लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करें और पहाड़ी वाद्य यंत्रों की ध्वनि को करें स्वीकार

आज के वक्त में जहां आधुनिक वाद्य यंत्रों ने अपने पैर पसार लिए है, वहीं उत्तराखंड में आज भी अपनी संस्कृति को संजोए रखने के प्रयास जारी हैं। विलुप्ति की दहलीज पर इन पहाड़ी वाद्य यंत्रों की ध्वनि को जो कोई भी सुनता है, मंत्रमुग्ध ही हो जाता है और इसे संचालित करने वाले लोक कलाकारों की प्रशंसा किए नहीं थकता। यह मनोरमणीय आनंद आप भी लें सकते है। इसके लिए ऋषिकेश में सात दिवसीय कार्यशाला आयोजित हो रही है, रविवार को कार्यशाला का दूसरा दिन है। यहां हर तरह के पहाड़ी वाद्य यंत्रों को न सिर्फ देखने का मौका आप को मिल सकता है, बल्कि इससे निकलने वाले हर सुर का आप आनंद ले सकते है, तो देर न करें। इस कार्यशाला में लोक वाद्य में बजाए जाने वाली तालों और चालो का आपसी सामंजस्य की चरणबद्ध तरीके से प्रस्तुति के लिए कलाकारों को समयबद्व होकर अपने प्रस्तुतीकरण का अभ्यास कराया जाएगा।


इससे पूर्व नगर निगम ऋषिकेश और नमामि गंगे प्रकोष्ठ उमंग हेमवतीनन्दन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्री नगर गढ़वाल के संयुक्त तत्वावधान उत्तराखण्डी लोक वाद्यों पर केन्द्रित कार्यशाला हिमालयी निनाद का शुभारंभ मेयर अनिता ममगाईं ने किया। कहा कि उत्तराखंड की लुप्त हो रही वादन कला की संस्कृति को जागृत करने के लिए यह अनोखा प्रयास किया जा रहा है, वह सराहनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय भी है। लोककला के संरक्षण के लिए किया जा रहा यह प्रयास कलाकारों का मनोबल बढ़ाने में सहयोग करेगा।

कार्यशाला के उपरांत कार्यक्रम की प्रस्तुति के लिए वृहद कार्यक्रम नगर की हद्वय स्थली त्रिवेणी घाट में आयोजित किया जायेगा। विभिन्न पर्व, मेलों व संस्कारों में गाए जाने वाले लोक गीतों को बेहद खास बनाने में पहाड़ के वाद्य यंत्रों का विशेष स्थान है। एक दौर में परंपरागत वाद्य यंत्रों का वादन बहुतायत से होता था, लेकिन आधुनिकता की चकाचैंध से यहां के परंपरागत वाद्य यंत्रों की धुनें अब कभी कभार ही सुनाई देती हैं।

कार्यक्रम के संयोजक गणेश खुगशाल गणी ने बताया कि वोकल फोर लोकल के लिए नगर निगम ने पर्वतीय अंचल की लोक संस्कृति के प्रतीक यहाँ के लोक वाद्यों की कर्णप्रिय धुनों को संजोने के लिए नायाब पहल की है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के संरक्षण में इन वाद्य यंत्रों का संव‌र्द्धन बेहतर ढंग से हो सकता है इसके लिए कोशिश की जानी चाहिए। कार्यशाला के माध्यम से जो कलावंत पारंगत होंगे वे इस धरोहर को आगे बढ़ाने के लिए इसमें रूचि रखने वाले युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए कार्य करेंगे यही इस अभिनव कार्यशाला आयोजन का मुख्य उद्देश्य है।गणी ने बताया कि कार्यशाला पूर्ण होने पर गंगा घाट पर कार्यक्रम आयोजित कर एक प्रस्तुतिकरण किया जाएगा जिसमें तमाम कलाकार उत्तराखंडी वेशभूषा में अपनी प्रस्तुति देंगे।

