खांसी, जुकाम होने पर एंटीबायोटिक लेना गलत, इससे बाॅडी में पैदा हो सकते हैं रजिस्टेंस

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में वल्र्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने व्याख्यान प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने बिना विशेषज्ञ चिकित्सकों के परामर्श के एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से होने वाले नुकसान को लेकर लोगों को जागरुक किया।

निदेशक एम्स प्रो. रविकांत की देखरेख में आयोजित कार्यक्रम में बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग की प्रमुख प्रो. बी. सत्याश्री ने बताया कि बच्चों में किसी भी दवाई या एंटीबायोटिक को देने में सतर्कता बरतना कितना जरूरी है। उनका कहना है कि वह अपने विभाग में हर वह कोशिश करती हैं जिससे बच्चों की देखभाल में कोई कमी नहीं रहे और कोई भी दवाई या एंटीबायोटिक देने से पहले कल्चर या सेंसटिविटी टेस्ट कराते हैं
उन्होंने बताया कि आजकल यह भी देखा जा रहा है कि घर पर यदि कोई बच्चा बीमार हो जाता है, तो उसके परिवार वाले बाहर से ही किसी केमिस्ट से उसे दवाई दे देते हैं या एंटीबायोटिक के इंजेक्शन भी लेते हैं, जो कि बहुत गलत है।

प्रसूति एवं स्त्री रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जया चतुर्वेदी ने मल्टीड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विषय में जानकारी दी, उन्होंने कहा कि अगर हम हर छोटी बीमारी जुकाम, खांसी होने पर भी एंटीबायोटिक लेंगे, तो यह हमारे शरीर में रजिस्टेंस पैदा कर सकते हैं और यह बैक्टीरिया आगे चलकर बीमारी फैलाने का कारण बन सकता है, लिहाजा इसके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि हम दवाई का सही समय, सही अवधि तक उसका इस्तेमाल करें।

सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो. डा. सोम प्रकाश बासु ने बताया कि ऑपरेशन के बाद मरीज के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कितना जरूरी है, उनका कहना है कि जरूरत से ज्यादा और आवश्यकता से कम एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल मरीज के लिए कितना हानिकारक हो सकता है, जिसे समय पर समझना बहुत जरूरी है। डा. बासु के अनुसार बिना चिकित्सक की सलाह के इन एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाना बंद होना चाहिए और इसके लिए कड़ी नीतियों का बनना उतना ही आवश्यक है।

नेत्र विभागाध्यक्ष प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने बताया कि अमूमन देखा गया है कि आंखों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीबायोटिक का उपयोग सही तरीके से नहीं किया जाता है और लोग स्वयं ही केमिस्ट के पास जाकर कोई भी एंटीबायोटिक आंखों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कुछ एंटीबायोटिक जो आंखों के ऑपरेशन के बाद इस्तेमाल किए जाते हैं, उनमें कुछ मात्रा में स्टेरॉयड भी मौजूद होते हैं, लेकिन इनका एक साथ इस्तेमाल होना हानिकारक हो सकता है, ऐसे में यदि इसे सही अवधि तक नहीं लिया जाए लिहाजा इनका इस्तेमाल अलग-अलग होना चाहिए और कोई भी एंटीबायोटिक को धीरे-धीरे नहीं बल्कि डॉक्टर द्वारा निर्धारित अवधि खत्म होने पर बंद कर देना चाहिए।

एम्स में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरूपयोग को रोकने संबंधि आनलाइन प्रोग्राम का हुआ शुभारंभ

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में वल्र्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक विधिवत शुरू हो गया। इसमें लोगों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से एंटीबायोटिक के दुरुपयोग से होने वाले शारीरिक नुकसान को लेकर जागरुक किया जाएगा।

एम्स ऋषिकेश में आज निदेशक प्रो. रविकांत ने एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिए सप्ताहव्यापी जनजागरुकता पर आधारित ऑनलाइन प्रोग्राम का विधिवत शुभारंभ किया। उन्होंने बताया कि एंटीबायोटिक दवाओं के उचित उपयोग को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिना किसी वैज्ञानिक आधार के इनका अत्यधिक उपयोग व दुरुपयोग हानिकारक परिणाम दे सकता है।
प्रो. रविकांत ने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण की प्रगति को कम करने के लिए अस्पताल में की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं के दौरान यूनिवर्सल प्रिकॉशन का पालन करना चाहिए। उन्होंने इस जनजागरुकता कार्यक्रम के आयोजन के लिए सामान्य चिकित्सा विभाग के डॉ. पीके पांडा, डीन कॉलेज ऑफ नर्सिंग प्रो. सुरेश कुमार शर्मा व उनकी टीम को बधाई दी।

