सुविधाओं के अभाव में ऋषिकेश का सरकारी अस्पताल बना सफेद हाथीः ‘आप’

प्रदेश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के साथ-साथ सरकारी अस्पतालों में गरीब व असहाय परिवार के मरीजों के सस्ता व मुफ्त इलाज दिलाने के लाख वायदे करें, लेकिन सरकारी अस्पतालों की तस्वीरे इससे बिल्कुल जुदा हैं। ऋषिकेश का सरकारी अस्पताल वर्षों से सुविधाओं के अभाव में बीमार हॉस्पिटल नजर आ रहा है। स्वास्थ्य के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी ने प्रदेश सरकार पर प्रहार किया है।नेपाली फार्म क्षेत्र में आम आदमी पार्टी की महत्वपूर्ण बैठक में स्वास्थ्य के मुद्दे पर प्रदेश सरकार द्वारा उदासीनता बरतने को लेकर भाजपा सरकार की कढे शब्दों में निंदा की गई।

बैठक में उत्तराखंड सरकार पर राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की ओर ध्यान न दिए जाने का गंभीर आरोप लगाते हुए श्आपश् के नेता डॉ राजे सिंह नेगी ने कहा कि उत्तराखंड की त्रिवेंद्र रावत सरकार राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की ओर ध्यान नहीं दे रही है जिसकी वजह से गरीब एवं मध्यमवर्गीय लोगों को प्राइवेट अस्पतालों में महंगे उपचार के लिए विवश होना पड़ रहा है। पार्टी के कार्यकर्ताओं की बैठक में सेक्टर प्रभारी हरवेंद्र त्यागी ने कहा कि सरकार की उपेक्षा के चलते गढ़वाल के मुख्य द्वार ऋषिकेश का राजकीय चिकित्सालय सुविधाओं के अभाव में सफेद हाथी बन कर रह गया है। यहां गंभीर रोगियों का उपचार करने के बजाय उन्हें रैफर करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर दी जाती है।

पूर्व विधानसभा प्रभारी नवीन मोहन ने कहा कि चार धाम यात्रा के मुख्य द्वार स्थित ऋषिकेश का राजकीय चिकित्सालय वर्षों से चिकित्सकों की किल्लत को झेल रहा है। ऋषिकेश के तमाम ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा पौड़ी एवं टिहरी जनपद के रोगी भी इसी राजकीय चिकित्सालय में सैकड़ों की तादात में उपचार रौजाना पहुंचते हैं लेकिन चिकित्सको की कमी एवं अनिवार्य रूप से कोविड जांच के कारण उन्हें मायूस होकर प्राइवेट हॉस्पिटलों में महंगे उपचार के लिए विवश होना पड़ता है। बैठक में पार्टी कॉर्डिनेटर दिनेश असवाल, अमित विश्नोई, देवराज नेगी, गणेश बिजल्वाण, दिनेश कुलियाल, प्रवीण असवाल, जगदीश कोहली, सुनील कुमार, मयंक भट्ट, मनोज शर्मा डिम्पल, अंकित नैथानी उपस्थित थे।

गठिया का दर्द से परेशान लोगों को इस बातों का रखना होगा ख्याल…

हड्डी से संबंधित रोगों में गठिया का दर्द सबसे ज्यादा कष्टकारी होता है, विशेषज्ञों की मानें तो गठिया कोई एक बीमारी नहीं बल्कि यह 100 से अधिक बीमारियों का समूह है। आम भाषा में इसे जोड़ों का दर्द भी कहते हैं। जोड़ शरीर के ऐसे भाग में होते हैं, जहां हड्डियां हमारे घुटनों की तरह होती हैं। इससे अक्सर जोड़ों में आकार और संरेखण में बदलाव होता है। चिकित्सकीय भाषा में गठिया को ऑस्टियो आर्थराइटिस कहा जाता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में इस बीमारी के निदान के लिए सभी आधुनिकतम तकनीक से उपचार उपलब्ध हैं।

घरों के भीतर सीमित रहकर काम करने वाली गृहिणियों को सूरज की रोशनी नहीं मिल पाती है, इससे विटामिन डी की कमी से उनकी मांशपेशियां कमजोर हो जाती हैं। ऐसी महिलाओं में पीठ दर्द की समस्या उत्पन्न होने लगती है। सर्दियों में कमरों के भीतर के तापमान की कमी से मांशेपेशियां सख्त होने का खतरा भी रहता है। ऐसे में यह जरूरी है कि नियमिततौर से व्यायाम कर मांशपेशियों को मजबूत रखा जाए। इसके अलावा कंप्यूटर के सामने लगातार काम करने वाले लोगों को भी जोड़ों के दर्द की शिकायत रहती है। खासतौर से गर्दन और पीठ का दर्द उन्हें ज्यादा परेशान करता है।