कलाकारों के बारे में जानकारी देते हुए गणी ने बताया कि कार्यशाला में ढोली गजेंदर लाल ढांढरी पौड़ी से दमौ वादक परअजय चंद्रबदनी टिहरी से मशकवीन वादक विनोद चन्द्रबदनी से नगाडा वादक गोविंद लाल भरतपुर रामनगर से, रौंटी वादक सुरेंद्र प्रकाश जखल अल्मोड़ा से, रणसिंहा वादक अनिलबर्मा और मुन्ना दास चकराता से डौंर वादक पवन चैहान चैंदकोट नौंगांवखाल से, थाली वादक सौरभ नेगी धरासू मवालस्यूं, हुड़का वादक सुरेन्द्र बैसवाल सिल्ला भटवेड़ी देहरादून से बांसुरी वादक कैलाश ध्यानी गिंवाली लैंसडौन तथा कार्यशाला निर्देशक मोछंग वादक रामचरण जुयाल इस कार्यशाला में पौड़ी से आकर प्रतिभाग कर रहे हैं।

डॉ सर्वेश उनियाल (उमंग प्रकोष्ठ हेमवतीनन्दन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्व विद्यालय)ने उद्घाटन समारोह की मुख्य अतिथि मेयर अनिता ममगांई को स्मृति चिह्न भेंट कर उनका अभिनन्दन किया। कार्यक्रम में राज्य परियोजना प्रबंधन ग्रुप नमामि गंगे उत्तराखण्ड के संदीप उनियाल, नमामि गंगे की सह संयोजक नेहा नेगी आदि ने भी शिरकत की।

मेयर अनिता ममगाई ने किया वाद्य यंत्रों की कार्यशाला का शुभारंभ

उत्तराखण्डी संस्कृति के पारम्परिक वाध्य यंत्रों की कार्यशाला का मेयर अनिता ममगाई ने शुभारंभ किया। कार्यशाला में युवाओं को पारंपरिक लोक वाद्य यंत्रों का प्रशिक्षण दिया जायेगा। साथ ही लोक वाद्य यंत्र, उसके महत्व, उपयोगिता, वैज्ञानिक व आध्यात्मिक तथ्यों की जानकारी दी जाएगी।

आज पर्वतीय अंचल की लोक संस्कृति के प्रतीक ढोल, दमाऊं व हुड़के की कर्णप्रिय धुनों को संजोने के लिए केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय, उमंग संस्था के प्रयास और नमामि गंगे के सहयोग से जीएमवीएन सभागार में सात दिवसीय कार्यशाला विधिवत रूप से शुरू हो गई। इस मौके पर मेयर अनिता ममगाईं ने कहा कि उत्तराखंड के संगीत में प्रकृति का वास है। यहां के गीत, संगीत की जड़ें प्रकृति से जुड़ीं हैं। समय के साथ यहां के गीत संगीत धूमिल होने लगे हैं, पुराने लोक वाद्य यंत्रों की जगह नए वाद्य यंत्रों ने ले ली है। इसके चलते युवा पीढ़ी अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों से दूर होती जा रही है। मेयर अनिता ने कहा कि उत्तराखंड के लोक वाद्य यंत्रों का महत्व जितना आध्यात्मिक है, उससे ज्यादा इनमें वैज्ञानिकता भरी हुई है, लेकिन वर्तमान में अनेक लोक वाद्य यंत्र विलुप्ति के कगार पर हैं। जिन्हें सामूहिक प्रयास से संजोया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि लोक वाद्यों में आंचलिक संस्कृति की छाप होती है। इन वाद्य यंत्रों का संस्कृति विशेष के जन जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने प्रशिक्षकों से विभिन्न वाध्य यंत्रों की विस्तृत जानकारी भी ली। इस दौरान गणेश कुकशाल, रामचरण जुयाल, डॉ सर्वेश उनियाल एवं वाह्य यन्त्र कलाकार, पार्षद विजय बडोनी, विजेंद्र मोगा, पवन शर्मा, यसवंत रावत, नेहा नेगी, प्रकांत कुमार, अक्षत खेरवाल, राजू शर्मा, रेखा सजवाण, मोजूद रहे।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राजेश्वर उनियाल की उत्तराखंडी कृति मेरु उत्तराखंड महान काव्यकृति का हुआ विमोचन

