अकेले जीवन बिता रहे पुरुष सैनिकों को भी मिलेगी सीसीएल

केन्द्र सरकार ने अपने एक अहम फैसले में अकेले जीवन बिता रहे पुरुष सैनिकों को भी बच्चे की देखभाल के लिए मिलने वाली छुट्टी चाइल्ड केयर लीव (सीसीएल) देने को मंजूरी दे दी है। साथ ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने महिला अधिकारियों के मामले में सीसीएल प्रावधानों में भी कुछ छूट प्रदान कर दी है। वर्तमान में सीसीएल केवल रक्षा बलों में महिला अधिकारियों को ही प्रदान किया जाता है। रक्षा मंत्रालय ने जानकारी देते हुए बताया कि यह फैसला कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के एक आदेश के अनुरूप है।
हाल में डीओपीटी ने प्रावधानों में कुछ संशोधन किए थे, ताकि असैन्य कर्मचारियों को सीसीएल दिया जा सके। इसके तहत महिला कर्मचारियों को दिया जाने वाला सीसीएल सरकारी पुरुष कर्मचारियों को भी दिया जाएगा। रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि सीसीएल लेने के लिए पहले 40 प्रतिशत विकलांगता वाले बच्चे के मामले में 22 साल की आयु सीमा को भी हटा दिया गया है। साथ ही एक बार में सीसीएल लेने की न्यूनतम अवधि को 15 दिन के बजाय कम करके पांच दिन कर दिया गया है।
ऐसे ही लाभ रक्षा कर्मियों को प्रदान करने के एक प्रस्ताव को रक्षा मंत्री ने मंजूरी प्रदान दे दी है। इससे सिंगल (किसी भी कारण से जीवन साथी के बिना जीवन बसर करने वाले) पुरुष सैन्य कर्मी सीसीएल का लाभ उठा सकेंगे। सिंगल पुरुष सैन्य कर्मी और रक्षा बलों की महिला अधिकारी भी 40 प्रतिशत विकलांगता वाले बच्चे के मामले में सीसीएल की सुविधा का लाभ उठा सकेंगे और इसके लिए बच्चे की आयु की कोई सीमा नहीं होगी।

मुख्यमंत्री की पहल पर उत्तराखंड को भी मिलेंगे मोबाइल पेट्रोल पंप

भविष्य में चार धाम यात्रा मार्गों के साथ ही राज्य के दूरदराज के क्षेत्रों में लोगों को पेट्रोल-डीजल की किल्लत से नहीं जूझना पड़ेगा। इसके लिए मोबाइल पेट्रोल पंप (पेट्रोल-डीजल डिस्पेंसर) स्थापित किए जाएंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात के बात केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने यह संकेत दिए। उन्होंने कहा कि मोबाइल पेट्रोल पंप के लिए नियमावली तैयार हो रही है। इसके बाद यहां भी चारधाम समेत दूरस्थ क्षेत्रों के मार्गों पर ये सुविधा मिलने लगेगी।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में बताया कि केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से राज्य में पीएनजी व सीएनजी के विस्तार समेत विभिन्न मसलों पर वार्ता की गई थी। इस दौरान यात्रा मार्गों के साथ ही दूरस्थ क्षेत्रों में पेट्रोल-डीजल की उपलब्धता सुनिश्चित कराने पर भी चर्चा हुई। मुख्यमंत्री के अनुसार केंद्रीय मंत्री ने यह भरोसा दिलाया कि ऑल वेदर रोड के निर्माण के दौरान तैयार डंपिंग जोन से मिलने वाली 60 हेक्टेयर भूमि पर भी मोबाइल पेट्रोल पंप समेत अन्य सुविधाएं विकसित की जाएंगी।
केंद्रीय मंत्री ने देहरादून और हल्द्वानी में सीएनजी-पीएनजी के बारे में जानकारी ली और कहा कि इसके विस्तार में केंद्र सरकार हरसंभव मदद करेगी। केंद्रीय मंत्री ने हरिद्वार महाकुंभ के आयोजन में भी मदद का भरोसा भी दिलाया। उन्होंने महाकुंभ के दौरान हरिद्वार, ऋषिकेश व देहरादून में सीएनजी युक्त वाहन चलाने और इसके लिए 20-25 सीएनजी स्टेशन खोलने को कहा। उन्होंने कहा कि यह ग्रीन कुंभ के आयोजन को बड़ी पहल होगी। मुख्यमंत्री ने उन्हें बताया कि हरिद्वार महाकुंभ के लिए मास्टर प्लान बनाया जा रहा है। उन्होंने हरिद्वार में सती घाट को विकसित करने पर भी विशेष जोर दिया।
केंद्रीय मंत्री प्रधान ने चारधाम में अवस्थापना सुविधाओं के लिए हरसंभव मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि गंगोत्री व यमुनोत्री में गैस अथोरिटी आफ इंडिया द्वारा नागरिक एवं अवस्थापना सुविधाओं के कार्य किए जाएंगे। केदारनाथ में ओएनजीसी के जरिये विभिन्न कार्य किए जाएंगे। उन्होंने कार्यों में तेजी लाने के लिए दोनों संस्थानों और राज्य के अधिकारियों के मध्य बेहतर समन्वय पर बल दिया।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का ड्रीम प्रोजेक्ट है रूरल ग्रोथ सेंटर

राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में क्लस्टर आधारित एप्रोच पर ग्रोथ सेंटर विकसित कर रही है। प्रदेश की 670 न्याय पंचायतों मे ग्रोथ सेंटर स्थापित किए जाएंगे। इनमें से 58 ग्रोथ सेंटर को मंजूरी दी जा चुकी है। इनमें एग्रीबिजनेस, आई.टी., ऊन, काष्ठ, शहद, मत्स्य आधारित ग्रोथ सेंटर शामिल हैं।
उत्तराखण्ड की विकास दर, देश की विकास दर से अधिक रही है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2016-17 में 1,61,172 रूपए थी जो कि वर्ष 2018-19 में बढ़कर 1,98,738 रूपए हो गई है। इस प्रकार प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय देश की औसत प्रति व्यक्ति आय से 72,332 रूपए अधिक हो गई है। आर्थिक वृद्धि का यह लाभ राज्य के दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों व ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने और वहां से हो रहे पलायन को रोकने के लिए मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने उत्तराखण्ड ग्राम्य विकास व पलायन आयोग की स्थापना की थी। आयोग ने प्रत्येक जिले में भ्रमण किया, वहां के लोगों से फीडबैक लिया और एक अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके अनुसार आजीविका के साधनों का अभाव, पलायन का सबसे बड़ा कारण माना गया। स्थानीय संसाधनों व परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग रणनीति बनाए जाने की आवश्यकता बताई गई।
सरकार व शासन स्तर पर गहन मंथन के बाद तय किया गया कि बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी आधारभूत सुविधाओं के विकास के साथ ही ग्रामीणों के लिए आजीविका के साधन जुटाए जाने पर सबसे अधिक फोकस किया जाए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाए। ऐसा तभी हो सकता है जबकि स्थानीय तौर पर उपलब्ध संसाधनों पर आधारित योजना तैयार की जाए। इसके बैकवर्ड व फारवर्ड लिंकेज तैयार किए जाएं।
राज्य सरकार ने योजना को अमलीजामा पहनाते हुए 670 न्याय पंचायतों में क्लस्टर एप्रोच पर थीम बेस्ड ग्रोथ सेंटर विकसित करने का निर्णय लिया। क्लस्टर आधारित एप्रोच, वित्तीय समावेशन, ब्रांड का विकास व मार्केट लिंकेज इसकी प्रमुख विशेषता है। योजना की मुख्यमंत्री कार्यालय स्तर से लगातार माॅनिटरिंग की जाती है। इसी का परिणाम है कि अभी तक प्रदेश में 58 ग्रोथ सेंटरों को मंजूरी दी जा चुकी है। इनमें 7 ग्रोथ सेंटर जलागम विभाग के तहत, मत्स्य विभाग के तहत 10, डेयरी में 4, एकीकृत आजीविका सहयोग कार्यक्रम में 25 व उत्तराखण्ड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड में 10 ग्रोथ सेंटर स्वीकृत किए जा चुके हैं। जलागम विभाग के ग्रोथ सेंटर विश्व बैंक परियोजना से व मत्स्य विभाग के एनसीडीसी परियोजना से वित्त पोषित किए जाने हैं। शेष के लिए 435 लाख रूपए से अधिक की राशि अवमुक्त की जा चुकी है। इसी प्रकार कुल 23 ग्रोथ सेंटर के प्रस्ताव और प्राप्त हो चुके हैं। इनमें वन विभाग के अंतर्गत 8, यूएसआरएलएम में 5, उत्तराखण्ड खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड में 2, रेशम विभाग में 4 व उत्तराखण्ड बांस एवं रेशा विकास परिषद में 4 प्रस्तावों पर कार्ययोजना बनाई जा रही है।
विकसित किए जाने वाले ग्रोथ सेंटर जड़ी-बूटी, बर्ड वाचिंग, पर्यटन, एग्रीबिजनेस, शहद, हर्बल, रेशम, बांस व रेशा, ऊन, मसाले, मत्स्य पालन, आईटी, काष्ठ, मंडुवा, झंगौरा, चैलाई आदि पारम्परिक अनाज आदि पर आधारित हैं। इन ग्रोथ सेंटरों से ग्रामीणों को उत्पादन के लिए आवश्यक सहयोग मिलेगा और उत्पादन को मार्केट भी उपलब्ध करवाया जाएगा। युवाओं को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार व आजीविका प्राप्त होगी। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

