आखिर जिला प्राधिकरण की आड़ में त्रिवेन्द्र ने तीरथ पर साधा निशाना

अपनी गद्दी जाने के बाद से उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने राजनीतिक कार्यों से अधिक अपने बयानों से मीडिया में सक्रिय रहे हैं। इस बार उन्होंने अपना जिला प्राधिकरणों को लेकर दिया है। ज्ञातव्य हो कि त्रिवेंद्र सरकार द्वारा गठित जिला प्राधिकरणों को तीरथ सरकार ने स्थगित कर दिया था।
अब जोशीमठ आपदा के बाद जब धामी सरकार ने इन प्राधिकरणों को पुनः प्रारंभ किया तो त्रिवेंद्र सिंह अपनी पीठ ठोकने के चक्कर में फिर से गच्चा खा गए और पुनः एक अनावश्यक बयान दे डाला और कहा कि “कभी कभी कम योग्य व्यक्तियों को कोई बड़ा पद मिल जाता है तो ऐसा ही होता है। अब ये देखना बड़ा ही रोचक है कि आखिर क्यों त्रिवेंद्र रावत ने तीरथ सिंह पर निशाना साधा?
सूत्रों का ये भी कहना है कि राज्य में अपने राजनीतिक कैरियर को खत्म होता देख त्रिवेंद्र रावत अब संसद सदस्य बनना चाहते हैं, और जो एक सीट वर्तमान में उनको अपने लिए थोड़ी मुफीद जान पढ़ रही है वो पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की पौड़ी सीट है। पर इस सीट पर दावा ठोकने के लिए त्रिवेंद्र रावत ने जिस “बयान“ का सहारा लिया है, वो अब उनके लिए ही गले की हड्डी बन गया है क्योंकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पहले ही त्रिवेंद्र को अपने अनावश्यक बयानों से बचने के लिए आगाह कर चुका है। पर त्रिवेंद्र तो त्रिवेंद्र ठहरे… उन्होंने फिर से जो मन में था वो बोल डाला।
खैर अब जो भी हो पर ये पक्का है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की राजनीति ऐसे बयानों के बाद शायद ही भविष्य में फिर से परवान चढ़ सके, इसीलिए शायद कहा गया है कि “जिसका जबान पर संयम नहीं राजनीति उसके लिए नहीं“।
अब ये देखना रोचक रहेगा कि आसन्न लोकसभा चुनावों को देखते हुए आलाकमान त्रिवेंद्र के बयानों को कितनी गंभीरता से लेता है और उनके भविष्य पर क्या फैसला करता है।

राज्य के विकास में अपनी अग्रणी भूमिका निभाये पत्रकार-सीएम

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को चंपावत जिला पत्रकार संगठन के निर्वाचित पदाधिकारियों अध्यक्ष कमलेश भट्ट, उपाध्यक्ष भगवान राम उर्फ हयात राम, सचिव दीपक धामी एवं कोषाध्यक्ष दिनेश भट्ट के शपथ ग्रहण समारोह में प्रतिभाग किया। मुख्यमंत्री ने शपथ ग्रहण समारोह कार्यक्रम का शुभारंभ किया और सभी नवनिर्वाचित पदाधिकारियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सभी पदाधिकारी अपने दायित्वों का निर्वहन भली भांती कर जिले के विकास में अपनी सहभागिता व सहयोग करेंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कलम की ताकत हमेशा क्रांति लाई है और समाज व देश को आगे बढ़ाने का काम किया है, लोगों के अंदर राष्ट्र की भावना जागृत करने और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। हमारा संकल्प वर्ष 2025 तक उत्तराखंड को देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने का है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इसमें मीडिया अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उन्होंने जनपद के पत्रकारों के अनुरोध को स्वीकारते हुए कहा कि पत्रकारों की सुविधा के लिए चंपावत मुख्यालय में प्रेस क्लब बनाने के लिए प्रस्ताव बनाया जाएगा। साथ ही पत्रकारों की सुविधा के लिए जो भी आवश्यक कार्य होंगे किए जायेंगे।
इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति राय, नगरपालिका अध्यक्ष चंपावत विजय वर्मा, टनकपुर विपिन कुमार, लोहाघाट गोविंद वर्मा, ब्लाक प्रमुख चंपावत रेखा देवी, बाराकोट विनीता फर्त्याल, पाटी सुमंलता, ज्येष्ठ प्रमुख मोनिका बोहरा, भाजपा प्रदेश मंत्री हेमा जोशी, भाजपा जिलाध्यक्ष निर्मल महरा, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष प्रकाश तिवारी, हरगोविंद बोहरा, गोविंद सामंत एवं पत्रकारगण उपस्थित रहे।

