हाईकोर्ट के फैसले पर हैरानी जताई, कहा-समीक्षा करेंगे, फिलहाल अन्य कोई नही की कोई टिप्पणी

-विपक्षी खेमे में फैसला आने के बाद बची खलबली

आखिरकार देश की सर्वोच्च अदालत में सत्य की जीत हुई। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ हाईकोर्ट के सीबीआई जांच कराने वाले आदेश ने हैरान जरूर किया था। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द करते हुए आश्चर्य जताया कि हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश कैसे पारित किया? जबकि मुख्यमंत्री इस मामले में पक्षकार ही नहीं थे। उनके खिलाफ जांच की कोई मांग भी नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए सीबीआई जांच के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है, साथ ही सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किए हैं। इनका जवाब दाखिल करने का चार सप्ताह का समय भी दिया है।

एससी में सीएम के वकील ने कहा, बेवजह नाम घसीटा गया
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के वकील ने कहा कि राज्य की जनता ने उन्हें चुना है, राजनीतिक लाभ के लिए विवाद में उनका नाम बेवजह डाला गया है। उन्होंने कोर्ट में यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट में उमेश शर्मा ने सीबीआई जांच जैसा कोई मांग नहीं की थी। उमेश शर्मा की याचिका में सिर्फ उसके खिलाफ देहरादून में दर्ज एफआइआर को रद्द करने की मांग की गई थी। इसके विपरीत हाईकोर्ट ने न सिर्फ उमेश के खिलाफ दर्ज एफआइआर रद्द करने का आदेश सुनाया बल्कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआई जांच करने का आदेश दे दिया। सीएम ने अपनी याचिका में लगाए गए आरोप को फर्जी और आधारहीन कहा।

मूल मुद्दा तो भटक गया…
दरअसल देहरादून के राजपुर थाने में पत्रकार उमेश शर्मा सहित अन्य के खिलाफ सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने ब्लैकमेलिंग, दस्तावेजों की कूट रचना और गलत तरीके से बैंक खातों की जानकारी हासिल करने का मुकदमा दर्ज कराया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि उमेश शर्मा ने सोशल मीडिया का दुरूपयोग किया और एक वीडियो डाली। इसमें प्रोफेसर रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के खाते में नोटबंदी के दौरान झारखंड के अमृतेश चैहान की ओर से 25 लाख रुपये जमा करने की बात कही गई थी और यह रकम को त्रिवेंद्र सिंह रावत को देने को कहा गया था। इसके अलावा सविता रावत को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सगी बहन बताया गया था। प्रोफेसर हरेंद्र सिंह ने सभी तथ्यों को झूठा बताया था।
बड़ा सवाल तो यह है कि कैसे हम दूसरे अनजान व्यक्ति की बैंक संबंधी डिटेल प्राप्त कर सकते है? आयकर विभाग के अलावा यह जानकारी बैंक भी अन्य किसी को नही देता है। मसलन यदि कोई आपराधिक मामला है तो बैंक जांच के दौरान पुलिस अथवा जांच एजेंसी को जानकारी मुहैया कराता है। इस मामले में देखे तो तथाकथित पत्रकार ना तो जांच एजेंसी है ना ही अधिकृत व्यक्ति। ऐसे में बैंकों की भूमिका भी संदिग्ध हो जाती है। सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत की शिकायत पर तो अभी तक कोर्ट के द्वारा कार्रवाई भी नही की गई है?

व्यक्ति एक दलीलें दो….
देश के जाने माने वकील कपिल सिब्बल भी गजब के आदमी निकले। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग मामले में इन्ही वकील साहब ने कोर्ट को उमेश कुमार को ब्लेकमेलर बताया है। जबकि इस मामले में वकील साहब तथाकथित पत्रकार को ईमानदार बता रहे है। अन्य राज्यों में लंबित मुकदमें को लेकर उन्हें झूठा फंसाने की बात कह रहे है। वकील साहब पहले तय कर ले कि आप किस केस में सच बोल रहे है और किस केस में झूठ?

केस को हाईप्रोफाइल बनाने और सुर्खियां बटोरने की कोशिश…
तथाकिथत पत्रकार उमेश जे कुमार की और से इस मामले को हाईप्रोफाइल बनाने और सुर्खियां बटोरने के लिए इस्तेमाल करना प्रतीत हो रहा है। जानकार बताते है कि अपनी गर्दन बचाने के लिए हाईकोर्ट में केस का रुख मोड़ा गया है। वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील जानेमाने वकील कपिल सिब्बल और चालाक पत्रकार की चालो में उलझ गये। जिससे केस ने दूसरा ही रुख मोड़ लिया।

कथित पत्रकार की सीबीआई जांच मांग जोर पकड़ने लगी
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सोशल मीडिया में कथित पत्रकार के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग जोर पकड़ने लगी है। बेशुमार दौलत के मालिक और कथित तौर पर अन्य राज्यों में कई मुकदमों का सामना कर रहे पत्रकार को लेकर लोगों में नाराजगी दिखाई दे रही है। लोग ईमानदार मुख्यमंत्री पर लांछन लगाने को लेकर इसकी ही सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहे है।

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