धामी सरकार की सख्ती, सरकारी अस्पतालों से अनावश्यक रेफरल को रोकने के लिए SOP जारी

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर उत्तराखंड शासन ने सरकारी अस्पतालों में मरीजों के अनावश्यक रेफरल पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने स्पष्ट किया है कि अब बिना ठोस चिकित्सकीय कारण के किसी भी रोगी को जिला और उप-जिला अस्पतालों से उच्च संस्थानों जैसे मेडिकल कॉलेजों या बड़े अस्पतालों को रेफर नहीं किया जाएगा। स्वास्थ्य सचिव ने बताया कि मुख्यमंत्री जी के निर्देशों के क्रम में यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि प्रत्येक मरीज को प्राथमिक उपचार और विशेषज्ञ राय जिला स्तर पर ही मिले। अनावश्यक रेफरल से न केवल संसाधनों पर दबाव बढ़ता है बल्कि मरीज को समय पर समुचित इलाज नहीं मिल पाता।

*अनावश्यक रेफरल को रोकने के लिए SOP जारी*
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने इस दिशा में एक विस्तृत Standard Operating Procedure (SOP) जारी की है, जिससे रेफरल प्रणाली में पारदर्शिता, जवाबदेही और चिकित्सकीय औचित्य को सुनिश्चित किया जा सके। SOP में निम्न बिंदुओं को प्रमुखता दी गई है।

*केवल विशेषज्ञ की अनुपलब्धता पर रेफरल*–यदि किसी अस्पताल में आवश्यक विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं, तभी मरीज को उच्च संस्थान भेजा जाएगा।

*मौके पर मौजूद वरिष्ठ चिकित्सक द्वारा निर्णय*–ऑन-ड्यूटी चिकित्सक मरीज की जांच कर स्वयं रेफर का निर्णय लेंगे। फोन या ई-मेल से प्राप्त सूचना के आधार पर रेफरल अब अमान्य होगा।

*आपातकाल में त्वरित निर्णय की छूट*–गंभीर अवस्था में ऑन-ड्यूटी विशेषज्ञ व्हाट्सऐप/कॉल के ज़रिए जीवनरक्षक निर्णय ले सकते हैं, लेकिन बाद में इसे दस्तावेज में दर्ज करना अनिवार्य होगा।

*कारणों का लिखित उल्लेख जरूरी*–रेफरल फॉर्म में यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि रेफर क्यों किया गया, विशेषज्ञ की कमी, संसाधन की अनुपलब्धता आदि।

*वरिष्ठ अधिकारी होंगे जवाबदेह*–अनुचित या गैर-जरूरी रेफरल पाए जाने पर संबंधित CMO या CMS को उत्तरदायी ठहराया जाएगा।

*एम्बुलेंस प्रबंधन पर भी विशेष ध्यान*
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री धामी के निर्देश अनुसार, रेफर मरीजों की आवाजाही में पारदर्शिता लाने के लिए एम्बुलेंस सेवाओं के उपयोग पर भी स्पष्ट गाइडलाइन जारी की गई है। 108 एम्बुलेंस का प्रयोग Inter Facility Transfer (IFT) के तहत ही हो। विभागीय एम्बुलेंस की तैनाती योजनाबद्ध ढंग से की जाए। सभी विभागीय एम्बुलेंस की तकनीकी स्थिति की समीक्षा कर फिटनेस सुनिश्चित की जाए।

*जिलावार एम्बुलेंस और शव वाहन की स्थिति*
वर्तमान में राज्य में कुल 272 “108 एम्बुलेंस”, 244 विभागीय एम्बुलेंस और केवल 10 शव वाहन कार्यरत हैं। कुछ जिलों– जैसे अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, पौड़ी और नैनीताल में शव वाहन नहीं हैं। इन जिलों के CMO को तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करने को कहा गया है। स्वास्थ्य सचिव ने बताया कि पुराने वाहन जिनकी रजिस्ट्रेशन आयु 10 या 12 वर्ष पूर्ण हो चुकी है, उन्हें नियमानुसार शव वाहन के रूप में तैनात किया जा सकता है। इसके लिए क्षेत्रवार संचालन व्यय भी निर्धारित कर दिया गया है।

*पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित*
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि इस कदम का उद्देश्य न केवल मरीजों को समय पर और उपयुक्त इलाज उपलब्ध कराना है, बल्कि सरकारी अस्पतालों की कार्यशैली में पारदर्शिता और जवाबदेही को भी मजबूत करना है। सभी MOIC और CMO को निर्देश दिए गए हैं कि SOP का अक्षरश: पालन हो और हर रेफरल को दस्तावेजीकृत किया जाए। स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने दोहराया सरकार की मंशा स्पष्ट है। अब रेफरल कोई प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि चिकित्सकीय आवश्यकता के आधार पर ही किया जाएगा। इससे प्रदेश का स्वास्थ्य ढांचा और अधिक सशक्त और उत्तरदायी बनेगा।

कुमायूँ व गढवाल के पर्वतीय क्षेत्रों में एक-एक आईवीएफ फैसिलिटी एवं ट्रॉमा सेंटर बनाने के निर्देश: सीएस

मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन ने सचिवालय में जिलाधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश में जिला एवं उप जिला अस्पतालों की स्थिति की समीक्षा की। मुख्य सचिव ने सरकारी अस्पतालों में रेफरल सिस्टम पर नाराजगी जतायी। उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि जो सुविधाएं जिला एवं उप जिला अस्पतालों में उपलब्ध हैं उनका इलाज उन्हीं अस्पतालों में किया जाए। उन्होंने कहा कि जिन गंभीर मरीजों और घायलों का इलाज जिला अस्पतालों और उप जिला अस्पतालों में नहीं हो पाएगा, सिर्फ उन्हीं मरीजों को हायर सेंटर रेफर किया जाना सुनिश्चित किया जाए।

मुख्य सचिव ने सभी जिला अस्पतालों में सभी प्रकार की सामान्य एवं महत्त्वपूर्ण जांचों को अनिवार्य रूप से शुरू कराया जाए। उन्होंने कहा कि सभी जिला अस्पतालों में माईक्रोबायोलॉजिस्ट की तैनाती भी शीघ्र सुनिश्चित की जाए, ताकि यूरिन कल्चर जैसी महत्त्वपूर्ण जांचों को भी सरकारी अस्पतालों में शुरू कराया जा सके। उन्होंने कहा कि सिर्फ उन्हीं जांचों को आउटसोर्स एजेन्सी के माध्यम से कराया जाए जो जांचें जिला अस्पतालों में नहीं हो सकती। इसके लिए उन्होंने जिला अस्पतालों के मजबूतीकरण के साथ ही कैपेसिटी बढ़ाए जाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग से प्रदेश के सभी जिला एवं उपजिला अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं, चिकित्सकों, पैरामेडिकल की स्थिति एवं उपकरणों की उपलब्धता की रिपोर्ट तलब की।

मुख्य सचिव ने पुराने हो चुकी 108 एम्बुलेंस एवं विभागीय एम्बुलेंसों को तत्काल बदले जाने के भी निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेशभर में संचालित हो रही सभी 108 एम्बुलेंस एवं विभागीय एम्बुलेंसों का विश्लेषण कर लिया जाए एवं पुराने एवं खराब वाहनों को शीघ्र बदला जाए। उन्होंने कहा कि एम्बुलेंस बदले जाने की प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाए।

मुख्य सचिव ने सचिव स्वास्थ्य को कुमायूँ एवं गढवाल के पर्वतीय क्षेत्रों में एक-एक आईवीएफ फैसिलिटी एवं ट्रॉमा सेंटर बनाए जाने के भी निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि ये दोनों सुविधाएं शीघ्र पर्वतीय क्षेत्रों में शुरू किए जाने के निर्देश दिए हैं।