महिला आरक्षण पर बोले सीएम राज्य की महिलाओं के सर्वागींण विकास के लिए जरुरी है आरक्षण

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। उन्होंने महिला क्षैतिज आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट से रोक मिलने का स्वागत किया है। राज्य सरकार ने एक साल के भीतर सरकारी विभागों में 19 हजार भर्तियां करने का लक्ष्य रखा है।
शुक्रवार को महिला क्षैतिज आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सीएम धामी ने त्वरित टिप्पणी की है। सीएम धामी की मंजूरी के बाद ही महिला आरक्षण को यथावत रखने के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। उसी पर सर्वाेच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर स्टे दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के प्रदेश की महिलाओं के हित में दिए गए फ़ैसले स्वागत किया। कहा कि हमारी सरकार प्रदेश की महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। राज्य सरकार ने महिला आरक्षण को यथावत् बनाए रखने के लिए अध्यादेश लाने के लिए भी पूरी तैयारी कर ली थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में भी समय से अपील करके प्रभावी पैरवी सुनिश्चित की।
सीएम धामी पहले ही साफ कर चुके हैं कि एक वर्ष के भीतर सरकार ने विभिन्न सरकारी विभागों में 19 हजार नई भर्तियों का फैसला लिया है। ताजा आदेश के बाद अब इन भर्तियों में तेजी आने की उम्मीद है। दरअसल, पहले उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग भर्ती घपला और फिर हाईकोर्ट के 30 फीसदी महिला आरक्षण पर रोक के बाद भर्ती प्रक्रिया थम गई। इससे बेरोजगार अभ्यर्थियों में आक्रोश पनप रहा था, लेकिन अब फिर भर्तियों की राह जोर पकड़ सकती हैं।

एक्ट बनाने से नहीं फंसेगा फेंच
उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में अभी महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण सिर्फ एक जीओ के आधार पर मिल रहा है। 18 जुलाई, 2001 को नित्यानंद स्वामी सरकार ने इसकी शुरूआत की थी। तब 20 फीसदी आरक्षण का प्रावधान था। तब से सरकार ने इसके लिए कोई एक्ट नहीं बनाया है, जिससे भविष्य में भी इस जीओ को चुनौती मिल सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य सरकार को यह लाभ यथावत देने के लिए अध्यादेश या फिर विधानसभा के पटल पर विधेयक लाना होगा, ताकि इसे कानूनी तरह से अमली जामा पहनाया जा सके। पिछले माह हुई बैठक में कैबिनेट मुख्यमंत्री को महिला आरक्षण को लेकर अध्यादेश लाने की मंजूरी देने को अधिकृत भी कर चुकी है।

न्याय विभाग से भी इसका परीक्षण कराया जा चुका है। चूंकि, फिलहाल सरकार को राहत मिल चुकी है तो अध्यादेश या फिर विधेयक दोनों में कोई एक विकल्प सरकार चुन सकती है। एक्ट बनने से भविष्य में राज्य में महिला आरक्षण पर पेंच नहीं फंसेगा।

एसएलपी में ये दिए थे तर्क
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसएलपी में आरक्षण यथावत रखने के लिए विभिन्न तर्क दिए थे। इसमें कहा गया था कि उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं और पर्वतीय महिलाओं की विकट जीवन शैली है। चूल्हे से लेकर खेत-खलिहान सभी उन्हीं के जिम्मे है। वहीं, सरकारी नौकरियों में महिलाओं का प्रतिनिधत्व काफी कम है। लिहाजा समाज के मुख्य धारा में महिलाओं को शामिल करने के लिए उनके लिए क्षैतिज आरक्षण जरूरी है।

