खुशखबरीः कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर से शुरु

कैलाश मानसरोवर यात्रियों के लिए खुशखबरी है। बादल फटने और रास्ते अवरुद्ध होने के चलते कैलाश मानसरोवर यात्रियों को अपनी यात्रा पूरी न होने की शंका थी। तीन दिनों से रुकी कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर से शुरु हो गई। आज 13वें दल के सदस्यों को गुंजी से धारचूला और पिथौरागढ़ नैनी-सैनी हवाई पट्टी मे सेना के हैलीकाप्टर द्वारा पहुंचाया गया।
जिलाधिकारी पिथौरागढ़ का कहना है कि 13वां दल जो यात्रा पूरी करके लौट गया था उसके यात्रियों को आज गुंजी से धारचूला और 15 यात्रियों को पिथौरागढ़ नैनी-सैनी पहुचाया गया है। 14वां और 15वां दल इस समय कैलाश की परिक्रमा कर रहा है। वही 16वां दल सिर्खा से वापस धारचूला पहुंचाया गया है। जिसे हैलीकाप्टर द्वारा गुंजी ले जाया जायेगा। वही 17वां जत्था आज दिल्ली से यात्रा के लिसे रवाना हुआ है। इन यात्रा दलों को हैलीकाप्टर से पहुंचाया जायेगा।
इस बीच प्रशासन ध्वस्त हुये रास्तो को ठीक करने मे लगा हुआ है। प्रशासन का दावा है कि जल्द ही पूरी व्यास घाटी के टूटे रास्ते ठीक हो जायेगे।

हरिद्वार की घटना से प्रदेश की राजनीति में भूचाल आने के संकेत!

हरिद्वार की घटना से प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा बवाल हो गया है। दो कैबिनेट मंत्रियों के समर्थकों में जमकर लाठी और डंडे चले। जिसमें नगर निगम के मेयर मनोज गर्ग को गंभीर चोटें आयी है। दूसरी, ओर भाजपा के चार विधायक खुलकर सतपाल महाराज के समर्थन में आ गये है। जिसे मदन कौशिक को घेरने की राजनीति के रुप में देखा जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस प्रकरण से पूर्व मुख्यमंत्री निशंक और सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के बीच और खाई पट सकती है।
आरोप है कि अतिक्रमण हटाने को गई टीम पर कार्रवाई के दौरान कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के समर्थकों ने मेयर मनोज गर्ग और नगर निगम हरिद्वार के कर्मचारियों पर हमला कर दिया है। जानकारी के अनुसार बारिश के कारण खन्ना नगर में जलभराव हो रहा था। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के प्रेमनगर आश्रम के ठीक बराबर में पॉश कालोनी खन्ना नगर स्थित है। सुबह हुई बारिश के दौरान हरिद्वार की सड़कें जलमग्न हो गईं। खन्ना नगर में भी जलभराव हो गया। जलभराव की स्थिति का जायजा लेने मेयर मनोज गर्ग मौके पर पहुंचे तो वहां मौजूद भीड़ का आरोप था कि प्रेमनगर आश्रम के अतिक्रमण के चलते ही कालोनी में जलभराव की नौबत आ रही है। आरोप है कि आश्रम की ओर से नाले पर भी कब्जा किया गया है। इससे पानी की निकासी रुक गई है।
मौके पर नगर निगम की टीम जैसे ही आश्रम के अतिक्रमण को तोड़ने लगी तो आश्रम के लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। मेयर गर्ग के साथ शहरी विकास मंत्री मंत्री मदन कौशिक के समर्थक मौजूद थे। देखते ही देखते दोनों पक्षों में विवाद बढ़ गया। आरोप है कि आश्रम से सतपाल महाराज के समर्थक डंडे लेकर आए और उन्होंने मेयर के साथ ही नगर निगम कर्मचारियों और कौशिक समर्थकों पर हमला बोल दिया। इससे मेयर को चोट आई है। उन्हें किसी तरह बचाकर अस्पताल पहुंचाया गया।
इस दौरान कौशिक के समर्थकों ने जेसीबी चला कर अतिक्रमण तुड़वा दिया। इससे गुस्साए महाराज समर्थकों ने पथराव किया तो जवाब में दोनों ओर से पत्थर बाजी हुई। इसमें दोनों पक्ष से करीब आधा दर्जन लोग घायल बताए जा रहे हैं। इस दौरान पुलिस को लाठियां फटकारकर किसी तरह स्थित नियंत्रित करनी पड़ी। मंत्री मदन कौशिक के समर्थक महाराज के समर्थकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर वहां प्रदर्शन करने लगे। प्रशासन और पुलिस की टीम दोनों पक्षों को समझाने में जुटी रही। उधर, नगर निगम ने सतपाल महाराज के आश्रम के गेट पर बाहर कूड़ा डाल दिया है।