बैठक के दौरान सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने प्रदेश में जिला अस्पतालों एवं उप जिला अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं की विस्तृत जानकारी दी।

इस अवसर पर प्रमुख सचिव आर.के. सुधांशु, एल. फ़ैनयी, आर. मीनाक्षी सुंदरम, सचिव शैलेश बगौली, नितेश कुमार झा, राधिका झा, सचिन कुर्वे, दिलीप जावलकर, डॉ. बी.वी.आर.सी. पुरुषोत्तम, रविनाथ रमन, डॉ. पंकज कुमार पाण्डेय, चंद्रेश कुमार यादव, डॉ. आर. राजेश कुमार, विनोद कुमार सुमन, आयुक्त कुमायूँ दीपक कुमार, आयुक्त गढ़वाल विनय शंकर पाण्डेय सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं जनपदों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सभी जिलाधिकारी उपस्थित थे।

मंत्री धन सिंह ने दिए चिकित्सालयों के सुदृढ़ीकरण का खाका तैयार करने के निर्देश

प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज, जिला चिकित्सालय और उप चिकित्सालय के सुदृढ़ीकरण की समीक्षा बैठक में स्वास्थ्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने स्वास्थ्य विभाग को इन सभी चिकित्सालयों को आधुनिक और संपूर्ण चिकित्सा सेवा प्रदाता बनाने के लिए बड़े कदम उठाने के निर्देश दिए।

मंत्री ने निर्देशित किया कि स्वास्थ्य विभाग अगले 5 माह में इन चिकित्सालयों की स्वास्थ्य सुविधाओं को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने के लिए बड़े प्रयास करें। कहा कि सरकार स्वास्थ्य विभाग को इसके लिए हरसंभव सहयोग देने के लिए तैयार हैं।

उन्होंने कहा कि इन चिकित्सालय में आम जनमानस को सभी बीमारियों की संपूर्ण चिकित्सा स्थानीय स्तर पर ही मिले, किसी भी पेशेंट को यहां से रेफर करने की नौबत नहीं आनी चाहिए।

मंत्री ने सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों की पूर्ति हेतु आकर्षक सेवा शर्तों का निर्धारण करने को कहा। अस्पतालों में किसी चिकित्सक के अवकाश की दशा में वैकल्पिक व्यवस्था रखने के भी निर्देश दिए।

मुख्य सचिव आनंद बर्धन ने स्वास्थ्य विभाग को टेलीमेडिसिन सेवाओं को एक्चुअल मेडिसिन सेवा में बदलने के लिए गंभीरता से प्रयास करने के निर्देश दिए।

उन्होंने कहा कि टेली मेडिसिन सेवा मात्र औपचारिकता या नाम मात्र की सेवा बनकर न रह जाए बल्कि इसके वास्तव में बेहतर आउटकम भी निकले।

मुख्य सचिव ने सभी मेडिकल कॉलेज और चिकित्सालय में फुली फंक्शनल ओटी तैयार करने के निर्देश दिए।

उन्होंने कहा कि ओटी ऐसा हो जो आधुनिक चिकित्सा पद्धति के सभी तरह के मानक फुलफिल करता हो। कहा कि हमारा फोकस बेहतर और आधुनिक चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने पर होना चाहिए तथा स्वास्थ्य सेवाओं के इंप्रूवमेंट हेतु जो भी इक्विपमेंट क्रय किए जाते हैं उनका शत प्रतिशत उपयोग भी सुनिश्चित होना चाहिए।