कई राज्यों में है महिला आरक्षण
विभिन्न राज्यों में सभी महिलाओं को सरकारी नौकरियों में क्षैतिज आरक्षण देने का प्रावधान है। इनमें बिहार में सबसे अधिक 35 फीसदी आरक्षण है, जबकि मध्यप्रदेश और राजस्थान में 30-30 फीसदी आरक्षण है। यूपी ने भी 20 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया था, लेकिन वर्ष 2019 में इलाहाबादा हाईकोर्ट में चुनौती मिलने के बाद इस पर रोक लगी है।

कब क्या हुआ
18 जुलाई, 2001 में नौकरियों में मिला था स्थानीय महिलाओं को 20 फीसदी आरक्षण
24 जुलाई, 2006 में एनडी सरकार में इसमें बढ़ोत्तरी कर 30 फीसदी किया
10 अक्तूबर,2022 में हाईकोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगाई
24 अगस्त, 2022 को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन की दायर

वहीं, वित्त, संसदीय, शहरी विकास व आवास, पुनर्गठन व जनगणना मंत्री डा. प्रेमचंद अग्रवाल ने राज्य में 30 प्रतिशत महिला आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का स्वागत किया है। राज्य सरकार ने इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट में ठोस पैरवी की थी। उसी के परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को यथावत रखने का आदेश सुनाया है। डा. अग्रवाल ने कहा कि जहां उत्तराखंड राज्य यहां की महिलाओं के संघर्ष के बाद प्राप्त हुआ। महिलाओं के लिए यह राज्य सदैव ऋणी रहेगा। उत्तराखंड में महिलाओं को मां, बहन और बेटी के रूप में पूजा जाता है।
डा. अग्रवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस वक्त में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब पूरा उत्तराखंड अपना लोकपर्व इगास मना रहा है। आज ही के दिन ग्राम्य विकास विभाग द्वारा लखपति दीदी योजना परवान चढ़ी है। डा. अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने लखपति दीदी योजना में स्वयं सहायता समूह के माध्यम से एक वर्ष में एक लाख से अधिक की आय अर्जित करने वाली महिलाओं को लखपति दीदी के रूप में सम्मानित किया।
डा. अग्रवाल ने कहा कि राज्य सरकार महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कार्यरत है, 2025 तक सरकार ने सवा लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य निश्चित किया है।

भूमाफियाओं से सुरक्षित रहेंगी जमीनें, अब भूमिहीन नहीं हो पाएंगे उत्तराखंडी

जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर गंभीर धामी सरकार आम जनमानस से किया अपना एक और वादा पूरा करने जा रही है। धामी सरकार का यह वादा है राज्य के लिए एक मजबूत भू-कानून बनाने का। उत्तराखंड में यदि भू-कानून समिति की सिफारिशें लागू होती हैं, तो व्यवस्थाएं पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी के समय से भी अधिक सख्त हो जाएंगी। धामी सरकार का भू-कानून, खंडूड़ी सरकार के भू-कानून से मजबूत होगा। दरअसल भू-समिति ने अपनी सिफारिशों में खंडूड़ी सरकार के भू-कानून की खामियां को भी दूर करने की भी बात कही है। इससे राज्य में जमीनों की बंदरबांट पर रोक लगेगी। राज्य के लोग भूमिहीन नहीं हो पाएंगे व भूमाफिया से भी जमीनें सुरक्षित रहेंगी। राज्य के लोग भूमिहीन न हो,उनके हकहकूक सुरक्षित रहें, सिफारिशों में इसका भी इंतजाम किया गया है। ऐसे में इन सिफारिशों को लागू कर सीएम के सामने अपना नाम उत्तराखंड के इतिहास में सुनहरे अक्षरों से दर्ज कराने का मौका है। इसके जरिए न सिर्फ उनका सियासी कद बढ़ेगा, बल्कि वे राजनीतिक रूप से भी बढ़त बना सकते हैं।

जनभावनाओं के अनुरूप बनेगा नया भू-कानून-धामी
भू-कानून के अध्ययन व परीक्षण को गठित समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि सरकार शीघ्र ही समिति की रिपोर्ट का गहन अध्ययन कर व्यापक जन हित व प्रदेश हित में समिति की संस्तुतियों पर विचार करेगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि हमारी सरकार जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को लेकर गंभीर है। उत्तराखंड में जमीनों का दुरुपयोग न हो और उद्योग व निवेश प्रभावित न हों, कानून में इसके लिए व्यवस्था की जाएगी। आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखना है और प्राकृतिक संसाधनों का भी संरक्षण करना है। राज्य में उपलब्ध भूमि के संरक्षण, विकास कार्यों की आवश्यकता और जमीन खरीद के दुरुपयोग न होने देने में संतुलन स्थापित किया जाएगा।