अस्पताल में क्वालिटी इंप्रूवमेंट के विषय को लेकर डीन (हॉस्पिटल अफेयर्स) ब्रिगेडियर प्रो. यूबी मिश्रा ने “इंटीग्रेटेड एंटीमाइक्रोबियल्स स्टीवार्डशिप” पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम, डायग्नोस्टिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम, इनफेक्शन प्रीवेंशन एंड कंट्रोल प्रोग्राम इसके मुख्य तत्व हैं। उन्होंने जोर दिया कि सभी मेडिकल संस्थानों को इस प्रोग्राम को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन तत्वों पर काम करना चाहिए ताकि यह सकारात्मक रूप से काम कर सके और संक्रमण को रोकने में बड़ी सफलता बना सके।

डीन नर्सिंग प्रो. सुरेश कुमार शर्मा ने “एंटी माइक्रोबियल्स स्टीवार्डशिप प्रैक्टिसेज ” पर सभी नर्सेज को संदेश दिया कि वर्ष 2020 को नर्स और मिडवाइव्स का वर्ष घोषित किया गया है और सीडीसी ने स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में नर्सों के महत्व पर भी जोर दिया है। एंटी माइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए नर्सें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि नर्सिंग ऑफिसर्स रोगी की देखभाल में अधिकतम समय बिताते हैं। उन्होंने सभी नर्सों से शपथ लेने का अनुरोध किया कि हम निश्चितरूप से बिना चिकित्सक के परामर्श से दी गई एंटीमाइक्रोबॉयल दवाओं के उपयोग को हतोत्साहित करेंगे और हमेशा सही खुराक, सही माध्यम और सही अवधि तक देंगे।

डॉ. पीके पांडा ने कहा कि एंटी-माइक्रोबियल को संरक्षित करने के लिए संयुक्त चिकित्सक, फार्मासिस्ट और रोगी से सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं। साथ ही उन्होंने सभी चिकित्सकों को संदेश दिया कि उन्हें अनावश्यक प्रिसक्रिप्शन और बिना किसी संवैधानिक वैज्ञानिक सबूत के दवाई प्रिसक्राइब नहीं करनी चाहिए।

क्लिनिकल फार्माकॉलेजिस्ट प्रोफेसर शैलेंद्र शंकर हाण्डू ने एंटी माइक्रोबियल्स क्या है और इसे कब नहीं लेना चाहिए इस विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एंटी माइक्रोबियल्स संक्रमण से लड़ने के लिए हमारे हथियार हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इन दवाओं के सही उपयोग नहीं होने से यह प्रतिरोध का कारण बन गया है।

एनटीपीसी द्वारा प्रदान 10 एंबुलेंसों को सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने किया रवाना

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री आवास में एनटीपीसी द्वारा प्रदान की गई 10 एम्बुलेंसों का लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री ने सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी को निर्देश दिए कि जनहित को देखते हुए सभी एम्बुलेंस पर्वतीय जनपदों के दूरस्थ क्षेत्रों में तैनात किया जाय ताकि आम जनमानस को बीमारी के दौरान उपचार कराने में इन एम्बुलेंस की सुविधा उपलब्ध हो सके।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कोविड-19 महामारी के विरूद्ध राज्य सरकार की लड़ाई में केन्द्र सरकार के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख उपकमों द्वारा भी निरन्तर सहयोग किया जा रहा है। यद्यपि कोविड-19 महामारी पर प्रभावी नियंत्रण के लिए उत्तराखण्ड सरकार द्वारा कारगर कदम उठाये गए हैं। परिणामस्वरूप राज्य में कोविड-19 प्रभावित मरीजों की रिकवरी रेट में तेजी से सुधार आया है, लेकिन अभी भी इस संक्रमण पर पूर्ण नियंत्रण राज्य सरकार के लिए अत्यधिक सतर्कता का विषय बना हुआ है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने इस महामारी के दौर में केन्द्र सरकार के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एन0टी0पी0सी0) द्वारा उत्तराखण्ड को 10 एम्बुलेंस तथा 10 हजार पीपीई किट उपलब्ध कराने के लिये आभार व्यक्त किया।