लिहाजा ऐसे लोगों को अपनी गर्दन और पीठ की मांसपेशियों की मजबूती पर ध्यान देने के साथ ही समय -समय पर फिजियोथैरेपी भी कररनी चाहिए। विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार इस श्रेणी के लोगों को अल्ट्रासाउंड थैरेपी, गर्म सिकाई और दर्द से राहत के लिए दवाएं लेना उचित रहता है।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने कहा कि यदि हमारी जीवनशैली स्वस्थ होगी तो हमारा जीवन भी स्वस्थ रहेगा। उन्होंने बताया कि एम्स संस्थान में इस तरह के रोगों से ग्रसित मरीजों के समुचित उपचार की सभी आधुनिकतम मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। इसके लिए संस्थान के आॉर्थोेपैडिक विभाग में आधुनिक प्रणाली की उन्नत गैट लैब के अलावा अल्ट्रासाउंड थैरेपी, दर्द प्रबंधन क्लीनिक, पूरी तरह से सुसज्जित भौतिक चिकित्सा व भर्ती करने की सुविधाएं शामिल हैं। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि घुटने के प्रत्यारोपण समेत ऑर्थो की कई अन्य बीमारियों का इलाज आयुष्मान भारत योजना में शामिल है।

ऑर्थोपेडिक विभागाध्यक्ष अपर आचार्य डाॅ. पंकज कंडवाल ने बताया कि गठिया रोग विशेषकर सर्दियों के मौसम में ज्यादा कष्टकारी होता है। सूर्य से मिलने वाली धूप कम मिलने से लोगों में विटामिन डी की कमी होने की संभावना बढ़ जाती है। विटामिन डी की कमी से ही हड्डियों में दर्द की शिकायत को बढ़ने लगती है। उन्होंने बताया कि नियमिततौर पर संतुलित आहार लेने से विटामिन डी की कमी को पूरा किया जा सकता है। इसके अलावा कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन भी इसमें लाभकारी होता है।
संस्थान के जनरल मेडिसिन विभाग में गठिया रोग के विशेषज्ञ चिकित्सक डाॅ. वेंकटेश एस. पाई ने बताया कि गठिया 2 प्रकार का होता है। पहला जिसे दवाइयों से ठीक किया जा सकता है, जबकि दूसरा जिसके उपचार के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि कम उम्र में होने वाले गठिया में जोड़ों में सूजन और दर्द बने रहने की शिकायत रहती है। इसके अलावा गठिया रोगी सुबह जब सोकर उठता है तो उसके हाथ-पैरों में दर्द की शिकायत बनी रहती है। जबकि बढ़ती उम्र में होने वाले गठिया में जोड़ों के काॅटलेज घिस जाते हैं। ऐसी स्थिति में इसका समस्या का एकमात्र समाधान सर्जरी से ही हो सकता है। लिहाजा इस दशा में घिस चुके काॅटलेज के रिप्लेसमेंट के लिए सर्जरी करनी पड़ती है। डाॅ. वेंकटेश एस. पाई ने बताया कि छोटे बच्चों में गठिया रोग के उपचार के लिए एम्स ऋषिकेश में आधुनिक तकनीक पर आधारित बेहतर इलाज की सुविधा उपलब्ध है।

गठिया रोगियों के लिए आहार प्रबंधन-

● विटामिन, खनिज, एंटीअक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्वों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त संतुलित आहार का सेवन करें।

● विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियां, प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ, डेयरी, नट्स, दालें और अनाज को भोजन में शामिल करें। यह अच्छे स्वास्थ्य और वजन को संतुलित बनाए रखने में मदद करेगा।

● भरपूर मात्रा में पानी का सेवन करें।

● अपने वजन को बढ़ने न दें। शरीर का अतिरिक्त वजन जोड़ों पर तनाव बढ़ाता है। विशेषरूप से घुटनों और कूल्हों जैसे वजन वाले जोड़ों पर इसका ज्यादा असर होता है।

● यदि आपको चिकित्सकीय मदद की आवश्यकता महसूस होती है, तो अपने पारिवारिक चिकित्सक अथवा आहार विशेषज्ञ से सलाह लें।

व्यायाम-
जोड़ों के आसपास की मांसपेशियों की मजबूती व हड्डियों की ताकत बनाए रखने में व्यायाम खासतौर से मदद करता है। यह अधिक ऊर्जा देने के साथ ही वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है।