बैठक में स्वास्थ्य विभाग द्वारा राज्य के मेडिकल कॉलेज, जिला चिकित्सालय और उप जिला चिकित्सालय में दी जा रही स्वास्थ्य सेवाओं तथा स्वास्थ्य शिक्षा से संबंधित विवरण प्रस्तुत करते हुए अवगत कराया कि वर्तमान समय में सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों, सपोर्टिंग स्टाफ, एडवांस स्किल लैब, और ट्रामा सेंटर में और अधिक इंप्रूव की आवश्यकता है।

बैठक में सचिव दिलीप जावलकर, डॉ आर राजेश कुमार, वी षणमुगम, डीजी स्वास्थ्य डॉ सुनीता टम्टा, निदेशक स्वास्थ्य शिक्षा डॉ आशुतोष सयाना सहित स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

राज्य के 13 जिलों के 19 डायलिसिस सेन्टर्स में 153 डायलिसिस मशीनें उपलब्ध

बीपीएल निर्धन मरीजों और गोल्डन कार्ड धारकों के लिए प्रदेशभर के 13 जिलों में स्थापित 19 सुचारू डायलिसिस सेन्टर्स के माध्यम निःशुल्क संचालित की जा रही हेमोडायलिसिस सेवाओं की जानकारी जरूरतमंदों तक प्रभावी तरीके से पहुंचाने की जिम्मेदारी चिकित्सा विभाग पर तय करते हुए मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने इस मामले में राज्य के सभी जिलों में सौ फीसदी कवरेज को समयबद्धता से पूरा करने की कड़ी हिदायत दी है।

रतूड़ी ने अधिकारियों को राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए आंवटित सरकारी संसाधनों में तेजी लाने तथा उनका कुशलतापूर्वक उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। सीएस ने कहा कि राज्य के 13 जिलों में स्थापित 19 सुचारू डायलिसिस सेन्टर्स में 153 डायलिसिस मशीनों की सहायता गरीबी रेखा से नीचे के मरीजों तथा गोल्डन कार्ड धारकों को निःशुल्क डायलिसिस सेवाएं प्रदान की जा रही हैं तथा गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के मरीजों को निम्नतम शुल्क पर यह सेवाएं दी जा रही हैं। इसमें पीपीपी में सीएसआर के तहत 82 डायलिसिस मशीनें तथा हंस फाउंडेशन के द्वारा सीएसआर के तहत 49 मशीने संचालित की जा रही हैं। पीपीपी मोड के तहत आने वाले अस्पतालों में आयुष्मान के साथ सूचीबद्ध हैं तथा उसके माध्यम से उनका भुगतान किया जाता है। जिन बीपीएल तथा एचआईवी मरीजों का आयुष्मान कार्ड नहीं है, उनका भुगतान डीजीएमएच तथा एफडब्ल्यू के द्वारा किया जाता है। वर्ष 2024-25 में दिसम्बर तक लाभार्थियों को 117490 डायलिसिस सेशन दिए जा चुके हैं।

मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने राज्य में प्रधान मंत्री नेशनल डायलिसिस प्रोग्राम के तहत सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से गरीबी रेखा से नीचे आने वाले मरीजों तथा गोल्डन कार्ड धारकों के लिए निःशुल्क संचालित की जा रही डायलिसिस सेवाओं की समीक्षा की।

मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने सम्बन्धित विभाग को पीएमएनडीपी पोर्टल का व्यापक उपयोग करने के निर्देश दिए, यह पोर्टल पीएमएनडीपी के तहत निःशुल्क डायलिसिस सेवाओं का लाभ उठाने वाले सभी मरीजों का विवरण प्राप्त करने के लिए एपीआई-आधारित आईटी प्लेटफॉर्म है। सीएस ने डुप्लीकेसी रोकने तथा पारदर्शिता, दक्षता और अंतर संचालन सुनिश्चित करने के लिए 14 अंकों के विशिष्ट ।ठभ्। आईडी का उपयोग करके रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। मुख्य सचिव ने एपीआई सांझा करने तथा समग्र कवरेज के लिए अलग-अलग पोर्टल का उपयोग करने पर इसे पीएमएनडीपी पोर्टल के साथ एकीकृत करने के भी निर्देश दिए हैं।

मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम के तहत डायलिसिस सेवाओं को उनके प्रदाताओं के बीच बेहतर कार्य प्रणाली के साथ स्थापित करना तथा किडनी से संबंधित रोगों से ग्रस्त रोगियों को उच्च गुणवत्ता और कम लागत में डायलिसिस सेवाएं प्रदान करना है। हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया एक बार सम्पन्न होने में अत्यधिक लागत आती है। इस प्रकार किडनी के रोगियों का वार्षिक खर्च बहुत ज्यादा हो जाता है। राज्य के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों की हेमोडायलिसिस केंद्रों से दूरी भी इस समस्या का प्रमुख कारण है। इस कार्यक्रम से गरीब परिवारों के रोगियों को कम लागत में डायलिसिस की सुविधा अपने जनपदों में ही प्राप्त हो सकेगी।

बैठक में सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सहित स्वास्थ्य विभाग के सभी अधिकारी मौजूद रहे।

स्वास्थ्य मंत्री बोले, एएनएम व स्टॉफ नर्स के पदों पर शीघ्र होगी भर्ती

राज्य के सभी राजकीय मेडिकल कॉलेजों एवं अस्पतालों में लम्बे समय से रिक्त चल रहे एएनएम, स्टॉफ नर्स व सीएचओ के करीब चार हजार से अधिक पदों पर शीघ्र भर्ती की जायेगी। इसके लिये विभाग द्वारा चयन प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई है। राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए सभी राजकीय मेडिकल कॉलेजों एवं जिला अस्पतालों में एमआरआई, सीटी स्कैन, एक्स-रे व अल्ट्रासाउंड सुविधाएं उपलब्ध कराने व टेक्नीकल स्टॉफ नियुक्त करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दे दिये गये हैं। जिला अस्पताल, संयुक्त चिकित्सालयों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर मरीजों की सहायता एवं अस्पताल की व्यवस्थाओं को और बेहतर बनाने हेतु गठित रोगी कल्याण समिति में जनप्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी।

चिकित्सा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ0 धन सिंह रावत ने आज स्वास्थ्य महानिदेशालय में विभागीय उच्चाधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। जिसमें उन्होंने प्रदेश के राजकीय मेडिकल कॉलेजों एवं अस्पतालों में लम्बे समय से रिक्त चल रहे स्टॉफ नर्स के 2800 पदों, एएनएम के 824 पदों को वर्षवार भरे जाने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिये। डॉ0 रावत ने बताया कि एनएचएम के अंतर्गत स्वीकृत सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों के 664 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया को शीघ्र सम्पन्न कर लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुये प्रत्येक मेडिकल कॉलेजों एवं जिला अस्पतालों में एमआरआई, सीटी स्कैन, एक्स-रे व अल्ट्रासाउंड सुविधाएं सुनिश्चित करने व इनके संचालन के लिये टेक्नीकल स्टॉफ नियुक्त करने के निर्देश भी विभागीय अधिकारियों को दे दिये गये हैं ताकि स्थानीय स्तर पर ही मरीजों को बेहतर उपचार मिल सके। आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों की सहायता एवं अस्पतालों के बेहतर संचालन हेतु गठित प्रत्येक स्तर की समितियों में जनप्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी। जिसमें विधायक, ब्लॉक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य एवं अन्य स्थानीय जनप्रतिनिधि नामित किये जायेंगे। इसके लिये संबंधित समिति के नियमों में संशोधन के निर्देश अधिकारियों को दिये गये हैं। विभागीय मंत्री ने कहा कि शासन एवं महानिदेशालय स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों को एक-एक जनपद का भ्रमण करने तथा आवंटित जनपदों की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का निरीक्षण कर दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट महानिदेशक को सौपेंगे। इसके अलावा राजकीय मेडिकल कॉलेजों एवं राजकीय चिकित्सालयों में आईपीएचएस मानकों के अनुरूप पैरा मेडिकल स्टॉफ, टेक्नीकल स्टॉफ एवं एमटीएस कार्मिकों के ढांचे का प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट में प्रस्तुत करने के निर्देश दिये गये। रक्तदान अमृत महोत्सव के अंतर्गत संचालित ब्लड डोनेशन कार्यक्रम की समीक्षा करे हुये विभागीय मंत्री ने अधिकारियों को अधिक से अधिक रक्तदाताओं के पंजीकरण कराने पर जोर दिया। जिस पर विभागीय अधिकारियों ने बताया कि सूबे में अबतक 41348 रक्तदाताओं का पंजीकरण करा दिया गया है जोकि निर्धारित लक्ष्य के 83 फीसदी है। उन्होंने बताया कि शीघ्र ही स्वैच्छिक रक्तदान कराने के लिये इच्छुक छात्र-छात्राओं के लिये महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में रक्तदान शिविर आयोजित किये जायेंगे।