एक लाख कर्मचारियों को मिली राहत, नए आदेश जारी

हाल ही में शासन ने सीधी भर्ती और पदोन्नति पाने वाले कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन में अंतर को समाप्त करने के संबंध में जो आदेश किया था, उसका लाभ अब प्रदेश के एक लाख कर्मचारियों को मिलने जा रहा है।
दरअसल, छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद सीधी भर्ती और पदोन्नति के पदों पर न्यूनतम वेतन निर्धारण में विसंगति पैदा हो गई थी। इसके संबंध में शिक्षा विभाग ने शासन से स्पष्टीकरण मांगा था, जिस पर शासनादेश जारी किया गया। कर्मचारी संगठनों ने जब खोज खबर की तो खुलासा हुआ कि इसका फायदा प्रदेश के समस्त कर्मचारियों को मिलेगा। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के मुख्य संयोजक ठाकुर प्रहलाद सिंह ने कहा कि इससे कर्मचारियों और शिक्षकों को 1000 रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक का वित्तीय लाभ मिलेगा।
प्रदेश में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद सीधी भर्ती और पदोन्नत कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन में असमानता की विसंगति पैदा हो गई थी। पदोन्नति के बाद कर्मचारियों को समान पद पर सीधी भर्ती से कम न्यूनतम वेतन निर्धारित हुआ। इसे लेकर पदोन्नति पाने वाले शिक्षक व कर्मचारी सरकार से लगातार विसंगति दूर करने की मांग कर रहे थे।
अब नए शासनादेश से पदोन्नति के बाद कर्मचारी का न्यूनतम वेतन सीधी भर्ती से आए कर्मचारी के बराबर होगा। प्रदेश सरकार के तकरीबन सभी विभागों में इसी तरह की विसंगति है। इनमें प्रमुख विभाग वन, मत्स्य, कृषि, उद्यान, ग्राम्य विकास, गन्ना, आबकारी, परिवहन, सहकारिता, वाणिज्य कर, ग्रामीण अभियंत्रण, राजस्व, खाद्य आपूर्ति, मनोरंजन कर समेत कई अन्य विभागों के कर्मचारी लाभान्वित होंगे।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने आशंका जताई कि विभागों के अध्यक्ष शासनादेश को शिक्षा विभाग तक सीमित करके कर्मचारियों को उनके लाभ से वंचित कर देना चाहते हैं। लेकिन परिषद चुप नहीं बैठेगी। शनिवार को परिषद की बैठक में तय हुआ कि कोई विभागाध्यक्ष शासनादेश को लागू करने में हीलाहवाली करेगा तो परिषद उसका घेराव करेगी। बैठक में प्रदीप कोहली, नंद किशोर त्रिपाठी, शक्ति प्रसाद भट्ट, राकेश प्रसाद ममगाईं, गुड्डी मटूड़ा, विजया जोशी, एनएस कुंद्रा, सुभाष शर्मा समेत कई अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।

मूर्तिकार की तरह छात्रों का भविष्य संवारे शिक्षकः त्रिवेन्द्र रावत

एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय की स्थापना दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने विद्यालय के बहुउद्देशीय हॉल, डिस्पेन्सरी तथा अतिथि कक्ष का शिलान्यास किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने विद्यालय परिसर में वृक्षारोपण भी किया। इससे पूर्व उन्होंने विद्यालय का निरीक्षण कर विद्यालय में चल रही शैक्षणिक व शिक्षणेत्तर गतिविधियों की जानकारी भी ली। मुख्यमंत्री ने शिक्षकों व छात्रों को विद्यालय की स्थापना दिवस की शुभकानायें देते हुए कहा कि इस विद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में जो कीर्तिमान स्थापित किये हैं वह सराहनीय है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षक का कार्य मूर्तिकार की तरह है। जिस प्रकार तमाम कठिनाइयों व परिश्रम के बाद मूर्तिकार पत्थर को तरासकर आकर्षक मूर्ति का निर्माण कर उसे जीवन्त बनाता है, उसी प्रकार शिक्षक भी छात्रों को कड़ी मेहनत व समर्पित भाव से उन्हें शिक्षित करने का कार्य करते हैं। छात्रों के जीवन में शिक्षक का बड़ा महत्व है। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने सही कहा था कि विद्यालय में भवन व लाइब्रेरी आदि अन्य सुविधाओं की कमी को एक योग्य शिक्षक ही दूर कर सकता है। एकलव्य विद्यालय इसका जीता जागता उदाहरण है। छात्रों को शिक्षित करने, उनके व्यक्तित्व विकास का जो समर्पित भाव व दृढ़ इच्छा शक्ति इस विद्यालय के प्रधानाचार्य व शिक्षकों में है वह निसंदेह सराहनीय है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कोई भी संस्था आसानी से खड़ी नहीं होती है। इसके लिये कड़ी मेहनत व समर्पण का भाव होना जरूरी है। अत्यधिक फीस लेकर शिक्षा देने वाले स्कूलों से बेहतर शिक्षा का माहौल छात्रों को एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय में मिल रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय के बच्चों के पिछले दो वर्ष में विभिन्न आईआईटी, एमबीबीएस व प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पर भी प्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने विद्यालय को जनजाति क्षेत्र के बच्चों की शिक्षा का प्रमुख केन्द्र बताया है। स्कूल के शिक्षकों को भी जनजाति छात्रों को बेहतर शैक्षणिक माहौल प्रदान करने के लिये बधाई दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि छात्रों को गुणात्मक शिक्षा उपलब्ध कराना समाज के व्यापक हित में है, हमारे छात्र बेहतर गुणात्मक शिक्षा के बल पर ही देश के कर्मठ शिक्षित नागरिक बन सकेंगे।

