गढ़वाल के पांच जिलों में केन्द्र पोषित और वित्त आयोग की योजनाओं की समीक्षा

शहरी विकास मंत्री डॉ. प्रेम चन्द अग्रवाल ने विधान सभा स्थित सभागार कक्ष में नगर निकाय के अधिकारियों के साथ बैठक कर राज्य में चल रही केंद्र पोषित योजना, 15वें वित्त तथा पांचवें राज्य वित्त योजनाओं की समीक्षा की।
मंत्री ने कहा कि आज पांच जिलों टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी, चमोली तथा रूद्रप्रयाग के अधिशासी अधिकारियों के साथ नगर निकायों में चल रहे विकास कार्यों पर विस्तृत चर्चा की गई है जिसमें कूड़े के डोर टू डोर कलेक्शन, सेग्रीगेशन, लीगेसी वेस्ट तथा ठोस अवशिष्ठ प्रबन्धन को लेकर अधिकारियों से जानकारी प्राप्त की तथा आवश्यक सुधार हेतु दिशा-निर्देश दिये।
मंत्री ने महत्वाकांक्षी पीएम स्वनिधि योजना तथा पीएम आवास योजना की प्रगति के विषय में जानकारी प्राप्त की तथा अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिये। उन्होंने दीनदयाल अन्त्योदय मिशन के तहत चलाये जा रहे स्वरोजगार कार्यक्रम तथा स्वंय सहायता समूह की भी जानकारी प्राप्त की। उन्होंने अधिशासी अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि नगर निकायों में स्वंय सहायता समूहों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जाए जिससे स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिल सके। मंत्री ने कहा कि स्वंय सहायता समूह से जुड़ी हमारी बहिनों के द्वारा कुछ सराहनीय उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है इसके लिए विभाग की ओर से अमेजॉन तथा फ्लिप कार्ड जैसी ऑनलाईन शॉपिंग साईट से भी समझौता किया गया है। उन्होंने कहा कि इस समझौते से स्वंय सहायता समूहों से जुड़ी सभी बहिनों को आसानी से बाजार उपलब्ध हो पायेगा।
शहरी विकास मंत्री ने कहा कि नगर निकायों में वित्त की कमी न होने पाए इसके लिए विभाग हमेशा प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि अधिशासी अधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों के विकास कार्यों हेतु समय पर डीपीआर तैयार करें जिससे जनता को किये जा रहे विकास कार्यों का लाभ ससमय प्राप्त हो सके। उन्होंने 15वें वित्त तथा पांचवें राज्य वित्त योजनाओं पर भी अधिकारियों से जानकारी प्राप्त की। उन्होंने कहा कि हमारे नगर निकाय और अधिक सुदृढ़ हों इसके लिए विभाग हमेशा से प्रयासरत है।
मंत्री ने बैठक में कुछ अधिकारियों की अनुपस्थिति पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि जनता से जुड़े हुए विकास कार्यों में किसी भी तरह की लापरवाही को बरदाश्त नहीं किया जायेगा। मंत्री ने कहा कि नगर निकायों में आश्रय स्थलों का निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने यूजर चार्ज पर भी अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि विकास कार्यों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाए जिसके लिए अधिशासी अधिकारियों को कार्य स्थलों का समय-समय पर निरीक्षण करने हेतु निर्देशित किया।
मंत्री ने सभी अधिकारियों को आगामी नगर निकाय चुनाव के लिए भी तैयार रहने के निर्देश दिये। उन्होंने मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणाओं को ससमय पूर्ण करने के निर्देश दिये। उन्होंने नगर निकायों में साफ सफाई, स्ट्रीट लाईट, सार्वजनिक शौचालयों, सार्वजनिक मूत्रालयों की समुचित व्यवस्था करने हेतु अधिकारियों को निर्देशित किया।
इस अवसर पर अशोक पाण्डे, सहायक निदेशक, शहरी विकास, राजीव पाण्डे, सहायक निदेशक, शहरी विकास तथा अन्य विभागीय अधिकारी तथा कर्मचारी उपस्थित रहे।

मुख्यमंत्री के प्रयास हुए सफल, राज्य के अनुरोध को 15वें वित्त आयोग ने स्वीकारा