एरोबिक व्यायाम-
एरोबिक व्यायाम संपूर्ण फिटनेस में मदद करने के साथ साथ हृदय स्वास्थ्य में सुधार करता है। यह वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है और अधिक सहनशक्ति व ऊर्जा प्रदान करता है।

कम प्रभाव वाले एरोबिक व्यायाम-

इसमें पैदल चलना, साइकिल चलाना, तैरना और एक अंडाकार मशीन का उपयोग करना शामिल है। इसके अलावा जोड़ों के दर्द में योगाभ्यास भी लाभकारी परिणाम देता है।

ठंड के मौसम से जोड़ों का दर्द बढ़ने की शिकायत पर निम्न उपाय करें-

– चिकित्सीय परामर्श से दर्द की दवा लें।

– शरीर में गर्माहट रखें, गर्म कपड़े पहनें, अपने घर को गर्म रखें। गर्म भोजन का ही सेवन करें। गर्म तौलिए व गर्म शॉवर का उपयोग करें।

– सूजन को रोकें-
जोड़ों को सूजन से बचाने के लिए अच्छी तरह से फीटिंग वाले दस्तानों का उपयोग करें। घुटने के बैंड या ब्रेसिज का उपयोग सूजन को कम करने और घुटने की स्थिरता में सुधार लाने के लिए किया जा सकता है।

– सक्रिय रहें-
स्वयं को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखें। ऐसा करने से शरीर के जोड़ वाले अंग मजबूत रहेंगे। धीमी और आसान चाल के साथ व्यायाम करें। दर्द महसूस करने पर विराम लें। तेज दर्द होने पर रुक जाएं, जोड़ों में सूजन या लालिमा नजर आने पर इसे रोक दें।

एम्स में नौ माह का शिशु का सिकुड़ा हार्ट सर्जरी के जरिए हुआ सही

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में कॉर्डियो थोरेसिक सर्जरी विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने उधमसिंहनगर निवासी एक 9 महीने के शिशु के सिकुड़े हुए हार्ट की सफलतापूर्वक सर्जरी को अंजाम दिया है। एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने इस उपलब्धि के लिए चिकित्सकीय टीम की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि पीडियाट्रिक कॉर्डियक सर्जरी एक टीम वर्क है। जिसमें बच्चों के दिल के विशेषज्ञ, पीडियाट्रिक सीटीवीएस सर्जन व कॉर्डियक एनेस्थिटिस्ट के अलावा पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजिस्ट, कॉर्डियक रेडियोलॉजिस्ट, नर्सिंग आदि की अहम भूमिका होती है। निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि एम्स ऋषिकेश बच्चों के हृदय संबंधी बीमारियों के इलाज का विशेष ध्यान रखते हुए ​भविष्य में हृदय संबंधी सभी गंभीर बीमारियों के समुचित उपचार सुविधाएं उपलब्ध कराने को प्रयासरत है। जिससे कि मरीजों को हृदय से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए उत्तराखंड से बाहर के चिकित्सालयों में परेशान नहीं होना पड़े।
चिकित्सकों के अनुसार उधमसिंहनगर निवासी 9 महीने के शिशु को बचपन से ही दूध पीने में कठिनाई होती थी। जांच के बाद पता चला कि उसके हार्ट के वाल्ब में जन्म से सिकुड़न है एवं एक पीडीए नामक धमनी जिसे जन्म के बाद बंद होना चाहिए मगर वह नहीं हुई थी। इससे बच्चे के दिल पर अधिक दबाव बन रहा था एवं बच्चे का वजन नहीं बढ़ पा रहा था। इस बच्चे का वजन मात्र 5 किलोग्राम था, उसे दूध पीते वक्त माथे पर पसीना आता था और दूध रुक रुक कर पाता था, जो कि बच्चों में हार्ट फेलियर के लक्षण है। उन्होंने बताया ​कि बच्चे की पहली जांच हल्द्वानी में हुई थी जहां से उसे एम्स ऋषिकेश रेफर किया गया था।

आवश्यक परीक्षण एवं जांच के उपरांत बच्चे की धमनी का संस्थान के पीडियाट्रिक सीटीवीएस विभाग के चिकित्सकों की टीम ने डा. अनीश गुप्ता के नेतृत्व में सफलतापूर्वक किया। चिकित्सक के अनुसार सर्जरी के बाद उसके वाल्ब की दिक्कत काफी हद तक कम हो गई है तथा शिशु की हालत में लगातार सुधार हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया ​कि भविष्य में बच्चे के वाल्ब का आपरेशन किए जाने की संभावना है। ऑपरेशन के बाद शिशु को आईसीयू में डा. अजय मिश्रा की देखरेख में रखा गया व इसके बाद उसे डा. यश श्रीवास्तव की निगरानी में शिफ्ट किया गया।

