इंडियन रेड क्रास सोसाइटी ने आपदा प्रभावितों को राहत सामान भेजा

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से शनिवार को मुख्यमंत्री आवास में इंडियन रेड क्रास सोसाइटी के प्रतिनिधियों ने भेंट की। उन्होंने हाल ही में प्रदेश में आयी देवी आपदा से पीड़ितो की मदद के लिये विशेषकर नैनीताल एवं ऊधम सिंह नगर जनपद के आपदा प्रभावितों को बड़ी संख्या में कम्बल, किचन सेट, मच्छर दानी, टेन्ट तथा आवश्यक दवाइया आदि प्रदान की।
रेडक्रास द्वारा प्रदान की गई सामग्री सम्बन्धित जनपदों को रवाना करते हुए मुख्यमंत्री ने रेडक्रास सोसाइटी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि पीड़ितो की मदद करना सबसे बड़ी मानव सेवा है।
इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक तथा रेड क्रास सोसाइटी के पदाधिकारी उपस्थित थे।

टीकाकरण अभियान-एम्स ऋषिकेश में 50 हजार डोज लगाई गई

अखिल भारतीय आयुविज्ञान संस्थान, ऋषिकेश के टीकाकरण केंद्र के तत्वावधान में अब तक लोगों को कोविड-19 वैक्सीन की 50,000 डोज लगाई जा चुकी है। शुक्रवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण की उपस्थिति में 50,000 वीं डोज लगाई गई। शुक्रवार को एम्स,ऋषिकेश कोविड-19 वैक्सीनेशन सेंटर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान 50,000 वीं को​विड 19 वैक्सीन की डोज ऋषिकेश निवासी खुशीराम को लगाई गई। इस अवसर पर विशेषरूप से मौजूद भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने एम्स ऋषिकेश की इस उपलब्धि पर बधाई दी एवं हैल्थ केअर स्टाफ के कार्यों की सराहना की। इस अवसर पर यमकेश्वर विधायक ऋतु खंडूड़ी भी उपस्थित रहीं। इस उपलब्ध के लिए विधायक ऋतु खंडूड़ी के साथ ही एम्स निदेशक प्रोफेसर अरविंद राजवंशी ने भी एम्स संस्थान के हेल्थकेयर स्टाफ को बधाई दी।
आयोजित कार्यक्रम के दौरान संस्थान के डीन एकेडेमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता, मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रो. अश्वनी कुमार दलाल, वैक्सीनेशन नोडल ऑफिसर तथा कम्युनिटी एवं फैमिली मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रो. वर्तिका सक्सैना के अलावा अन्य चिकित्सकों व एम्स प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में केक काटा गया। इस अवसर पर कोविड-19 वैक्सीनेशन सेंटर, एम्स ऋषिकेश के प्रभारी डॉ. महेन्द्र सिंह ने बताया कि इस केंद्र पर भारत सरकार की गाइडलाइन के तहत 16 जनवरी-2021 को कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रारंभ हुआ। जिसके तहत अब तक 50,000 डोज लगाई जा चुकी हैं। इसमें 27,616 प्रथम डोज व 22,384 द्वितीय डोज लगाई गई हैं। इनमें से 10,846 डोज हेल्थ केयर स्टाफ, फ्रंटलाइन वर्कर्स तथा 39,154 डोज सामान्य जनता को लगाई गई है।
केंद्र प्रभारी ने बताया कि अब तक इस सेंटर पर 223 वैक्सीनेशन सत्र आयोजित किए जा चुके हैं। पिछले 9 महीने से यह केंद्र निरंतर टीकाकरण का कार्य कर रहा है। यहां पर कोविशील्ड तथा को-वैक्सीन दोनों ही कोविड-19 वैक्सीन की डोज सभी आयुवर्ग (18 वर्ष एवं उससे अधिक) के लिए उपलब्ध है। संस्थान के कम्युनिटी एवं फैमिली मेडिसिन विभाग द्वारा संचालित इस केंद्र पर संकायगण, जूनियर डॉक्टर, इन्टर्नस, नर्सिग स्टाफ एवं पैरामेडिकल की टीम चिकित्सा विभाग, उत्तराखंड सरकार के सहयोग से कोविड-19 वैक्सीनेशन के शतप्रतिशत लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए सततरूप से कार्यरत है। इस अवसर पर प्रो. कमर आजम, डॉ. अजीत भदौरिया, डॉ. योगेश बहुरूपी, डा. मधुर उनियाल, जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल, रजिस्ट्रार राजीव चौधरी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी शशिकांत, प्रशासनिक अधिकारी संतोष, पुस्तकालयाध्यक्ष संदीप सिंह, नर्सिंग सुपरिटेंडेंट घेवर चंद,नर्सिंग इंचार्ज जिमिमा, एएनएस जितेंद्र आदि मौजूद रहे।