मुख्यमंत्री ने विद्यालय के 7 छात्रों को विभिन्न संस्थानों आई0आई0टी0, एन0आई0टी0 एवं आईआईआईटी में, दो छात्रों का एमबीबीएस, 4 छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कालेजां में प्रवेश मिलने को विद्यालय की गौरवपूर्ण उपलब्धि बताया। उन्होंने इसके लिये छात्रों के साथ ही विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. जी.सी.बडोनी व शिक्षकों को भी बधाई दी।

इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने कहा कि एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय की स्थापना के अभी सिर्फ 9 साल पूर्ण हुए, इस अल्प समय में विद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है। सीमित संसाधन व शिक्षकों की संख्या कम होने के बावजूद भी विद्यालय में शैक्षणिक गतिविधियों के साथ ही, विभिन्न प्रकार के हुनर बच्चों को सिखाये जा रहे हैं, यह एक सराहनीय प्रयास है। देश की तरक्की के लिए बेहतर शिक्षा का होना जरूरी है। इस दिशा में जनजातीय क्षेत्रों के बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने का सराहनीय प्रयास किया जा रहा है।
विधायक मुन्ना सिंह चैहान ने कहा कि जब इस विद्यालय की स्थापना हुई तब यहां पर छात्र संख्या 46 थी, जबकि आज विद्यालय में लगभग 400 छात्र-छात्राएं हैं। इस विद्यालय के छात्रों को आईआईटी, एमबीबीएस व अन्य उच्च संस्थानों में यहां के छात्रों को प्रवेश मिला है। एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय अन्य स्कूलों के लिए रोल मॉडल बन सकता है।
कार्यक्रम में अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बी.आर.आर्य, उपाध्यक्ष जनजातीय आयोग मूरत राम शर्मा, सचिव एल फैनई, अपर सचिव रामविलास यादव, निदेशक जनजातीय कल्याण सुरेश जोशी, ब्लाक प्रमुख कालसी अर्जुन सिंह, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मधु चैहान सहित विद्यालय के शिक्षक व छात्र आदि उपस्थित थे।

पूर्व सैनिकों ने मुख्यमंत्री का जताया आभार, सरकार ने की थी महत्वूपर्ण घोषणा

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से मुख्यमंत्री आवास में पूर्व सैनिक वेल्फेयर एसोसियेशन के सदस्यों ने भेंट की। उन्होंने शौर्य दिवस के अवसर पर सैनिकों के हित में की गई कल्याणकारी घोषणाओं के लिए मुख्यमंत्री का आभार जताया। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने शौर्य दिवस के अवसर पर सैनिकों की समस्याओं के समाधान के लिये विशेष रूप से अपर सचिव स्तर के अधिकारी को नोडल अधिकारी नियुक्त करने, उत्तराखण्ड के शहीद सैनिकों के लिये उनकी याद में विशाल मेमोरियल बनाना और सबसे महत्वपूर्ण घोषणा प्रदेश के सचिवालय में पूर्व सैनिकों को प्रवेश करने के लिये उनका आई कार्ड ही प्रवेश पत्र माने जाने की घोषणा की थी, इन घोषणाओं के प्रति प्रदेश के सैनिक बहुत प्रभावित हुए हैं जिसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री का आभार जताया है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा सैन्य बाहुल्य प्रदेश है। देव भूमि के साथ ही हमारे वीर सैनिकों ने अपने अदम्य साहस एवं शौर्य के बल पर इसे वीर भूमि बनाया है। वीर सैनिकों व उनके आश्रितों के कल्याण के लिये राज्य सरकार प्रतिबद्ध है।
इस अवसर पर विधायक मुन्ना सिंह चैहान, पूर्व सैनिक वेल्फेयर एसोसिएशन के केन्द्रीय अध्यक्ष पी.टी.आर शमशेर सिंह बिष्ट, महासचिव ओ. कैप्टन आर.डी.शाही, पी.बी.ओ.आर की अध्यक्षा महिला प्रकोष्ठ राजकुमारी थापा, उपाध्यक्षा कमला गुरूंग सहित बड़ी संख्या में संगठन के सदस्य उपस्थित थे।