श्रावणमास में खिले केदारघाटी के व्यापारियों के चेहरे

बाबा का धाम फिर से गुलजार होने लगा है। सावन के महीने में बड़ी संख्या में भक्त केदारनाथ धाम को पहुंच रहे हैं। बरसात और भूस्खलन के आगे श्रद्धा भारी है। तीर्थयात्रियों की आमद बढ़ने से केदारपुरी भी गुलजार होने लगी है और व्यापारियों के चेहरों पर भी मुस्कान लौट आई है। वहीं मंदिर समिति की आय में भी इजाफा हो रहा है।
पिछले कुछ दिनों से बरसात होने के कारण केदारनाथ धाम में भक्तों का अकाल पड़ गया था। यात्रियों की संख्या नगण्य होने से व्यापारियों के चेहरों पर भी उदासी थी और मंदिर समिति की आय में भी कोई इजाफा नहीं हो रहा था। मगर अब सावन के महीने में बाबा का धाम फिर से गुलजार होने लगा है। तीर्थयात्रियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। एक-दो दिनों से केदार धाम पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या एक से दो हजार के पार पहुंच रही है, जबकि पिछले दिनों दो से तीन सौ के करीब तीर्थयात्री ही बाबा के दरबार में पहुंच रहे थे। सोमवार को दो हजार तीन सौ 16 तीर्थयात्रियों ने बाबा केदार के दरबार में पहुंचकर मत्था टेका। जिससे यात्रा का आंकड़ा तीन लाख 81 हजार 154 पहुंच गया है।
केदारनाथ में जलाभिषेक करने का विशेष महातम्य है। जो भक्त सावन मास में यहां पहुंचकर भगवान भोले को जल के साथ ब्रह्मकमल चढ़ाता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। तीर्थ पुरोहित उमेश पोस्ती ने कहा कि सावन माह में केदारनाथ बाबा के दरबार में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है। भारी बारिश के बावजूद भी तीर्थयात्री केदार धाम को पहुंच रहे हैं। उन्होंने कहा कि बाबा केदार के प्रति श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। प्रशासन से यात्रा मार्गों को दुरूस्त करने की मांग की है।

आखिर जून माह में क्यों जुटते है कामाख्या मंदिर में देश विदेश के साधक!