विश्व मातृभाषा दिवस के अवसर पर आवाज साहित्यिक संस्था ऋषिकेश के पेज पर मुंबई से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राजेश्वर उनियाल द्वारा रचित कृति मेरु उत्तराखंड महान का ऑनलाइन विमोचन किया गया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार लेखक प्रो. राधा बल्लभ डोभाल, विशिष्ट अतिथि डॉ प्रभा पंत, वरिष्ठ साहित्यकार भीष्म कुकरेती, कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ नंदकिशोर धौड़ियाल, वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर राजेश्वर उनियाल के द्वारा संयुक्त रुप से दीप प्रज्वलन के माध्यम से किया गया।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राधावल्लभ डोभाल ने कहा कि उत्तराखंड देवभूमि है जहां देवता निवास करते है साहित्य के सृजन में इस भूमि का महत्वपूर्ण योगदान है रामायण काल के बाल्मीकि , महाभारत काल के वेदव्यास, कालिदास जैसे महान साहित्यकारों ने अपने ग्रंथों का लेखन किया है। अनादिकाल से लेकर आज तक का बेहतरीन वर्णन डॉ राजेश्वर उनियाल की पुस्तक मेरू उत्तराखंड महान कि कृति में संकलित है।

विशेष अतिथि डॉ प्रभा पंत ने डॉ राजेश्वर उनियाल को एक महान साहित्यकार बताते हुए कहा कि इनका लेखन सदैव भावनाओं से जुड़ा हुआ रहा है हिंदी के साथ-साथ अपनी मातृभाषा में भी इनकी बेहतरीन पकड़ मानी जाती है।

वरिष्ठ गढ़वाली साहित्यकार भीष्म कुकरेती ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि उक्त पुस्तक मेरु उत्तराखंड महान में डॉक्टर राजेश्वर होने वालों ने संपूर्ण उत्तराखंड का बेहतरीन और लाजवाब वर्णन किया है यह पुस्तक निश्चित रूप से आने वाले समय में उत्तराखंड के प्रवासियों के लिए वरदान सिद्ध होगी

कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ नंदकिशोर ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य जीवन का सबसे बड़ा मित्र होता है युवा काल से लेकर के और अंतिम समय तक एक बेहतरीन मित्र के रूप में साहित्य सहायक होता है डॉक्टर राजेश्वर उनियाल की प्रशंसा करते हुए नंदकिशोर ने कहा कि इनके द्वारा लिखित पुस्तक निश्चित रूप से उत्तराखंड के लोगों के लिए एक वरदान के रूप में साबित होगी पुस्तक की बेहतरीन प्रशंसा करते हुए डॉ नंद किशोर ने कहा कि साहित्यकारों को अपनी आने वाली विरासत के लिए कुछ ना कुछ इस प्रकार के संदेश लिखित रूप से साहित्य के माध्यम से छोड़े जाने चाहिए जो आने वाले समय को प्रेरणा दे सके।

इस अवसर पर उत्तराखंडी लोक गायिका एवं शिक्षिका ज्योति उप्रेती सती के द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई तथा साथ ही डॉक्टर राजेश्वर उनियाल की पुस्तिका में रचित उत्तराखंडी गीत को प्रस्तुत किया गया।

पुस्तक के लेखक डॉक्टर राजेश्वर होने वालों ने संपूर्ण अतिथियों एवं दर्शकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह एक छोटा प्रयास है कि जो प्रवासी उत्तराखंड की पावन धरती से अन्य राज्यों या प्रदेशों में चले गए हैं उनके लिए यह पुस्तक निश्चित रूप से एक वरदान के रूप में साबित होगी यह उनका प्रयास था इस पुस्तक मै संपूर्ण उत्तराखंड की देवभूमि की स्तुति को जोड़कर लिखा गया है।