एक ही व्यक्ति के नाम खरीदी जाएगी 250 वर्गमीटर भूमि
समिति ने 250 वर्गमीटर आवासीय भूमि खरीद की व्यवस्था बहाल रखने की संस्तुति की है, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने को कहा है। कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम बिना अनुमति अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्गमीटर भूमि आवासीय उपयोग को खरीद सकता है। समिति ने संस्तुति की है कि परिवार के सभी सदस्यों के नाम अलग-अलग भूमि खरीद पर रोक लगाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेख से लिंक किए जाएं।
राज्य में जमीनों की बंदरबांट पर रोक लगेगी। राज्य के लोग भूमिहीन नहीं हो पाएंगे। भूमाफिया से राज्य की जमीनें बच सकेंगी। इस तरह पुष्कर के सामने हिमाचल के पहले सीएम यशवंत सिंह परमार बनने का मौका रहेगा। भू-कानून समिति ने एक परिवार के सभी लोगों का आधार नंबर राजस्व खाते से लिंक कर फर्जीवाड़ा रोकने का उपाय सुझाया गया है। इसी तरह निवेश के नाम पर बड़ी-बड़ी जमीनें घेरने वालों पर भी नकेल कसने का प्रावधान किया गया है। सिफारिश की गई है कि जमीनों पर यदि उद्योग या अन्य व्यावसायिक गतिविधि होती है तो उसमें 70 प्रतिशत रोजगार, स्थानीय लोगों के लिए सुनिश्चित कराना होगा। खेती और उद्यान के नाम पर कृषि भूमि लेकर खेल करने पर भी रोक लगाने की व्यवस्था की गई है। लोगों की जमीनें बची रहें, इसके लिए भूमि को लीज पर देने का मानक प्रस्तावित किया गया है। पहाड़ों पर बढ़ते अवैध निर्माण के चलते बने धार्मिक स्थलों पर भी नकेल कसने के प्रावधान किए गए हैं।

राजस्व रिकॉर्ड से लिंक किया जाए आधार कार्ड
राज्य में नगर निगम सीमा से बाहर दूसरे प्रदेश के लोगों के लिए जमीन खरीदने के सख्त मानक हैं। कोई भी बाहरी व्यक्ति 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन नहीं खरीद सकता। इसके बाद भी एक ही परिवार के कई सदस्यों के नाम पर अलग अलग 250 वर्ग मीटर से अधिक भूमि खरीदकर खेल कर दिया जाता है। भू कानून समिति ने इस पर रोक लगाने को पूरे परिवार के आधार राजस्व रिकॉर्ड से लिंक करने का नियम बनाने पर जोर दिया है।

अवैध रूप से धार्मिक स्थल का निर्माण अब संभव नहीं
राज्य में सार्वजनिक भूमि पर कब्जा कर अवैध रूप से धार्मिक स्थल का निर्माण अब संभव नहीं हो सकेगा। साथ में धार्मिक प्रयोजन के लिए भूमि खरीदने की छूट के साथ अब शर्तें जोड़ी जाएंगी। भू-कानून के अध्ययन व परीक्षण को गठित समिति ने धार्मिक उपयोग के लिए भूमि खरीद पर निर्णय शासन स्तर से लेने की संस्तुति की है। साथ में भूमि पर निर्माण के संबंध में अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट भी शासन को भेजी जाएगी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में भूमि बंदोबस्त करने पर विशेष बल दिया है। भू-कानून को लेकर गठित समिति की संस्तुति पर अमल हुआ तो प्रदेश की पिछली एनडी तिवारी सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2005-06 में धार्मिक प्रयोजन के लिए भूमि खरीदने की अनुमति पर पाबंदी लगना तय है। तिवारी सरकार के कार्यकाल में भू-कानून में धार्मिक उपयोग के लिए भूमि खरीद की अनुमति देने को जिलाधिकारी को अधिकृत किया गया था। यह व्यवस्था वर्तमान में भी लागू है। समिति ने इसमें संशोधन करने का सुझाव दिया है।