रजस्वला स्त्री मासिक धर्म, एक स्त्री की पहचान है, यह उसे पूर्ण स्त्रीत्व प्रदान करता है। लेकिन फिर भी हमारे समाज में रजस्वला स्त्री को अपवित्र माना जाता है। महीने के जिन दिनों में वह मासिक चक्र के अंतर्गत आती है, उसे किसी भी पवित्र कार्य में शामिल नहीं होने दिया जाता, उसे किसी भी धार्मिक स्थल पर जाने की मनाही होती है। लेकिन विडंबना देखिए कि एक ओर तो हमारा समाज रजस्वला स्त्री को अपवित्र मानता है वहीं दूसरी ओर मासिक धर्म के दौरान कामाख्या देवी को सबसे पवित्र होने का दर्जा देता है।
तांत्रिक सिद्धियां यह मंदिर तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध है। यहां तारा, धूमवती, भैरवी, कमला, बगलामुखी आदि तंत्र देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं।
इस मंदिर को सोलहवीं शताब्दी में नष्ट कर दिया गया था लेकिन बाद में कूच बिहार के राजा नर नारायण ने सत्रहवीं शताब्दी में इसका पुन: निर्माण करवाया था।
कामाख्या शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत के बीचो-बीच स्थित कामाख्या मंदिर गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर प्रसिद्ध 108 शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि पिता द्वारा किए जा रहे यज्ञ की अग्नि में कूदकर सती के आत्मदाह करने के बाद जब महादेव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र छोड़कर सती के शव के टुकड़े कर दिए थे। उस समय जहां सती की योनि और गर्भ आकर गिरे थे, आज उस स्थान पर कामाख्या मंदिर स्थित है।
कामदेव का पौरुष इसके अलावा इस मंदिर को लेकर एक और कथा चर्चित है। कहा जाता है कि एक बार जब काम के देवता कामदेव ने अपना पुरुषत्व खो दिया था तब इस स्थान पर रखे सती के गर्भ और योनि की सहायता से ही उन्हें अपना पुरुषत्व हासिल हुआ था।
एक और कथा यह कहती है कि इस स्थान पर ही शिव और पार्वती के बीच प्रेम की शुरुआत हुई थी। संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहा जाता है, जिससे कामाख्या नाम पड़ा।
अधूरी सीढ़ियां इस मंदिर के पास मौजूद सीढ़ियां अधूरी हैं, इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है। कहा जाता है एक नरका नाम का राक्षस देवी कामाख्या की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह करना चाहता था। परंतु देवी कामाख्या ने उसके सामने एक शर्त रख दी।
कामाख्या देवी से विवाह कामाख्या देवी ने नरका से कहा कि अगर वह एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बना पाएगा तो ही वह उससे विवाह करेंगी। नरका ने देवी की बात मान ली और सीढ़ियां बनाने लगा।
देवी को लगा कि नरका इस कार्य को पूरा कर लेगा इसलिए उन्होंने एक तरकीब निकाली। उन्होंने एक कौवे को मुर्गा बनाकर उसे भोर से पहले ही बांग देने को कहा। नरका को लगा कि वह शर्त पूरी नहीं कर पाया है, परंतु जब उसे हकीकत का पता चला तो वह उस मुर्गे को मारने दौड़ा और उसकी बलि दे दी।