कार्यक्रम के संचालक आवाज साहित्यिक संस्था ऋषिकेश के संयोजक डॉ सुनील दत्त थपलियाल ने कहा कि आवाज संस्था को यह सबसे बड़ा सौभाग्य मिला है कि ऐसे महान विभूति डॉ राजेश्वर उनियाल की पुस्तक का विमोचन का अवसर इस पेज को प्राप्त हुआ है आवाज साहित्यिक संस्था लगातार 11 महीने से कोरोना संकट के समय से ऑनलाइन साहित्य संस्कृति और संवाद की धाराओं को ऋषिकेश के पावन तीर्थ से संपूर्ण भारतवर्ष के साहित्यकारों उत्तराखंड देव भूमि के संस्कृति संवाहक एवं संवाद के भगीरथ को जोड़ने का कार्य कर रही है, कुंभ का पावन पवित्र पर्व चल रहा है इसलिए भी आवाज साहित्यिक संस्था का प्रयास है कि साहित्य के अनुष्ठान का यह कुंभ भी निश्चित रूप से ऋषिकेश की पावन नगरी से साहित्य का संदेश दे।

इस विमोचन के अवसर पर प्रो. राधाबल्लभ डोभाल अध्यक्ष, उत्तराखंड विचार मंच, मुंबई अध्यक्षता डा. नंदकिशोर ढौंडियाल, अरुण, पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी एवं अध्यक्ष, साहित्यांचल कोटद्वार, डा. प्रभा पंत, विभागाध्यक्ष हिंदी, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हल्द्वानी, समारोह की विशेष अतिथि तथा भीष्म कुकरेती, गढ़वाली साहित्यकार, मुंबई पुस्तक की प्रस्तावना पर अपना विशेष वक्तव्य दे। यह भी अत्यधिक प्रसन्नता की बात है कि पुस्तक का शीर्ष गीत जय जय उत्तराखंड महान, को अपने कोकिला कंठ से गाकर तथा अपने फेसबुक पेज पर सजाने वाली उत्तराखंड की सुप्रसिद्ध लोक-गायिका ज्योति उप्रेती सती मां सरस्वती की वंदना कार्यक्रम का श्रीगणेश के रूप में तथा डॉ सुनील दत्त थपलियाल, अनूप रावत रावत डिजिटल पबलिकेशन आदि उपस्थित थे।

गणतंत्र दिवस पर तीसरे स्थान के लिए पुरस्कृत उत्तराखण्ड की झांकी म्यूजियम में संरक्षित

इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर तीसरे स्थान के लिए पुरस्कृत की गई उत्तराखण्ड की झांकी को गढ़ी कैंट स्थित संस्कृति विभाग के म्यूजियम-आडिटॉरियम में रखा गया है। राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड द्वारा अनेक बार प्रतिभाग किया गया परंतु यह पहला अवसर है जब उत्तराखण्ड की झांकी को पुरस्कुत किया गया।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इसे राज्य के लिए गौरव की बात बताते हुए झांकी को संस्कृति विभाग के म्यूजियम में संरक्षित किए जाने के निर्देश दिए थे। सचिव पर्यटन, संस्कृति व सूचना श्री दिलीप जावलकर ने गढ़ी कैंट में बन रहे संस्कृति विभाग के म्यूजियमध् आडिटॉरियम का निरीक्षण कर झांकी को रखे जाने के लिए स्थान निर्धारित किया। उन्होंने अधिकारियों को उक्त झांकी के उचित रखरखाव के निर्देश दिए।

राजपथ, नई दिल्ली गणतंत्र दिवस समारोह में सूचना विभाग द्वारा उत्तराखण्ड राज्य की ओर से “केदारखंड” की झांकी को प्रदर्शित किया गया था। इसे लोगों द्वारा काफी सराहा गया था। झांकी के अग्रभाग में उत्तराखण्ड का राज्य पशु ‘कस्तूरी मृग‘ दर्शाया गया है जो कि उत्तराखण्ड के वनाच्छादित हिम शिखरों में 3600 से 4400 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इसी प्रकार से उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी ‘मोनाल’ एवं राज्य पुष्प ‘ब्रह्मकमल’ दिखाया गया है जो केदारखण्ड के साथ-साथ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। झांकी के मध्य भाग में भगवान शिव के वाहन नंदी को दर्शाया गया है तथा साथ में केदारनाथ धाम में यात्रियों को यात्रा करते हुए तथा श्रद्वालु को भक्ति में लीन दर्शाया गया है। झांकी के पृष्ठ भाग में बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक बाबा केदार का भव्य मंदिर दर्शाया गया है जिसका जीर्णोद्धार आदिगुरू शंकराचार्य ने कराया था तथा मंदिर परिसर में श्रद्वालुओं को दर्शाया गया है साथ ही मंदिर को ठीक पीछे विशालकाय दिव्य शिला को दर्शाया गया है।