एम्स का अनुरोध, बच्चों में निम्न लक्षण होने पर पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजिस्ट से कराएं जांच – 1-होंठ एवं नाखून का नीला पड़ना, 2- सांस फूलना, 3-वजन न बढ़ना, 4-दूध पीने में कठिनाई या माथे पर पसीना आना, 5-जल्दी थकान होना, 6- धड़कन तेज चलना।

इमरजेंसी में उपचार को लाभकारी साबित हो रहा एम्स का हैलीपेड

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश के हैलीपेड का आपात स्थिति में सुदूरवर्ती क्षेत्रों के मरीजों को सीधा लाभ मिलने लगा है। राज्य के सीमांत क्षेत्रों से पिछले 3 दिनों के भीतर ही आपात स्थिति के 4 मरीज उपचार के लिए एम्स अस्पताल पहुंच चुके हैं। जबकि इससे पूर्व भी एक मरीज को इलाज के लिए एयर लिफ्ट कर एम्स लाया गया था।
आज दोपहर करीब एक बजे एयर एंबुलैंस के माध्यम से जनपद चमोली के लंगासू क्षेत्र से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज और अन्य बीमारियों से ग्रसित 55 वर्षीय एक कोविड पाॅजिटिव मरीज को एयरलिफ्ट कर एम्स लाया गया। जबकि दो दिन पूर्व बीते सोमवार को भी राज्य के पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह भंडारी, उनकी पत्नी रजनी भंडारी को भी हैली एंबुलैंस सेवा के माध्यम से दूरस्थ चमोली गढ़वाल से इलाज के लिए ऋषिकेश एम्स लाया गया था।

इस बाबत एम्स ऋषिकेश के एविएशन एंड एयर रेस्क्यू इंचार्ज डाॅ. मधुर उनियाल ने बताया कि दो महीने पहले पौड़ी जिला मुख्यालय से एक चिकित्सक को हैली एंबुलैंस से एम्स लाया गया था। जो कि स्ट्रोक की वजह से गंभीर स्थिति में थे। लिहाजा एयर एंबुलैंस सेवा के चलते उन्हें समय पर उपचार मिल पाया और स्वास्थ्य होने पर कुछ ही दिनों में उन्हें एम्स से डिस्चार्ज कर दिया गया था। डाॅ. उनियाल ने बताया कि हैली एंबुलैंस सुविधा को आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने के लिए एम्स की ओर से राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। जिससे उत्तराखंड के गरीब से गरीब परिवारों को भी इस सुविधा का लाभ मिल सके।

एम्स ऋषिकेश को एयर एंबुलैंस सुविधा से जोड़ने के उद्देश्य से राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 11 अगस्त-2020 को एम्स के हैलीपेड का उद्घाटन किया था। भौतिक और तकनीकी तौर पर यहां हैलीपेड संचालन की अनुमति प्रदान करने से पूर्व 28 जुलाई को डीजीसीए की टीम द्वारा 6 सीटर हैलीकाॅप्टर की ट्राॅयल लैंडिंग भी की गई थी। अब एम्स ऋषिकेश में हैलीपेड की सुविधा होने से इमरजेंसी उपचार की आवश्यकता वाले मरीजों को इसका सीधा लाभ होने लगा है। इससे खासतौर से उन गंभीर मरीजों को त्वरित उपचार मिल पा रहा है जिन्हें सीमांत अथवा सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों से एयर लिफ्ट कर एम्स पहुंचाए जा रहे हैं।

एम्स ऋषिकेश ने लांच किया अपना यू-ट्यूब चैनल लॉन्च

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में उपलब्ध होने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं और उपचार की जानकारियां अब जनमानस को संस्थान के अपने यू ट्यूब चैनल एम्स ऋषिकेश ऑफिशियल के माध्यम से मिल सकेंगी। संस्थान ने शुक्रवार को अपना आधिकारिक यू ट्यूब चैनल लॉन्च कर दिया है, जिसमें विभिन्न उपचार व अन्य गतिविधियों की जानकारी वाले वीडियो अपलोड किए गए हैं।