जिस स्थान पर मुर्गे की बलि दी गई उसे कुकुराकता नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की सीढ़ियां आज भी अधूरी हैं।मासिक चक्र कामाख्या देवी को ‘बहते रक्त की देवी’ भी कहा जाता है, इसके पीछे मान्यता यह है कि यह देवी का एकमात्र ऐसा स्वरूप है जो नियमानुसार प्रतिवर्ष मासिक धर्म के चक्र में आता है।
सुनकर आपको अटपटा लग सकता है लेकिन कामाख्या देवी के भक्तों का मानना है कि हर साल जून के महीने में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनके बहते रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है।
निषेध है मंदिर में प्रवेश इस दौरान तीन दिनों तक यह मंदिर बंद हो जाता है लेकिन मंदिर के आसपास ‘अम्बूवाची पर्व’ मनाया जाता है। इस दौरान देश-विदेश से सैलानियों के साथ तांत्रिक, अघोरी साधु और पुजारी इस मेले में शामिल होने आते हैं। शक्ति के उपासक, तांत्रिक और साधक नीलांचल पर्वत की विभिन्न गुफाओं में बैठकर साधना कर सिद्धियां प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
वाममार्गी कामाख्या मंदिर को वाममार्ग साधना के लिए सर्वोच्च पीठ का दर्जा दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी आदि जितने भी महान तंत्र साधक रहे हैं वे सभी इस स्थान पर साधना करते थे, यहीं उन्होंने अपनी साधना पूर्ण की थी।
रजस्वला देवी भक्तों और स्थानीय लोगों का मानना है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान कामाख्या देवी के गर्भगृह के दरवाजे अपने आप ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन करना निषेध माना जाता है। पौराणिक दस्तावेजों में भी कहा गया है कि इन तीन दिनों में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनकी योनि से रक्त प्रवाहित होता है।
सुनहरा समय तंत्र साधनाओं में रजस्वला स्त्री और उसके रक्त का विशेष महत्व होता है इसलिए यह पर्व या कामाख्या देवी के रजस्वला होने का यह समय तंत्र साधकों और अघोरियों के लिए सुनहरा काल होता है।
योनि के वस्त्र इस पर्व की शुरुआत से पूर्व गर्भगृह स्थित योनि के आकार में स्थित शिलाखंड, जिसे महामुद्रा कहा जाता है, को सफेद वस्त्र पहनाए जाते हैं, जो पूरी तरह रक्त से भीग जाते हैं। पर्व संपन्न होने के बाद पुजारियों द्वारा यह वस्त्र भक्तों में वितरित कर दिए जाते हैं।
कमिया वस्त्र बहुत से तांत्रिक, साधु, ज्योतिषी ऐसे भी होते हैं जो यहां से वस्त्र ले जाकर उसे छोटा-छोटा फाड़कर मनमाने दामों पर उन वस्त्रों को कमिया वस्त्र या कमिया सिंदूर का नाम देकर बेचते हैं।
आस्था का विषय देवी के रजस्वला होने की बात पूरी तरह आस्था से जुड़ी है। इस मानसिकता से इतर सोचने वाले बहुत से लोगों का कहना है कि पर्व के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी में प्रचुर मात्रा में सिंदूर डाला जाता है, जिसकी वजह से नदी लाल हो जाती है। कुछ तो यह भी कहते हैं कि यह नदी बेजुबान जानवरों की बलि के दौरान उनके बहते हुए रक्त से लाल होती है। इस मंदिर में कभी मादा पशु की बलि नहीं दी जाती।