एम्स ने कोडिंग करने की जानकारी दी

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में आयोजित कार्यशाला में तृतीयक देखभाल वाले अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में आईसीडी-10 की उपयोगिता और इसको बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। बताया गया कि मेडिकल और स्वास्थ्य से संबंधी अनुसंधान के क्षेत्र में हेल्थ रिकॉर्ड का विशेष महत्व होता है।
एम्स ऋषिकेश में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग लखनऊ के क्षेत्रीय कार्यालय के तत्वावधान में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। ’प्रमोट टू यूज ऑफ आईसीडी-10 इन टेरटियरी केयर हॉस्पिटल एंड मेडिकल कॉलेज’ विषय पर आधारित इस कार्यशाला में मेडिकल स्टूडेट्स और कार्यरत मेडिकल स्टाफ को विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई, कि किस प्रकार इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीज में मेडिकल हेल्थ रिकॉर्ड की उपयोगिता महत्वपूर्ण है।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए डीन एकेडेमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्मित रोग और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी वर्गीकरण का दसवां संस्करण ’आईसीडी-10’ चिकित्सीय वर्गीकरण की सूचियों का समूह है।
डीन रिसर्च प्रोफेसर वर्तिका सक्सैना ने बताया कि अभी तक भारत के कुछ बड़े अस्पतालों में ही आईसीडी-10 की ऑनलाइन कोडिंग व्यवस्था है। मरीजों के हित के लिए अब उत्तराखंड में भी इसे शुरू करने की प्रक्रिया चल रही है। इसी प्रक्रिया के तहत इस कार्यशाला का आयोजन किया गया।
मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रोफेसर अश्वनी कुमार दलाल ने कहा कि आईसीडी-10 मेडिकल हेल्थ रिकॉर्ड पर आधारित ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली है, जिससे चिकित्सकों को मरीज की पूरी हिस्ट्री देखने के लिए अलग-अलग कई रिपोर्ट नहीं पढ़नी पड़ेगी। इस सुविधा से सिर्फ आईसीडी-10 कोड की मदद से मरीज की पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाएगी।
इस अवसर पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, क्षेत्रीय कार्यालय लखनऊ के उप निदेशक डॉ. सचिन कुमार यादव ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बीमारियों के उपचार के लिए संबंधित रिसर्च, प्रोग्रेस रिपोर्ट अथवा दवा निर्माण आदि में मेडिकल हेल्थ रिकॉर्ड का विशेष महत्व होता है। बताया कि मेडिकल क्षेत्र में जितना बेहतर सूचनाओं का डाटा होगा, उतना ही हमें रिसर्च में मदद मिलेगी। उन्होंने निकट भविष्य में राज्य में आईसीडी-10 के क्रियान्वयन के लिए एम्स ऋषिकेश के सहयोग की आवश्यकता बताई। उन्होंने बताया कि आईसीडी-10 व्यवस्था में रोग और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी वर्गीकरण किया गया है, जिसमें रोगों, उनके लक्षणों, समस्याओं, तथा सामाजिक परिस्थितियों आदि की कोडिंग की गई है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्मित है। इस दौरान कार्यशाला में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के डॉ. वीपी श्रीवास्तव ने आईसीडी-10 के क्रियान्वयन का प्रतिभागियों को विस्तृत प्रशिक्षण दिया। उन्होंने मरीज से संबंधित सभी प्रकार की जानकारियों को कोडिंग करने की बारिकी से जानकारी दी।
इस बाबत जानकारी देते हुए कार्यशाला के समन्वयक एवं सीएफएम विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. योगेश बहुरूपी ने बताया कि निकट भविष्य में इस कार्यशाला का एम्स ऋषिकेश को भी लाभ मिलेगा। उन्होंने बताया कि इस सिस्टम को राज्य के अन्य मेडिकल कॉलेजों में सुचारू रूप से लागू करने के लिए एम्स ऋषिकेश पूर्ण सहयोग देगा। कार्यशाला में अस्पताल प्रशासन के प्रोफेसर यूबी मिश्रा, जनरल मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रो. मीनाक्षी धर, फिजियोलॉजी विभाग की डॉ. सुनीता मित्तल, सीएफएम विभाग के डॉ.महेन्द्र सिंह, डॉ. प्रदीप अग्रवाल, डॉ. मीनाक्षी खापरे सहित 100 से अधिक मेडिकल स्टाफ मेंबर्स मौजूद रहे।

