देहरादून। गैरसैंण राज्य निर्माण के शहीदों और आन्दोलनकारियों की भावनाओं का प्रतीक है। पहाड़ की राजधानी पहाड में जैसे नारे अब सार्थक होते जा रहे हैं। जी हां और ये सपना एक राज्य आन्दोलनकारी ही पूरा कर सकता था, जो मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने किया। राज्य आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले सीएम त्रिवेन्द्र का गैरसैंण को लेकर भावनात्मक लगाव किसी से छुपा नहीं है। उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत पहले ऐसे सीएम हैं जो लगातार गैरसैंण जाकर अपने इस लगाव के साथ काम करते भी दिखाई देते हैं। सीएम त्रिवेन्द्र ने गैरसैंण के विकास की इबारत लिखने में केवल बाते हीं नहीं की बल्कि धरातल पर भी इसे उतराने में पूरी शिद्दत से काम किए हैं।
इसकी पहली झलक मार्च माह में सीएम त्रिवेन्द्र ने विधानसभा सत्र के दौरान गैरसैंण मे ही दिखा दी थी। जब किसी को अपेक्षा नहीं थी कि गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर फैसला इस सत्र में होगा लेकिन दृढनिश्चियी सीएम ने वो फैसला गैरसैंण के हित में और उत्तराखंड के हित में ले लिया जिसकों लेने में बाकी मुख्यमंत्रियों ने कभी हिम्मत तक नहीं दिखाई। हां दिखावा जरूर करते रहे लेकिन त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने दिखा दिया था की वो केवल बातें नहीं करते बल्कि उसे पूरा करने की हिम्मत भी रखते हैं। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा के दौरान ही सीएम की आखों से बहे आंसूओं ने साफ बता दिया था की मुख्यमंत्री के लिए गैरसैंण सियासी मुद्दा नहीं बल्कि भावनाओं से जुड़ा और उनके दिल से जुडा मुद्दा है। उसी दिन लग गया था कि शहीदों के सपनों को पूरा करने में सीएम त्रिवेन्द्र कोई कसर नहीं छोडेंगे।
साफ है गैरसैंण पर फैसला लेते हुए सीएम कभी भी एक सीएम की तरह नहीं बल्कि राज्य के लिए आन्दोलन करने वाले एक आन्दोलनकारी, राज्य आन्दोलन के लिए शहीद होने वालों के परिवार के सदस्य की तरह उनके सपनों को अपना सपना बनाते हुए उसे पूरा करने की सोच के साथ काम करते रहे हैं। इसलिए राज्य के मुद्दों के लिए उनकी टीस और भावनाएं ठीक उसी तरह हैं जैसी एक राज्य आन्दोलनकारी के मन की टीस। यही वजह है कि सीएम ने गैरसैंण में ही घर बनाने का फैसला भी किया है।