मोदी ने केदारनाथ के दर्शन कर मांगा आर्शीवाद

देहरादून।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को बाबा केदारनाथ के दर्शन किये। आज प्रातः 8.50 बजे कपाट खुलने के करीब 15 मिनट बाद सबसे पहले दर्शन करने पंहुचे। प्रधानमंत्री मोदी ने गर्भगृह में भगवान शिव का रुद्राभिषेक भी किया। इसके पश्चात केदारनाथ मन्दिर समिति द्वारा उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। इस अवसर पर उनके साथ राज्यपाल डॉ. कृष्ण कान्त पाल तथा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत भी मौजूद रहे। मोदी देश के ऐेसे तीसरे प्रधानमंत्री हैं जो इस पद पर रहते हुए केदारनाथ पंहुचे हैं। उनसे पहले स्व. इन्दिरा गांधी एवं वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री के तौर पर केदारनाथ दर्शन के लिए आ चुके हैं। मोदी आज प्रातः 8 बजकर 10 मिनट पर जौलीग्राण्ट एयरपोर्ट पंहुचे।

चारधाम को एडवांस बसों का आंकड़ा हजार के पार

ऋषिकेश।
उत्तराखंड के तीर्थों में प्रमुख रूप से शामिल चारधाम यात्रा में देश ही नहीं विदेशों के श्रद्धालु पहुंचते हैं। 27 अप्रैल से शुरू हो रही चारधाम यात्रा के लिए परिवहन कंपनियों में भारी उत्साह दिख रहा है। चारधाम यात्रा संचालित कर रही संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति के पास इस वर्ष के शुरुआती चरण में हजार बसों की एडवांस बुकिंग आ चुकी है।
हालांकि समिति ने चारधाम यात्रा पर जाने वाली 1204 बसों की लॉटरी निकाली है। वर्षों से परंपरा रही है कि चारधाम यात्रा में जाने के लिए बसों की लॉटरी निकाली जाती है जिसमें से हजार बसों की एडवांस बुकिंग रोटेशन के पास आ चुकी है। चारधाम यात्रा के शुरुआती चरण में बंपर एडवांस बुकिंग आने से परिवहन व्यवसायियों के चेहरे खिले हुए हैं। देश के विभिन्न प्रदेशों से यात्रा के लिए ट्रैवेल एजेंट रोटेशन समिति से लगातार संपर्क कर रहे हैं। शुरुआती रुझानों को लेकर चारधाम यात्रा के मई में चरम पर होने का अंदाजा लगाया जा रहा है।
संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति के अध्यक्ष सुधीर राय ने बताया कि पूर्व की परंपरा के अनुसार चारधाम यात्रा पर जाने वाली 1204 बसों की लॉटरी निकाली गई। यात्रा के शुरुआती चरण में रविवार तक के आंकड़ों के अनुसार हजार बसों की एंडवास बुकिंग समिति के पास आ चुकी है। शुरुआती रुझानों को देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि मई माह में चारधाम यात्रा अपने चरम पर होगी। बसों की संख्या कम पड़ने पर कुमाऊं से भी बसें मंगवाई जाएंगी। परिवहन कंपनियों में यात्रा को लेकर भारी उत्साह है।

गुरु की जन्मस्थली पाकिस्तान को रवाना हुए श्रद्धालु

ऋषिकेश।
सोमवार को देहरादून रोड स्थित गुरुद्वारा सिंह सभा से ऋषिकेश के सिख श्रद्धालु ननकाना साहिब पाकिस्तान के लिए रवाना हुए। 31 श्रद्धालुओं का दल ऋषिकेश, हरिद्वार, अमृतसर होते हुए 12 अप्रैल को बाघा बॉर्डर पहुंचेगा। वहां से पाकिस्तान के लाहौर प्रांत के तलवंडी जिसे अब ननकाना साहिब कहा जाता है के लिए रवाना होगा। 22 अप्रैल को दल वापस लौटेगा।
सरदार गोबिन्द सिंह, कृपाल सिंह, अतर सिंह ने बताया कि पूर्व में चार बार ननकाना साहिब की यात्रा कर चुके हैं। पांचवीं बार यात्रा करने जा रहे हैं। श्रद्धालुओं ने कहा कि गुरु की जन्मस्थली के दर्शन करने का बार-बार मन करता है। दल में सत्येन्दर कौर, पुष्पिन्दर सिंह, जसविन्दर सिंह, राजविन्दर सिंह, मोहनी देवी, आतमा सिंह, आशा गुल्हाटी, मंजीत सिंह, कृपाल सिंह, मंजीत कौर, तेजेन्दर सिंह, सुरेन्द्र कौर, बनवारी लाल, हरपाल सिंह, वंदना, बलजीत कौर, पाल कौर, अतीचंदर सिंह आदि शामिल हैं।