अवैध कब्जे रोकने को होगा नया प्रविधान
साथ ही नदी-नालों, वन क्षेत्रों, चारागाहों, सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण का निर्माण या धार्मिक स्थल बनाने वालों के विरुद्ध नए भूमि कानून में कठोर दंड की व्यवस्था करने की संस्तुति समिति ने की है। दरअसल राज्य बनने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर धार्मिक उपयोग में लाने और निर्माण कार्य करने के प्रकरण बढ़े हैं। धामी सरकार इस पर सख्त रुख अपनाने के संकेत दे चुकी है। अब समिति ने भी इस संबंध में अपनी संस्तुति दी है। इसमें कहा गया है कि ऐसे अवैध कब्जों के विरुद्ध प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जाए। साथ ही ऐसे मामलों में संबंधित विभागों के अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए। इसके लिए भू-कानून में प्रविधान करने को कहा गया है।

खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं विभाग
समिति ने सरकारी विभाग की खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाने का सुझाव भी दिया है। कुछ व्यक्तियों के एक साथ भूमि खरीद कर ऐसी व्यवस्था की जाती है कि इस भूमि के बीच अन्य किसी व्यक्ति की भूमि के लिए रास्ता नहीं मिले। रोके गए रास्ते को खोलने के लिए रास्ते के अधिकार की व्यवस्था करने का सुझाव दिया गया है।

सिडकुल की भूमि उद्योगों को ही दी जाए
भूमि की खरीद-बिक्री में पारदर्शिता, भूमि हस्तांतरण एवं स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया आनलाइन करने की संस्तुति समिति ने की है। इस समस्त प्रक्रिया को एक वेबसाइट के माध्यम से पब्लिक डोमेन में डालने को कहा गया है। प्राथमिकता के आधार पर सिडकुल और औद्योगिक क्षेत्रों में खाली पड़ी भूमि या बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आवंटन औद्योगिक प्रयोजन के लिए करने को कहा गया है।

लीज पर ली जा सकेगी अन्य प्रयोजनों के लिए भूमि
पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में उद्योगों, आयुष शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान एवं विभिन्न प्रसंस्करण, पर्यटन, कृषि के लिए 12.50 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक संस्था, फर्म, कंपनी या व्यक्ति को उसके आवेदन पर सरकार दे सकती है। समिति ने यह व्यवस्था समाप्त करने कर हिमाचल की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता यानी इसेंसियलिटी सर्टिफिकेट के आधार पर देने की संस्तुति की है। समिति का कहना है कि केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त चार-पांच सितारा होटल-रिसोर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल, वोकेशनल-प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट को ही इसेंशियलिटी सर्टिफिकेट के आधार पर भूमि खरीदने की अनुमति शासन से मिलनी चाहिए। अन्य प्रयोजनों के लिए लीज पर भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था होनी चाहिए।

गैर कृषि घोषित भूमि उल्लंघन होने पर सरकार में हो सकेगी निहित
समिति ने अपनी संस्तुति में धारा-143 के साथ नई उपधारा जोड़ने की संस्तुति की है, ताकि खरीदी गई भूमि का दुरुपयोग न होने पाए। वर्तमान में गैर कृषि उपयोग को खरीदी गई भूमि को 10 दिन में एसडीएम धारा-143 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित कर खतौनी में दर्ज करेगा। क्रय अनुमति आदेश में दो वर्ष में भूमि का उपयोग निर्धारित उद्देश्य में करने की शर्त रहती है। निर्धारित अवधि में ऐसा नहीं होने या किसी अन्य उपयोग होने पर भूमि को राज्य सरकार में निहित करने की व्यवस्था है। इस आदेश में गैर कृषि घोषित करने के बाद भूमि उपयोग का उल्लंघन होने की स्थिति में राज्य सरकार में उसे निहित करने का प्रविधान नहीं है। समिति ने नई उपधारा जोड़ते हुए इस भूमि को दोबारा कृषि भूमि घोषित कर राज्य सरकार में निहित करने की व्यवस्था बनाने को कहा है।