एम्स के ओबीजी डिपार्टमेंट की रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गाइनेकॉलोजी डिवीजन में हुआ युवती का सफल ऑपरेशन 

एम्स ऋषिकेश में 2019 में स्थापित स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की रिकंस्ट्रक्टिव एंड कॉस्मेटिक गाइलेकोलॉजी डिवीजन में नर्व स्पेयरिंग रिडक्शन क्लिटोरोप्लास्टीस नामक दुर्लभ एवं अति जटिल सर्जरी सफलतापूर्वक हुई है, रिकंस्ट्रक्टिव एंड कॉस्मेटिक गाइनेकोलॉजी विंग ने पूर्व में भी कुछ नर्व स्पेयरिंग रिडक्शन क्लिटोरोप्लास्टीस एवं कई तरह की और भी दुर्लभ एवं जटिल शल्य चिकित्सा की हैं। गोरखपुर एम्स से रेफर होकर आई एक 20 साल की अविवाहित युवती को शनिवार को ऑपरेशन थियेटर में नया जीवनदान मिला। सर्जरी को रिकंस्ट्रक्टिव एंड कॉस्मेटिक गाइनेकोलॉजी डिवीजन के डॉक्टर नवनीत मागों और उनकी टीम ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। एम्स का स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग का यह डिवीजन दुनिया के मेडिकल संस्थानों में अपनी तरह का पहला डिवीजन है।                                                                                 गत वर्ष एक ऐसे ही मरीज की सर्जरी करके एम्स ऋषिकेश के रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गाइनेकोलॉजी डिवीजन ने देश के मेडिकल साइंस एवं शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में नई उपलब्धि हासिल की थी। 

डा. नवनीत के अनुसार इस युवती का जन्म से ही कंजेनिटल एड्रिनल हाइपरप्लेशिया और क्लिटोरिस का आकार बढ़ा हुआ था I बेटी के दांपत्य जीवन को लेकर चिंतित पिता ने देश के विभिन्न मेडिकल संस्थानों में उसका परीक्षण कराया, लेकिन कहीं भी इसका समुचित उपचार नहीं मिल पाया, एम्स गोरखपुर से मरीज को उपचार के लिए ऋषिकेश एम्स रेफर कर दिया गया। जहां डा. नवनीत मग्गों ने युवती का स्वास्थ्य परीक्षण कराया, जिसके बाद उसकी क्लिटोरोमेगली अर्थात  क्लिटोरल हाइपरट्राफी का पता चल सका                 

 चिकित्सक ने बताया कि यह एक दुर्लभ किस्म का मामला था, क्योंकि महिला का क्लोटोरिस पुरुष के लिंग की तरह बड़ा था एवं बाकी का जननांग विकृत था। संस्थान के स्त्री रोग विभाग की पुनर्निर्माण और कॉस्मेटिक स्त्री रोग इकाई के डॉ. नवनीत मग्गों और उनकी टीम ने नर्व स्पेयरिंग रिडक्शन क्लिटोरोप्लासटी तकनीक के माध्यम से इसका सफल उपचार किया एवं साथ में ही इस महिला के लेबिया माइनोरा (लघु भगोष्ठ) का भी पुनर्निर्माण किया। लगभग दो घंटे चली इस सर्जरी में चिकित्सकीय दल उसे एक सामान्य स्त्री रूप और अंजाम देने में सफल रही।                                                                                             उन्होंने बताया कि संस्थान में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की पुनर्निर्माण और कॉस्मेटिक स्त्री रोग डिवीजन की स्थापना के बाद से इस डिवीजन में पूरे देश से लगातार कई अन्य तरह के मामले पूर्व में भी रेफर होकर आ चुके हैं। उन्होंने बताया कि इसकी वजह यह है कि स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की इस इकाई की स्थापना देश ही नहीं, विश्व के किसी भी मेडिकल संस्थान में नहीं है, एम्स ऋषिकेश में यह अपनी तरह की पहली डिवीजन खुली हैI                                                                                                                   उन्होंने बताया कि इस सर्जरी युवती को एक नया जीवन मिला है, लिहाजा अब वह एक सामान्य यौन जीवन जी सकती हैं और वैवाहिक जीवन के लिए पूरी तरह फिट है।                                                                                                                    रिकंस्ट्रक्टिव एंड कॉस्मेटिक गाइनेकोलॉजी डिवीजन ने विश्व में पहली बार एम. सी. एच.कॉस्मेटिक गाइनेकोलॉजी शुरू की है।  एम्स ऋषिकेश में स्थापित स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की इस डिवीजन की प्रशंसा भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी की हैI जल्द ही एम्स की इस इकाई की ओर से पूरे विश्व से मेडिकल टूरिज्म के माध्यम से विदेशी मरीजों का भी इलाज शुरू किया जाएगा। जिससे एम्स ऋषिकेश उत्तराखंड और पूरे देश का नाम विश्व में रोशन करेगा। इससे उत्तराखंड के नागरिकों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे, जिससे प्रदेश को आर्थिक लाभ होगा और देश को विदेशी मुद्रा में आय मिल सकेगी। उन्होंने बताया कि यही हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी स्वप्न है कि हमारे देश का नाम पूरे विश्व में हो।