होलिका पूजन कर खुशहाली का मांगा आशीर्वाद

ऋषिकेश।
रविवार को सुबह से लोगों में होली पूजन को लेकर उत्साह देख गया। नगर में सैकड़ों स्थानों पर होलिका दहन की तैयारी की गयी थी। कई मौहल्लें व स्थान तो ऐसे है जहां पीढ़ी दर पीढ़ी होलिका दहन की जाती है। ऐसे ही स्थानों में त्रिवेणीघाट, वह स्थान है जहां स्थानीय लोग बड़ी संख्या में होलिका पूजन के लिए एकत्रित होते है। त्रिवेणीघाट पर होलिका पूजन करने आये श्रद्धालुओं ने गोबर के उपले, कंडी, गुलगुल और मीठे पकवान भी चढ़ाये। उसके बाद होलिका की परिक्रमा कर बुराई पर अच्छाई की जीत और परिवार की खुशहाली का आशीर्वाद मांगा।
मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को जिंदा जलाने के लिए बुआ होलिका की गोद में बिठाकर चिता तैयार की गई थी। होलिका को आशीर्वाद मिला था कि उसे आग नही जला सकती है। लेकिन बुरा कार्य करने के चलते भगवान ने उसका आशीर्वाद छीन लिया। जिसके फलस्वरूप प्रहलाद तो भगवान की कृपा से बच गया लेकिन बुआ जलकर राख हो गयी। तभी से हिन्दू परंपरा के अनुसार लोग श्रद्धाभाव से होलिका का पूजन कर अपनी बुराईयों का अंत करने और परिवार की खुशहाली का आशीर्वाद मांगते है।
उत्तराखंड संस्कृत रत्न की उपाधि से विभूषित डॉ. चंडीप्रसाद घिल्डियाल के अनुसार, प्रदोष काल 6.20 से 8.35 तक होलिका दहन का शुभ मुहुर्त रहा। होलिका पूजन कर लोग काम, क्रोध, मोह, मद, लोभ, मदसर जैसी बुराईयों पर विजय प्राप्त करने की मनोकामना करते है। बदलते मौसम व वातावरण में अनेक प्रकार की बुराईयों व बीमारियों का दहन को ही होलिका दहन कहा जाता है। बताया कि होलिका पूजन से लाभ मिलता है। सभी को होलिका पूजन कर अपनी बुराईयों पर विजय प्राप्त करने की ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिये।

खर्च का ब्यौरा नही देने पर नही मिलेगा चारधाम का बजट

ऋषिकेश।
गढ़वाल आयुक्त के दिशा-निर्देशन में इस वर्ष होने वाली चारधाम यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं। सभी जिलों के जिला प्रशासन ने बजट के लिए आयुक्त के पास प्रस्ताव भेजे हैं लेकिन गढ़वाल आयुक्त की डायरी में कुछ नगर पंचायत और पालिका प्रशासन ने अभी तक पिछले वर्ष के यात्रा बजट का ब्योरा नहीं दिया है। लिहाजा आयुक्त ने ऐसी पालिका और पंचायत प्रशासन को पिछले बजट का ब्योरा देने की शर्त पर नया बजट आवंटित करने का निर्णय लिया है। पिछले वर्ष चारधाम यात्रा की तैयारियों के लिए पालिका और पंचायतों को लगभग तीन करोड़ रुपए का बजट आवंटित हुआ था जिसमें सभी ने पहले चरण में आवंटित बजट का ब्योरा तो दिया लेकिन दूसरे चरण का विवरण अभी तक नहीं दे पाए। आयुक्त के आदेश के बाद उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी, दून, पौड़ी गढ़वाल के ज्यादातर पालिका और पंचायत प्रशासन ने ब्योरा देना शुरू कर दिया है।

चारधाम यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं। आयुक्त के आदेश पर पंचायत और पालिका प्रशासन से पिछले चारधाम यात्रा के बजट का ब्योरा मांगा जा रहा है। ज्यादातर पालिका और पंचायत प्रशासन ब्योरा जमा करा चुके हैं।
एके श्रीवास्तव, वैयक्तिक सहायक, गढ़वाल आयुक्त।

सेविले चरन तोहार हे छठी मइया, महिमा तोहर अपार …

महापर्व छठ: परिवार के सुख-समृद्धि को उठे हजारों हाथ
व्रतियों से अटे तीर्थनगरी के गंगा घाट

