सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने ब्लैकमेलिंग, दस्तावेजों की कूट रचना और गलत तरीके से बैंक खातों की जानकारी हासिल करने का मुकदमा दर्ज कराया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि उमेश शर्मा ने सोशल मीडिया का दुरूपयोग किया और एक वीडियो डाली। इसमें प्रोफेसर रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के खाते में नोटबंदी के दौरान झारखंड के अमृतेश चैहान की ओर से 25 लाख रुपये जमा करने की बात कही गई थी और यह रकम को त्रिवेंद्र सिंह रावत को देने को कहा गया था। इसके अलावा सविता रावत को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सगी बहन बताया गया था। प्रोफेसर हरेंद्र सिंह ने सभी तथ्यों को झूठा बताया था।
बड़ा सवाल तो यह है कि कैसे हम दूसरे अनजान व्यक्ति की बैंक संबंधी डिटेल प्राप्त कर सकते है? आयकर विभाग के अलावा यह जानकारी बैंक भी अन्य किसी को नही देता है। मसलन यदि कोई आपराधिक मामला है तो बैंक जांच के दौरान पुलिस अथवा जांच एजेंसी को जानकारी मुहैया कराता है। इस मामले में देखे तो तथाकथित पत्रकार ना तो जांच एजेंसी है ना ही अधिकृत व्यक्ति। ऐसे में बैंकों की भूमिका भी संदिग्ध हो जाती है। सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत की शिकायत पर तो अभी तक कोर्ट के द्वारा कार्रवाई भी नही की गई है?

व्यक्ति एक दलीलें दो….
देश के जाने माने वकील कपिल सिब्बल भी गजब के आदमी निकले। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग मामले में इन्ही वकील साहब ने कोर्ट को उमेश कुमार को ब्लेकमेलर बताया है। जबकि इस मामले में वकील साहब तथाकथित पत्रकार को ईमानदार बता रहे है। अन्य राज्यों में लंबित मुकदमें को लेकर उन्हें झूठा फंसाने की बात कह रहे है। वकील साहब पहले तय कर ले कि आप किस केस में सच बोल रहे है और किस केस में झूठ?

केस को हाईप्रोफाइल बनाने और सुर्खियां बटोरने की कोशिश…
तथाकिथत पत्रकार उमेश जे कुमार की और से इस मामले को हाईप्रोफाइल बनाने और सुर्खियां बटोरने के लिए इस्तेमाल करना प्रतीत हो रहा है। जानकार बताते है कि अपनी गर्दन बचाने के लिए हाईकोर्ट में केस का रुख मोड़ा गया है। वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील जानेमाने वकील कपिल सिब्बल और चालाक पत्रकार की चालो में उलझ गये। जिससे केस ने दूसरा ही रुख मोड़ लिया।

कथित पत्रकार की सीबीआई जांच मांग जोर पकड़ने लगी
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सोशल मीडिया में कथित पत्रकार के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग जोर पकड़ने लगी है। बेशुमार दौलत के मालिक और कथित तौर पर अन्य राज्यों में कई मुकदमों का सामना कर रहे पत्रकार को लेकर लोगों में नाराजगी दिखाई दे रही है। लोग ईमानदार मुख्यमंत्री पर लांछन लगाने को लेकर इसकी ही सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहे है।

आज आएगा अयोध्या भूमि विवाद पर फैसला

सुप्रीम कोर्ट आज अयोध्या भूमि विवाद मामले में बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाएगा। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ सुबह साढ़े 10 बजे इस मामले में फैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर 40 दिन तक चली मैराथन सुनवाई के दौरान हिंदू और मुस्लिम पक्ष की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने 16 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

केशवानंद भारती मामले में रिकॉर्ड 68 दिन तक चली सुनवाई के बाद अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई हुई थी। वहीं, फैसले की संवेदनशीलता को देखते हुए पूरे देश में सुरक्षा व्यवस्था और चाक चौबंद कर दी गई है। इस बीच, अयोध्या मामले पर फैसले के मद्देनजर यूपी सरकार ने सोमवार तक सभी स्कूल-कॉलेजों को बंद रखने के निर्देश दिए हैं।

यह-यह है इंतजाम
कर्नाटक में धारा 144 लागू, सुप्रीम कोर्ट के बाहर धारा 144 लागू, मोहन भागवत करेंगे देश को संबोधित, अयोध्या में अर्धसैनिक बलों की तैनाती, हवाई सर्विलांस, हाई अलर्ट पर पंजाब, नितिन गडकरी ने की शांति बनाए रखने की अपील, रामलला के पुजारी ने की शांति बनाए रखने की अपील, फैसले से पहले पांच जजों की मौजूदगी में एक घंटे तक बैठक

इन जजों के फैसले पर है देश की नजर
अयोध्या विवाद में मामले की सुनवाई करने वाली संवैधानिक बेंच में सीजेआई रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। इन्हीं जजों की पीठ शनिवार को फैसला सुनाएगी।

25 जुलाई 2019 से पहले तीन बच्चे वाले प्रत्याशी भी लड़ पाएंगे पंचायत चुनाव

देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को बड़ा झटका देते हुए ग्राम पंचायत चुनाव में तीन बच्चों वाले मामले में प्रत्याशियों के पक्ष में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह का समय जवाब देने का दिया है। कोर्ट के आदेश के बाद ग्राम प्रधान, उप प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य के पद पर 25 जुलाई 2019 से पहले तीन बच्चे वाले प्रत्याशियों का चुनाव लडने का रास्ता साफ हो गया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में 25 जुलाई 2019 को कट ऑफ डेट माना था। इस तिथि के बाद दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशी अयोग्य माने जाएंगे।

पंचायत जनाधिकार मंच के प्रदेश संयोजक व पूर्व ब्लॉक प्रमुख जोत सिंह बिष्टड्ढ, कोटाबाग के मनोहर लाल, पिंकी देवी समेत 21 लोगों ने हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर कर सरकार के पंचायत राज एक्ट में किए संशोधन को चुनौती दी थी। जिसमें दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशियों को पंचायत चुनाव लडने के लिए अयोग्य करार दिया गया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस संशोधित एक्ट को लागू करने के लिए ग्रेस पीरियड नहीं दिया गया। संशोधन को बैक डेट से लागू करना विधि सम्मत नहीं है। पिछले दिनों मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए इस संशोधन को लागू करने की कट ऑफ डेट 25 जुलाई 2019 नियत कर दी। इस आदेश के बाद कट ऑफ डेट के पहले दो से अधिक बच्चों वाले ग्राम पंचायत प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर के प्रत्याशी चुनाव लडने के योग्य हो गए। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। सोमवार को जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली संयुक्त पीठ ने राज्य सरकार के हाई कोर्ट के आदेश में स्थगनादेश की अपील को नहीं माना। साथ ही याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया। राज्य सरकार के एसएलपी दाखिल करने की भनक लगने के बाद पंचायत जनाधिकार मंच द्वारा सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की गई थी।