पैक्ड फूड व पेय पदार्थों से पैदा हो रही बीमारियां, चिकित्सकों ने बंद करने दिया जोर

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में आयोजित कार्यशाला में देश के राष्ट्रीय महत्व के चिकित्सा संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञ चिकित्सकों ने जनमानस को एनसीडी और मोटापे के संकट को दूर करने के लिए फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल (एफओपीएल) पर तत्काल कार्रवाई का मांग की है। उनका कहना है कि पैक्ड फूड व पेय पदार्थों के बढ़ता चलन लोगों के अनेक घातक बीमारियों से ग्रसित होकर असमय मृत्यु का कारण बन रहा है, लिहाजा इसे रोका जाना चाहिए।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलीरी साइंसेज, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन, इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स एंड एपिडेमियोलॉजिकल फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने अन्य शीर्ष चिकित्सा संस्थानों के प्रमुख ​चिकित्सकों के साथ अनिवार्य फ्रंट-ऑफ-पैक फूड लेबल के लिए विशेष मांग की है।

बताया गया है कि 135 मिलियन लोग मोटापे और गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण होने वाली मौतों की वर्तमान वृद्धि दर है, जबकि भारत खराब भोजन के विनाशकारी प्रभाव का सामना कर रहा है। पैकेज्ड जंक फूड जो अस्वास्थ्यकर आहार का एक प्रमुख घटक है। विशेषज्ञ चिकत्सकों के अनुसार दुनियाभर में किसी भी अन्य जोखिम कारक की तुलना में अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है और मोटापे, टाइप- 2 मधुमेह, हृदय रोग (सीवीडी) और कैंसर का एक प्रमुख कारण है। मोटापे की महामारी और एनसीडी के प्रसार में एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में शर्करा, सोडियम और संतृप्त वसा के उच्च स्तर वाले अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की बाजार उपलब्धता में तेजी का हवाला देते हुए, भारत के शीर्ष चिकित्सा विशेषज्ञों ने अपील की है कि इसकी रोकथाम के लिए एक प्रभावी एफओपीएल को अपनाना आवश्यक है।

एम्स ऋषिकेश द्वारा आयोजित कार्यक्रम में संस्थान के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क, इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलीरी साइंसेज, पीजीआईएमईआर, आईपीएचए, नेशनल हेल्थ मिशन, उत्तराखंड और अन्य चिकित्सा संस्थानों के विशेषज्ञों ने दावा किया कि यदि देश में नमक, चीनी, संतृप्त वसा के लिए वैज्ञानिक कट-ऑफ सीमा लागू करता है और पैकेज्ड उत्पादों पर स्पष्ट और सरल चेतावनी लेबल अनिवार्य करता है, जैसा कि चिली, मैक्सिको और ब्राजील जैसे देशों में किया गया है तो ऐसा करने से इन तमाम वजहों से होने वाली अकाल मौतों को रोका जा सकता है।

निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने देश के लिए एक मजबूत और प्रभावी एफओपीएल सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता है। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि भारत का चिकित्सा समुदाय इस महत्वपूर्ण नीतिगत उपाय के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है, जिससे कि हजारों भारतीय लोगों की जीवन रक्षा हो सकती है।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि निदेशक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तराखंड डॉ. सरोज नैथानी ने कहा कि स्वस्थ भोजन हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए, हमारे पूर्वजों द्वारा कहा गया है कि “भारत की एक समृद्ध परंपरा है जो ऐसे भोजन की वकालत करता है जो पौष्टिक, शुद्ध और स्वादिष्ट हो, लेकिन बाजार में पैक्ड खाद्य पदार्थों के आने से हमारा जीवन, खानपान बदल गया है। उन्होंने बताया कि युवा आमतौर पर प्रोसेस्ड पैकेज्ड फूड के आदी होने लगे हैं और इस तरह का भोजन आमतौर पर हरेक घर में इस्तेमाल किया जाने लगा है। जो कि स्वास्थ्य वर्धक न होकर जनस्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। उनका कहना है कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि य​दि ऐसी खाद्य सामग्री पर कड़ाई से रोक लगाई जाती है तो लगतार बढ़ती हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

उनका कहना है कि आंकड़ों के मुताबिक लगभग 5.8 मिलियन लोग यानि 4 में से 1 व्यक्ति की 70 वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले ही एनसीडी से मृत्यु हो जाती है।

इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम) की अध्यक्ष डॉ. सुनीला गर्ग के अनुसार मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग या कैंसर जैसी कई अन्य घातक बीमारियां पैक्ड फूड व पेय पदार्थों के अत्यधिक सेवन से बढ़ रही हैं। लिहाजा दुनियाभर के कई देश इस बात को स्वीकार करने लगे हैं कि उपभोक्ताओं को उनके स्वास्थ्य के अधिकार के हिस्से के रूप में इन उत्पादों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जो कि उन्हें दिया जाना चाहिए।

उनका कहना है कि दुनिया के देश बीते वर्ष जब कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभाव का सामना कर रहे थे, तब खाद्य और पेय उद्योग जनस्वास्थ्य के लिए खतरनाक पैक्ड फूड व शर्करा युक्त पेय पदार्थों के अपने बाजार का विस्तार कर रहे थे। यूरोमॉनिटर के अनुमान के मुताबिक, भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री 2005 में प्रति व्यक्ति 2 किलोग्राम से बढ़कर 2019 में 6 किलोग्राम हो गई है और 2024 में 8 किलोग्राम तक बढ़ने की उम्मीद है।
एम्स ऋषिकेश द्वारा शुरू की गई इस मुहिम के तहत आयोजित कार्यक्रम के समन्वयक व सीएफएम विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि एम्स द्वारा की गई यह पहल जन-जन तक पहुंचनी चाहिए। उनका कहना है कि इसके जनजागरुकता अभियान बनने से ही समुदाय एवं आम नागरिकों का स्वास्थ्य लाभ संभव हो सकता है।
इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन (आईपीएचए) के अध्यक्ष डॉ. संजय राय ने जोर दिया कि एफओपीएल वास्तव में सार्वजनिक स्वास्थ्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है।

अंधतत्व निवारण को नगरभर में निकली साइकिल रैली, नेत्रदान का हुआ आह्वान

एम्स ऋषिकेश के तत्वावधान में आयोजित नेत्रदान पखवाड़े के तहत आज नगरभर में साइकिल जनजागरूकता रैली निकाली गई। इसके माध्यम से लोगों से ब्लाइंडनेस को कम करने के लिए नेत्रदान का संकल्प लेने का आह्वान किया गया। एम्स निदेशक ने इस रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।

इस मौके पर उन्होंने समाज से अंधतत्व निवारण हेतु इस तरह के जनजागरूकता कार्यक्रमों को नितांत आवश्यक बताया, साथ ही रैली में प्रतिभाग करने वाले लोगों का आभार व्यक्त किया। रैली में 150 से अधिक लोग शामिल हुए। जनजागरूकता रैली एम्स से बैराज मार्ग, कोयल घाटी, हरिद्वार रोड तिलक रोड, अंबेडकर चौक होते हुए आगे बढ़ी व देहरादून रोड स्थित जीजी आईसी, हीरालाल मार्ग, परशुराम चौक होते हुए एम्स परिसर में सम्पन्न हुई।