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की 15 वें वित्त आयोग के समक्ष राज्य के हक में की गई पैरवी आयोग की सिफारिशों में देखने को मिल रही हैं। 15वें वित्त आयोग द्वारा उत्तराखण्ड राज्य को राजस्व घाटा अनुदान दिये जाने की संस्तुति की गई है, जिसके फलस्वरूप राज्य को प्रतिवर्ष लगभग न्यूनतम रू 2000 करोड़ का लाभ होगा। आयोग की सिफारिशों में केन्द्रीय करों में राज्य का अंश 1.052 से बढ़ाकर 1.104 कर दिया गया है, जिससे राज्य को प्रतिवर्ष लगभग रू. 300 से 400 करोड़ का लाभ होगा। डिवोलेशन फार्मूला में वनों का अंश 7.50 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया है, जिसे राज्य के अंश में वृद्धि हुई है। राज्य आपदा राहत निधि के अंश में 787 करोड़ रूपए वृद्धि पर सहमति दी गई है। शहरी स्थानीय निकायों एवं पंचायतीराज संस्थाओं के अनुदान में भी 148 करोड़ रूपए की वृद्धि हुई है।
मुख्यमंत्री ने उत्तराखण्ड के पक्ष को स्वीकारने के लिए 15 वें वित्त आयोग का जताया आभार
15 वें वित आयोग की सिफारिशों पर मुख्यमंत्री ने कहा कि, 15वें वित्त आयोग के समक्ष राज्य के पक्ष को तार्किक ढंग से बहुत ही स्पष्ट एवं सक्षम तरीके से प्रस्तुत किया गया। उसी का परिणाम है कि विभिन्न बिंदुओं पर आयोग ने अपनी सहमति देते हुए राज्य के पक्ष में संस्तुतियां की हैं। उत्तराखण्ड के दृष्टिकोण को समझने और तद्नुसार संस्तुतियां देने के लिए 15 वें वित आयोग का आभार व्यक्त करते हैं। इससे उत्तराखण्ड विकास के पथ पर और तेजी से आगे बढ़ेगा।
उत्तराखण्ड द्वारा दी जा रही पर्यावरणीय सेवाओं को किया स्वीकार
15 वें वित्त आयोग को संदर्भित विषयों एवं राज्य की विभिन्न समस्याओं के संबंध में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मैमोरेण्डम प्रस्तुत किया गया था। उत्तराखण्ड द्वारा मैमोरेण्डम में विभिन्न बिन्दुओं को स्पष्ट एवं विश्वसनीय तरीके से प्रस्तुत किया गया, जिसे आयोग द्वारा स्वीकार किया गया। उत्तराखण्ड राज्य के परिदृश्य में आयोग द्वारा स्वीकार किया गया है कि राज्य द्वारा पूरे देश को बहुमूल्य ईको-सिस्टम सेवायें प्रदान की जा रही हैं। इसके लिये 15 वें वित्त आयोग से डिवोलेशन फार्मूला में वनों का अंश बढ़ाये जाने का अनुरोध किया गया था, जिसे ग्रीन बोनस भी कह सकते हैं। 15वें वित्त आयोग द्वारा डिवोलेशन फार्मूला में वनों का अंश 7.50 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया है, जिससे राज्य के अंश में वृद्धि हुई है।
उत्तराखण्ड को मिलेगा राजस्व घाटा अनुदान
मुख्यमंत्री ने सांवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप 15 वें वित्त आयोग के समक्ष राज्य के हक की पुरजोर पैरवी करते हुये कहा था कि 14वें वित्त आयोग द्वारा राजस्व घाटा अनुदान को समाप्त कर दिया था, जिसके कारण राज्य को अत्यधिक नुकसान उठाना पड़ा। 15वें वित्त आयोग ने इस बात को स्वीकार करते हुए उत्तराखण्ड राज्य को राजस्व घाटा अनुदान दिये जाने की संस्तुति की है, जिसके फलस्वरूप राज्य को प्रतिवर्ष लगभग न्यूनतम रू 2000 करोड़ का लाभ होगा।
आपदा राहत निधि में बढ़ोतरी
आपदा प्रबन्धन के अन्तर्गत राज्य को राज्य ‘‘आपदा राहत निधि’’ के अंश के रूप में गतवर्ष लगभग रू. 254 करोड़ की धनराशि प्राप्त होती थी। उत्तराखण्ड राज्य में होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निटने के लिये आवश्यक सहायता दिये जाने का विषय आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया। राज्य से सहमत होते हुये 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्य आपदा राहत निधि के अंश में वृद्धि करते हुये, इसे प्रतिवर्ष लगभग रू 1041 करोड़ कर दिया गया है।
शहरी स्थानीय निकायों और पंचायतीराज संस्थाओं के अनुदान में वृद्धि
14वें वित्त आयोग द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 में मूल अनुदान के अन्तर्गत शहरी स्थानीय निकायों एवं पंचायतीराज संस्थाओं हेतु कुल रू 704.10 करोड़ की धनराशि संस्तुति की गई थी। 15वें वित्त आयोग द्वारा शहरी स्थानीय निकायों एवं पंचायतीराज संस्थाओं हेतु अनुदान में वृद्धि करते हुये वित्तीय वर्ष 2020-21 हेतु कुल रू 852.00 करोड़ की धनराशि संस्तुत की गई है, जिसमें लगभग 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

