नैनीताल। प्रयाग पाण्डे
नैनीताल – देश -दुनिया के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र नैनीताल की खूबसूरत झील इस दौरान अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। मिट्टी-मलबा, कूड़ा-करटक भर जाने से पैदा हुए प्रदूषण के साथ जल स्तर में आई जबरदस्त गिरावट समेत अनेक समस्याओं से जूझ रही नैनी झील के किनारों को अब झील के रखवालों ने ही मिट्टी ,पत्थर और सीमेंट से पाटना शुरू कर दिया है। नैनीताल और आसपास के इलाकों को रोजी-रोटी ,पानी और पहचान देने वाली झील अब खुद यतीम हो गई है।
नैनीताल की झील की कुदरती बनावट में ही इसकी असल खूबसूरती छिपी है। दुर्भाग्य से झील के रखरखाव के लिए जिम्मेदार सरकारी महकमे ही इसकी प्राकृतिक शोभा को बदरंग करने पर आमादा हैं। मजेदार बात यह कि यह क्षरण एशियन विकास बैंक की माली मदद से धरोहरों के संरक्षण के नाम पर हो रहा है। उत्तराखण्ड के पर्यटन महकमे की हेरिटेज भवनों के संरक्षण की एक ऐसी ही योजना नैनी झील के क्षरण की सबब बन गई है।
उत्तराखण्ड के पर्यटन विभाग ने हेरिटेज भवनों को सहेजने के लिए योजना बनाई है। इस योजना के लिए एशियन विकास बैंक से बेहिसाब आर्थिक मदद ली जा रही है। योजना में नैनीताल को भी शामिल किया गया है। योजना के तहत “कल्चर हेरिटेज एंड अर्बन प्लेस मेकिंग इन नैनीताल” नाम से नैनीताल नगर में विभिन्न कामों के लिए तकरीबन अट्ठाइस करोड़ रूपए मंजूर हुए हैं। इन कामों का ठेका दिल्ली की “सिम्पलेक्स” नाम को दिया गया है।
धरोहरों को संरक्षित करने के नाम पर चल रही इस योजना के तहत इन दिनों नैनीताल की मालरोड में तालाब के किनारे स्थित दुर्गा साह नगर पालिका पुस्तकालय के जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। ब्रिटिशकाल में बने बेहद हल्के पुस्तकालय शेड को संरक्षित करने के बहाने तालाब के एक बड़े हिस्से में पत्थरों की चौड़ी दीवार देकर उस हिस्से को मिट्टी-मलबे से पाटने का काम चल रहा है। झील के भीतर इस बेतुके एवं कुरूप निर्माण से झील की प्राकृतिक सुंदरता खतरे में है। निहायत गैर जरूरी और नासमझी भरे इस निर्माण से झील का भौगोलिक क्षेत्रफल और जल संग्रहण क्षमता दोनों का कम होना तय है।
दुर्गा साह नगर पालिका पुस्तकालय का यह शेड करीब एक सौ साल पहले बना था। शुरुआत में यह वाईडब्ल्यूसीए का बोट हाउस था। 1937 में नगर पालिका ने इस शेड को पुस्तकालय के लिए अधिगृहीत कर लिया। यह शेड तालाब के किनारे पत्थर के पिलरों के ऊपर टिका है। इसकी पर्दा दीवारें हल्के टिन से बनाई गई हैं। इस शेड के मूल ढांचे के रहते तालाब के भौगोलिक क्षेत्रफल और जल संग्रहण क्षमता पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ रहा था। इस शेड के नीचे बराबर पानी रहा करता था। पर अब एयर कंडीशन कमरों में बैठे योजनाकारों को इस शेड को संरक्षित करने के वास्ते तालाब के भीतर बदनुमा दीवार लगाने के अलावा और कोई तकनीक नहीं सूझ रही है।
वहीं, दूसरी ओर नैनीताल की झील की देख-रख और रखरखाव के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार लोक निर्माण विभाग ने तल्लीताल क्षेत्र में झील के भीतर एक पक्का कैचपिट बना डाला है। इससे तालाब का न केवल अंदरूनी क्षेत्रफल कम हुआ है, बल्कि जल संग्रहण क्षमता भी घट गई है। लोनिवि के अधिशासी अभियंता एस. के. गर्ग के मुताबिक यह कैचपिट झील में मलबा जाने से रोकने के लिए बनाया गया है। हकीकत यह है कि कैचपिट झील के मौजूद जल स्तर करीब पांच फिट में तालाब में बनाया गया। जबकि इस मौसम में तालाब का जल स्तर साढ़े नौ फिट होना चाहिए था। तालाब का अधिकतम जल स्तर बारह फिट तक रखे जाने की व्यवस्था है। भविष्य में झील में मानक के मुताबिक पानी भरा तो इस कैचपिट का डूबना तय है। ऐसी सूरत में इस कैचपिट की उपयोगिता क्या होगी, इसका जबाब इंजीनियरों के पास नहीं है। गौरतलब बात यह है कि उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने जिले की सभी झीलों के तीस मीटर के दायरे में निर्माण कामों पर पाबंदी लगाने के आदेश दिए हैं।