एक सप्ताह के भीतर पूरा करें शत-प्रतिशत नि-क्षय मित्रों का लक्ष्य

बैठक में विभागीय मंत्री डॉ0 धन सिंह रावत ने वर्चुअल माध्यम से सभी मुख्य चिकित्साधिकारियों के साथ प्रधानमंत्री टी0बी0 मुक्त भारत अभियान की समीक्षा की। जिलावार समीक्षा करते हुये डॉ0 रावत ने सभी सीएमओ को शत-प्रतिशत टी0बी0 रोगियों को गोद लेने के लिये एक सप्ताह के भीतर नि-क्षय मित्र बनाने के निर्देश दिये, साथ ही उन्होंने अधिकारियों को नि-क्षय मित्र के शीघ्र लिंकेज करने को भी कहा। डॉ0 रावत ने बताया कि उत्तराखंड देश का दूसरा राज्य है जहां सर्वाधिक नि-क्षय मित्र बनाये गये हैं। उन्होंने कहा कि अबतक प्रदेश में 5 हजार से अधिक नि-क्षय मित्र बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड को वर्ष 2024 तक टीबी मुक्त कर लिया जायेगा इसके लिये युद्ध स्तर पर कार्य किया जा रहा है।

बैठक में प्रभारी सचिव डॉ0 आर0 राजेश, चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड के चौयरमैन डॉ0 डी0एस0 रावत, कुलपति मेडिकल यूनिवर्सिटी प्रो0 हेम चंद्र, अपर सचिव चिकित्सा शिक्षा गरिमा रौंकली, अमनदीप कौर, प्रभारी महानिदेशक स्वास्थ्य डॉ0 विनीता शाह, निदेशक एनएचएम डॉ0 सरोज नैथानी, निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ0 आशुतोष सयाना के अलावा विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे जबकि सभी जनपदों के सीएमओ ने वर्चुअल माध्यम से बैठक में प्रतिभाग किया।

भारत सरकार ने राज्य के दो प्रमुख अस्पतालों की सेवाओं को किया प्रमाणीकृत

भारत सरकार द्वारा उत्तराखण्ड के दो प्रमुख अस्पतालों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए प्रमाणीकृत (Cetrification) किया गया है। स्वास्थ्य सचिव डा० पंकज कुमार पाण्डेय ने बताया कि एस०पी०एस चिकित्सालय ऋषिकेश तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र रायपुर में प्रदान की जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं का भारत सरकार की टीम द्वारा आंकलन पश्चात इन दोनो अस्पतालों की विशिष्ट सेवाओं को प्रमाणीकृत किया गया है।

ज्ञातव्य है कि सरकारी अस्पतालों में खराब स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत Quality Assurance कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के माध्यम से सरकारी अस्पतालों की सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि समान्य जनमानस का सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर विश्वास हो सके और उच्च स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए अस्पताल प्रतियोगिता की भावना के साथ कार्य कर सकें।