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ऋषिकेश।
महापर्व छठ में तीर्थनगरी के गंगा घाटों में भीड़ उमड़ी। रविवार को छठ पर्व में निर्जला व्रत रख रहे महिला-पुरुष व्रतियों ने गंगा तट में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। सूर्य भगवान से अपनी मनोकामना पूरी करने के साथ सुख-समृद्धि व निरोगता का आशीर्वाद मांगा। मौके पर महिलाओं ने छठ के मंगल गीत गाये। मंगल गीतों से गंगा घाट गुंजयमान रहे।
रविवार को तीर्थनगरी में गंगा घाटों का नजारा देखने लायक रहा। छठ अनुष्ठान के तीसरे दिन छठी मैय्या की टोकरी (डाला) को सजाकर नंगे पांव अपने सिर पर रखकर बड़े उत्साह के साथ श्रद्धालुओं ने गंगा घाटों का रुख किया। घर परिवार के लोग व्रतियों के साथ सज-सवंरकर गंगा घाट पहुंचे। श्रद्धालुओं ने संतान प्राप्ति, तो कुछ ने मनोकामना को लेकर परिवार की सुख-समृद्धि के लिए षठ का व्रत रखा। रविवार को सूर्य भगवान के दिवस के रुप में मनाया जाता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ गंगातट पर उमड़ी। त्रिवेणी घाट, चन्द्रेश्वरनगर, शीशमझाड़ी, स्वर्गाश्रम-लक्ष्मणझूला, वीरभद्र आदि क्षेत्रों के गंगा तटों पर छठ व्रतियों ने डूबते सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया। 112
गंगा तट पर कई पुरुष व महिलाएं पारंपरिक परिधानों में नजर आये। पुरुष पीले रंग की धोती और महिलाएं लाल जोड़े में अधिक नजर आये। जैसे ही संध्या काल का समय हुआ तो श्रद्धालुओं ने सूर्य को भगवान की उपासना करनी शुरु कर दी। गंगा के निर्मल जल में उतरकर उन्होंने डूबते सूर्य को गंगा जल और दूध का अघ्र्य दिय्या। इस दौरान मंगल गीत से गंगा घाट गुंजयमान रहे। श्रद्धालुओं ने गंगा घाटों पर छठ के मंगल गीत गाये। व्रती महिलाओं में अनिता देवी, जनक बाला झा, अनिता देवी, आराधना यादव ने बताया कि पिछले कई वर्षो से छठ का पर्व मना रही है। उनका मानना है कि भगवान सूर्य की रोशनी से पूरा विश्व उदयमान हो रहा है। इसलिए भगवान सूर्य की उपासना से परिवार में खुशहाली आती है।113
गौरतलब है कि छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु दिन में प्रसाद बनाते है। प्रसाद के रुप में ठेकुआ, जिसे कई स्थानों में टिकरी भी कहा जाता है, के अलावा चावल के लड्डू (लडुवा) बनाते है। इसके अलावा चढावा के रुप में सांचा और फल भी छठ प्रसाद के प्रसाद में शामिल होते है।
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रातभर गंगा घाटों पर जमे रहे श्रद्धालु
छठ पर्व पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद श्रद्धालु गंगा घाट पर ही जमे रहे। व्रती श्रद्धालु रातभर गंगा के पानी में रहे। किसी ने मनोकामना मांगी तो किसी ने मनोकामना पूरी होने पर अपना संकल्प पूरा किया। इस दौरान कई श्रद्धालु तो बैंड बाजों के साथ त्रिवेणीघाट पहुंचे। तो कई श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर लेट-लेट कर गंगा घाट तक पहुंचे।
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बाजार में चहल कदमी बढी
तीर्थनगरी में रविवार को षठ पर्व के चलते बाजार में चहल कदमी रही। लोगों ने घर व परिवार के सदस्यों के लिए कपडों की खरीददारी की। गंगा घाटों में श्रद्धालुओं ने आतिशबाजी भी की। इस दौरान त्रिवेणी घाट का नजारा देखने लायक रहा। त्रिवेणी घाट को रंग बिरंगी लाइटों से सजाया गया था।