अधिकतम तीन वर्ष में करना होगा भूमि का उपयोग
वर्तमान में भूमि खरीदने के बाद भूमि का उपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि निर्धारित है। राज्य सरकार को विवेक के अनुसार इसे बढ़ाने का अधिकार दिया गया है। समिति ने इसमें संशोधन कर विशेष परिस्थिति में यह अवधि अधिकतम एक वर्ष बढ़ाने यानी तीन वर्ष करने की संस्तुति की है। समिति ने कहा कि विभिन्न प्रयोजनों के लिए जो भूमि खरीदी जाएगी, उसमें समूह-ग और समूह-घ श्रेणियों में स्थानीय व्यक्तियों को 70 प्रतिशत रोजगार आरक्षण रोजगार देने और इसकी सूचना अनिवार्य रूप से शासन को उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो।

इसेंसियलिटी सर्टिफिकेट के आधार पर भूमि खरीद की अनुमति
राज्य में अब 12.50 एकड़ से अधिक भूमि खरीद की अनुमति केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त चार-पांच सितारा होटल-रिसोर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल, व्यावसायिक व रोजगारपरक शिक्षण संस्थाओं को होगी। उत्तराखंड में भूमि खरीद की यह अनुमति हिमाचल की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता आकलित कर जारी किए जाने वाले इसेंसियलिटी सर्टिफिकेट के आधार पर मिलेगी। जमीन खरीदने की अनुमति जिलाधिकारी से नहीं मिलेगी। यह अधिकार शासन के पास होगा। भूमि खरीद का दुरुपयोग और अनाप-शनाप बिक्री पर रोक लगाई जाएगी।

कृषि, उद्यान व एमएसएमइ के लिए डीएम को नहीं होगा अधिकार
प्रदेश में वर्तमान में जिलाधिकारी कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन के लिए कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देते हैं। समिति ने पाया कि कई प्रकरणों में ऐसी अनुमति का दुरुपयोग हुआ। कृषि व औद्यानिक उपयोग के स्थान पर रिसोर्ट या निजी बंगले बनाए गए। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में व्यक्ति भूमिहीन हो रहे हैं और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है। समिति ने संस्तुति की है कि ऐसी अनुमति जिलाधिकारी के स्तर से न दी जाए।

वर्तमान भू-कानून के अध्ययन व परीक्षण को पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में गठित समिति ने अपनी बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट सोमवार को मुख्यमत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप दी। समिति ने भूमि खरीद के उद्देश्य के दुरुपयोग को रोकने के लिए जिला, मंडल व शासन स्तर पर टास्क फोर्स गठित करने की संस्तुति की है। टास्क फोर्स के माध्यम से भूमि को सरकार में निहित किया जाएगा। प्रदेश में वर्तमान भू-कानून का तीव्र विरोध होने पर जुलाई, 2021 में इस समिति का गठन किया गया था। सालभर बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी।

परिसम्पत्ति विवाद में दिखा, धामी के नेतृत्व में सुरक्षित है उत्तराखंड का भविष्य

उत्तराखंड के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वो कर दिखाया, जो उत्तराखंड के दिग्गज सीएम भी 21 सालों में नहीं कर पाए, इसकी मुख्य वजह युवा मुख्यमंत्री की युवा सोच और सरलता से मसले सुलझाने वाली वो बुद्धिमता है, जो किसी को भी अपना कायल बना सकती है।
उत्तर प्रदेश के अलग होने के बाद उत्तराखंड को 21 सालों तक अपने हक के लिए इंतजार करना पड़ा। यह कार्य राज्य के गठन के तुरंत बाद हो जाना चाहिए था, लेकिन दोनों राज्यों के नेताओं और नौकरशाहों के बीच कई बार की बैठकों के बाद भी इस मामले में सहमति नहीं बन सकी। उस वक्त भी नहीं, जब दोनों राज्यों की सत्ता की बागडोर बीजेपी के हाथों में थी। ऐसे दौर कई बार आये, लेकिन मसला सुलझ नहीं सका। हालांकि इससे पहले ही ये विवाद आपसी सुलह-समझौते की संभावनाओं को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था। दोनों राज्यों के बीच विवाद बढ़ने पर करीब एक दशक पहले सुप्रीम कोर्ट को दखल देकर यथास्थिति कायम रखने के आदेश देने पड़े थे।