आम नागरिकों को एम्स में मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की समुचित जानकारियां उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एम्स ऋषिकेश ने शुक्रवार को यू ट्यूब चैनल लॉन्च किया। ’एम्स ऋषिकेश ऑफिशियल’ नाम के इस चैनल का उद्घाटन करते हुए संस्थान के निदेशक प्रो. रविकांत ने कहा कि चैनल में संस्थान में संचालित स्वास्थ्य संबंधी तमाम गतिविधियों और मौजूदा सुविधाओं की जानकारी वाले वीडियो उपलब्ध रहेंगे। इस चैनल के माध्यम से देश और दुनिया के किसी भी कोने से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश में संचालित स्वास्थ्य सुविधाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि एम्स का प्रयास है कि स्वास्थ्य सुविधाओं, मेडिकल तकनीकों, अस्पताल की व्यवस्थाओं के साथ साथ संस्थान की अन्य गतिविधियों को आम नागरिकों, मरीजों और उनके तीमारदारों तक सुलभता से पहुंचाने के लिए हर प्रकार के संचार माध्यमों का उपयोग किया जाए। जिससे खासकर गरीब व जरुरतमंद लोग इलाज से किसी भी तरह से वंचित नहीं रह सकें।

एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत ने कहा कि वर्तमान समय में सूचनाओं और जानकारियों को हासिल करने के लिए यू ट्यूब जैसी संचार सुविधाएं एक सशक्त माध्यम हैं। एम्स में उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं की जानकारियां दूसरे लोगों तक भी पहुंचाएं जिससे जरुरतमंद लोगों को इलाज सुलभ हो सके ।
एम्स निदेशक के स्टाफ ऑफिसर डा. मधुर उनियाल के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में संकायाध्यक्ष अकादमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता, डीन हाॅस्पिटल अफेयर्स प्रो. यूबी मिश्रा आदि मौजूद थे।

एम्स ऋषिकेश में डेंगू से बचाव व जागरूकता को लेकर पुस्तक हुई लोकार्पित

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश के सोशियल आउटरीच सेल की ओर से डेंगू की रोकथाम को लेकर कम्युनिटी में किए गए कार्यों पर आधारित “सेवन प्लस-आप सभी को डेंगू के बारे में जानने की जरूरत है” नामक पुस्तक का प्रकाशन किया गया है, जो कि जनभागीदारी से समुदाय से डेंगू मच्छरों की रोकथाम और उन्मूलन के लिए एक अभूतपूर्व समुदाय आधारित पहल है। बताया गया कि पुस्तक में डेंगू से मुक्ति के लिए दिए गए सुझावों से आमजन स्वास्थ्य की दृष्टि से इसका लाभ ले सकते हैं।

पुस्तक का लोकार्पण कर निदेशक और सीईओ प्रो. रविकांत ने सेवन प्लस पुस्तक के लेखक डा. संतोष कुमार के द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों पर तैयार किए गए उनके इस अभिनव प्रयास की सराहना की। कहा कि रोगों के फैलने व महामारी का स्वरूप धारण करने से पूर्व ही इस तरह के काम को सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंता करते हुए सामुदायिक स्तर पर करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

आउटरीच सेल के नोडल ऑफिसर डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि यह पुस्तक डेंगू के विभिन्न पहलुओं पर एक पूर्ण और व्यापक दस्तावेज है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि डेंगू और अन्य मच्छरजनित बीमारियां एक सामाजिक समस्या हैं। जिनके निवारण के लिए समुदाय और इसके लोगों को आगे आना होगा।

डेंगू बीमारी पर आधारित उक्त सेवन प्लस नाम की पुस्तक समुदाय के सदस्यों की इससे निपटने को आमजन की भूमिका व बहुतायत जनसहभागिता पर जोर देती है, जिसमें हमारे गांवों के आम नागरिकों से लेकर ग्राम प्रधान, पंचायत सदस्य, स्वयंसेवक, आध्यात्मिक व राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े लोग, आशा कार्यकत्री, एएनएम, शिक्षण संस्थानों में कार्यरत प्राध्यापक व विद्यार्थी शामिल है।

डेंगू जैसी वेक्टर जनित बीमारी की रोकथाम के लिए स्वच्छता का वातावरण, स्वच्छता को लेकर हमारे आचार व्यवहार और दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है। यह रोल मॉडल स्थानीय आबादी का हिस्सा है, जो कि स्वास्थ्य कर्मियों की तुलना में समुदाय पर बहुत अधिक प्रभाव डालते हैं। उन्होंने बताया कि स्थानीय स्तर पर लोगों को ऐसे रोगों से बचाव के लिए जागरुकता के साथ आगे आने के लिए प्रेरित करने और एक अभिनव सामुहिक पहल लोगों को मच्छर जनित रोगों से बचाव का मूल मंत्र है।