दिल्ली से झांकी को एक स्पेशल ट्रोला में तीन दिन में देहरादून लाया गया। गौरतलब है कि गढ़ी कैंट, देहरादून में संस्कृति विभाग का म्यूजियम-ऑडिटॉरियम निर्माणाधीन है। इसके बनने के बाद “केदारखंड” की झांकी, आम लोगो के लिए उपलब्ध रहेगी।

सीएम त्रिवेंद्र ने केदारखंड झांकी के कलाकारों को सम्मानित किया

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ, दिल्ली में उत्तराखण्ड की झांकी में प्रतिभाग करने वाले कलाकारों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। राजपथ पर उत्तराखण्ड राज्य की ओर से ‘‘केदारखण्ड’’ की झांकी प्रस्तुत की गई। उत्तराखण्ड की झांकी को देश में तीसरे स्थान के लिए पुरस्कृत किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि झांकी के सभी 12 कलाकारों को 25-25 हजार रूपये पारितोषिक दिये जायेंगे।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने उत्तराखण्ड की झांकी को देश में तीसरा स्थान प्राप्त होने पर सभी कलाकारों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखण्ड की झांकी को तीसरा स्थान मिला यह राज्य के लिए गर्व की बात है। राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड की झांकी को पहली बार शीर्ष तीन झांकियों में स्थान मिला। उत्तराखण्ड की थीम झांकी में स्पष्ट दिख रही थी। उन्होंने झांकी बनाने वाले कलाकारों को भी इसके लिए बधाई दी।

सचिव सूचना दिलीप जावलकर ने कहा कि उत्तराखण्ड की झांकी ‘‘केदारखण्ड’’ में टीम लीड-उप निदेशक सूचना केएस चैहान के नेतृत्व में 12 कलाकारों ने प्रतिभाग किया। झांकी का थीम सांग ‘‘जय जय केदारा’’ था। कलाकारों ने राज्य का गौरव बढ़ाया है।

टीम लीडर-उप निदेशक सूचना केएस चैहान ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद 12 बार उत्तराखण्ड की झांकी गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ में प्रदर्शित की गई। पिछले चार सालों से प्रतिवर्ष उत्तराखण्ड की झांकी प्रदर्शित की गई।

मुख्यमंत्री ने जिन कलाकारों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया उनमें उप निदेशक सूचना केएस चैहान, मोहन चन्द्र पाण्डेय, विशाल कुमार, दीपक सिंह, देवेश पंत, वरूण कुमार, रेनु, नीरू बोरा, दिव्या, नीलम, अंकिता नेगी शामिल हैं।

संगम कला ग्रुप ने डा. धीरेंद्र रांगड़ को बनाया रिजनल को-ऑर्डिनेटर

संगम कला ग्रुप के ग्लोबल अध्यक्ष वीएसके सूद ने डॉ. धीरेंद्र रांगड़ के अनुभव व कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें ऋषिकेश क्षेत्र से संगम कला ग्रुप का रिजनल को-ऑर्डिनेटरश् नियुक्ति किया।

देहरादून रोड स्थित एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में अध्यक्ष सूद ने दायित्व पत्र कर साथ सुरतरंग बुक सौपते हुए डॉ. रांगड़ से निष्ठा व ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों के निर्वाहन की आशा की।

उन्होंने बताया कि 42 वर्षों से कला-संगीत के क्षेत्र में कार्य कर रहे ग्रुप की सम्पूर्ण भारतवर्ष में 90 शाखाये हैं। सोनू निगम, सुनिधि चैहान, श्रेया घोषाल आदि ने विभिन्न वर्षों में संगम कला ग्रुप के मंच पर प्रतिभाग कर अपने कैरियर की शुरुआत की।