एम्बुलेंसों के लोकार्पण कार्यक्रम में स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी, राधिका झा, महानिदेशक डा. अमिता उप्रेती एनटीपीसी के सीनियर मैनेजर केएस टोलिया आदि उपस्थित रहे।

एम्स ऋषिकेश में सर्विक्स कैंसर को लेकर 17 नवंबर को होगा वेबिनार आयोजित

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में महिलाओं में होने वाले सर्विक्स कैंसर के मामलों को लेकर चिंतित है। जिसके मद्देनजर संस्थान की ओर से कोविडकाल में वेबिनार के माध्यम से महिला जनजागरुकता अभियान शुरू किया जा रहा है। जिसके मद्देनजर 17 नवंबर को अपराह्न 2 से 3 बजे पहला वेबिनार आयोजित किया जाएगा। जिसमें डब्ल्यूएचओ एक्सपर्ट डा. आर शंकरनारायणन समेत देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक, चिकित्सा विशेषज्ञ, एनएचएम के वरिष्ठ प्रतिनिधि व मेडिकल हेल्थ एंड फेमिली वैलफेयर उत्तराखंड के सदस्य शिरकत कर सामूहिक चर्चा करेंगे। चिकित्सकों का कहना है कि भारत में सर्विक्स कैंसर (बच्चेदानी के मुहं का कैंसर ) के मामले काफी अधिक हैं।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि महिलाओं में बच्चेदानी के कैंसर (सर्विक्स कैंसर) पर शत-प्रतिशत नियंत्रण संभव है, बशर्ते बालिकाओं को 9 से 14 वर्ष की उम्र के बीच इस कैंसर की रोकथाम के लिए वेक्सीन अनिवार्यरूप से लगाई जाए। उन्होंने बताया कि महिलाओं में पाया जाने वाला सर्विक्स कैंसर ही एक ऐसा कैंसर है जिसका पूर्ण उपचार संभव है। बताया कि बालिकाओं व महिलाओं को अधिकतम 26 वर्ष की उम्र तक बच्चेदानी के कैंसर की रोकथाम के लिए वेक्सीन लगाई जा सकती है। मगर 14 वर्ष से अधिक उम्र में वेक्सिनेशन अपेक्षाकृत कम असरकारक होता है।

बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक महिलाओं में बच्चेदानी के कैंसर को समाप्त करने के लिए 90 प्रतिशत तक बालिकाओं में अनिवार्य वेक्सिनेशन और 70 प्रतिशत महिलाओं में इस कैंसर से बचाव के लिए जीवन में 35 से 45 वर्ष की उम्र के बीच कम से कम दो बार सर्विक्स कैंसर की विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच का लक्ष्य निर्धारित किया है। उनका कहना है कि इस बीमारी की रोकथाम के लिए 9 से 14 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं में वेक्सीन की एक डोज ही पर्याप्त होती है।

एम्स के महिला रोग विभाग की कैंसर विशेषज्ञ डा. शालिनी राजाराम ने बताया कि भारत में प्रतिवर्ष सर्विक्स कैंसर के करीब एक लाख मामले सामने आते हैं। उन्होंने बताया कि करीब 10 वर्ष पूर्व देश में सर्वाधिक मामले महिलाओं की डिलीवरी के समय मृत्युदर के आते थे, जिसमें प्रतिवर्ष करीब 72 हजार का आंकड़ा था, मगर सरकार की ओर से इसे रोकने के लिए विघ्भिन्न स्तर पर जनजागरुकता मुहिम चलाई गई, जिससे इस तरह की मृत्युदर में काफी कमी आई है।

