एनएच-74 मामले में ईडी की कार्रवाई से हड़कंप

रुद्रपुर-बाजपुर-सितारगंज राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-74) के चैड़ीकरण कार्य में जमीन अधिग्रहण में किए गए खेल से सरकार को 215.11 करोड़ रुपये की चपत लगाने के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 21.96 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच कर दी है। इस कार्रवाई में ऊधमसिंह नगर के तत्कालीन विशेष भूमि अध्याप्ति अधिकारी (एसएलओ) व वर्तमान में रुद्रप्रयाग के उपजिलाधिकारी डीपी सिंह समेत 23 लोगों की संपत्ति अटैच की गई है।
संपत्ति अटैचमेंट की यह कार्रवाई प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत ईडी के उपनिदेशक (उत्तराखंड) रवींद्र जोशी के नेतृत्व में की गई। कुल 21.96 करोड़ रुपये की संपत्ति में 36 अचल संपत्तियां (फ्लैट, कृषि, औद्योगिक, वाणिज्यिक भूखंड) व चल संपत्ति में 11 बैंक खातेध्म्यूचुअल फंड के खाते शामिल हैं। यह संपत्तियां देहरादून, उधमसिंह नगर व उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में हैं। जिनमें उप जिलाधिकारी डीपी सिंह का भूखंड भी शामिल है। अटैच की गई संपत्ति से संबंधित 23 लोगों में से चार दलाल व शेष ऊधमसिंह नगर के कृषक हैं। इन सभी की संपत्ति ऊधमसिंह नगर में है। बताया जा रहा है कि जांच अभी जारी है और ईडी के राडार पर अभी कई और लोग हैं। जल्द इनकी भी चल-अचल संपत्ति अटैच की जाएगी।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने तत्कालीन एसएलओ व रुद्रप्रयाग के एसडीएम (उपजिलाधिकारी) की जो संपत्ति अटैच की है, उसमें राजपुर रोड पर एक बेहतरीन फ्लैट भी है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के रामपुर में चार अलग-अलग जगह खरीदे गए चार भूखंड को (2.25 हेक्टेयर) को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग में अटैच किया गया। ईडी सूत्रों ने बताया कि जमीन अधिग्रहण में फर्जीवाड़ा कर भू-स्वामियों को जो अतिरिक्त मुआवजा बांटा गया, उससे राजस्व व अन्य अधिकारियों को मोटा कमीशन दिया गया।
इसके अलावा किसानों ने अतिरिक्त राशि का प्रयोग अचल संपत्ति खरीदने में किया। बड़ी राशि बैंकों में जमा कराई गई और कुछ ने म्यूचुअल फंड में भी निवेश किया। ईडी ने घपले के बाद अर्जित की गई संपत्ति का आकलन उनके आयकर रिटर्न व बैंक स्टेटमेंट से किया। स्पष्ट हो गया कि वास्तविक मुआवजे के अतिरिक्त जो रकम जमा की गई है या संपत्ति खरीदी गई है, उसका माध्यम ब्लैक मनी है। ऐसी संपत्ति की पूरी सूची तैयार करने के बाद ईडी ने सभी को अटैच कर दिया। अब आरोपित इन संपत्ति की किसी भी तरह की खरीद-फरोख्त नहीं कर पाएंगे।

नाराजगी जताकर अपना बचाव तो नही कर रहे यशपाल आर्य!