दिग्गज फिल्म निर्माता यश चोपड़ा ने ऑस्ट्रेलिया के एक कार्यक्रम में कहा था ग्रुप ने बहुत सी प्रतिभाओं को खोजा जो आज बड़े मुकाम पर है। उदित नारायण, महेन्द्र कपूर, ए.आर.रहमान, हंसराज हंस, कुमार सनु,पंकज उदास, अनूप जलोटा, गुलाम अली आदि कलाकारों को संगम कला ग्रुप द्वारा अवार्ड फंक्शनों में सम्मानित जा चुका है।

इस अवसर पर नीना सूद, देहरादून के को-ऑर्डिनेटर जगदीश बाबल, मसूरी के को-ऑर्डिनेटर रूपचंद गुरुजी, उत्तम घोष, मनीता घोष आदि उपस्थित थे।

युवाओं को तिरंगे से मिलेगी देशभक्ति की प्रेरणा-सुबोध उनियाल

नगर पालिका मुनिकीरेती की ओर से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर 100 फीट ऊंचा तिरंगा फहराकर देशभक्ति का परिचय दिया गया।
ढालवाला स्थित सुमन पार्क में कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने बतौर मुख्य अतिथि के रुप में तिरंगा फहराया। इसके साथ ही कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने नटराज चैक से भद्रकाली मंदिर तक के सड़क का नाम स्व. इंद्रमणि बडोनी के नाम का भी उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि आज पूरा भारत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मना रहा है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत के एक अनमोल रत्न थे, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती वास्तव में एक ‘पराक्रम दिवस’ है। नेताजी में कुशाग्र बुद्धि के साथ संगठन की भी अद्भुत क्षमता थी। उनके विचार आज भी जनमानस में देशभक्ति का जज्बा और जोश पैदा करते हैं। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के हृदय में अपनी मातृभूमि के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम था। उनके इन शब्दों में उस प्रेम के साक्षात दर्शन होते है।

हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। भारत और भारतीय सदैव उनके प्रयत्नों के लिये आभारी रहेंगे। उन्होंने कहा कि आईये आज उनकी जयंती पर संकल्प लेते हैं कि उन्होंने जो राष्ट्रीयता की मशाल जलायी है उसे हमेशा अपने दिलों में प्रज्वलित रखेंगे। इस मौके पर उन्होंने क्रेजी पर्यटन एवं विकास मेले के तहत आयोजित की गई भाषण शतरंज मेहंदी पतंग आदि प्रतियोगिताओं के विजेताओं को भी स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

कृषि मंत्री नगर पालिका परिषद की प्रशंसा करते हुए कहा कि तिरंगा हमारे देश की शान है। युवाओं को देश भक्ति की ओर प्रेरति करने के लिए पालिका प्रशासन का प्रयास सराहनीय है। उन्होंने नौजवानों से नेजाती के आदर्शों पर चलने का भी आह्वान किया।
इस अवसर पर नगर पालिका अध्यक्ष रोशन रतूड़ी, अधिशासी अधिकारी बद्री प्रसाद भट्ट, सभासद मनोज बिष्ट, बबीता रमोला, बंदना थलवाल, विनोद सकलानी, गजेंद्र सजवान, सुभाष चैहान, धर्म सिंह, शोभिता भंडारी, विनोद सकलानी, क्रेजी पर्यटन एवं विकास मेले के अध्यक्ष मनीष डिमरी, प्रधानाचार्य मेजर गोविंद सिंह रावत, सुनील थपलियाल, राकेश भट्ट सतीश चमोली ब्लॉक प्रमुख राजेंद्र भंडारी आदि मौजूद थे।