कार्यक्रम में इसके अलावा एनएचएम, उत्तराखंड की निदेशक डा. अंजलि नौटियाल व नेशनल प्रोग्राम मेडिकल हेल्थ एंड फेमिली वैलफेयर, उत्तराखंड की निदेशक डा. सरोज नैथानी भी प्रतिभाग करेंगी।
यह हैं महिलाओं में बच्चेदानी के कैंसर के लक्षण-
महिलाओं की बच्चेदानी से रक्तस्राव, महिलाओं में संभोग के बाद बच्चेदानी से खून आना, बच्चेदानी से बदबूदार पानी का निकलना आदि। ऐसे लक्षण पाए जाने पर महिलाओं को तत्काल अस्पताल में इसकी जांच करानी चाहिए व विशेषज्ञ चिकित्सका का परामर्श लेना चाहिए, साथ ही सर्विक्स कैंसर की रोकथाम के लिए वेक्सीन अनिवार्यरूप से लगानी चाहिए।

उत्तराखंड में बढ़ेगी कोविड टेस्टिंग, सीएम ने दिए निर्देश

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सचिवालय में कोविड के रोकथाम एवं बचाव कार्यों की समीक्षा करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिये कि प्रदेश में कोविड टेस्टिंग और बढ़ाई जाय। देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर एवं नैनीताल जनपद को इस दिशा में विशेष प्रयास करने होंगे। कोविड से बचाव के लिए नियमित रूप से विभिन्न माध्यमों से जन जागरण अभियान चलाये जाय। त्योहारों का समय चल रहा है, लोगों का आवागमन भी तेजी से बढ़ा है। भीड़-भाड़ वाले स्थानों एवं पर्यटक व धार्मिक स्थलों पर जन जागरण के साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क की अनिवार्यता का पूरा अनुपालन कराया जाय। व्यापारिक संगठनों एवं अन्य सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से त्योहारों के सीजन में दुकानों में सेनिटाइजर एवं स्वच्छता प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाय।

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि कोविड से बचाव के लिए मानव संसाधन की पूरी व्यवस्था हो, अगले 15 दिन विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। यह सुनिश्चित किया जाय कि शहरी जनपदों में 24 घण्टे एवं ग्रामीण जनपदों में 48 घण्टे के अन्दर कोविड सैंपल की टेस्ट रिपोर्ट लोगों को मिल जाय। जिन लोगों का एंटिजन टेस्ट सिम्पटमैटिक है, उनका अनिवार्य रूप से आरटीपीसीआर टेस्ट हो। हाई रिस्क कॉन्टेक्ट का शत प्रतिशत टेस्टिंग कराई जाय। त्योहरों के सीजन में अधिकारी लगातार फील्ड विजिट करें। लेब टेक्निशियन, रेडियोलॉजिस्ट और आशा वर्कर बढ़ाये जाय। सभी जिलों में इनकी पर्याप्त उपलब्धता हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉक्टरों की बड़ी जिम्मेदारी है कि वे मनोवैज्ञानिक रूप से कोविड मरीजों को मजबूत करें एवं वरिष्ट चिकित्सक निरंतर मरीजों के सम्पर्क में रहें।

सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी ने कहा कि इस सप्ताह प्रदेश में कोरोना के मामलों में वृद्धि हुई है। इसे नियंत्रित करने के लिए जिलाधिकारियों को और प्रयासों की जरूरत है। ट्रू-नॉट टेस्टिंग और बढ़ाई जाय। सभी जिलाधिकारी कोविड के दृष्टिगत आवश्यक सामग्रियों की पूर्ण उपलब्धता रखें। कोविड केयर सेंटर में रहने, खाने एवं स्वास्थ्य की व्यवस्थाओं की नियमित निगरानी रखी जाय।

पुलिस महानिदेशक लॉ एण्ड आर्डर अशोक कुमार ने कहा कि पुलिस विभाग द्वारा कोविड से बचाव हेतु पैदल मार्च, पोस्टर, वॉल पेंटिंग एवं अन्य माध्यमों से जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। मास्क एवं सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है। गाइर्डलाईन का अनुपालन न करने वालों के चालान भी किये जा रहे हैं, लेकिन उन्हें निःशुल्क मास्क भी दिये जा रहे हैं।

बैठक शुरू होने से पूर्व सल्ट विधायक सुरेन्द्र सिंह जीना के निधन पर 02 मिनट का मौन रखा गया। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र एवं सभी अधिकारियों ने मृत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की एवं शोक संतप्त परिवारजनों को दुःख की इस घड़ी में धैर्य प्रदान करने की कामना की।

