स्थानीय कलाकारों के द्वारा किया जा रहा बेहतरीन मंचन

1955 से स्थापित सुभाष बनखंडी श्री रामलीला कमेटी के द्वारा रंगमंच के छठे दिन केवट लीला, दशरथ मरण, भरत विलाप और चित्रकूट की लीलाओं का मंचन स्थानीय कलाकारों द्वारा दिया गया।
केवट लीला में दिखाया गया कि जब प्रभु राम सरयू नदी को पार करने के लिए केवट से मदद मांगते हैं तो केवट उनसे कहता है कि मैं जिस तरह आज आपको नदी पार कर आ रहा हूं हे प्रभु आप भी मुझे भवसागर पार कराना। केवट और श्री राम के द्वारा मार्मिक व बहुत सुंदर लीला का मंचन किया गया। वही अयोध्या में राजा दशरथ को जब मंत्री सुमंत के द्वारा पता चलता है कि श्रीराम वन से नहीं लौटे तो दशरथ उनके वियोग में अपने प्राण त्याग देते हैं। इस दुखद दृश्य को देखकर कई श्रद्धालुओ की आंखें भर आई और पूरा पंडाल भावुक हो गया।
भरत विलाप की लीला में दिखाया गया कि पिता की मृत्यु के बाद जब भरत को महल बुलाया जाता है तो उनके द्वारा अपनी मां से नाराजगी जताई जाती है और मंथरा को धक्के मार कर बाहर निकाल दिया जाता है। इसके बाद भरत श्री राम से मिलने के लिए वन जाते हैं और उनसे आग्रह करते हैं कि आप वापिस आ जाइए लेकिन श्रीराम अपने पिता के वचन को निभाने के लिए भरत को मना लेते हैं। जिस पर भरत भी उनकी तरह वनवासी जीवन बिताने की बात कहकर उनकी खड़ाऊ लेकर वापस लौट जाते हैं। चित्रकूट लीला में दिखाया गया कि श्री राम चित्रकूट में कुटिया बनाकर माता सीता और अपने भाई लक्ष्मण के साथ वनवासी जीवन बिताने लगते है।
इस अवसर पर रामलीला कमेटी सुभाष बनखंडी के अध्यक्ष विनोद पाल, महामंत्री हरीश तिवाड़ी, राजेश दिवाकर, राकेश पारछा, दीपक जोशी, रोहताश पाल, हुकुम चंद, मनमीत कुमार, पप्पू पाल, संजय शर्मा, प्रशांत पाल, महेंद्र कुमार, अनिल धीमान, ललित शर्मा, दया शंकर पांडेय, अशोक मौर्य, सुभाष पाल, पवन पाल, नीतीश पाल आदि उपस्थित रहे।

माता अहिल्या का उद्धार कर श्रीराम ने श्राप से दिलाई मुक्ति

सुभाष बनखंडी श्री रामलीला कमेटी के द्वारा रंगमंच के तीसरे दिन श्रीराम जन्म, श्री सीता जन्म, ताड़का और सुबाहु वध व अहिल्या उद्धार की लीलाओं का मंचन स्थानीय कलाकारों द्वारा दिया गया।
श्रीराम जन्म की लीला में दर्शाया गया कि राजा दशरथ की संतान ना होने के चलते उनके द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया। जिसके पश्चात उनकी तीन रानियों को चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। वहीं, श्री सीता जन्म में दर्शाया गया कि राजा जनक के यहां अकाल पड़ने की वजह से ऋषि-मुनियों ने उन्हें स्वयं हल चलाने की सलाह दी गई। जिसके फलस्वरुप राज्य में वर्षा होने की संभावना जताई गई। राजा जनक के द्वारा हल चलाने पर पृथ्वी से एक घड़े में उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई। जिसका नाम सीता रखा गया और राज्य में वर्षा होने से अकाल की समस्या का समाधान हो गया।
वहीं, ताड़का और सुबाहु वध में दर्शाया गया कि राक्षसों का आंतक बढ़ने से ऋषि-मुनियों के यज्ञ प्रभावित होने लगे। जिस पर विश्वामित्र ऋषि ने राजा दशरथ से मदद मांगी। उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ जंगल ले जाकर ताड़का और मारिच-सुबाहु का वध करने की बात कही। राजा दशरथ ने स्वयं चलकर उनका वध करने का अनरोध किया लेकिन विश्वामित्र ने उनके पुत्रों के द्वारा ही उनका वध होगा, ऐसा बताया। जिस पर पिता की आज्ञा पाकर श्रीराम और लक्ष्मण जंगल पहुंचे। उन्होंने ताड़का और सुबाहु का वध किया। मारिच श्रीराम से अपनी जान बचाकर भागने में सफल रहा।
वहीं, अहिल्या उद्धार में दर्शाया गया कि विश्वामित्र ने श्रीराम के द्वारा पत्थर बनी अहिल्या का उद्धार करवाया। इस अवसर पर रामलीला कमेटी सुभाष बनखंडी के अध्यक्ष विनोद पाल, महामंत्री हरीश तिवाड़ी, राजेश दिवाकर, राकेश पारछा, दीपक जोशी, रोहताश पाल, हुकुम चंद, मनमीत कुमार, पप्पू पाल, संजय शर्मा, प्रशांत पाल, महेंद्र कुमार, अनिल धीमान, ललित शर्मा, दया शंकर पांडेय, अशोक मौर्य, सुभाष पाल, पवन पाल, नीतीश पाल आदि उपस्थित रहे।