संकायाध्यक्ष अकादमिक प्रो. मनोज गुप्ता जी ने डेंगू के लिए इस सामुदायिक पहल की प्रशंसा की, साथ ही उन्होंने कैंसर और हृदय रोग जैसे गैर संचारी रोगों के लिए मजबूत सामुदायिक कार्यक्रमों की जरुरत पर जोर दिया।

कम्युनिटी एंड फैमिली मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रो. वर्तिका सक्सेना ने पुस्तक में उल्लिखित सटीक और सक्रिय टिप्पणी एवं सुझावों के साथ डेंगू के लिए आउटरीच कार्य की सराहना की। उन्होंने कहा कि पुस्तक के तौर पर आमजन के लिए यह एक आसान पठन सामग्री है और यह उन सभी के लिए अनुकूल है जो डेंगू के बारे में अधिक जिज्ञासा रखते हैं व इस जानलेवा बीमारी के विषय में जागरुकता बढ़ाना चाहते हैं।

पुस्तक को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संस्थान के सीनियर लाइब्रेरियन संदीप कुमार सिंह ने कहा कि यह निस्संदेह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो कि सामाजिक निहितार्थ के साथ मच्छरों के जन्म के खतरे के बारे में समग्र जानकारी प्रदान करती है। बताया गया है कि यह पुस्तक ऑनलाइन स्रोतों में उपलब्ध है। यह पहल उन कई प्रयासों के लिए एक आशाजनक उपक्रम है जिन्हें भारत के युवा प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं।

एड्स के मरीजों के लिए एम्स में एआरटी सेंटर हुआ शुरू


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में विश्व एड्स दिवस पर एचआईवी वायरस से ग्रसित मरीजों की समग्र जांच एवं उपचार के लिए एंटी रिट्रोवायरल थैरेपी सेंटर (एआरटी सेंटर) का विधिवत शुरू हो गया। एम्स में खुले सेंटर में गढ़वाल मंडल के विभिन्न जिलों के पंजीकृत एड्स मरीजों को सरकार द्वारा प्रदत्त निशुल्क उपचार मिल सकेगा।

निदेशक प्रो. रविकांत ने संस्थान में एंटी रिट्रोवायरल थैरेपी एआरटी सेंटर का विधिवत शुभारंभ कर बताया कि 2019 में विश्वभर में लगभग 6 लाख 90 हजार लोगों की मौत हुई है। इस बीमारी का कोई शर्तिया इलाज नहीं है लिहाजा इसे सिर्फ जनजागरूकता से ही रोका जा सकता है।

बताया कि संस्थान में एमबीबीएस, टेक्निशियन व नर्सिंग के पाठ्यक्रम में इस बीमारी को आवश्यक सुधार के साथ सम्मिलित किया जाएगा तथा समय- समय पर एम्स की सोशियल आउटरीच सेल के द्वारा विभिन्न हाईरिस्क ग्रुप्स को इस बीमारी के बारे में जागरूक किया जाएगा।

जनरल मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. मीनाक्षी धर, एआरटी सेंटर प्रभारी डा. मीनाक्षी खापरे व फैकल्टी इंचार्ज डा.मुकेश बैरवा ने बताया कि हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस पर जनसामान्य को एचआईवी संक्रमण से बचाव व जरुरी एहतियात के बारे में जागरुक किया जाता है। साथ ही उन्हें स्वयं व दूसरों को इस लाइलाज बीमारी से बचाव के बारे में आवश्यक जानकारियां उपलब्ध कराई जाती हैं।
उन्होंने बताया कि एम्स में स्थापित एआरटी सेंटर के अंतर्गत रजिस्टर्ड एचआईवी पेशेंट का ट्रीटमेंट निशुल्क किया जाएगा। जिसमें मरीजों को लैब इन्वेस्टीगेशन व दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं साथ ही उपचार के दौरान उनमें उत्पन्न होने वाली दूसरी बीमारियों का परीक्षण व दवा भी इसमें शामिल होती हैं। बताया गया कि एम्स ऋषिकेश में उत्तराखंड राज्य का चैथा एआरटी सेंटर स्थापित किया गया है। इस सेंटर में गढ़वाल मंडल के पौड़ी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, हरिद्वार आदि जिलों के पंजीकृत एचआईवी ग्रसित मरीजों का परीक्षण एवं उपचार करा सकते हैं। एम्स में एआरटी सेंटर स्थापित होने से पर्वतीय जिलों के मरीजों को उपचार के लिए अब देहरादून नहीं जाना पड़ेगा। साथ ही एंटी रिट्रोवायल थैरपी सेंटर न सिर्फ मरीजों को मेडिसिन एवं परीक्षण सेवा देता है