कोविड के बचाव को राज्य में पर्याप्त मात्रा में डेडीकेटेड अस्पतालः मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन द्वारा कोविड-19 के सम्बन्ध में वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से ली गयी बैठक में प्रतिभाग किया। मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को बताया कि त्योहार के सीजन को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए प्रचार व प्रसार पर विशेष ध्यान दिये जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में कोविड के बचाव के लिए पर्याप्त मात्रा में डेडीकेटेड अस्पताल हैं। इसके साथ ही अस्पताल में वेंटीलेटर, आईसीयू बेड एवं ऑक्सीजन सप्लाई भी उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में सैंपल टेस्टिंग की 10 लैब कार्यरत है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने बताया कि बिना मास्क के लिए एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने के लिए लगातार चालान भी काटे जा रहे हैं। इसके साथ ही, जिनका मास्क न पहनने पर चालान काटा जा रहा है, उन्हें मास्क भी उपलब्ध कराये जा रहे ताकि लोग मास्क के प्रति जागरूक हो सकें। इस संबंध में जन जागरूकता के लिये भी प्रयास किये जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि त्योहारी सीजन के चलते राज्य में काफी लोग दिल्ली व अन्य प्रदेशों से वापस आ रहे हैं, इससे कोविड के संक्रमण का खतरा भी बढ़ने की संभावना है। उन्होंने कहा कि लोग जागरूक हो सकें इसके लिए ग्राम स्तर तक कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग एवं जागरूकता पर कार्य किया जा रहा है। सर्दी बढ़ने एवं त्योहारी सीजन के कारण कोविड-19 के संक्रमण के खतरे को देखते ही प्रदेश सरकार द्वारा संक्रमण की रोकथाम के लिये लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि उत्तराखण्ड ने कोविड-19 के संक्रमण पर काफी हद तक कंट्रोल किया है। परन्तु सर्दी बढ़ने एवं त्योहारी सीजन को देखते हुए अभी लापरवाही की गुंजाईश नहीं है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग एवं टेस्टिंग के साथ ही जागरूकता बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर सचिव श्री अमित नेगी एवं डॉ. पंकज कुमार पाण्डेय भी उपस्थित थे।

एम्स ने ओपीडी मरीजों को दिए दो माह तक के लिए इंसुलिन इंजेक्शन

14 नवंबर को होने वाले विश्व मधुमेह दिवस के उपलक्ष्य में एम्स ऋषिकेश के एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म विभाग में कार्यक्रम हुए। टाइप-1 मधुमेह के रोगियों के लिए एक रोगी सहायता के तहत ओपीडी मरीजों को 2 माह तक के लिए इंसुलिन के इंजेक्शन निःशुल्क वितरित किए गए।

बताया गया कि इंडोक्रिनोलॉजी विभाग में शैक्षणिक गतिविधियों को जनवरी 2021 सत्र में एंडोक्रिनोलॉजी विषय में डीएम पाठ्यक्रम को शुरू किया जाएगा। जिसमें विश्व मधुमेह दिवस मनाने के बाबत जानकारी दी गई कि इसी दिन डाॅक्टर फे्रडरिक बैटिंग ने इंसुलिन की खोज भी की थी। तभी से 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। यह दिन, मधुमेह से ग्रसित बच्चों के लिए विशेष महत्व रखता है।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने कहा कि मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों के विषय पर इस तरह के जनजागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन समय की मांग है। बताया कि संस्थान के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग में विभिन्न वयस्क और बाल चिकित्सा एंडोक्राइन (हार्मोन संबंधी) विकारों के रोगियों के समुचित उपचार की मुकम्मल सुविधाएं उपलब्ध हैं।

इस अवसर पर संकायाध्यक्ष अकादमिक प्रो. मनोज गुप्ता ने कहा कि टाइप-1 या जुवेनाइल डायबिटीज बच्चों और युवाओं को खासतौर से प्रभावित करता है और इस बीमारी को इंसुलिन के साथ आजीवन इलाज की आवश्यकता होती है। इंटनेशनल डायबिटिक फैडरेशन आईडीएफ के अनुमान के मुताबिक भारत में प्रत्येक वर्ष इस बीमारी से 16,000 नए मामले प्रकाश में आ रहे हैं।