सीएम ने किया पुरकुल गांव में राज्य स्तरीय सैन्य धाम का शिलान्यास

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पुरकुल गांव में भारतीय सेना के जज्बे, शौर्य और बलिदान के प्रतीक राज्य स्तरीय सैन्य धाम का शिलान्यास किया। इस अवसर पर उन्होंने घोषणा की कि विभिन्न युद्धों व सीमान्त झडपों तथा आन्तरिक सुरक्षा में शहीद हुये सैनिकों व अर्द्ध सैनिक बलों की विधवाओं, आश्रितों को एकमुश्त 10 लाख रूपये के अनुदान को बढ़ाकर 15 लाख रूपये किया जायेगा। इस अवसर पर उन्होंने उपनल के मुख्यालय का शिलान्यास भी किया। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर मुख्यमंत्री ने उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस को ‘‘पराक्रम दिवस’’ के रूप में मनाये जाने पर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड के पंचम धाम के रूप में आज सैन्यधाम का शिलान्यास किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब सैन्यधाम को पंचम धाम की संज्ञा दी गई उसके बाद इस दिशा में तेजी से प्रयास किये गये। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि यह सैन्यधाम जीवंत और जागृत हो। यहां कोई भी आये तो उसको इसकी वास्तविकता की पूर्ण अनुभूति हो। जो लोग यहां आयेंगे इस सैन्यधाम की मिट्टी पर पैर रखें तो उन्हें इससे प्रेरणा मिलनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं चाहता हूं कि भविष्य में उत्तराखण्ड में सरकार का शपथ ग्रहण इस शहीद स्थल (सैन्यधाम) में हो। प्रदेश की राजधानी में अन्य देशों एवं अन्य राज्यों से कोई देहरादून आते हैं तो सैन्यधाम में जरूर आयें। उन्होंने कहा कि राज्य के शहीदों के गांवों की मिट्टी और शिला इस सैन्यधाम में आनी चाहिए। राज्य की प्रमुख नदियों एवं प्रमुख धार्मिक स्थलों की मिट्टी सैन्यधाम में आये। गढ़वाल राइफल, कुमायूं रेजीमेंट और गोरखा रेजीमेंट में दुश्मनों के दांत खट्टे करने की ताकत एवं पहचान हैं। हमारे सैनिकों की प्रेरणा देशवासियों को प्रेरित करती रहे यह परिकल्पना सैन्यधाम के पीछे है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड देवभूमि और वीरभूमि है। जब भी देश को जरूरत पड़ी हमारे जवानों ने देश की सेवा के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर दिया और पूरी बहादुरी का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि हमारे शहीद सैनिकों के घरों में यदि उनकी कोई निशानी हो तो उनके संरक्षण के लिए सैन्यधाम में एक संग्रहालय बनाया जायेगा। लोगों को प्रेरित करने वाली अनेक स्मृतियां यहां पर होनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि जो लोग सेना में जाना चाहते हैं, उनके लिए यहां पर प्रशिक्षण की व्यवस्था की जायेगी। यहां पर एडवेंचर एवं उससे संबंधित गतिविधियां कर सकते हैं। देहरादून में इस भव्य सैन्यधाम को बनाने के लिए सुझाव भी आमंत्रित किये जायेंगे। विशेषज्ञ समिति इन सभी सुझावों को देखेगी, जो सुझाव सही लगेंगे। अपर मुख्य सचिव सैनिक कल्याण को सभी लोग अपने सुझाव भेज सकते हैं।
विधायक गणेज जोशी ने कहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में राज्य सरकार ने सैनिकों के हित में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये हैं। सैनिकों और पूर्व सैनिकों की समस्याओं के समाधान के लिए शासन स्तर अपर मुख्य सचिव और जिला स्तर अपर जिलाधिकारी को नोडल अधिकारी तैनात किया है। सैनिकों एवं पूर्व सैनिकों की समस्याओं के त्वरित समाधान के लिये सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिये गये हैं। राज्य सरकार द्वारा शहीद सैनिकों व अर्ध सैनिकों के एक परिजन को योग्यता के अनुसार सरकारी नौकरी में समायोजित करने की व्यवस्था की है। सचिवालय में प्रवेश के लिए सैनिकों और पूर्व सैनिकों को अलग से प्रवेश पत्र बनवाने की आवश्यकता नहीं है। वे अपने आईकार्ड से ही सचिवालय में प्रवेश कर सकते हैं। वीरता पदक प्राप्तकर्ता सैनिकों एवं उनकी विधवाओं को दी जाने वाली वार्षिकी राशि 30 वर्ष के स्थान पर अब आजीवन दिये जाने की व्यवस्था की गई है। पूर्व सैनिकों को राज्य सरकार की सेवाओं में समूह ‘ग’ की रिक्तियों में 5 प्रतिशत का क्षैतिज आरक्षण अनुमन्य किया गया हैं।