इसके अलावा उन्हें केयर में सहयोग भी करता है और विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से मरीज व उनके परिवार को आर्थिक व अन्य तरह का सहयोग भी उपलब्ध कराया जाता है।

एम्स के जनरल मेडिसिन विभाग में स्थापित एआरटी सेंटर में मरीज सप्ताह में दो दिन (सोमवार व बुधवार को) निशुल्क परामर्श व उपचार प्राप्त कर सकते हैं।
इस दौरान डीन एकेडमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता, डीएचए प्रो.यूबी मिश्रा, प्रो. लतिका मोहन, प्रो. वर्तिका सक्सेना, डा. नैरिता हजारिका आदि मौजूद थे।

एम्स में भर्ती उत्तराखंड राज्यपाल के सभी परीक्षण सामान्य

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में भर्ती उत्तराखंड की राज्यपाल बेबीरानी मौर्य का स्वास्थ्य स्थिर है। उनके सभी परीक्षण सामान्य पाए गए हैं।

कोविड पॉजिटिव पाए जाने के बाद उत्तराखंड की राज्यपाल को बीते सोमवार को एम्स ऋषिकेश में भर्ती किया गया था। भर्ती होने के बाद उनका सीटी स्केन, ब्लड और अन्य सभी आवश्यक परीक्षण किए गए। उनके स्वास्थ्य के संबंध में जानकारी देते हुए संस्थान के डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रो. यू.बी. मिश्रा ने बताया कि राज्यपाल का स्वास्थ्य स्थिर है और वह रूम एयर पर सामान्य स्थिति में हैं। उनकी ब्लड और सीटी स्केन की रिपोर्ट भी सामान्य है। उन्होंने बताया कि एम्स के पांच विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य की नियमिततौर से मॉनिटरिंग कर रही है। इस टीम में कार्डियोलॉजी, पल्मोनरी, जनरल मेडिसिन सहित अन्य विभागों के चिकित्सक शामिल हैं।

बहुत जल्द ही हमारे विशेषज्ञ वैक्सीन बनाने में सफल होंगेः त्रिवेंद्र सिंह रावत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कोविड के प्रभावी नियंत्रण के संबंध में बैठक की। इस अवसर पर आठ राज्यों में जहां कोविड के मामले तेजी से बढ़े हैं। उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसको नियंत्रित करने के लिए किये जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी दी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के संगठित प्रयासों से देश में कोरोना काफी हद तक नियंत्रण में है। कोरोना से लड़ने के लिए समय-समय पर अगल-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आज रिकवरी रेट एवं फर्टिलिटी रेट दोनों में भारत अधिकतर देशों से बहुत संभली हुई स्थिति में है। सभी के अथक प्रयासों से देश में टेस्टिंग से लेकर ट्रीटमेंट तक का एक बहुत बड़ा नेटवर्क आज कार्य कर रहा है। इसका लगातार विस्तार भी किया जा रहा है। कोरोना के मैनेजमेंट को लेकर सबके पास एक व्यापक अनुभव है। सभी मुख्यमंत्री अपने अनुभवों को जरूर साझा करें, ताकि कोरोना पर पूर्ण नियंत्रण के लिए ठोस रणनीति बन सके।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत में कोरोना पर नियंत्रण हुआ है, लेकिन अभी भी पूरी सतर्कता बरतने की जरूरत है। हम आपदा के संमंदर से किनारे तक आ गये हैं, यह ध्यान रहे कि अब कोई भी लापरवाही न रहे। कोरोना से बचाव के लिए जागरूकता अभियान लगातार चलाये जाय। हमें पॉजिटिविटी रेट को 05 प्रतिशत से कम रखना होगा और आरटीपीसीआर टेस्ट पर विशेष ध्यान देना होगा। कोविड वैक्सीन की दिशा में विशेषज्ञों द्वारा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। वैक्सीन कब तक उपलब्ध होती है, और शुरूआती चरण में कितनी उपलब्ध होती है। इसके लिए लगातार प्रयास जारी है। वैक्सीन सभी को लगवाई जायेगी, लेकिन इसके लिए शुरूआती चरण में प्राथमिकताएं क्या होंगी। राज्य सरकारें भी इस पर अपना सुझाव जरूर दें। वैक्सिनेसन के लिए राज्यों द्वारा कोल्ड चेन स्टोरेज और विभिन्न मापदण्डों के आधार पर व्यवस्थाएं कर ली जाय। इसके लिए राज्य सरकारों द्वारा स्टेट लेबल पर एक स्टियरिंग कमेटी और स्टेट, डिस्ट्रिक व ब्लॉक लेबल पर टास्क फोर्स के गठन किया जाय। इन कमेटियों की रेगुलर बैठक व ट्रेनिंग मॉनिटरिंग हो।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि हमें पूरी आशा और विश्वास है कि बहुत जल्द ही हमारे विशेषज्ञ वैक्सीन बनाने में सफल होंगे। राज्य सरकार के स्तर पर इसके लिए जो प्राथमिकताएं तय करनी है, उसके लिए सुनियोजित तरीके से रणनीति बनाई जा रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध किया कि जनवरी से अप्रैल 2021 तक हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन होना है। जिसमें भारी संख्या में अधिकारी, कर्मचारी, पुलिस बल एवं हेल्थ वर्कर काम करेंगे। राज्य को वैक्सीन की उपलब्धता के लिए हरिद्वार कुंभ को भी ध्यान में रखना जरूरी है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि वैक्सिनेसन के लिए राज्य स्तर पर स्टेयरिंग कमेटी बनाई गई है। जिला स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया गया है और इसकी लगातार बैठकें भी हो रही हैं।