हिमालयी राज्यों की सुरक्षा और विकास को केन्द्र सरकार से मांगी मदद

हिमालयन कॉन्क्लेव में गहन मंथन के पश्चात प्रतिभागी हिमालयी राज्यों द्वारा ‘‘मसूरी संकल्प’’ पारित किया गया। इसमें पर्वतीय राज्यों द्वारा हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और देश की समृद्धि में योगदान का संकल्प लिया गया। साथ ही, प्रकृति प्रदत्त जैव विविधता, ग्लेशियर, नदियों, झीलों के संरक्षण का भी प्रण लिया गया। भावी पीढ़ी के लिए लोककला, हस्तकला, संस्कृति आदि का संरक्षण किया जाएगा। पर्वतीय संस्कृति की आध्यात्मिक परम्परा के संरक्षण व मानवता के लिए कार्य करने का संकल्प लिया गया। समानता व न्याय की भावना के साथ पर्वतीय क्षेत्रों के सतत विकास की रणनीति पर काम किया जाएगा। पर्वतीय सभ्यताओं के महान इतिहास व विरासत के संरक्षण का संकल्प लिया गया।

इससे पूर्व हिमालयन कॉन्क्लेव में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग करते हुए केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने हिमालयन राज्यों के सम्मेलन के आयोजन के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा कि निश्चित रूप से यह आयोजन हिमालयी राज्यो के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि लम्बे समय से इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही थी। हिमालयन राज्य भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन सभी राज्यों का विकास भारत सरकार की प्राथमिकताओं में है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों से पलायन को रोकने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। इसमें पंचायतीराज संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। दूरस्थ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा कर ही पलायन को रोका जा सकता है। सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोग देश की सुरक्षा में आंख और कान का काम करते हैं। इससे सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत होगी। हमे विकास के साथ ही पर्यावरणीय सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। पर्वतीय राज्यों में ऑर्गेनिक कृषि पर फोकस किया जाना चाहिए। इसमें स्थानीय युवाओं को जोड़े जाने की जरूरत है। पर्वतीय क्षेत्रों के युवाओं के लिए स्टार्ट-अप महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इससे पलायन तो रुकेगा ही साथ ही क्षेत्र भी आर्थिक रूप से विकसित होगा। केन्द्रीय वितमंत्री ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों ने हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। विकास योजनाओं को फलीभूत करने के लिए स्थानीय समुदायों के सशक्तिकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सम्मेलन में प्रतिभागी राज्यों द्वारा चर्चा किये गये विषयों पर केन्द्र द्वारा गंभीरता से विचार किया जायेगा।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कॉन्क्लेव में आए प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि हमें गर्व है कि देश की सीमाओं की चैकसी की जिम्मेदारी मिली है। हिमालय राज्यों के सम्मेलन की मेजबानी का अवसर प्राप्त हुआ है यह उत्तराखण्ड के लिए सम्मान की बात है। हिमालय राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियां समान हैं। मुझे आशा है कि देश की समृद्धि में योगदान करने के लिए यह एक अच्छा मंच साबित होगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के जल की एक-एक बूंद बचाने के संकल्प में हिमालयी राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हम सभी को मिलकर जल संचय एवं जल संरक्षण के लिए काम करना होगा। नदियों के पुनर्जीवीकरण के लिए केन्द्रीय स्तर पर अलग से बजटीय प्रावधान किया जाना चाहिए। इको सिस्टम सर्विसिज के लिए हिमालयी राज्यों को और प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 2025 तक आर्थिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हिमालयी राज्यों में वैलनेस व टूरिज्म पर काम करना होगा। आपदा, पलायन सभी हिमालयी राज्यों की एक समान समस्या है। हम सभी को मिलकर देश की प्रगति के लिए काम करना है।
15वें वित आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने हिमालयन कॉन्क्लेव को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि अपनी साझा समस्याओं को रखने व उनके हल के लिए नीति निर्धारण में यह एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म साबित होगा। केन्द्र भी हिमालयी राज्यों के साथ है। वित आयोग, हिमालयी राज्यों की समस्याओं से भलीभांति अवगत है। सम्मेलन में उठायी गयी बातों से वित्त आयोग भी सहमत है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए संवैधानिक दायरे में हर सम्भव प्रयास किया जाएगा। हिमालयी राज्य वैश्विक पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं। यहां जीवन स्तर को सुधारने के लिए क्या सिस्टम बनाया जा सकता है, इस पर विचार किया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन अत्यंत कठिन होता है। यहां की समस्याएं अन्य राज्यों से अलग हैं। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में रेल व हवाई कनैक्टीविटी विकसित किये जाने की आवष्यकता बतायी। छोटे राज्यों के सीमित संसाधनों को देखते हुए केन्द्र द्वारा वित्तीय सहायता में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि कि हिमालयी राज्यों में विकास की बहुत संभावनाएं हैं। इसके लिए हमें टारगेट सेट करने की आवश्यकता है। पर्यटन की संभावनाओं की दृष्टि से भी सभी हिमालयन राज्य बहुत ही समृद्ध हैं। अभी यहां घरेलू पर्यटकों की अधिकता है। पर्यटन को और अधिक तेजी से विकास करने के लिए अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित किया जाना बहुत ही जरूरी है। वैल्यू एडेड एग्रीकल्चर को प्रोत्साहित करना जरूरी है। लक्ष्यों को निर्धारित कर समयबद्ध तरीके से योजनाओं का क्रियान्वयन करना जरूरी है। इस सम्मेलन के माध्यम से सभी हिमालयन राज्य आपसी तालमेल से नई योजनाओं को साझा कर नीति आयोग के समक्ष रख सकते हैं। हमे अपनी समस्याओं और संभावनाओं का अध्ययन कर उसके अनुसार योजनाओं को बनाना चाहिए। हमे अपनी कृषि की लागत को कम करने की आवश्यकता है। संसाधनों की समीक्षा करने की आवश्यकता है। भविष्य में पानी की समस्या को देखते हुए सभी राज्यों द्वारा जल संरक्षण के लिए विशेष नीतियां बनाई जानी चाहिए। इसके लिए वॉटरशेड मैनेजमेंट की अत्यधिक आवश्यकता है। हमें नदियों के स्रोतों को बचाने के प्रयास करने होंगे। जल संरक्षण के लिए सभी राज्यों को अंतरराजयीय सहयोग से नीतियां तैयार करनी होंगी। सीमांत राज्यों को पलायन को रोकने और सीमांत क्षेत्रों में विकास करने की आवश्यकता है। विकास के लिए आकांक्षी जनपदों में विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड कोंगकल संगमा ने कहा कि हिमालयी राज्यों में विकास योजनाओं की लागत अधिक होती है। इसलिए केन्द्र द्वारा विभिन्न विकास योजनाओं के मानकों में इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। आर्थिक विकास व पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाये रखना, हिमालयी राज्यों की दोहरी जिम्मेदारी होती है। हमें सतत विकास के लिए रिस्पोंसिबल टूरिज्म पर फोकस करना होगा। उन्होंने पर्वतीय राज्यों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान की आवष्यकता पर बल दिया। नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने सम्मेलन को बेहतर शुरूआत बताते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका संवर्द्धन व इको सिस्टम के महत्व पर जोर दिया। अरूणाचल के उप मुख्यमंत्री चोवना मेन ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं के विकास पर विषेष ध्यान देना होगा। मिजोरम के मंत्री टी.जे.लालनुनल्लुंगा ने अपने सम्बोधन में प्राकृतिक आपदा, जैव विविधता संरक्षण में स्थानीय लोगो की भागीदारी, डिजीटल कनैक्टीविटी पर जोर दिया। सचिव, पेयजल एवं स्वच्छता भारत सरकार परमेष्वरमन अय्यर ने जल शक्ति अभियान पर प्रस्तुतिकरण दिया। उन्होंने जल संरक्षण में स्प्रिंगषेड मैनेजमेंट को प्रभावी ढंग लागू करने की बात कही। इसमें पारंपरिक ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीक का समन्वय उपयोगी सिद्ध होगा। जमींनी स्तर पर पैरा हाइड्रोलॉजिस्ट तैयार किये जाने की संभावनाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में ट्रेंचध्खांटी के माध्यम से जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों की प्रधानमंत्री ने सराहना की है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य कमल किशोर ने डिजास्टर रिस्क मैंनेजमेंट पर प्रस्तुतिकरण देते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में वहां की परिस्थितियों के अनुरूप भवन निर्माण पर जोर दिय जाने की बात कही। सिक्किम के मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. महेन्द्र पी.लामा ने केन्द्रीय सहायता में ईको सिस्टम सर्विसेज को विषेष भार दिये जाने की बात कही।
जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के सलाहकार के.के.शर्मा, आई.आई.एफ.एम. की डॉ. मधु वर्मा व सुशील रमोला ने भी विचार व्यक्त किये। सम्मेलन के समापन अवसर पर उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने धन्यवाद ज्ञापित किया। बैठक में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, सचिव वित्त अमित नेगी, अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश, डी.जी.पी. अनिल रतूड़ी, सचिव सौजन्या, अपर सचिव सोनिका, महानिदेशक सूचना डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट सहित अन्य राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री ने हिमालयन कान्क्लेव को बताया सफल

