डा. हेमंचद ने टीबी रोगियों को गोद लेकर दी मासिक पोषाहार किट

हेमवती नंदन बहुगुणा चिकित्सा विश्व विद्यालय के कुलपति डा0 (प्रो0) हेम चन्द्र ने नि-क्षय मित्र बनकर 05 टी0बी0 रोगियों को गोद लिया गया। डा0 (प्रो0) हेम चन्द्र द्वारा राजकीय दून मेडीकल काॅलेज के प्रांगण में गोद लिये हुये 05 रोगियों को प्रथम मासिक पोशाहार किट वितरित कर उन्हे टी0बी0 रोग से लडने हेतु प्रेरित किया। टी0बी0 रोग के उन्मूलन के उद्देष्य से राज्य में चलाये जा रहे प्रधानमंत्री टी0बी0 मुक्त भारत अभियान के अन्र्तगत समाज में सभी जागरूक वर्गो द्वारा बढचढ कर भागीदारी की जा रही है।

डॉ चंद्रा के इस प्रयास से अन्य चिकित्सकों व नागरिकों में भी टी0बी0रोग को खत्म करने के इस प्रयास में भागीदारी करने के लिए उत्साहवर्धन होगा। डॉक्टर चंद्रा द्वारा अपने सभी टी0बी0 रोगियों को पोषाहार प्रदान करते वक्त सभी चिकित्सकों स्वास्थ्य कर्मियों व विभिन्न विश्वविद्यालयों के अधिकारियों व कर्मचारियों से अनुरोध किया गया कि वह आगे बढ़कर पुरजोर तरीके से इस अभियान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें।

एमडीएच अंकल ने संसार को कहा टाटा, देश को दे गए एमडीएच जैसा विश्वसनीय मसाला

दुनियाभर में प्रसिद्ध मसाला ब्रांड श्एमडीएचश् के मालिक श्महाशयश् धर्मपाल गुलाटी ने गुरुवार सुबह 98 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली। महाशय धर्मपाल गुलाटी को श्एमडीएच अंकलश्, श्दादाजीश्, श्मसाला किंगश् और श्मसालों के राजाश् के नाम से जाना जाता था। वह मसाला ब्रांड श्एमडीएचश् (महाशिया दी हट्टी) के मालिक और सीईओ थे। देश विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत में आकर बसे गुलाटी ने तांगे से अपनी आजीविका शुरू की और आज वह 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा के कारोबार वाली अपनी कंपनी छोड़कर इस दुनिया से कूच कर गए।

पाकिस्तान में हुआ जन्म
श्महाशयश् के नाम से मशहूर गुलाटी का जन्म 1919 में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। उनका पालन-पोषण पाकिस्तान में ही हुआ था। सियालकोट में उनके पिता ने साल 1919 में श्महाशिया दी हट्टीश् नाम से एक मसाले की दुकान खोली। उनके पिता यहां पर मसाले बेचा करते थे।

विभाजन के बाद भारत आया परिवार, पिता के पैसे से खरीदा तांगा

1947 में विभाजन के बाद, परिवार भारत आ गया। शुरू में गुलाटी परिवार अमृतसर में शरणार्थी के रूप में रहा। लेकिन बाद में धर्मपाल गुलाटी दिल्ली शिफ्ट हो गए। जब गुलाटी अपने बहनोई के साथ दिल्ली पहुंचे, तब उन्होंने अपने पिता द्वारा दिए गए पैसे से तांगा खरीदा।

1959 में एमडीएच कंपनी की नींव रखी

इसके बाद 1953 में, गुलाटी ने चांदनी चैक में एक दुकान किराए पर ली, जिसका नाम श्महाशिया दी हट्टीश् (एमडीएच) रखा, और उन्होंने यहां भी मसालें बेचना शुरू किया। वहीं, गुलाटी ने आगे चलकर एमडीएच कंपनी की आधिकारिक शुरुआत की। धर्मपाल गुलाटी ने 1959 में एमडीएच कंपनी की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने कीर्ति नगर में जमीन खरीदी और एक विनिर्माण इकाई स्थापित की।

देशभर में 15 फैक्ट्रियां

व्यापार भारत में ही नहीं पनपा बल्कि गुलाटी मसालों के एक वितरक और निर्यातक भी बन गए। वर्तमान में एमडीएच मसाले लगभग 50 विभिन्न प्रकार के मसालों का निर्माण करते हैं। कंपनी की देशभर में 15 फैक्ट्रियां हैं और वह दुनियाभर में अपने उत्पाद बेचती हैं।

एमडीएच मसाले दुनिया के विभिन्न हिस्सों में निर्यात किए जाते हैं, जिसमें यूके, यूरोप, यूएई, कनाडा जैसे देश शामिल हैं। गुलाटी 2017 में भारत में सबसे अधिक वेतन पाने वाले एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) सीईओ बने।

