राज्यभर में चुनावी वाहन हुआ खड़ा, अब डोर टू डोर पर फोकस

रविवार को होने जा रहे निकाय चुनावों के लिये शुक्रवार को प्रदेश भर में सार्वजनिक जनसभा, रैली, लाउटस्पीकर लगी गाड़ियां शाम पांच बजने से पूर्व बंद हो गयी। प्रदेश के कुल 2352706 मतदाता रविवार को प्रदेश के सात नगर निगम सहित 84 निकायों के प्रत्याशियों के लिये अपना मत डालेंगें। हालांकि रूड़की नगर निगम सहित आठ निकायों में चुनाव नहीं हो रहे है। इन निकाय चुनावों में कहीं तो भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर है। तो कहीं निर्दलीय इन दोनों पार्टियों के लिये सिर दर्द बने हुये है।

लोकसभा चुनाव से पहले इन निकाय चुनावों की अहमियत खासी बढ़ गई है, क्योंकि जिसके सिर भी जीत का सेहरा बंधेगा, वह बढ़े हुए मनोबल के साथ लोकसभा के चुनावी रण में उतरेगा। लगभग एक महीने चली निकाय चुनाव प्रक्रिया अब अपने चरम पर पहुंचती जा रही है। शुक्रवार शाम पांच बजे राज्यभर के निकायों में चुनाव प्रचार का शोर थमते ही प्रत्याशियों ने डोर टू डोर संपर्क पर पूरी तरह फोकस कर लिया है। ये निकाय चुनाव भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों के लिए साख का सवाल हैं। भाजपा को पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिली एकतरफा जीत के क्रम को निकाय चुनाव में भी कायम रखना है, तो कांग्रेस इसके ठीक उलट पिछले लगभग पांच सालों के दौरान खोई अपनी सियासी जमीन की तलाश निकाय चुनाव में कर रही है।

स्थानीय स्तर पर होने वाले निकाय चुनाव में यूं तो बिजली, पानी, सड़क, सीवरेज जैसी मूलभूत सुविधाओं से जुड़े मुद्दे ही ज्यादातर हावी रहते हैं, लेकिन इस बार भाजपा और कांग्रेस, केंद्र व प्रदेश सरकार के कामकाज को भी मुद्दे के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। भाजपा अपनी केंद्र व राज्य सरकार की उपलब्धियों पर जनमत हासिल करने की कोशिश कर रही है, तो कांग्रेस दोनों सरकारों को कठघरे में खड़ा कर।

दरअसल, निकाय चुनाव के नतीजे प्रदेश की भाजपा सरकार के अब तक, लगभग बीस महीने के कामकाज के आकलन के लिए कसौटी का भी काम करेंगे। निकायों में भाजपा का वर्चस्व कायम हो गया तो यह त्रिवेंद्र सरकार के कामकाज पर मुहर की तरह होगा।