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मसूरी में आयोजित हिमालयन कान्क्लेव के संबंध में बताया कि यह आयोजन सफल रहा है। प्रथम बार हिमालयन राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा प्रतिभाग किया गया है। उन्होंने बताया कि असम राज्य को छोड़कर 10 राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिमालयन कान्क्लेव में शामिल हुए। जिसमें हिमांचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय के मुख्यमंत्री, अरूणाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं अन्य राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा प्रतिभाग किया गया।
मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालयन कान्क्लेव में मुख्यतः आपदा, जल शक्ति, पर्यावरणीय सेवाओं आदि पर चर्चा की गई। उन्होंने कहा कि सभी हिमालय राज्यों द्वारा एक कॉमन एजेंडा तैयार कर केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दिया गया। हिमालयी राज्यों द्वारा यह भी मांग की गई है कि पर्यावरणीय सेवाओं के लिए ग्रीन बोनस दिया जाना चाहिए। हिमालयी राज्य देश के जल स्तम्भ है, जो माननीय प्रधानमंत्री के जल शक्ति संचय मिशन में प्रभावी योगदान देंगे। नदियों के संरक्षण व पुनर्जीवीकरण के लिए केन्द्र पोशित योजनाओं में हिमालयी राज्यों को वित्तीय सहयोग दिया जाना चाहिए। नये पर्यटक स्थलों को विकसित करने में केन्द्र सरकार द्वारा सहयोग दिया जाना चाहिए। देश की सुरक्षा को देखते हुए पलायन रोकने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हिमालयी राज्यों की इस चिंता पर केन्द्रीय वित्त मंत्री द्वारा भी आश्वासन दिया गया है। हिमालयन कान्क्लेव में इस बात पर सर्वसम्मति बनी कि प्रतिवर्श आयोजित किया जाय। साथ ही हिमालय क्षेत्र के लिए अलग मंत्रालय का गठन किया जाय। इस सम्मेलन में नीति आयोग, पन्द्रवां वित्त आयोग व वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हिमालयी राज्यों के लिए बजट में अलग से प्लान किये जाने का आश्वासन दिया गया।
प्रेस वार्ता में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार, अरूणाचल के उप मुख्यमंत्री चोवना मेन, जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के सलाहकार के.के.शर्मा, उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह सहित अन्य राज्यों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

