ट्रेन के खाने में निकली छिपकली, यात्री की तबीयत हुई खराब

ट्रेनों में यात्रियों को परोसे जाने वाले भोजन की क्वॉलिटी की तस्वीर उस वक्त सामने आई, जब एक यात्री को परोसी गई वेज बिरयानी में छिपकली पाई गई। इसके बाद यात्री की तबीयत भी खराब हुई, जिसकी वजह से उसे दवा लेनी पड़ी। इसके बाद बैकफुट पर आए रेलवे बोर्ड ने ट्रेन में भोजन सप्लाई करने वाले ठेकेदार का ठेका रद्द करने का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही अब रेलवे ने चुनींदा राजधानी, शताब्दी और दुरंतो ट्रेनों में यात्रियों को विकल्प देने का फैसला लिया है कि अगर यात्री चाहें तो रेलवे का भोजन लेने से इनकार कर दें। ऐसी स्थिति में टिकट जारी करते वक्त पैसेंजर से भोजन का पैसा नहीं लिया जाएगा।
ट्रेन में खाने में छिपकली मिलने का यह मामला सीएजी की रिपोर्ट के एक सप्ताह के भीतर सामने आया है। पिछले ही सप्ताह सीएजी की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में परोसे जाने वाले खाने की क्वॉलिटी कितनी खराब है। हालांकि, इसके बाद रेलवे ने दावा किया कि वह सुधार के लिए कदम उठा रहा है लेकिन मंगलवार को बिरयानी में छिपकली निकलने का मामला सामने आ गया।
इंडियन रेलवे के सूत्रों के मुताबिक बिरयानी में छिपकली मिलने का मामला पूर्वा एक्सप्रेस में सामने आया। ट्रेन नंबर 12303 के फर्स्ट क्लास में यात्रा कर रहे वकील संतोष कुमार सिंह ने अपने लिए वेज बिरयानी का ऑर्डर किया। उन्हें बिरयानी में छिपकली दिखी। इसके बाद उन्होंने कैटरिंग स्टाफ को इसकी जानकारी दी और बिरयानी की फोटो भी ट्वीट करते हुए रेलमंत्री सुरेश प्रभु को टैग कर दी। बाद में इस यात्री की तबीयत खराब होने पर उसे दवा भी दी गई।
इस मामले के सामने आने के बाद रेलवे ने इस ट्रेन में खाना परोसने वाले कांट्रैक्टर आर.के. असोसिएटस का ठेका रद्द करने का फैसला किया है। महत्वपूर्ण है कि इसी ठेकेदार के खिलाफ पिछले साल भी खराब खाने की शिकायतें आई थीं। उस वक्त रेलवे ने इस पर क्रमश 10 लाख और साढ़े सात लाख रुपये का जुर्माना ठोंका था। अब रेलवे अपने बचाव में दावा कर रही है कि उसने भोजन की क्वॉलिटी को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रखी है। इसी वजह से उसने इस साल जनवरी से अब तक ट्रेनों में खाना परोसने वाले 12 ठेकेदारों के ठेके रद्द किए हैं।

कैग ने खोली भारतीय रेला सेवा की पोल!

नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) ने रेल मंत्रालय पर गंभीर आरोप लगाते हुए स्टेशनों व ट्रेनों में परोसा जाने वाला खाना यात्रियों के खाने योग्य नहीं बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे के खाने में कीलें निकली। पेंट्रीकार में चूहे एवं काकरोच पाए गए।
इससे अधिक गंभीर बात यह है कि रेलवे ही ठेकेदारों को घटिया, बासी, कम मात्रा और अधिक दरों पर खाना देने के लिए मजूबर करती है। यात्रियों को ब्रांडेड के बजाए दूसरी कंपनियों का बोलतबंद पानी दिया जाता है। इतना ही नहीं 22 ट्रेनों में पेय, काफी, चाय और शूप तैयार करने में सीधे नल से आ रहे अशुद्ध जल का उपयोग किया जा रहा है।
कैग ने शुक्रवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे की खानपान सेवाओं की कलई खोल दी है। कैग ने रेलवे अफसरों के साथ संयुक्त जांच में पाया कि खाना बनाने में साफ सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता। बेस किचन व पेंट्रीकार कॉकरोच-चूहे घूमते हैं। लखनऊ-आनंद विहार डबल डेकर (ट्रेन नंबर 12583) में एक यात्री के कटलेट में खाते समय कील निकली। इसी प्रकार एक अन्य ट्रेन कानपुर दिल्ली शताब्दी की शिकायत पुस्तक में भी खाने में कील निकलने की शिकायत दर्ज है। दुरंतो एक्सप्रेस ट्रेनों (ट्रेन नंबर 12260 व 12269) में कॉकरोच व चूहे देखे गए। इसी प्रकार जांच के दौरान वेलकम ड्रिंक को नल के पानी से बनाते हुए देखा गया।
कैग ने कहा कि खाने की रसीद यात्रियों को नहीं दी जाती है। ट्रेनों की कोच में मैन्यू नहीं लगया जाता है जिससे खाने की दरें व मात्रा पता चल सके। यात्रियों को घटिया खाना कम मात्रा में परोसा जाता है, और तय मूल्य से अधिक पैसा लिया जाता है। यह स्थिति यात्री ट्रेनों व रेलवे स्टेशनों दोनो जगह की बनी हुई है।
रेलवे खानपान की गुणवत्ता की जांच और नियंत्रण प्रभावी ढ़ग से लागू करने में विफल साबित हुआ है। रेलवे बोर्ड से लेकर जोनल रेलवे तक शिकायत प्रणाली व्यवस्था लागू की गई, लेकिन इनकी संख्या में कमी नहीं आ रही है। कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि खानपान नीति में बार बार परिर्वतन कर आईआरसीटीसी से लेने और फिर देने के फैसले से खानपान व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। 2010 से इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है।
कैग व रेलवे के संयुक्त जांच में पाया गया कि जोनल रेलवे ने मास्टर प्लान बनाकर सभी स्टेशनों व ट्रेनों में खानपान आपूर्ति की ठीक प्रकार से निगरानी नहीं की। लंबी दूरी की ट्रेनों में पेंट्रीकार नहीं थी। ट्रेनों में खाना आपूर्ति के लिए रेलवे मात्र तीन फीसदी बेस किचन का प्रयोग करती है, शेष बेस किचन कैटरिंग ठेकेदारों द्वारा रेल परिसर से बाहर बनाया जाता है। यहां रेलवे का निगरानी तंत्र नहीं है। इसलिए खाना बनाने की गुणवत्ता, बेस किचन की साफ सफाई, कम मात्रा में खाना पैक करना आदि अनियमितताएं होती है।
रेलवे ने बेस किचन, कैटरिंग यूनिट, विशिष्ठ बेस किचन जैसे फूड प्लाजा, फूड कोर्ट, फास्ट फूड यूनिट, ट्रेन साइड वेडिंग लगाने की दिशा में ठोस काम नहीं किया। कैग ने सिफारिश की है कि आईआरसीटीसी को खानपान सेवा को देने के नियम को सरल बनाया जाना चाहिए। पेंट्रीकार में गैस बर्नर के स्थान पर इलेक्ट्रिकल चूल्हा लगाना चाहिए।