एम्स में नौ माह का शिशु का सिकुड़ा हार्ट सर्जरी के जरिए हुआ सही

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में कॉर्डियो थोरेसिक सर्जरी विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने उधमसिंहनगर निवासी एक 9 महीने के शिशु के सिकुड़े हुए हार्ट की सफलतापूर्वक सर्जरी को अंजाम दिया है। एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने इस उपलब्धि के लिए चिकित्सकीय टीम की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि पीडियाट्रिक कॉर्डियक सर्जरी एक टीम वर्क है। जिसमें बच्चों के दिल के विशेषज्ञ, पीडियाट्रिक सीटीवीएस सर्जन व कॉर्डियक एनेस्थिटिस्ट के अलावा पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजिस्ट, कॉर्डियक रेडियोलॉजिस्ट, नर्सिंग आदि की अहम भूमिका होती है। निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि एम्स ऋषिकेश बच्चों के हृदय संबंधी बीमारियों के इलाज का विशेष ध्यान रखते हुए ​भविष्य में हृदय संबंधी सभी गंभीर बीमारियों के समुचित उपचार सुविधाएं उपलब्ध कराने को प्रयासरत है। जिससे कि मरीजों को हृदय से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए उत्तराखंड से बाहर के चिकित्सालयों में परेशान नहीं होना पड़े।
चिकित्सकों के अनुसार उधमसिंहनगर निवासी 9 महीने के शिशु को बचपन से ही दूध पीने में कठिनाई होती थी। जांच के बाद पता चला कि उसके हार्ट के वाल्ब में जन्म से सिकुड़न है एवं एक पीडीए नामक धमनी जिसे जन्म के बाद बंद होना चाहिए मगर वह नहीं हुई थी। इससे बच्चे के दिल पर अधिक दबाव बन रहा था एवं बच्चे का वजन नहीं बढ़ पा रहा था। इस बच्चे का वजन मात्र 5 किलोग्राम था, उसे दूध पीते वक्त माथे पर पसीना आता था और दूध रुक रुक कर पाता था, जो कि बच्चों में हार्ट फेलियर के लक्षण है। उन्होंने बताया ​कि बच्चे की पहली जांच हल्द्वानी में हुई थी जहां से उसे एम्स ऋषिकेश रेफर किया गया था।

आवश्यक परीक्षण एवं जांच के उपरांत बच्चे की धमनी का संस्थान के पीडियाट्रिक सीटीवीएस विभाग के चिकित्सकों की टीम ने डा. अनीश गुप्ता के नेतृत्व में सफलतापूर्वक किया। चिकित्सक के अनुसार सर्जरी के बाद उसके वाल्ब की दिक्कत काफी हद तक कम हो गई है तथा शिशु की हालत में लगातार सुधार हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया ​कि भविष्य में बच्चे के वाल्ब का आपरेशन किए जाने की संभावना है। ऑपरेशन के बाद शिशु को आईसीयू में डा. अजय मिश्रा की देखरेख में रखा गया व इसके बाद उसे डा. यश श्रीवास्तव की निगरानी में शिफ्ट किया गया।

एम्स का अनुरोध, बच्चों में निम्न लक्षण होने पर पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजिस्ट से कराएं जांच – 1-होंठ एवं नाखून का नीला पड़ना, 2- सांस फूलना, 3-वजन न बढ़ना, 4-दूध पीने में कठिनाई या माथे पर पसीना आना, 5-जल्दी थकान होना, 6- धड़कन तेज चलना।

खांसी, जुकाम होने पर एंटीबायोटिक लेना गलत, इससे बाॅडी में पैदा हो सकते हैं रजिस्टेंस

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में वल्र्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने व्याख्यान प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने बिना विशेषज्ञ चिकित्सकों के परामर्श के एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से होने वाले नुकसान को लेकर लोगों को जागरुक किया।

निदेशक एम्स प्रो. रविकांत की देखरेख में आयोजित कार्यक्रम में बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग की प्रमुख प्रो. बी. सत्याश्री ने बताया कि बच्चों में किसी भी दवाई या एंटीबायोटिक को देने में सतर्कता बरतना कितना जरूरी है। उनका कहना है कि वह अपने विभाग में हर वह कोशिश करती हैं जिससे बच्चों की देखभाल में कोई कमी नहीं रहे और कोई भी दवाई या एंटीबायोटिक देने से पहले कल्चर या सेंसटिविटी टेस्ट कराते हैं
उन्होंने बताया कि आजकल यह भी देखा जा रहा है कि घर पर यदि कोई बच्चा बीमार हो जाता है, तो उसके परिवार वाले बाहर से ही किसी केमिस्ट से उसे दवाई दे देते हैं या एंटीबायोटिक के इंजेक्शन भी लेते हैं, जो कि बहुत गलत है।

प्रसूति एवं स्त्री रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जया चतुर्वेदी ने मल्टीड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विषय में जानकारी दी, उन्होंने कहा कि अगर हम हर छोटी बीमारी जुकाम, खांसी होने पर भी एंटीबायोटिक लेंगे, तो यह हमारे शरीर में रजिस्टेंस पैदा कर सकते हैं और यह बैक्टीरिया आगे चलकर बीमारी फैलाने का कारण बन सकता है, लिहाजा इसके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि हम दवाई का सही समय, सही अवधि तक उसका इस्तेमाल करें।

सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो. डा. सोम प्रकाश बासु ने बताया कि ऑपरेशन के बाद मरीज के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कितना जरूरी है, उनका कहना है कि जरूरत से ज्यादा और आवश्यकता से कम एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल मरीज के लिए कितना हानिकारक हो सकता है, जिसे समय पर समझना बहुत जरूरी है। डा. बासु के अनुसार बिना चिकित्सक की सलाह के इन एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाना बंद होना चाहिए और इसके लिए कड़ी नीतियों का बनना उतना ही आवश्यक है।

नेत्र विभागाध्यक्ष प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने बताया कि अमूमन देखा गया है कि आंखों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीबायोटिक का उपयोग सही तरीके से नहीं किया जाता है और लोग स्वयं ही केमिस्ट के पास जाकर कोई भी एंटीबायोटिक आंखों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कुछ एंटीबायोटिक जो आंखों के ऑपरेशन के बाद इस्तेमाल किए जाते हैं, उनमें कुछ मात्रा में स्टेरॉयड भी मौजूद होते हैं, लेकिन इनका एक साथ इस्तेमाल होना हानिकारक हो सकता है, ऐसे में यदि इसे सही अवधि तक नहीं लिया जाए लिहाजा इनका इस्तेमाल अलग-अलग होना चाहिए और कोई भी एंटीबायोटिक को धीरे-धीरे नहीं बल्कि डॉक्टर द्वारा निर्धारित अवधि खत्म होने पर बंद कर देना चाहिए।