राजनैतिक नहीं बल्कि पारिवारिक समझौते से हल हुआ परिसंपत्ति विवाद
समय बीतता गया और साल दर साल मुख्य सचिव से लेकर मुख्यमंत्री स्तर तक बैठकों के दौर चलता रहा। इस सब क़वायदों के बाद नतीजा वही ढाक के तीन पात। वक्त गुजरने के साथ-साथ यूपी से अपने अधिकार वाली सम्पत्तियों को हासिल करने की उम्मीद कमजोर पड़ती जा रही थी। योगी सरकार के कार्यकाल में भी शीर्ष स्तर पर बैठकें हुईं, लेकिन कामयाबी सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री धामी ने हासिल की।
मुख्यमंत्री धामी ने परिसम्पत्तियों विवाद की पहली बैठक में ही कह डाला कि “यूपी और उत्तराखंड बड़े भाई छोटे भाई की तरह हैं, और आज ही और विवाद का हल निकाल दिया जाए” धामी की सूझबूझ और सटीक तर्कों से योगी आदित्यनाथ संतुष्ट नज़र आए और “ऑन दा स्पॉट” फ़ैसला हो गया। धामी की ये विशेषता उनकी सरलता और मिठास के साथ मिलकर एक ऐसे सफर का आगाज करती हैं जो आम आदमी के ख्वाबों से जुड़ा है।
ये पूरा घटनाक्रम सब उस दौर में हुआ है, जब उत्तराखंड का आवाम यूपी के साथ सम्पत्तियों का न्यायसंगत बंटवारा होने की राह देखते देखते निराश होने लगा था। ऐसे दौर में सीएम सिंह धामी की यह ऐतिहासिक कामयाबी लोगों के दिलों में यह विश्वास पैदा करने वाली है कि उत्तराखंड अब ऐसे हाथों में है, जो राज्य के हितों की रक्षा करना जानते हैं।

चारधाम यात्रा, 42 हजार तीर्थ यात्रियों ने किया रजिस्ट्रेशन

उत्तराखंड में चार धाम शुरु हो गई है। यात्रा प्रारम्भ होने से प्रदेश में चार धाम से जुड़े व्यवसायों की उम्मीद बढ़ गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विशेष प्रयासों से चार धाम यात्रा शुरू होने से कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद बंद पड़े कारोबार को संजीवनी मिलेगी। चार धामों में अब तक लगभग साढ़े पांच हजार लोग दर्शन कर चुके हैं जबकि अब तक 42 हजार से अधिक लोगों को ई-पास जारी किये जा चुके हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की संवेदनशीलता का ही परिणाम है कि कोविड संक्रमण के चलते आर्थिक मंदी से जूझ रहे चारधाम यात्रा और पर्यटन से जुड़े कारोबारियों के लिए राज्य सरकार ने 200 करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज जारी कर संजीवनी देने का काम किया। जिसकी बदौलत चारों धाम के होटल, रेस्टोरेंट, टैक्सी संचालक आदि के साथ ही पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए एकमुश्त सहायता राशि सरकार द्वारा उपलब्ध करायी गई है। पर्यटन विभाग की ओर से अब तक लगभग 15 हजार लोगों को 7 करोड़ की धनराशि वितरित की जा चुकी है। यह धनराशि लाभार्थियों के खाते में सीधे जमा कराये जा रही है। मुख्यमंत्री इस बात का साफ संकेत दे चुके हैं कि यात्रा से जुड़े व्यवसाइयों, तीर्थ पुरोहितों की परेशानियों को दूर करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। जिसका असर धरातल पर दिखने लगा है।

तीर्थ पुरोहितों का आंदोलन हुआ स्थगित
मुख्यमंत्री ने देवस्थानम बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहितों के मन में उठ रहे संशय को दूर करते हुए यह स्पष्ट किया कि चारधाम से जुड़े लोगों के हक-हकूक को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं होने दिया जायेगा। देवस्थानम बोर्ड के तहत बनाई गई उच्च स्तरीय समिति द्वारा चारधाम से जुड़े तीर्थ पुरोहित की बात सुनकर सरकार के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। कमेटी में चारों धामों से दो-दो तीर्थ पुरोहितों को भी शामिल किया जायेगा। मुख्यमंत्री की कार्यपद्धति से प्रभावित होकर तीर्थ पुरोहितों ने अपना आंदोलन स्थगित कर दिया।