पांचवीं तक पढ़े थे धर्मपाल गुलाटी

धर्मपाल गुलाटी ने सिर्फ पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की। आगे की शिक्षा के लिए वह स्कूल नहीं गए। धर्मपाल गुलाटी को भले ही किताबी ज्ञान अधिक ना हो, लेकिन बिजनेस क्षेत्र में बड़े-बड़े दिग्गज उनका लोहा मानते थे।

90 फीसदी वेतन को करते थे दान

धर्मपाल गुलाटी को लेकर कहा जाता है कि वह अपने वेतन का 90 फीसदी हिस्सा दान कर देते थे। एक बार उन्होंने कहा था कि काम करने की मेरी प्रेरणा सस्ती कीमतों पर बेचे जाने वाले उत्पाद की गुणवत्ता में ईमानदारी से है और मेरे वेतन का लगभग 90 फीसदी एक चैरिटी में जाता है।

गरीबों के लिए अस्पताल और स्कूल

गुलाटी के पिता के नाम पर एक धर्मार्थ ट्रस्ट भी है, जो झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के लिए 250 बेड का अस्पताल चलाता है। साथ ही गरीबों के लिए चार स्कूल भी चलाता है। सूत्रों ने बताया कि उन्हें 2018 में 25 करोड़ रुपये इन-हैंड सैलरी मिली थी।

कंपनी के सभी फैसले खुद लेते थे
अपनी उम्र के बावजूद धर्मपाल गुलाटी व्यवसाय के सभी बड़े फैसले लेते थे। वह अपनी कंपनी और उत्पाद के लिए तीन पहलुओं को बेहद महत्वपूर्ण मानते थे, जिसमें ईमानदारी से काम, गुणवत्ता वाले उत्पाद, और सस्ती कीमतें शामिल हैं। गुलाटी कंपनी में लगभग 80 प्रतिशत हिस्सेदारी के मालिक थे। वह नियमित रूप से अपने कारखाने और बाजार का दौरा करते थे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि चीजें ठीक प्रकार से चल रही हैं।

पिछले साल मिला था पद्मभूषण पुरस्कार

2019 में धर्मपाल गुलाटी उन 112 विशिष्ट लोगों में शामिल थे, जिन्हें पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। व्यापार और उद्योग में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए पिछले साल उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मभूषण से नवाजा था।

अब स्वच्छता की ओर बढ़ेगा तीर्थनगरी का हर कदम

अब तीर्थनगरी की दीवारें स्वच्छता का संदेश देती नजर आएंगी। इसके अलावा राज्य की हर संस्कृति को भी पर्यटकों से रूबरू कराएंगी।

नगर पालिका से अपग्रेड होकर नगर निगम बनने के बाद पिछले दो वर्षों में देवभूमि तेजी के साथ बदलाव के दौर से गुजर रही है। शहर को सजाने संवारने की कवायद में निगम प्रशासन लगातार जुटा हुआ है। मेयर अनिता ममगाई ने बताया कि नगर निगम का लक्ष्य हर कदम स्वच्छता की ओर है। शहर को संवारने के लिए खूबसूरत पेंटिग की मदद ली जा रही है। इस योजना के तहत शहर के महत्वपूर्ण स्थलों पर पेंटिग बनाई जा रही है। यहां जल्द ही दीवारें आपको बोलती नजर आएंगी। शहर के महत्वपूर्ण स्थानों की दीवारें एक नई कहानी और अपील करती नजर आयेंगी। पेंटिंग में कई विविधताएं होगी जिसमें हर पेंटिंग में उत्तराखंड की संस्कृति के रंग दिखाई देंगे।

आवास विकास विद्या मंदिर में मिसाइल मैन की जंयती पर किया स्मरण

मिसाइल मैन व भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम की जंयती पर सरस्वती विद्या मंदिर आवास विकास में कार्यक्रम आयोजित हुआ। मौके पर उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।
कार्यक्रम का शुभारंभ प्रधानाचार्य राजेन्द्र प्रसाद पांडेय व शिक्षक चन्द्रप्रकाश डोभाल ने किया। वरिष्ठ शिक्षक वीरेन्द्र कंसवाल ने बताया कि मिसाइल मैन का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम था। अर्थशास्त्र के प्रवक्ता नरेन्द्र खुराना ने कहा कि वह बच्चों से बहुत प्यार करते थे उनका कहना था कि अगर सपनों को सच करना है, तो पहले उन्हें देखना होगा।

कार्यक्रम में विद्यालय के प्रधानाचार्य राजेंद्र पांडेय ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति ने जिस काम को करने की ठान ली, वह उसे करके ही रहते थे, हमे भी उसी प्रकार से अच्छे कार्यो को एक बार करने का प्रण मन में लें, तो पूर्ण करके ही छोड़ना चाहिए।

मौके पर सतीश चैहान, कर्णपाल बिष्ट, रजनी गर्ग, रामगोपाल रतूड़ी, नन्द किशोर भट्ट, सुनील बलूनी, मनोज पन्त, अनिल भंडारी, राजेश बड़ोला, कर्णपाल बिष्ट, सतीश चैहान, आरती बड़ोनी, मनोरमा शर्मा, प्रवेश कुमार आदि उपस्थित रहे।

