प्रवासी उत्तराखंडी सम्मेलन के दूसरे सत्र में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति पर चर्चा

प्रवासी उत्तराखंडी सम्मेलन के दूसरे सत्र में संस्कृति, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे विषयों पर विमर्श के केंद्र में नारी शक्ति रही। प्रदेश की वर्तमान परिस्थितियों का जिक्र करते हुए कहा गया कि महिलाओं के विकास के लिए लगातार कार्य किया जा रहा है। आवश्यकता ये है कि सामूहिक साझेदारी कर महिलाओं के विकास के लिए और कार्य किया जाए।

लोक संस्कृति के गहन जानकार गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे डीआर पुरोहित ने बेहद सधे तरीके से सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में महिला की स्थिति को सामने रखा। उन्होंने नंदा राज जात से लेकर रतेली, होली, बेडा बद्दियों के स्वांग और मांगल, शगुन आखर, खुदेड, न्योली के उदाहरण देते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने कहा-हर क्षेत्र में महिलाओं की प्रभावपूर्ण स्थिति मौजूद रही है।

दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल ने कहा कि उत्तराखंड के 25 वर्ष के सफर में महिला स्वयं सहायता समूहों के रूप में महिला विकास के लिए बेहतर कार्य हुआ है। उन्होंने कहा कि यूं तो पूरे देश की महिलाओं में जज्बे की कमी नहीं है, लेकिन हिमालयी क्षेत्र होने की वजह से यहां की महिलाएं और ज्यादा ताकतवर दिखती हैं।

सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन की लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाने वाली पूर्व विंग कमांडर, शिक्षाविद् व उद्यमी अनुपमा जोशी ने सेना में अपने अनुभवों को दिलचस्प ढंग से पेश किया। उन्होंने शिक्षा और उद्यमिता के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति और उनके लिए आवश्यक प्रयासों का भी जिक्र किया।

प्रख्यात लोक गायक पदमश्री प्रीतम भरतवाण ने कहा कि लोक संगीत में महिलाओं की प्रभावशाली उपस्थिति हमेशा से रही है। उन्होंने अपने संबोधन के बीच-बीच में जागर-पवाडे़ प्रस्तुत किए और महिलाओं की स्थिति पर चर्चा की। हंस फाउंडेशन से जुड़ीं रंजना रावत ने पहाड़ में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर अपनी बात रखी। उन्होंने खास तौर पर महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित बातों को अपने व्याख्यान में उभारा। सत्र की शुरुआत में दून विश्वविद्यालय के प्रो एचसी पुरोहित ने भी अपनी बात रखी। सत्र का संचालन दून विश्वविद्यालय के प्रो हर्ष डोभाल ने किया।

प्रवासी उत्तराखंडी सम्मेलन के पहले सत्र में जल, जमीन, जंगल पर अहम चर्चा

प्रवासी उत्तराखंडी सम्मेेलन का पहला सत्र जल, जंगल, जमीन के संरक्षण की परम आवश्यकता पर केंद्रित रहा। इस मौके पर जोर देते हुए कहा गया कि उत्तराखंड की सबसे बड़ी खूबसूरती जल, जंगल और जमीन से जुड़ी है। जोर देते हुए कहा गया कि जीडीपी तय करते हुए एक पैमाना यह भी होना चाहिए कि संबंधित क्षेत्र की पारिस्थितिकी प्रगति किस तरह की रही है।

दून विश्वविद्यालय में आयोजित इस सम्मेलन के पहले सत्र में हेस्को संस्था के संस्थापक पदम भूषण डा. अनिल जोशी ने कहा कि देश का कोई कोना हो या विश्व की कोई अन्य जगह, पारिस्थितिकी और विकास के बीच संतुलन की चर्चा केंद्र में है। हिमालयी प्रदेश होने के कारण हमारे यहां तो यह चर्चा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि दोनों के बीच संतुलन अति आवश्यक है, क्योंकि आज पारिस्थितिकी संकट गहराने लगा है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से जीडीपी तय करते वक्त औद्योगिक विकास, रोजगार समेत अन्य पैमानों पर ध्यान दिया जाता है, उसमें पारिस्थितिकी प्रगति का भी मूल्यांकन जरूरी है।

यूएनडीपी के स्टेड हेड प्रदीप मेहता ने कहा कि यह जरूरी है कि हम परंपरागत कृषि करें, लेकिन परिस्थिति और सुविधाओं के अनुरूप उसमें बदलाव किया जाना भी आवश्यक है। वन विभाग के पूर्व पीसीसीएफ और आईआईटी रूड़की की फैकल्टी डा. कपिल जोशी ने कहा कि निसंदेह हिमालयी क्षेत्रों में विकास हुआ है, लेकिन यह समीक्षा होनी भी जरूरी है कि उससे पारिस्थितिकी तंत्र पर कितना असर पड़ा है। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में आंकडे़ भी प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि चाहे तापमान हो, बारिश हो या पारिस्थितिकी से जुड़ी अन्य कोई बात, आंकडे़ बता रहे हैं कि उनमें बहुत ज्यादा चरम स्थिति दिख रही है, जो कि ठीक नहीं है।

वन विभाग की पीसीसीएफ और यूकेएफडीसी की एमडी नीना ग्रेवाल ने कहा कि प्राकृतिक संपदा का उतना ही इस्तेमाल जरूरी है, जितने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने संबोधन में वनों पर आधारित रोजगार, ईको-टूरिज्म की आवश्यकता पर जोर दिया। एटरो रीसाइक्लिंग प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ नितिन गुप्ता ने कहा कि ई-वेस्ट कोे रिसाइकल करके हम इस समस्या को अवसर में बदल सकते हैं।

इस सत्र के कोऑर्डिनेटर वन विभाग के पीसीसीएफ डा. एसपी सुबुद्धि ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सरकार के प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने प्रवासी उत्तराखंडियों की ओर से उठाए गए सवालों का भी जवाब दिया। प्रवासी उत्तराखंडियों में डा. मायाराम उनियाल, रामप्रकाश पैन्यूली, सतीश पांडेय और राजेंद्र सिंह ने सुझाव दिए।