कोरोना से बचना है तो भीड़-भाड़ वाले स्थानों में जाने से बचें, जानिए क्यों है जरुरी

कोरोना वायरस आने के बाद सब एक दूसरे से उचित दुरी बना कर रख रहे है। लोगों से कहा जा रहा है कि दूर-दूर रहो. कम से कम एक या दो मीटर की दूरी। लेकिन अब एक अध्ययन में सामने आया है कि कोरोना से बचने के लिए दो मीटर की दूरी नाकाफी है. क्योंकि इंसान की लार की बूंदें कम गति वाली हवा में भी कुछ नहीं तो छह मीटर तक ट्रैवल तो करती ही हैं।
ये अध्ययन अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ फिजिक्स के तहत फिजिक्स ऑफ फ्लुइड्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि जब हवा की गति जीरो थी, तब लार की बूंदों ने दो मीटर से ज्यादा ट्रैवल नहीं किया। जो कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के लिए एकदम सही है। लेकिन जब हवा चार किलोमीटर प्रति घंटे से लेकर 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है, तब ये बूंदें छह मीटर तक ट्रैवल कर लेती हैं।
लार की बूंदों पर ये स्टडी रिसर्चर्स तालिब डीबौक और दिमित्रिस ड्रक्कैकिस ने की है। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के ई-मेल के जवाब में ड्रक्कैकिस ने लिखा है कि ‘चार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली हवा के एक झोंके से भी ये बूंदें पांच सेकंड्स के अंदर छह मीटर तक ट्रैवल कर जाती हैं। इसलिए दो मीटर की दूरी काफी नहीं है। भीड़ वाले इलाके काफी ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।’
लार की बूंदों पर स्टडी करने के लिए रिसर्चर्स ने कम्प्यूटेशनल फ्लुइड्स डायनेमिक्स का इस्तेमाल किया गया है। इस स्टडी में ये देखा गया कि खांसते हुए आदमी के मुंह से निकलने वाली लार की हर बूंद किस तरह मूव करती है। उमस का उस बूंद पर क्या प्रभाव होता है। बूंदों का आपस में और हवा के साथ कैसा बर्ताव रहता है, और किस तरह ये बूंदें लिक्विड से गैस बनकर हवा होती हैं।
स्टडी में रिसर्चर्स ने ये कहा है कि उन्होंने ये पता लगाने की पूरी कोशिश की है कि सर्दी और बसंत के मौसम का इन बूंदों पर क्या प्रभाव होता है। ड्रक्कैकिस कहते हैं, ‘हमें बूंदो के वाष्पीकरण को अभी और गहराई से समझना है। अलग-अलग वातावरण को लेकर भी स्टडी करनी है। काम अभी चल ही रहा है। इनडोर वातारवरण में बूंद का बर्ताव कैसा होगा, ये जानना बहुत जरूरी है।
वैज्ञानिक कह रहे हैं कि अभी अलग-अलग वातावरण के हिसाब से स्टडी करना बाकी है। लेकिन ये स्टडी सोशल डिस्टेंसिंग के सुझाव के लिहाज से समझना और होना बेहद जरूरी है।