हिमालयी राज्यों की सुरक्षा और विकास को केन्द्र सरकार से मांगी मदद

हिमालयन कॉन्क्लेव में गहन मंथन के पश्चात प्रतिभागी हिमालयी राज्यों द्वारा ‘‘मसूरी संकल्प’’ पारित किया गया। इसमें पर्वतीय राज्यों द्वारा हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और देश की समृद्धि में योगदान का संकल्प लिया गया। साथ ही, प्रकृति प्रदत्त जैव विविधता, ग्लेशियर, नदियों, झीलों के संरक्षण का भी प्रण लिया गया। भावी पीढ़ी के लिए लोककला, हस्तकला, संस्कृति आदि का संरक्षण किया जाएगा। पर्वतीय संस्कृति की आध्यात्मिक परम्परा के संरक्षण व मानवता के लिए कार्य करने का संकल्प लिया गया। समानता व न्याय की भावना के साथ पर्वतीय क्षेत्रों के सतत विकास की रणनीति पर काम किया जाएगा। पर्वतीय सभ्यताओं के महान इतिहास व विरासत के संरक्षण का संकल्प लिया गया।

इससे पूर्व हिमालयन कॉन्क्लेव में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग करते हुए केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने हिमालयन राज्यों के सम्मेलन के आयोजन के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा कि निश्चित रूप से यह आयोजन हिमालयी राज्यो के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि लम्बे समय से इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही थी। हिमालयन राज्य भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन सभी राज्यों का विकास भारत सरकार की प्राथमिकताओं में है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों से पलायन को रोकने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। इसमें पंचायतीराज संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। दूरस्थ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा कर ही पलायन को रोका जा सकता है। सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोग देश की सुरक्षा में आंख और कान का काम करते हैं। इससे सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत होगी। हमे विकास के साथ ही पर्यावरणीय सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। पर्वतीय राज्यों में ऑर्गेनिक कृषि पर फोकस किया जाना चाहिए। इसमें स्थानीय युवाओं को जोड़े जाने की जरूरत है। पर्वतीय क्षेत्रों के युवाओं के लिए स्टार्ट-अप महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इससे पलायन तो रुकेगा ही साथ ही क्षेत्र भी आर्थिक रूप से विकसित होगा। केन्द्रीय वितमंत्री ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों ने हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। विकास योजनाओं को फलीभूत करने के लिए स्थानीय समुदायों के सशक्तिकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सम्मेलन में प्रतिभागी राज्यों द्वारा चर्चा किये गये विषयों पर केन्द्र द्वारा गंभीरता से विचार किया जायेगा।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कॉन्क्लेव में आए प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि हमें गर्व है कि देश की सीमाओं की चैकसी की जिम्मेदारी मिली है। हिमालय राज्यों के सम्मेलन की मेजबानी का अवसर प्राप्त हुआ है यह उत्तराखण्ड के लिए सम्मान की बात है। हिमालय राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियां समान हैं। मुझे आशा है कि देश की समृद्धि में योगदान करने के लिए यह एक अच्छा मंच साबित होगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के जल की एक-एक बूंद बचाने के संकल्प में हिमालयी राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हम सभी को मिलकर जल संचय एवं जल संरक्षण के लिए काम करना होगा। नदियों के पुनर्जीवीकरण के लिए केन्द्रीय स्तर पर अलग से बजटीय प्रावधान किया जाना चाहिए। इको सिस्टम सर्विसिज के लिए हिमालयी राज्यों को और प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 2025 तक आर्थिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हिमालयी राज्यों में वैलनेस व टूरिज्म पर काम करना होगा। आपदा, पलायन सभी हिमालयी राज्यों की एक समान समस्या है। हम सभी को मिलकर देश की प्रगति के लिए काम करना है।
