देहरादून।
एक तरफ राज्य सरकार जहां प्रदेश में जड़ी-बूटियों की खोज के लिये संजीवनी प्राधिकरण बनाने की बात कह रही है, वहीं राज्य का एकमात्र जड़ी-बूटी शोध संस्थान शासन की लापरवाही और देहरादून में रहने के मोह के चलते धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है। आज स्थिति कुछ ऐसी है कि बिना स्थाई डायरेक्टर के चलने वाले इस संस्थान में महज संविदा के कुछ कर्मचारियों के साथ-साथ चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी इस संस्थान को चला रहे हैं। वहीं आज तक इस संस्थान में स्थाई वैज्ञानिक को तैनात तक नहीं किया गया है जो संस्थान की दशा बताने के लिये काफी है।
यह जड़ी-बूटी शोध संस्थान चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर से 12 किमी दूर मंडल में स्थित है। यह राज्य का एकमात्र जड़ी-बूटी शोध संस्थान जो यहां पहाड में होने वाली जड़ी-बूटियों के दोहन के साथ ही रोजगार परक बनाने के लिये खोला गया था वह उपेक्षित है। अधिकारी देहरादून में रहने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब इस क्षेत्र में संस्थान खोला गया तो सरकार ने ग्रामीणों की सैकडों नाली जमीन इस शर्त के साथ ली गई थी कि यहां स्थानीय लोगों को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार दिया जायेगा. आज हालत यह है कि न ग्रामीणों के पास जमीन रही और न ही रोजगार मिल पाया। कईं बार इसको लेकर आंदोलन भी किये गये लेकिन हर बार सरकार की तरफ से आश्वासन मिला मगर संस्थान की स्थिति आज तक नहीं सुधर पाई है।