25 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करेंगे अनुराग रमोला

दून के अनुराग रमोला प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2021 के लिए चुने गए हैं। महिलाएं बाल विकास मंत्रालय ने उनका चयन किया है। उत्तराखंड से वह इकलौता छात्र है। जिन्हें इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है। 25 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे संवाद करेंगे।

दून निवासी अनुराग रमोला के पिता सीएस रमोला नगर निगम में कार्यरत हैं। इस अवार्ड के लिए केंद्रीय विद्यालय ओएनजीसी में 16 वर्षीय 10वीं के छात्र अनुराग का चयन कला एवं संस्कृति की श्रेणी में किया गया है। मंत्रालय की संयुक्त सचिव आस्था सक्सेना खटवानी ने राज्य की सचिव महिला एवं बाल विकास सौजन्य को पत्र लिखकर अनुराग के चयन की सूचना दी है। उन्होंने लिखा है कि अवार्ड विजेताओं के साथ 25 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी वीडियो कॉलिंग से बात करेंगे।

अनूठी लोक कला व संस्कृति के लिए दुनिया भर में उत्तराखंड की बनी विशिष्ट पहचानः डा. राजे

अंतरराष्ट्रीय गढवाल महासभा ने आज पलायन पर अधारित व्यंग गढ़वाली गीत ‘‘बौ कु तमासू’’ लांच किया गया। प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजे सिंह नेगी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य अपनी अनूठी लोककला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। राज्य की कुछ लोक विधाओं ने तो देश और दुनिया में अपनी खास पहचान भी बना ली है। उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति के दीदार लोक कलाओं और लोक विधाओं को अब गति मिलने लगी है।लिहाजा देश और दुनिया में लोग उत्तराखंड की लोक कला और संस्कृति के बारे में जानने को उत्सुक हो रहे हैं।

पलायन पर आधारित व्यंग गीत का लोकार्पण गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे सिंह नेगी एवं लोक गायक दक्ष नौटियाल ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे सिंह नेगी ने कहा कि महासभा लगातार उत्तराखंड की महान गढ संस्कृति के प्रचार प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा रही है। यह तमाम कार्यक्रम पूरे वर्ष भर आगे चरणबद्ध तरीके से निरंतर जारी रहेंगे। लोक गायक दक्ष नोटियाल ने बताया कि उनका ये नया गीत ए के फिल्म्स के बैनर तले रिलीज किया गया है ।जिसमे पहाड़ के पानी, संस्कृति सुंदरता के साथ ही पलायन की समस्या को मुख्य रूप से गीत के माध्यम से दर्शाया गया है।

बताया कि आज आधुनिक दौर में चकाचैंध के कारण युवा पीढ़ी लगातार अपने पहाड़ से पलायन कर मैदानी क्षेत्रों की ओर अग्रसर होती जा रही है पहाड़ में निवास कर रहे बूढ़े मां बाप अपने बच्चों के बाहर वापस लौटने की आस लगाए बैठे रहते हैं। जबकि पहाड़ में अब तमाम संसाधन उपलब्ध हो चुके हैं ,बावजूद उसके अभी भी पलायन जारी है। गीत को सुबोध व्यास द्वारा लिखा गया है, जिसका संगीत शैलेंद्र सेलू द्वारा तैयार किया गया है। इस अवसर पर अंकित नैथानी, मंगलेश बिजल्वाण, बीरेंद्र ममगई, बबलू नोटियाल, मनमोहन डिमरी, राहुल कटैत, प्रदीप डिमरी उपस्थित थे।