कार्यक्रम के तहत स्नातकोत्तर विद्यार्थियों के लिए एक प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें खासतौर से मेडिसिन और पीडियाट्रिक्स विभाग के विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। प्रतियोगिता के विजेताओं को विभाग की ओर से पुरस्कार प्रदान किए गए। क्विज प्रतियोगिता में मेडिसिन विभाग के डा. अश्विन और डा. मोहन ने प्रथम, डा. पारस गुप्ता और डा. मयंक कपूर ने द्वितीय तथा बाल रोग विभाग के डा. गोकुल पिल्लई और डा. राजकुमार ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।

इस अवसर पर आयोजित ऑनलाइन संकाय वार्ता में एंडोक्रिनोलॉजी विभाग की डा. कृति जोशी व डा. कल्याणी श्रीधरन तथा मेडिसिन विभाग के डा. रविकांत ने इन-हॉस्पिटल डायबिटीज मैनेजमेंट विषय पर प्रतिभाग किया।

एम्स प्रशासन ने अस्थमा रोगियों को किया अलर्ट, दिए आवश्यक सुझाव

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश ने शीतकाल के मद्देनजर अस्थमा रोगियों को विशेष सावधानी बरतने का सुझाव दिया है। संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि ठंड और कोहरे की यह समस्या सबसे अधिक अस्थमा रोगियों के लिए नुकसानदेय है। ऐसे में अस्थमा रोगियों को विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि नियमततौर पर मास्क लगाने से कोरोना से तो बचाव होगा ही, साथ ही मास्क का उपयोग अस्थमा रोगियों के लिए ठंडी हवा से रोकथाम में भी बेहतर विकल्प साबित होगा। बताया कि ठंड और कोहरे के कारण वायुमंडल में जल की बूंदें संघनित होकर हवा के साथ मिल जाती हैं। यह हवा जब सांस के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश करती है, तो सांस की नलियों में ठंडी हवा जाने से उनमें सूजन आने लगती है। ऐसे में अस्थमा के रोगी गंभीर स्थिति में आ जाते हैं। उन्होंने मास्क के इस्तेमाल को इस समस्या से बचने का सबसे बेहतर उपाय बताया।

पल्मोनरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. गिरीश सिंधवानी ने बताया कि अस्थमा किसी भी व्यक्ति को और किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन समय पर इसके लक्षणों की पहचान होने से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यह रोग संक्रमण से नहीं फैलता है यह एलर्जी से होने वाली बीमारी है। जुकाम और बार-बार आने वाली छींकों से उत्पन्न यह एलर्जी जब नाक व गले से होते हुए छाती में फेफड़ों तक पहुंचती है तो अस्थमा का रूप ले लेती है। डा. सिंधवानी के अनुसार अस्थमा रोगियों को रात के समय अधिक दिक्कत होती है। उन्होंने बताया कि इस मर्ज का समय पर उपचार नहीं कराने से मरीज की सांस फूलने लगती है और दम घुटने के कारण उसे अस्थमा अटैक पड़ जाता है।
डा. सिंधवानी ने सुझाव दिया कि अस्थमा के रोगी नियमिततौर से दवा लेना नहीं भूलें। उन्होंने आगाह किया कि बीच-बीच में दवा छोड़ने से यह बीमारी घातकरूप ले लेती है। बताया कि लोगों में भ्रांति है कि इनहेलर का उपयोग केवल संकट के समय ही किया जाता है। जबकि यह तर्क पूरी तरह से गलत है। विशेषज्ञ चिकित्सक ने बताया कि इनहेलर का उपयोग अस्थमा के रोगी को नियमिततौर से करना चाहिए। इस बीमारी में इनहेलर सबसे उत्तम उपाय है। इससे बचना, नुकसानदेह होता है। उन्होंने बताया कि ऋषिकेश एम्स में इस बीमारी की सभी तरह के परीक्षण व उपचार की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं।

यह हैं अस्थमा के प्रमुख लक्षण-
खांसी, जुकाम, छींकें आना, सांस फूलना, सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना आदि।

यह है अस्थमा रोग को बढ़ाने वाले कारक-
ठंड, कोहरा, धुंध, धुवां, धूल, प्रदूषण, संक्रमण, पेंट की गंध, परागकण। इसके अलावा बंद घरों के भीतर रहने वाले पालतू कुत्ते और बिल्लियों के बालों से भी अस्थमा मरीजों की परेशानियां बढ़ जाती हैं।

