क्या वेंकैया नाडयू फिर फेरेंगे विपक्ष के मंसूबों पर पानी?

नई दिल्ली।
कांग्रेस की अगुवाई में 18 विपक्षी दलों द्वारा गोपाल कृष्ण गांधी को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाए जाने के बाद बीजेपी पर दबाव था कि इस पद के लिए किसी कद्दावर शख्सियत को मैदान में उतारे। आखिरकार बीजेपी ने वेंकैया नाडयू पर दांव खेला। नायडू पार्टी और एनडीए के लिए संकटमोचक रहे हैं फिर भी उनपर उपराष्ट्रपति के लिए दांव खेलने का फैसला बीजेपी का बहुत सोच-समझकर लिया गया फैसला है।
उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। ऐसे में नायडू के लंबे संसदीय अनुभव का लाभ मिलेगा। उनकी जीत तय मानी जा रही है। वह अबतक के सभी उपराष्ट्रपतियों में राज्यसभा का सबसे ज्यादा अनुभव रखने वाले होंगे। इसके अलावा वह संसदीय कार्य मंत्री भी रहे हैं। अबतक कोई भी उपराष्ट्रपति संसदीय कार्यमंत्री नहीं रहा है। मोदी सरकार को राज्यसभा के उपसभापति के तौर पर उपराष्ट्रपति पद की संवेदनशीलता का बखूबी अंदाजा है और यह उसके फैसले में भी झलक रहा है।
वेंकैया नायडू 1998 से अब तक लगातार राज्यसभा का सदस्य रहे हैं। उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के बाद उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया है। उन्होंने राज्यसभा में कर्नाटक और राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया है, इस तरह उन्होंने सदन में उत्तर और दक्षिण भारत दोनों का प्रतिनिधित्व किया है। वह बीजेपी के कद्दावर नेता रहे हैं। उनके पास राजनीतिक, संसदीय और प्रशासनिक तीनों अनुभव हैं।
राज्यसभा में अपने सबसे ज्यादा अनुभवी सदस्यों में से एक को उपराष्ट्रपति पद के लिए उतारकर मोदी सरकार ने इस पद की अहमियत को तवज्जो दिया है। इसके अलावा नायडू की ईमानदारी भी संदेह से परे हैं। एक किसान के बेटे वेंकैया नायडू ग्रासरूट लेवल से उठे हैं और आज वह जो कुछ भी हैं उसके पीछे उनकी मेहनत और लगन है।
नायडू विधायक और सांसद रह चुके हैं। एक राष्ट्रीय दल के अध्यक्ष रह चुके हैं। वह केंद्र में शहरी विकास के साथ-साथ ग्रामीण विकास मंत्रालय की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, इससे वह ग्रामीण भारत और शहरी भारत दोनों के आकांक्षाओं से अच्छी तरह परिचित हैं। नायडू को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने राजनीतिक शख्स को इस उच्च संवैधानिक पद पर बैठाने की अपनी प्रतिबद्धता को दिखाया है। इससे पहले बीजेपी ने लंबे संसदीय जीवन वाले अपने कद्दावर नेता भैरो सिंह शेखावट को इस पद के लिए चुना था।