15वें वित आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने हिमालयन कॉन्क्लेव को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि अपनी साझा समस्याओं को रखने व उनके हल के लिए नीति निर्धारण में यह एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म साबित होगा। केन्द्र भी हिमालयी राज्यों के साथ है। वित आयोग, हिमालयी राज्यों की समस्याओं से भलीभांति अवगत है। सम्मेलन में उठायी गयी बातों से वित्त आयोग भी सहमत है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए संवैधानिक दायरे में हर सम्भव प्रयास किया जाएगा। हिमालयी राज्य वैश्विक पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं। यहां जीवन स्तर को सुधारने के लिए क्या सिस्टम बनाया जा सकता है, इस पर विचार किया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन अत्यंत कठिन होता है। यहां की समस्याएं अन्य राज्यों से अलग हैं। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में रेल व हवाई कनैक्टीविटी विकसित किये जाने की आवष्यकता बतायी। छोटे राज्यों के सीमित संसाधनों को देखते हुए केन्द्र द्वारा वित्तीय सहायता में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि कि हिमालयी राज्यों में विकास की बहुत संभावनाएं हैं। इसके लिए हमें टारगेट सेट करने की आवश्यकता है। पर्यटन की संभावनाओं की दृष्टि से भी सभी हिमालयन राज्य बहुत ही समृद्ध हैं। अभी यहां घरेलू पर्यटकों की अधिकता है। पर्यटन को और अधिक तेजी से विकास करने के लिए अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित किया जाना बहुत ही जरूरी है। वैल्यू एडेड एग्रीकल्चर को प्रोत्साहित करना जरूरी है। लक्ष्यों को निर्धारित कर समयबद्ध तरीके से योजनाओं का क्रियान्वयन करना जरूरी है। इस सम्मेलन के माध्यम से सभी हिमालयन राज्य आपसी तालमेल से नई योजनाओं को साझा कर नीति आयोग के समक्ष रख सकते हैं। हमे अपनी समस्याओं और संभावनाओं का अध्ययन कर उसके अनुसार योजनाओं को बनाना चाहिए। हमे अपनी कृषि की लागत को कम करने की आवश्यकता है। संसाधनों की समीक्षा करने की आवश्यकता है। भविष्य में पानी की समस्या को देखते हुए सभी राज्यों द्वारा जल संरक्षण के लिए विशेष नीतियां बनाई जानी चाहिए। इसके लिए वॉटरशेड मैनेजमेंट की अत्यधिक आवश्यकता है। हमें नदियों के स्रोतों को बचाने के प्रयास करने होंगे। जल संरक्षण के लिए सभी राज्यों को अंतरराजयीय सहयोग से नीतियां तैयार करनी होंगी। सीमांत राज्यों को पलायन को रोकने और सीमांत क्षेत्रों में विकास करने की आवश्यकता है। विकास के लिए आकांक्षी जनपदों में विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड कोंगकल संगमा ने कहा कि हिमालयी राज्यों में विकास योजनाओं की लागत अधिक होती है। इसलिए केन्द्र द्वारा विभिन्न विकास योजनाओं के मानकों में इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। आर्थिक विकास व पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाये रखना, हिमालयी राज्यों की दोहरी जिम्मेदारी होती है। हमें सतत विकास के लिए रिस्पोंसिबल टूरिज्म पर फोकस करना होगा। उन्होंने पर्वतीय राज्यों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान की आवष्यकता पर बल दिया। नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने सम्मेलन को बेहतर शुरूआत बताते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका संवर्द्धन व इको सिस्टम के महत्व पर जोर दिया। अरूणाचल के उप मुख्यमंत्री चोवना मेन ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं के विकास पर विषेष ध्यान देना होगा। मिजोरम के मंत्री टी.