इस तरह अस्थमा से बचाव का उपाय-
फ्रिज का पानी, ठंडी और बासी चीजों का सेवन कदापि नहीं करें। सर्दी से बचाव के सभी जरुरी उपाय जैसे गर्म कपड़े पहनना, धूप आने से पहले बाहर नहीं निकलना, कमरों के भीतर बैठने के बजाय धूप में बैठना आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। धूप में विटामिन डी प्रचुर मात्रा में होता है और यह जनरल बूस्टर का कार्य करते हुए शरीर की इम्यूनिटी क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा ग्रसित मरीज दवा का सेवन नियमित तौर पर करें।

एसडीएम ऋषिकेश ने जांची तीर्थनगरी की दुकानों की मिठाईयां

दीपावली पर एक्सपायरी मिठाई बेची तो मुकदमा झेलने के लिए तैयार रहना होगा। उप जिलाधिकारी ऋषिकेश वरूण चैधरी ने आज मिठाईयों की दुकान में छापा मारा। इस दौरान उन्होंने सरकार की गाइडलाइन का पालन करने के निर्देश दिए। एसडीएम के नेतृत्व में तहसील व पुलिस प्रशासन में तीर्थ नगरी की सभी मिष्ठान की दुकानों तथा उनकी वर्कशॉप पर छापेमारी की जिसमें उन्होंने दुकानों पर बनने वाली मिठाइयों की एक्सपायरी डेट भी चेक की तथा मास्क तथा दस्ताने लगाकर कार्य के जाने के निर्देश भी दुकानदारों को दिए उप जिलाधिकारी ने यह भी कहा कि यदि कोरोना संक्रमण के चलते सरकार द्वारा निर्धारित किए गए दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया तो उन दुकानदारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। उप जिलाधिकारी द्वारा मिठाइयों की दुकानों पर किए गए औचक निरीक्षण के चलते सभी दुकानदारों में हड़कंप मच गया।

एम्स में भ्रष्टाचार उन्मूलन पर आयोजित हुई निबंध व पोस्टर प्रतियोगिता

एम्स भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कृत संकल्पित है। इसके लिए संस्थान स्तर पर निगरानी कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी इस तरह के मामलों पर नजर रखती है और यदि कोई व्यक्ति इसतरह के किसी मामले में संलिप्त पाया जाता है तो उसके खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाती है। संस्थान में किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार को हरगिज बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह बात एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने कहीं।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में विजिलेंस वीक का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान के अधिकारियों, कर्मचारियों ने भ्रष्टाचार उन्मूलन में अपनी महति भूमिका निभाने की शपथ ली। समापन कार्यक्रम में अव्वल प्रतिभागियों को एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया। जिसमें भ्रष्टाचार उन्मूलन को लेकर निबंध एवं पोस्टर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर निदेशक एम्स ने भाषण व पोस्टर प्रतियोगिताओं में अव्वल रहे प्रतिभागियों को संस्थान की ओर से सम्मानित किया। विजिलेंस वीक कार्यक्रम के तहत संस्थान के विधि अधिकारी प्रदीप चंद्र पांडेय ने प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 व आरटीआई विषय, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पंकज सिंह राणा ने विजिलेंस गाइडलाइंस फॉर स्क्रेप डिस्पोजल, सुरपरिटेंडेंट इंजीनियर अनुराग सिंह जी ने विजिलेंस गाइडलाइंस फॉर टेंडर एंड प्रोक्यूरमेंट केसेस, वित्त सलाहकार कमांडेंट पीके मिश्रा व एकाउंट ऑफिसर राजीव गुप्ता ने जीएफआर रूल्स व एडमिन ऑफिसर संतोष जी ने विजिलेंस अवेयरनेस आदि विषयों पर व्याख्यान प्रस्तुत किए।

कार्यक्रम में डीन एकेडमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता, मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रो. ब्रिजेंद्र सिंह, डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रो. यूबी मिश्रा, वित्तीय सलाहकार पर्वत कुमार मिश्रा, डीन कॉलेज ऑफ नर्सिंग प्रो. सुरेश के. शर्मा, विधि अधिकारी प्रदीप पाण्डे, लेखा अधिकारी राजीव गुप्ता आदि मौजूद थे।