इस अवसर पर वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से गृह मंत्री अमित शाह, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड से मुख्य सचिव ओम प्रकाश, डीजीपी लॉ एण्ड ऑर्डर अशोक कुमार, सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी आदि उपस्थित थे।

सही एंटीबायोटिक नहीं ले पाने की स्थिति में प्रतिरोधन क्षमता हो सकती है कम

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में वल्र्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों ने व्याख्यानमाला प्रस्तुत किए।

निदेशक प्रो. रविकांत की देखरेख में आयोजित कार्यक्रम के तहत आज संस्थान के स्वांस रोग विभागाध्यक्ष प्रो. गिरीश सिंधवानी ने बताया कि आम जुकाम की स्थिति में 20 से 25 प्रतिशत तक वायरल होता है, मगर देखा गया है कि सामान्य वायरल की स्थिति में भी एंटीबायोटिक का प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हमारे विभाग में भी एंटीबायोटिक का उपयोग होना स्वाभाविक है मगर उसे सही समय व सही मानक में देना जरुरी है।

ईएनटी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डा. मनु मल्होत्रा ने बताया कि आंख, नाक, गला विभाग में एंटीबायोटिक का सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। बताया कि अस्पताल में खांसी, जुकाम, गले में दर्द की शिकायत वाले मरीज अपने मर्जी से ही एंटीबायोटिक का उपयोग कर लेते हैं, लिहाजा प्रतिरोधक स्थिति में उन्हें एंटीबायोटिक दवा का असर कम होने लगता है।
प्रिोफेसर श्रीपर्णा बासु ने नवजात शिशुओं की बढ़ती मृत्युदर के बाबत जानकारी दी। उन्होंने इसकी मुख्य वजह संक्रमण को बताया। साथ ही जनरल पब्लिक को संदेश दिया कि मां को अपने नवजात शिशुओं को अपना ही दूध देना चाहिए और अन्य तरह के किसी भी तरीके का उपयोग नहीं करें। उन्होंने बताया कि इन्फेक्शन के बाद बच्चों को कई तरह के एंटीबायोटिक देने पड़ते हैं जिसका उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है लिहाजा कोशिश की जानी चाहिए कि संक्रमण को पैदा ही नहीं होने दिया जाए।

न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डा. नीरज कुमार ने बताया कि हमारे विभाग में प्राइमरी व सेकेंड्री संक्रमण के पेशेंट आते हैं। लिहाजा हमें प्राइमरी संक्रमण के समय में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उन्होंने स्ट्रोक के पेशेंट व कुछ अन्य सेकेंड्री इन्फेक्शन के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
कॉर्डियो थोरसिक वस्कुलर सर्जरी विभाग (सीटीवीएस) के डा. अंशुमन दरबारी ने कहा कि हम एंटीबायोटिक के कम उपयोग पर अधिक ध्यान देते हैं, क्योंकि हम ऑपरेशन के दौरान इस्टीराइल वातावरण का ध्यान रखते हैं, लिहाजा इन्फेक्शन की चांस कम रहते हैं, लिहाजा एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की जरुरत ही नहीं पड़ती है। उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल ठीक तरह से नहीं होगा तो यह दवाइयां बेकार हो जाएंगी।