विवाहित महिला किसी गैर मर्द से शारीरिक संबंध बनाए तो सिर्फ उस मर्द को सजा क्यों? सुप्रीम कोर्ट इससे जुड़े कानून की समीक्षा करेगा। इस मसले पर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इस केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
औरत को मुकदमे से छूट हासिल है
दरअसल, एडल्ट्री यानी व्यभिचार की परिभाषा तय करने वाली आईपीसी की धारा 497 में सिर्फ मर्द को सजा का प्रावधान है। किसी विवाहित महिला से उसके पति की मर्जी के बिना संबंध बनाने वाले मर्द को पांच साल तक की सजा हो सकती है, लेकिन महिला पर कोई कार्रवाई नहीं होती। याचिकाकर्ता ने इसे भेदभाव भरा कानून बताया है।
केरल के जोसफ शाइन की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि 150 साल पुराना ये कानून मौजूदा दौर में बेमतलब है। ये उस समय का कानून है जब महिलाओं की स्थिति बहुत कमजोर थी। इसलिए, व्यभिचार के मामलों में उन्हें पीड़ित का दर्जा दे दिया गया।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि आज औरतें पहले से मजबूत हैं। अगर वो अपनी इच्छा से दूसरे मर्द से संबंध बनाती हैं, तो मुकदमा सिर्फ उस मर्द पर नहीं चलना चाहिए। औरत को किसी भी कार्रवाई से छूट दे देना समानता के अधिकार के खिलाफ है।
बेंच ने इस दलील से सहमति जताते हुए कहा, आपराधिक कानून लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता, लेकिन ये धारा एक अपवाद है। इस पर विचार की जरूरत है। कोर्ट ने ये भी कहा कि पति की मंजूरी से किसी और से संबंध बनाने पर इस धारा का लागू न होना भी दिखाता है कि औरत को एक संपत्ति की तरह लिया गया है।
पत्नी को शिकायत का अधिकार नहीं
याचिकाकर्ता ने बताया कि 1971 में लॉ कमीशन और 2003 में जस्टिस मलिमथ आयोग आईपीसी 497 में बदलाव की सिफारिश कर चुके हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने कानून में संशोधन नहीं किया।
कोर्ट में ये सवाल भी उठा कि आईपीसी 497 के तहत पति तो अपनी पत्नी के व्यभिचार की शिकायत कर सकता है, लेकिन पति के ऐसे संबंधों की शिकायत पत्नी नहीं कर सकती। कोर्ट ने माना कि मौजूदा हालात में ये कानून न कहीं पुरुष से तो कहीं महिला से भेदभाव करता है।
इससे पहले 1954, 2004 और 2008 में आए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट आईपीसी 497 में बदलाव की मांग को ठुकरा चुका है। ऐसे में नई याचिका पर पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई हो सकती है।