देवों के देव महादेव की पूजा-आराधना का सबसे विशेष दिन महाशिवरात्रि का त्योहार बड़े धूमधाम के साथ मनाया जा रहा। उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों में मौसम खराब होने के बाद भी मंदिरों के बाहर भक्तों की लंबी लाइनें लगी हैं। देखा गया कि पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मना रहे हैं। वहीं योग परंपरा के अनुसार बात की जाए तो यह एक ऐसा दिन है जब प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन सर्वार्थ सिद्धि का योग बनने से पर्व की महत्ता और अधिक बढ़ गई है। भारतीय सनातन संस्कृति में महाशिवरात्रि का त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
यूं तो साल में हर चंद्र मास का चैदहवां दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का दिन शिवरात्रि होती है। लेकिन फाल्गुन माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। इस खास रात में प्रकृति मनुष्य के भीतर की ऊर्जा को प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर उठाने में मदद करती है। इसलिए इस समय का उपयोग करने के लिए सनातन परंपरा में प्राचीन काल से ही पूरी रात उत्सव मनाया जाता था और आज भी यह परंपरा बरकरार है। महाशिवरात्रि की पूरी रात को भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर अध्यात्म की अलख जगाने का भी कार्य किया जाता है। दरअसल, भगवान शिव को आदि गुरु माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन से सृष्टि का प्रारंभ हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।
ज्योतिषाचार्य पंडित कैलाश तिवारी का कहना है कि वैसे तो महाशिवरात्रि एक सिद्ध दिन और महापर्व होता है। इस बार महाशिवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि योग होने से सभी कार्यों की सफलता के लिए शुभ माना गया है। इससे महाशिवरात्रि के पर्व का महत्व कई गुना बढ़ गया है। शिव का जलाभिषेक दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल से किया जाता है। भगवान शिव ऐसे देव हैं, जो केवल जल का लोटा चढ़ाने से प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन भगवान शिव को इसके साथ ही बिल्व पत्र, दूध, दही, धतूरा, कर्पूर, चावल, चंदन, भस्म और रूद्राक्ष बहुत प्रिय है। ऐसे में श्रद्धालु अपनी इच्छा के अनुसार भगवान शिव का विभिन्न चीजों से अभिषेक कर शिव कृपा हासिल कर सकते हैं।