धामी कैबिनेट के फैसले से उत्तराखंड की संवरेगी आर्थिकी

कैबिनेट के फैसले को लेकर मत्स्य उत्पादकों में भारी उत्साह है। उन्होंने कहा कि धामी सरकार का यह फैसला उनकी आर्थिकी को संवारने में मील का पत्थर साबित होगा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पर्वतीय जिलों की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कई जनकल्याणकारी योजनाओं को मंजूरी दी है। इसी क्रम में स्थानीय किसानों और पशुपालकों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए विशेष अनुदान आधारित योजनाएं शुरू की गई हैं। कैबिनेट फैसले के अनुसार स्थानीय पशुपालक, कुक्कुट पालक और मत्स्य पालक अपनी भेड़, बकरी, कुक्कुट और मछली आईटीबीपी को बेच सकेंगे। इससे जहां स्थानीय ग्रामीणों को अपने उत्पादों के लिए घर के पास ही बाजार मिलेगा, वहीं वह अच्छी आय भी अर्जित कर सकेंगे।

उत्तराखंड में मत्स्य पालन की बेहतर संभावनाएं हैं। प्रदेश सरकार मत्स्य पालन को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित कर रही है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के साथ ही मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 200 करोड रूपये़ की योजनाएं संचालित की जा रही हैं। योजना के तहत राज्य के सभी पर्वतीय जिलों में कोल्ड रनिंग वाटर में ट्राउट मछली का उत्पादन बढ़ाया जाएगा। रेनबो ट्राउट मछली की विशेषता है कि यह ठंडे पानी में उत्पादित होती है। पानी का तापमान 12 से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। मत्स्य विभाग इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित करता रहा है।

रेनबो ट्राउट मछली की मार्केटिंग पर जोर
रेनबो ट्राउट जिसे आमतौर पर हिमालयन मछली भी कहा जाता है, के उत्पादन और मार्केटिंग पर सरकार खास जोर दे रही है। इस मछली का उत्पादन मुख्य रूप से चमोली, उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग, टिहरी, बागेश्वर में किया जाता है। रेनबो ट्राउट महंगी होने से स्थानीय बाजारों में इसकी मांग कम है, लेकिन महानगरों में अच्छी डिमांड है। अब देश के दूसरे राज्यों में इसकी मार्केटिंग पर जोर दिया जा रहा है। इससे मत्स्य उत्पादक भी अच्छी आय अर्जित कर सकेंगे। राज्य सरकार ने मत्स्य सहकारी समितियों के माध्यम से मत्स्य उत्पादन को बढ़ाने और मार्केटिंग के लिए उत्तरा फिश की स्थापना की है। उत्तरा फिश हिमालयी ट्राउट और अन्य स्थानीय मछलियों को बाजार दिलाने के लिए काम कर रही है।

हमारे प्रदेश में मत्स्य पालन की असीम संभावनाएं हैं। मत्स्य पालन को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की गई हैं। अधिक से अधिक मत्स्य पालकों को प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जोड़ा जा रहा है।

-पुष्कर सिंह धामी
मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

कैबिनेट बैठकः वन पंचायतों को मजबूत और स्वावलम्बी बनाने के लिए ब्रिटिश काल के अधिनियमों में किया गया संशोधन

उत्तराखण्ड में वन पंचायतों को मजबूत और स्वावलम्बी बनाने के लिए धामी कैबिनेट ने वन पंचायत संशोधन नियमावली को मंजूरी दी है। इसके लिए वन पंचायत के ब्रिटिश काल के अधिनियमों में संशोधन किया गया है। नई नियमावली के तहत अब नौ सदस्यीय वन पंचायत का गठन किया जाएगा, जिसके पास जड़ी-बूटी उत्पादन, वृक्ष रोपण, जल संचय, वन अग्नि रोकथाम, इको टूरिज्म में भागीदारी के अधिकार होंगे, इससे वन पंचायतों की आय में अभूतपूर्व वृद्धि होने की संभावना है। सबसे अहम बात है कि पहली बार त्रिस्तरीय स्थानीय निकायों को भी वन पंचायत के वन प्रबंधन से जोड़ा गया है।

उत्तराखंड भारत का एक मात्र राज्य है जहां वन पंचायत व्यवस्था लागू है। यह एक ऐतिहासिक सामुदायिक वन प्रबंधन संस्था है जो वर्ष 1930 से संचालित हो रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सोच है कि वन पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए। उनके दिशा निर्देश पर वन पंचायत प्रबंधन के 12 साल बाद बदलाव किए गए हैं।

मौजूदा समय में प्रदेश में कुल 11217 वन पंचायतें गठित हैं जिनके पास 4.52 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र है। वन पंचायत नियमावली में किए गए संशोधन के बाद अब प्रत्येक वन पंचायत 9 सदस्यीय होगी। इसमें एक सदस्य ग्राम प्रधान द्वारा और एक सदस्य जैवविविधता प्रबंधन समिति द्वारा नामित किया जायेगा। ऐसी वन पंचायतें जो नगर निकाय क्षेत्र में आती है वहां नगर निकाय प्रशासन द्वारा एक सदस्य को वन पंचायत में नामित किया जायेगा।

दरअसल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सोच है कि वन पंचायतें स्वतंत्र रूप से अपनी उपज का विपणन करें। इस दिशा में जो नियमावली बनाई गई है उसमें वन पंचायतों को अपने अपने क्षेत्रों में जड़ी-बूटी उत्पादन, वृक्ष रोपण, जल संचय, वन अग्नि रोकथाम, इको टूरिज्म में भागीदारी का अधिकार मिलेगा। इससे उन्हें होने वाली आय को वे वनों के रखरखाव में लगा सकेंगे। इतना ही नहीं नए नियमों के तहत अब वन पंचायतों को मजबूत करने के लिए उन्हें गैर प्रकाष्ठीय वन उपज जैसे फूल पत्ती जड़ी-बूटी, झूला घास आदि के रवन्ने अथवा अभिवहन पास जारी करने का अधिकार दिया गया है, इससे प्राप्त शुल्क को भी वन पंचायतों को अपने बैंक खाते में जमा करने का अधिकार होगा। वन पंचायतें अभी तक ग्राम सभा से लगे अपने जंगलों के रखरखाव, वृक्षारोपण, वनाग्नि से बचाव आदि का काम स्वयं सहायता समूह या सहकारिता की तरह करती आई हैं लेकिन इसका प्रबंधन डीएफओ के स्तर से किया जाता था। अब वन पंचायतों के वित्तीय अधिकार बढ़ा दिए गए हैं।

इसके अलावा, वन पंचायतों को वन अपराध करने वालों को से जुर्माना वसूलने जाने का अधिकार भी पहली बार धामी सरकार द्वारा दिया जा रहा है। वन पंचायतों को सीएसआर फंड अथवा अन्य स्रोतों से मिली धनराशि को उनके बैंक खाते में जमा करने का अधिकार दिए जाने की भी व्यवस्था नये नियमावली में की गई है, जिससे वन पंचायतों की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा सकेगा। नई नियमावली में न सिर्फ वन पंचायतों के अधिकार बढ़ाये गये हैं बल्कि वन पंचायत पदाधिकारियों की कर्तव्यों और जवाबदेही भी निर्धारित की गई है। वन पंचायतों के वनों में कूड़ा निस्तारण को भी प्राथमिकता में रखा गया है। नई नियमावली में ईको टूरिज्म को प्रोत्साहित करने के लिए भी कई प्राविधान किए गए हैं।