Quality Assurance कार्यक्रम के माध्यम से अस्पताल द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सुविधाओं का मूल्यांकन स्वय अस्पताल के स्टॉफ, जनपद एवं राज्य की टीम द्वारा किया जाता है। मूल्यकान उपरान्त सुविधाओं की उपलब्धता में किसी भी प्रकार की कमी के होने पर उसमे तुरन्त सुधार कर सुविधाओं में गुणात्मक सुधार लाने की पहल की जाती है।

स्वास्थ्य सचिव उत्तराखण्ड को भारत सरकार द्वारा प्रेषित पत्र में उल्लेख किया गया है कि एस0पी0एस0 चिकित्सालय ऋषिकेश में संचालित 6 विभागों द्वारा गुणवत्ता के सभी मानकों को पूर्ण किया गया है जिसके क्रम में इन विभागों को 90% स्कोर के साथ NQAS Certification (National Quality Assurance Standards) किया गया है।

इसी क्रम में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र रायुपर तथा एस०पी०एस० चिकित्सालय ऋषिकेश के लेबर रूम की सुविधाओं को LaQshya Certification प्रदान किया गया है। LaQshya Certification के तहत एस०पी०एस० चिकित्सालय ऋषिकेश में संचालित प्रसूति विभाग की ओ0टी0 (Maternity OT) को भी गुणवत्ता के लगभग सभी मानक पूर्ण करने पर LaQshya Certification निर्धारित शर्तों के अन्तर्गत दिया गया है।

राज्य की दो प्रमुख चिकित्सा ईकाईयों को भारत सरकार द्वारा NQAS & LaQshya Certification दिए जाने के लिए स्वास्थ्य सचिव डा० पंकज कुमार पाण्डेय ने संबंधित अस्पतालों के चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टॉफ तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की स्टेट टीम को बधाई दी है।

राजकीय चिकित्सालय में नवजात की मौत पर परिजनों का हंगामा

राजकीय चिकित्सालय ऋषिकेश पर नगरक्षेत्र के अलावा अन्य जनपद जैसे टिहरी, पौड़ी के दुर्गम क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवा का भी बोझ है। ऐसे में इस अस्पताल को स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित सरकार ने हर मानकों में संतुलित करना चाहिए। मगर, समीपवर्ती एम्स होने के चलते इस अस्पताल की स्थिति बिगड़ती चली गई।

ताजा वाकया आज ही का है, जब एक दुर्गम क्षेत्र दोगी पट्टी का परिवार महिला की डिलीवरी के लिए राजकीय चिकित्सालय ऋषिकेश आता है। यहां महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया। सभी के चेहरे पर मुस्कान आती है, मगर एकाएक बच्चा मृत हो जाता है। पलभर के लिए आई खुशी गम में बदल जाती है। ऐसे में परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगा दिए।

नवजात के पिता अनिल सिंह ने बताया कि बच्चे के जन्म के बाद चिकित्सकों ने कहा कि बच्चे को लेकर हायर सेंटर जाइए। क्यों कि हमारे यहां पेट्रियोटिक वेंटिलेटर की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस वेंटिलेटर के अभाव में उनके बच्चे की जान चली गई। नवजात के पिता का आरोप है कि जब बच्चे का वजन ज्यादा था, उसका सिर भी बड़ा चिकित्सकों द्वारा बताया गया, तो फिर यह डिलीवरी केस लिया ही क्यों गया? उनका यह भी कहना है कि जब यहां बच्चे से संबंधित वेंटिलेटर ही नहीं है तो उन्हें पहले ही क्यों न बताया गया?

बता दें कि पीड़ित के एक बेटे का करीब 10 वर्ष पूर्व निधन हो गया था। उधर, सीएमएस रमेश सिंह राणा ने इस मामले में जांच की बात कही है।