उत्तराखंड का औषधीय धनिया पौधा गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज

उत्तराखंड, अल्मोड़ा जनपद, ताड़ीखेत विकास खंड, बिल्लेख गांव के केवलानंद उप्रेती के सिविल इंजीनियर पुत्र गोपाल दत्त उप्रेती द्वारा व्यक्तिगत प्रयासो के बल अपने बिल्लेख गांव स्थित सेव बगान में सात फुट एक इंच ऊंचे सुगंधित व औषधीय धनिये के पौंधे जैविक विधि से उत्पादित कर, कृषि उघम के क्षेत्र मे नई वैश्विक क्रान्ति की अलख जगा, कृषि वैज्ञानिकों, काश्तकारों तथा उद्यम विकास मे संघर्षरत उद्यमियो का ध्यान अपना नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड मे दर्ज करा, वैश्विक फलक पर ख्याति अर्जित की है। इससे पूर्व यह रिकॉर्ड छह फुट एक इंच का था।

जैविक विधि से उत्पादित उक्त धनिया पौंधों का वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए 21 अप्रैल को विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिक डॉ गणेश चौधरी द्वारा उत्पादित पौंधों का निरीक्षण कर इसकी पुष्टि की गई थी। माह मई प्रथम सप्ताह मे इस उपलब्धि को लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्स में दर्ज किया जा चुका था।

आईसीएआर वैज्ञानिक डॉ गणेश चौधरी व उत्तराखंड के चीफ हॉर्टिकल्चर आफिसर टीएन पांडे, उत्तराखंड आर्गेनिक बोर्ड रानीखेत-मजखाली इंचार्ज डॉ देवेन्द्र सिंह नेगी, उद्यान सचल दल केंद्र बिल्लेख प्रभारी राम सिंह नेगी के द्वारा उक्त सुगंधित व औषधीय गुणों से युक्त तथा पाचन तंत्र को मजबूत करने वाला अम्बेलीफेरी कुल के धनिया पौंधे को विटामिन श्एश्, श्सीश् तथा श्केश् गुणों के साथ-साथ कैल्शियम, कॉपर, आयरन, कार्बोहाइट्रेड, थियामिन, पोटेशियम, फास्फोरस से युक्त बताया गया था। वैज्ञानिकों के मुताबिक आमतौर पर धनिया पौंधों की ऊंचाई वैश्विक स्तर पर दो से छह फुट एक इंच तक देखी जाती रही। पहली बार उत्तराखंड मे सात फुट एक इंच धनिये पौंधे की अदभुत व आश्चर्य चकित कर देने वाली पैदावार कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अवलोकित की गई थी।

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा की गई प्रत्यक्ष पुष्टि के बाद, उत्पादित पौंधों के पुनर्वालोकन तथा डाक्यूमेंटेशन कराने हेतु गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड तथा लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स से जुड़े पदाधिकारियों को 23 अप्रैल को पत्र भेज आमंत्रित किया गया था।

रानी लक्ष्मीबाई चौक के नाम से जाना जाएगा चौदहबीघा चौक

यत्र नारिस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता, जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते है। लोगों में नारियों के प्रति सम्मान जगाने के लिए चौदहबीघा पुल चौक पर 10 फीट ऊंची रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाने जा रही है। इससे चौदहबीघा पुल चौक को भी रानी लक्ष्मीबाई चौक के रूप में भी पहचान मिलेगी। इस वहन नगर पालिका मुनिकीरेती करेगी।

नगर पालिका परिषद मुनिकीरेती-ढालवाला के वार्ड संख्या सात के सभासद गजेन्द्र सजवाण ने बताया कि वर्तमान में नारियों के प्रति सम्मान लोगों में कम हो रहा है, जबकि देश को आजाद कराने में नारियों की भी अहम भूमिका रही है। यही बात पर उन्होंने अपने वार्ड में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाने की ठानी और बोर्ड की पहली ही बैठक में इसका प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को पालिकाध्यक्ष रोशन रतूड़ी सहित बोर्ड के सभी सदस्यों ने सर्व सहमति से पास कर दिया। बैठक में तय हुआ कि प्रतिमा 10 फीट ऊंची रहेगी और इसे चौदहबीघा पुल चौके समीप लगाया जाएगा। प्रतिमा का निर्माण जयपुर राजस्थान में किया जा रहा है।

सभासद ने बताया कि प्रतिमा लगाने का मकसद प्रत्येक नागरिक खासतौर पर युवाओं में नारियों के प्रति सम्मान जगाना है। उन्होंने बताया कि प्रतिमा के चारों और फैंसी लाइटें लगाई जाएंगी। इससे यह सेल्फी प्वाइंट के रूप में भी विकसित हो सकेगा। उन्होंने बताया कि प्रतिमा लगाने में करीब 15 लाख रुपए खर्च होंगे। सभासद गजेन्द्र सजवाण ने प्रतिमा लगाने के लिए पालिकाध्यक्ष रोशन रतूड़ी और अधिशासी अधिकारी बद्री प्रसाद भट्ट का आभार व्यक्त किया है।