जे.लालनुनल्लुंगा ने अपने सम्बोधन में प्राकृतिक आपदा, जैव विविधता संरक्षण में स्थानीय लोगो की भागीदारी, डिजीटल कनैक्टीविटी पर जोर दिया। सचिव, पेयजल एवं स्वच्छता भारत सरकार परमेष्वरमन अय्यर ने जल शक्ति अभियान पर प्रस्तुतिकरण दिया। उन्होंने जल संरक्षण में स्प्रिंगषेड मैनेजमेंट को प्रभावी ढंग लागू करने की बात कही। इसमें पारंपरिक ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीक का समन्वय उपयोगी सिद्ध होगा। जमींनी स्तर पर पैरा हाइड्रोलॉजिस्ट तैयार किये जाने की संभावनाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में ट्रेंचध्खांटी के माध्यम से जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों की प्रधानमंत्री ने सराहना की है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य कमल किशोर ने डिजास्टर रिस्क मैंनेजमेंट पर प्रस्तुतिकरण देते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में वहां की परिस्थितियों के अनुरूप भवन निर्माण पर जोर दिय जाने की बात कही। सिक्किम के मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. महेन्द्र पी.लामा ने केन्द्रीय सहायता में ईको सिस्टम सर्विसेज को विषेष भार दिये जाने की बात कही।
जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के सलाहकार के.के.शर्मा, आई.आई.एफ.एम. की डॉ. मधु वर्मा व सुशील रमोला ने भी विचार व्यक्त किये। सम्मेलन के समापन अवसर पर उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने धन्यवाद ज्ञापित किया। बैठक में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, सचिव वित्त अमित नेगी, अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश, डी.जी.पी. अनिल रतूड़ी, सचिव सौजन्या, अपर सचिव सोनिका, महानिदेशक सूचना डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट सहित अन्य राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

उत्तराखंड को मिली मायूसी, महाकुंभ और राष्ट्रीय खेल के लिए बजट में नही हुआ प्रवाधान

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में ग्रीन बोनस मिलने का सपना टूट गया है। बजट पेश होने से पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत नीति आयोग के समक्ष ग्रीन बोनस की जोरदार पैरोकारी कर आए थे।
नीति आयोग ने भी पर्यावरणीय सेवाओं के एवज में हिमालयी राज्यों को वित्तीय अनुदान दिए जाने पर अपनी सहमति जताई थी। लेकिन शुक्रवार को पेश हुए बजट में ग्रीन बोनस का जिक्र तक नहीं हुआ। इतना ही नहीं भौगोलिक कठिनाइयों और पर्यावरणीय दबावों के बीच विकास की चुनौती का सामना कर रहे उत्तराखंड को निराशा हुई कि 2021 में प्रस्तावित हरिद्वार महाकुंभ और राष्ट्रीय खेलों के लिए बजट में प्रावधान नहीं हुआ। लेकिन प्रदेश को अधिक झटका ग्रीन बोनस न मिलने से लगा। पिछले करीब एक दशक से प्रदेश में काबिज रही सरकारों ने इस मांग को केंद्र से बेहद गंभीरता के साथ उठाया। हिमालयी राज्यों को ग्रीन बोनस देने की पैरोकारी करने वालों में केंद्र में कैबिनेट मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी शामिल रहे हैं।
राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी भी ग्रीन बोनस की लगातार वकालत कर रहे हैं। मगर पर्यावरणीय संरक्षण के दबाव में विकास की भारी कीमत चुका रहे उत्तराखंड पर फिलहाल केंद्र की कृपा दृष्टि नहीं पड़ी। ऐसे में अब उत्तराखंड की उम्मीदें नीति आयोग और 15वें वित्त आयोग पर टिक गई हैं। ये दोनों आयोग हिमालयी राज्यों को पर्यावरणीय सेवाओं के एवज में केंद्रीय सहायता दिए जाने पर सैद्धांतिक रूप से सहमत हैं।