ट्रेनों की रफ्तार बन रही हाथियों का काल

60 किमी प्रति घंटे दौड़ती है दून-हरिद्वार के बीच ट्रेनें
1997 में भी इसी स्थान पर ट्रेन से मारे गये थे दो हाथी

ऋषिकेश।
कांसरो से मोतीचूर रेलवे स्टेशनों के बीच तीव्र घुमाव और ट्रेन की स्पीड एक बार फिर हाथी के काल का कारण बन रही है। रायवाला में 19 वर्ष पूर्व इसी स्थान पर ट्रेन की चपेट में आने से दो मादा हाथियों की दर्दनाक मौत हो गई थी।
पानी और चारे के लिए हाथी अक्सर इसी पारम्परिक गलियारे का प्रयोग करते हैं। कांसरो-चीला-मोतीचूर कॉरिडोर से ही हाथी राजाजी राष्ट्रीय पार्क से कार्बेट पार्क आते-जाते हैं। दून-हरिद्वार रेलवे ट्रैक पर कांसरों से मोतीचूर के बीच 1988 से अब तक 24 हाथी ट्रेन की चपेट में आने से जान गवां चुके हैं। 25 किलोमीटर की ये दूरी हाथियों के लिए बेहद संवेदनशील है। मोतीचूर-चीला, कांसरो-मोतीचूर और कांसरो-बडकोट के पारम्परिक गलियारे यहीं से होकर गुजरते हैं। वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ. रितेश जोशी बताते हैं कि भारत में का कहना है कि रेलवे ट्रैक पर हुए हादसो में 152 हाथी मारे जा चुके हैं। उत्तराखंड में इनकी संख्या 24 पहुंच गई है। अधिकांश घटनाएं तड़के ही होती हैं, जिसका प्रमुख कारण पानी और चारा है। शनिवार को वैदिकनगर के पास जिस स्थान पर घटना घटी उसके दोनों तरफ खेर, शीशम और रोहणी के पेड़ हैं। साथ ही पानी के स्रोत भी हैं। ये कॉरिडोर राजाजी पार्क को कार्बेट पार्क से जोड़ता है। बताया कि इसी स्थान पर 1997 में गज शिशु को बचाने के प्रयास में दो मादा हथनियों की जान चली गई थी। तीव्र मोड और ट्रेन की स्पीड हाथियों की मौत का कारण बन रही है।

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रेलवे-पार्क के बीच हुए समझौते पर अमल नहीं
वर्ष 2001 में हुए एक हादसे में मादा हाथी की मौत हुई थी। इसके बाद तत्कालीन राजाजी राष्ट्रीय पार्क के निदेशक सुनील कुमार दूबे और रेलवे मुरादबाद मंडल के अधिकारियों के बीच दो दिन बैठक चली थी। बैठक में कुछ नियम तय किए गए थे। रेलवे और राजाजी पार्क के अधिकारियों की तय किया गया था कि रायवाला क्षेत्र में एलीफेंट कॉरीडोर से गुजरते समय रेलवे चालक सावधानी बरतेंगे।
पार्क की सीमा में लगभग 18 किलोमीटर ट्रैक पर (डोईवाला-मोतीचूर स्टेशन के बीच) ट्रेन की गति 20 से 30 किलोमीटर प्रतिघंटे रहेगी। पार्क से गुजरते हुए ट्रैक पर लगातार साइरन बजाना होगा। ट्रैक के किनारे मिट्टी के टीलों का समतल किया जाएगा। रेलवे ने कुछ स्थानों पर ट्रैक के पास समतलीकरण किया। साइरन बजाना और स्पीड कम करने के संकेत भी लगाए, लेकिन लगातार बढ़ते ट्रेनों के दबाव और नए ट्राइवरों के चलते सभी नियम धरे रह जाते हैं। जिस समय यह फैसला लिया गया तब उस समय एक दर्जन सवारी और आधा दर्जन माल गाड़ियों के फेरे ही थे, जो अब दोगने हो गए हैं। ज्यादातर ट्रेनें 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती रहती हैं।

दून-हरिद्वार रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों का दबाव बढ़ने से ट्रेनों की स्पीड़ 50 से 60 किलोमीटर प्रतिघंटे तक रहती है। हाथियों की सुरक्षा के लिए पार्क अधिकारियों के साथ मिलकर प्लान बनाया जाएगा।
प्रमोद कुमार, डीआरएम मुरादाबाद मंडल

रेलवे के अधिकारियों के साथ बैठक कर कांसरो-मोतीचूर के बीच ट्रेन की स्पीड 30 किलोमीटर प्रतिघंटे करने और ट्रैक के दोनों ओर मिट्टी के टीलों का समतलीकरण करने पर सख्ती की जाएगी।
सतनाम सोनकर, निदेशक, राजाजी नेशनल पार्क