उत्तराखंड में समाज कल्याण और परिवहन विभाग के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के इस्तीफे के पेशकश की खबर चर्चा के केंद्र में है। निश्चित तौर पर यह खबर जिस तरह से सामने आई है वह साफ करती है कि यशपाल आर्य की जानकारी और मर्जी के बिना यह जनकरी बाहर आने की संभावना ना के बराबर है। क्योंकि मामला मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और यशपाल आर्य के बीच का ही था। क्या इसके पीछे वही कारण है जो प्रचारित किया गया है या कुछ और। यह विचारणीय प्रश्न है।
कारण सरकारी सेवाओं में पदोन्नति में रोक लगाने और नया रोस्टर जारी किया गया है। यह फैसला उस कैबिनेट सब कमेटी की सिफारिशों पर किया गया जिसके अध्यक्ष खुद यशपाल आर्य थे और दो अन्य कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल व अरविंद पाण्डेय उसके सदस्य।
फिलहाल यशपाल आर्य ने अपनी चाल चल दी है। जरा अतीत में जाएं तो ये वही यशपाल आर्य हैं जिनको कांग्रेस से विधान सभा चुनाव के पहले अमित शाह बीजेपी में लेकर आए थे। फिर जब एनएच 74 घोटाले की जांच ने जोर पकड़ा तो उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया क्योंकि यह उस क्षेत्र का मामला है जहां यशपाल आर्य की राजनीति का गढ़ है। तो क्या यशपाल आर्य ने ये आरक्षित वर्ग को न्यायोचित हक का अस्त्र इसलिए इस्तेमाल किया क्योंकि उनको दिल्ली में पार्टी और सरकार से वह भाव मिलना बंद हो चुका था जो उत्तराखंड विधान सभा चुनाव के दौरान मिला था। जैसे जैसे उनके तमाम किस्से विरोधी दिल्ली पहुंचाते रहे उनकी पकड़ और साख बीजेपी हाई कमान की नजर में कम होती रही।
12 सितंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चावल घोटाले का जिक्र कर दिया और बोले कि कुछ लोग अपनी जेब में चावल के कागज लेकर उत्तराखण्ड पहुंचते थे और असली चावल कहीं और चला जाता था। यह भी सीएम का कांग्रेस से बीजेपी में विधान सभा चुनाव के दौरान ही आए दूसरे कबिना मंत्री पर राजनीतिक प्रहार माना गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्यमंत्री अपना दूसरा तीर कमान से छोड़ें उसके पहले ही यशपाल आर्य ने वह दांव लगा दिया जो वोट बैंक को पर असर डालता है इसलिए मुख्यमंत्री सकते में हैं और डैमेज कंट्रोल में जुट गए बताए जा रहे हैं।
अब सरकार एनएच 74 घोटाले पर आगे बढ़ने का साहस नहीं जुटा पाएगी। उधर, उधम सिंह नगर में हुए चावल घोटाले के समय 2012 से 2017 के काल में प्रीतम सिंह खाद्य आपूर्ति मंत्री थे, उनका वर्तमान मुख्यमंत्री के मुंह लगे वरिष्ठ नौकरशाह से 36 का आंकड़ा जग जाहिर है। माना जाता है कि उनके ही उपलब्ध कराए दस्तावेजों के आधार पर अगस्त 17 में त्रिवेंद्र रावत ने जांच शुरू कराई थी। उधर कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई के चलते हरीश रावत भी जांच के लिए मुख्यमंत्री के मददगार अंदरखाने बन रहे थे। अचानक प्रीतम सिंह ने जांच में दो और मुद्दों को शामिल करने की मांग कर डाली। बस मामला कृषि विभाग तक जा पहुंचा और धान पर आ गया। एक वर्तमान काबिना मंत्री तक जांच पहुंचती तो इसे भी एनएच 74 की तर्ज पर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसके पहले प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में हरिद्वार में हुवे घोटाले को भी ये सरकार ठंडे बस्ते में डाल चुकी है। यशपाल आर्य के इस्तीफे की खबर ने इन सभी मुद्दों को गरमा दिया है।
खास तौर पर 2014 से 2019 के दौर में हुवे प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना में हुवे घोटाले की जांच को दबाने की जानकारी प्रधानमंत्री तक पहुंचाई जा रही है। इससे लगता है कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड की राजनीति में गर्मी बनी रहेगी। इसका असर इन दिनों नजर भी आने लगा है सरकार की उपलब्धियों के इश्तेहारों से अखबारों और चैनलों को उपकृत किया जा रहा है। इस दौर में माध्यमों के लिए यह सकून का संदेश है। तो क्या कांग्रेस से बीजेपी में आया धड़ा सी एम के खिलाफ लाम बंदी कर मंदी के दौर में मोदी सरकार के लिए नया सिरदर्द पैदा करने की कोशिश कर रहा है।
(यह पोस्ट फेसबुक से ली गई है। लेखक निशीथ जोशी पंजाब केसरी उत्तराखंड के संपादक है।)