लगभग समूचे देश के सरकारी स्कूलों में लगातार गिरते जा रहे शिक्षा के स्तर और खराब परिणामों के कारण इनमें बच्चों के दाखिलों का आंकड़ा लगातार गिरता जा रहा है और अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाने के लिए सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ कर महंगी फीस के बावजूद प्राइवेट स्कूलों को ही प्राथमिकता देने लगे हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर किस कदर गिर चुका है यह कुछ राज्यों के ताजा घोषित नतीजों से स्पष्ट है।
09 मई को घोषित हिमाचल का 10वीं का नतीजा 67.57 प्रतिशत रहा। 20 मई को घोषित हरियाणा का 10वीं का परिणाम 55 प्रतिशत रहा। 22 मई को घोषित पंजाब का 10वीं का परिणाम 57.50 प्रतिशत रहा। 30 मई को घोषित झारखंड का 10वीं का परिणाम 57.91 प्रतिशत रहा जो वहां 10वीं का अब तक का सबसे खराब नतीजा है। झारखंड का 12वीं का नतीजा 52.36 प्रतिशत रहा। 30 मई को ही घोषित बिहार स्कूल शिक्षा बोर्ड की बारहवीं कक्षा की परीक्षा का परिणाम तो उक्त सभी परिणामों की तुलना में घोर निराशाजनक रहा। इस परीक्षा की सभी श्रेणियों में 65 प्रतिशत छात्र-छात्राएं फेल हो गए तथा सिर्फ 35 प्रतिशत छात्र-छात्राओं को ही सफलता मिल पाई। ये सभी परिणाम देश के 2 दक्षिणी राज्यों केरल के 98.5 प्रतिशत व तमिलनाडु के 94.8 प्रतिशत के पिछले वर्ष के परिणाम के सामने कहीं ठहरते ही नहीं।
उल्लेखनीय है कि गत वर्ष 12वीं कक्षा की बिहार स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा ली जाने वाली परीक्षा में ‘नकल का महाघोटाला’ हुआ था तथा 67.66 प्रतिशत छात्र पास घोषित किए गए थे तब सिरे से नालायक छात्रों को परीक्षा में टॉपर घोषित कर दिया गया था। इस घोटाले का पर्दाफाश उस समय हुआ था जब टॉपर घोषित छात्रा रूबी राय टी.वी. इंटरव्यूज में साधारण से प्रश्रों के भी सही उत्तर न दे पाई।
जिसके चलते कोहराम मचने के बाद शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष ललकेश्वर प्रसाद सिंह सहित अनेक उच्चाधिकारियों के विरुद्ध पुलिस में रपट दर्ज करवाई गई। ललकेश्वर सहित अनेक उच्चाधिकारियों और कुछ छात्रों की गिरफ्तारी भी हुई और टॉपर छात्रों के परिणाम रद्द किए गए। इस समय रूबी राय जमानत पर रिहा है तथा बिहार स्कूल शिक्षा बोर्ड के अनेक अधिकारी जेल में हैं ।
बोर्ड के नए अध्यक्ष आनंद प्रकाश के अनुसार पिछली परीक्षा में पक्षपात तथा अनियमितताओं के बोर्ड अधिकारियों पर लगे गम्भीर आरोपों के चलते इस बार उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में कठोरता बरतने तथा उत्तर पुस्तिकाओं की ‘बारकोड’ करने सेे हेराफेरी की गुंजाइश न रहने के कारण ‘मॉडरेशन’ के बावजूद पास प्रतिशत पिछली बार से 32 प्रतिशत कम रहा। बिहार के शिक्षा मंत्री डा. अशोक चौधरी के अनुसार, ‘‘खराब नतीजा बोर्ड द्वारा अतीत में होती रही अनियमितताओं का नतीजा है परंतु कुछ समय में शिक्षा ढांचे में सुधार के बाद शिक्षा के स्तर व परिणामों में भी सुधार दिखाई देगा।’’
सभी राज्यों में देश के अलग-अलग तीन मुख्य राजनीतिक दलों-कांग्रेस, भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की सरकारें हैं जो स्पष्ट प्रमाण है कि बेशक इन तीनों दलों का राजनीतिक एजेंडा अलग-अलग है परंतु शिक्षा के प्रति उदासीनता के मामले में तीनों राज्यों की सरकारें लगभग एक जैसी हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए लम्बी छुट्टी लेकर विदेशों में बैठे अध्यापकों की सेवाएं तत्काल समाप्त करने तथा अध्यापकों द्वारा अपने स्थान पर रखे ‘प्रॉक्सी टीचरों’ को निकाल कर उनके स्थान पर नई भर्ती करने और दोषियों विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है।