उत्तराखंड के प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की जरुरतः मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पर्वतीय जिलों में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए जिलाधिकारियों को विशेष ध्यान देने के निर्देश दिये गये हैं। विकासखण्ड स्तर पर यह विचार करना जरूरी है कि कैसे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की जा सकती है। उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों में प्रति व्यक्ति आय में 30 हजार रूपये की वृद्धि हुई है। पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिये सरकार प्रयासरत है। इन्वेस्टर समिट में 40 हजार करोड़ रूपये के एमओयू पर्वतीय क्षेत्रों के लिए हुए है। प्रत्येक न्याय पंचायत पर ग्रोथ सेंटर विकसित किये जा रहे हैं। 58 ग्रोथ सेंटर स्वीकृत किये जा चुके हैं। पिरूल से बिजली बनाने का कार्य किया जा रहा है। सौर ऊर्जा की 600 करोड़ की योजनायें विभिन्न उद्यमियों को पर्वतीय क्षेत्रों के लिए आवंटित की गई हैं। सर्विस सेक्टर में भी काफी इन्वेस्टमेंट पहाड़ों में संभावित है। महिला सशक्तीकरण के लिए एलईडी उपकरण बनाने के लिए ब्लॉक स्तर महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। सरकार ने इन उपकरणों की खरीद की व्यवस्था भी की है।
उत्तराखण्ड की प्रथम मानव विकास रिपोर्ट 2019 इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट नई दिल्ली के सहयोग से तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य का ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स 0.718 है। इस रिपोर्ट में ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स, लैंगिक विकास सूचकांक, बहुआयामी गरीबी सूचकांक यथा शिक्षा, स्वास्थ्य व जीवन स्तर एवं राज्य में जन्म पर जीवन प्रत्याशा का आकलन किया गया है। मानव विकास सूचकांक में देहरादून प्रथम, हरिद्वार दूसरे व उधमसिंह नगर तीसरे स्थान पर रहे। लैंगिक विकास सूचकांक में उत्तरकाशी प्रथम, रूद्रप्रयाग द्वितीय तथा बागेश्वर तृतीय स्थान पर रहे। बहुआयामी गरीबी सूचकांक में उत्तरकाशी प्रथम, हरिद्वार द्वितीय व चम्पावत तृतीय स्थान पर रहे। उत्तराखण्ड राज्य की जन्म पर जीवन प्रत्याशा 71.3 वर्ष है। पिथौरागढ़ जनपद में जन्म पर जीवन प्रत्याशा सर्वाधिक 72.1 वर्ष है।

मानव विकास रिपोर्ट रिपोर्ट में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, स्वच्छता, विद्युतीकरण, प्रति व्यक्ति आय के क्षेत्र में राज्य की उपलब्धियों के साथ विकास के मार्ग में मौजूद बाधाओं व चुनौतियों व उनकों दूर करने के लिए मार्गदर्शक उपायों को भी समावेशित किया गया है। जो भविष्य में बेहतर विकास रणनीतियों के निर्माण एवं क्रियान्वयन हेतु राज्य सरकार व विभिन्न विभागों को उत्प्रेरित करती रहेगी। यह रिर्पोट मानव विकास तथा समावेशी विकास को विकास के केन्द्र के रूप में बनाये रखने हेतु राज्य की योजनाओं, नीतियों एवं हस्तक्षेपों के आधार के रूप में कार्य करेगी।
‘ग्रीन एकाउंटिंग ऑफ फॉरेस्ट रिसोर्स, फ्रेमवर्क फॉर अदर नेचुरल रिसोर्स एण्ड इण्डेक्स फॉर सस्टनेबल एनवायरमेंटल परफॉर्मेंस फॉर उत्तराखण्ड स्टेट’ हेतु इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल के सहयोग से तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में राज्य के वन संसाधनों के आर्थिक महत्व को मौद्रिक रूप में मापने का प्रयास किया गया है। राज्य 18 वन सेवाओं को फ्लो वैल्यू 95,112.60 करोड़ तथा तीन सेवाओं का स्टॉक वैल्यू 14,13,676.20 करोड़ आंकलित हुआ है। इससे राज्य सरकार की लंबे समय से चली आ रही ग्रीन बोनस की मांग को भारत सरकार के समक्ष अधिक प्रभावी ढ़ग से रखने में मदद मिलेगी।
उत्तराखण्ड आर्थिक सर्वेक्षण भाग-2 में उत्तराखण्ड राज्य की अर्थव्यवस्था को समृद्ध कर राज्य को देश के अग्रणी राज्य में शामिल करने के साथ-साथ समान सामाजिक न्याय, पर्यावरण तथा विकास की प्रक्रिया के बीच ताल-मेल को बढ़ावा देने, पर्यटन के क्षेत्र में पर्यटन स्थलों को वैश्विक स्तर का तैयार कर घरेलू तथा विदेशी पर्यटकों के लिए शीर्ष प्राथमिकता प्रदान करना है। राज्य के दूर-दराज पहाड़ी क्षेत्रों में औद्यानिकी के द्वारा कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने तथा पारिस्थितिकी के अनुकूल औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए इसमें मदद मिलेगी। यह रिपोर्ट राज्य द्वारा सतत विकास 2030 के लक्ष्यों की कार्य योजना में भी सहायक होगी।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री के औद्योगिक सलाहकार डॉ. के.एस. पंवार, प्रमुख सचिव मनीषा पंवार, श्रम संविदा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल, सचिव बी.एस मनराल, अपर सचिव सुरेश जोशी, निदेशक अर्थ एवं संख्या सुशील कुमार, डी.डी.जी. एन.एस.एस.ओ राजेश कुमार, आईआईएमएफ भोपाल की डॉ. मधु वर्मा, आईएचडी नई दिल्ली के डॉ.आई.सी. अवस्थी, ई.एच.आई संस्थान के डॉ. आर.एस. गोयल आदि उपस्थित थे।

उत्तर प्रदेश हायर ज्यूडिशिल सर्विसेज में ऋषिकेश की महिला का चयन

दिल में कुछ करने का जज्बा हो तो उम्र के हर पड़ाव पर सफलता हासिल की जा सकती है। तीर्थनगरी की 39 वर्षीय कल्पना पांडेय ने इस बात को साकार कर दिखाया है। उन्होंने शादीशुदा जीवन व्यतीत करते हुए न सिर्फ वकालत की पढ़ाई की बल्कि उत्तर प्रदेश हायर ज्यूडिशिल सर्विसेज (यूपीएचजेएस) की परीक्षा पास की है। फैजाबाद की मूल निवासी कल्पना पांडेय की शादी 1998 में ऋषिकेश आईडीपीएल निवासी आशीष पांडेय के साथ हुई थी। शादी के वक्त कल्पना सिर्फ 12वीं पास थी।
शादी के बाद कल्पना ने स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई ऋषिकेश पीजी कॉलेज से की। उनके दो बच्चे हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करते हुए उन्होंने डीएवी कॉलेज देहरादून से एलएलबी और एलएलएम की परीक्षा हरिद्वार से पास की। वर्ष 2012 में वह सहायक अभियोजन अधिकारी (एपीओ) के पद पर तैनात हुईं। इतना हासिल करने के बाद भी उनके पैर यहीं नहीं थमे और उन्होंने जज बनने की ठानी। मेहनत और लगन रंग लाई। उन्होंने यूपीएचजेएस की परीक्षा में दो बार के प्रयास से सफलता हासिल की।

अधिकत्तर केसों में मिली सफलता
बतौर सरकारी अधिवक्ता कल्पना पांडेय की पहली ज्वाइनिंग देहरादून कोर्ट में हुई। वर्तमान में वह हरिद्वार कोर्ट में कार्यरत है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष अभी तक उनका 92 प्रतिशत केसों में सफलता प्राप्त करने का रिकॉर्ड है। एलएलबी और एलएलएम के बाद जज बनने का ख्वाब रखने वाले अधिवक्ताओं के लिए कल्पना पांडेय कहती हैं कि पढ़ाई के दौरान धैर्य बनाए रखना आवश्यक है। यदि धैर्य का अभाव है तो आपके अंदर कितनी भी प्रतिभा हो, व्यर्थ रह जाएगी। किसी भी परीक्षा में सफलता अर्जित करने के लिए निरंतर पढ़ाई करें, सदैव अपडेट रहें।

लंबित मुकदमों निस्तारण प्राथमिकता
एडीजे कल्पना पांडेय ने बताया कि उनकी हमेशा से प्राथमिकता रही है कि सही और न्याय समय पर मिल सके। एडीजे के पद पर नियुक्त होते ही उनका यह उद्देश्य रहेगा कि लंबित पड़े वादों को जल्द निपटाऊं। उन्होंने कहा कि लोगों में न्यायालय के प्रति विश्वास बना रहे, इस बात को ध्यान में रखकर काम में तीव्रता लाते हुए काम करूंगी।