ऋषिकेश आई बैंक की ओर से आयोजित रैली में एम्स फैकल्टी सदस्यों, वरिष्ठ चिकित्सकों, पीजी डॉक्टरों, सिक्योरिटी गार्ड्स, संस्थान के आई बैंक स्टाफ के सदस्यों के साथ ही रेड राइडर्स ग्रुप, ब्लू राइडर्स, ऋषिकेश साइकिल ग्रुप, लायंस क्लब के सदस्यों, विभिन्न स्कूल कॉलेजों के छात्रों व स्थानीय गणमान्य नागरिकों ने बढ़चढ़कर प्रतिभाग किया।

इस अवसर पर संस्थान के डीन प्रोफेसर मनोज गुप्ता, आईबीसीसी प्रमुख व वरिष्ठ सर्जन प्रोफेसर बीना रवि, डीएचए प्रो. यूबी मिश्रा, संस्थान के नेत्ररोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर संजीव कुमार मित्तल, आई बैंक की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. नीति गुप्ता, वरिष्ठ चिकित्सक डाक्टर रोहित गुप्ता, डा.पीके पांडा, डा.अनुभा अग्रवाल, डा.अनुपम, डा. रामानुज सामंता, जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल, विधि अधिकारी प्रदीप पांडे, विक्रम सिंह के अलावा नगर के गणमान्य व्यक्तियों में जयेंद्र रमोला, राकेश मियां, गोपाल नारंग, शैलेंद्र बिष्ट, ज्योति प्रकाश शर्मा, नीरज शर्मा, जितेंद्र बिष्ट, सरदार बूटा सिंह, यशपाल सिंह चौहान आदि मौजूद थे।

एम्स ऋषिकेश में शुरू हुआ स्पेशल लंग क्लीनिक

यदि आप धूम्रपान करते हैं और आपको लम्बे समय से खांसी की शिकायत के साथ थकान महसूस हो रही है, तो सावधान हो जाएं। यह लंग कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार कैंसर से होने वाली मौतों में सर्वाधिक मौतें लंग कैंसर की वजह से होती हैं। ऐसे मरीजों के लिए एम्स ऋषिकेश में अब स्पेशल लंग क्लीनिक शुरू किया गया है। इस क्लीनिक का संचालन प्रत्येक शुक्रवार को किया जाएगा।
फेफड़े के कैंसर में फेफड़ों के किसी भाग में कोशिकाओं की अनियंत्रित व असामान्य वृद्धि होने लगती है। चिकित्सकों के अनुसार कईदफा फेफड़े के कैंसर का शुरुआती दौर में पता नहीं चल पाता है और यह अंदर ही अंदर बढ़ता जाता है। लिहाजा इसके लक्षण अक्सर विलंब से पता चलते हैं।
इस बाबत एम्स निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि फेफड़े का कैंसर एक गंभीर बीमारी है लेकिन आधुनिक मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के कारण अब कैंसर से छुटकारा संभव है। लक्षणों के आधार पर समय पर उपचार शुरू कर दिए जाने से कैंसर की गंभीर स्थिति से बचाव किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि एम्स ऋषिकेश में लंग कैंसर के लिए स्पेशल क्लीनिक संचालित किया जा रहा है। इस बीमारी के समुचित इलाज के लिए एम्स में सभी तरह की आधुनिक मेडिकल सुविधाएं और विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम उपलब्ध है।
पल्मोनरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. मयंक मिश्रा ने बताया कि बीड़ी-सिगरेट आदि धूम्रपान का सेवन करना फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा कारण है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के तम्बाकू उत्पाद, खैनी, गुटखा, सिगार का सेवन करने, धुएं के संपर्क में रहने, घर या कार्य स्थल पर एस्बेस्टस या रेडॉन जैसे पदार्थों के संपर्क में आने और पारिवारिक इतिहास होने के कारण भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।

आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में लंग कैंसर के मरीजों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में एम्स ऋषिकेश में इस बीमारी से ग्रसित औसतन 40 से 50 मरीज प्रति माह आ रहे हैं। मरीजों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर एम्स के पल्मोनरी विभाग में अलग से लंग क्लीनिक संचालित किया जा रहा है। इस क्लीनिक में केवल लंग कैंसर से ग्रसित मरीज ही देखे जाएंगे।
फेफड़ों के कैंसर के लक्षण
लंबे समय से खांसी-बलगम की शिकायत, खांसी में खून आना, सांस फूलना, सीने में दर्द, वजन का कम होना, चेहरे या गले में सूजन, आवाज बदल जाना, भूख कम लगना, लगातार थकान महसूस होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
शुक्रवार को संचालित होगा लंग क्लीनिक
पल्मोनरी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मयंक मिश्रा जी ने बताया कि लंग क्लीनिक प्रत्येक शुक्रवार को अपराह्न 2 से 4 बजे तक संचालित होगा। इस क्लीनिक में केवल वही मरीज देखे जाएंगे, जिन्हें पल्मोनरी विभाग की जनरल ओपीडी से रेफर किया गया हो। लिहाजा जरूरी है कि मरीज पहले पल्मोनरी की ओपीडी में अपना परीक्षण करा लें। क्लीनिक में पल्मोनरी विभाग के अलावा, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी के विशेषज्ञ चिकित्सक भी मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण करेंगे।

एम्स ऋषिकेश में शुरू हुआ 11वां एटीसीएन प्रशिक्षण कार्यक्रम

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में 13वां विश्वस्तरीय एटीएलएस एवं 11वां एटीसीएन प्रशिक्षण कार्यक्रम विधिवत शुरू हो गया। जिसमें एम्स के साथ ही अन्य मेडिकल संस्थानों के 16 चिकित्सक एवं 16 सीनियर नर्सिंग ऑफिसर व नर्सिंग ऑफिसर टर्सरी केयर सेंटर में भर्ती होने वाले दुर्घटना में घायल ट्रॉमा मरीजों के उपचार संबंधी प्रशिक्षण ले रहे हैं।

आज एडवांस सेंटर फॉर कंटिनिवस प्रोफेशनल डेवलपमेंट (एसीसीपीडी विभाग) में एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत की देखरेख में तीन दिवसीय एटीएलएस एवं एटीसीएन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हो गया है। निदेशक ने कहा कि दुनिया का कोई भी ट्रॉमा सिस्टम ट्रेंड ट्रॉमा चिकित्सकों एवं नर्सिंग ऑफिसर्स के बिना प्रभावी नहीं हो सकता। बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों के लिए इस तरह का विश्वस्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम नितांत आवश्यक है, इसकी सबसे मुख्य वजह यह है कि पहाड़ी क्षेत्रों में विभिन्न तरह की दुर्घटनाओं के कारण ट्रॉमा के मामले सर्वाधिक होते हैं, लिहाजा प्रत्येक हैल्थ केयर वर्कर को टर्सरी केयर लेवल पर चिकित्सा कार्य करने के लिए यह प्रशिक्षण लेना जरुरी है, तभी वह दुर्घटना में घायल मरीजों की ठीक प्रकार से देखभाल कर सकते हैं।
उनका कहना है कि ट्रॉमा मैनेजमेंट एक टीमवर्क है, लिहाजा उसकी ट्रेनिंग भी विश्वस्तरीय मानकों के तहत कराई जानी जरुरी है। ट्रेनिंग प्रोग्राम डा. अजय कुमार व दीपिका कांडपाल के संयोजन में आयोजित किया जा रहा है।
ट्रॉमा सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो. कमर आजम की अगुवाई में आयोजित एटीएलएस प्रशिक्षण कार्यक्रम में बतौर प्रोग्राम डायरेक्टर डा. मधुर उनियाल व ट्रेनिंग फैकल्टी डा. फरहान उल हुदा, डा. अजय कुमार,डा. जितेंद्र चतुर्वेदी, डा. दिवाकर कोयल, डा. अंकिता काबि, दिल्ली एम्स ट्रामा सेंटर से डा. दिनेश बगराई ने प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दिया, जबकि एटीसीएन कोर्स में महेश देवस्थले, डा. राजेश कुमार, चंदू राज बी., अरुण वर्गीस, जोमोन चाको ने प्रशिक्षणार्थियों को ट्रॉमा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया।

रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी की ओपीडी एम्स ऋषिकेश में शुरू

विश्व की पहली रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी की डिवीजन जो कि एम्स ऋषिकेश में स्थापित है ने हर सप्ताह सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को सुबह 8.30 बजे से दोपहर 1 बजे तक अपनी ओपीडी शुरू की है। पूर्व में विभाग की ओपीडी सेवाएं कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण भारत सरकार के नियमानुसार स्थगित की गई थी।
रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी डिवीजन के प्रमुख डा. नवनीत मग्गो ने बताया कि अपनी ओपीडी सेवाओं के माध्यम से नारी सेवा करना उनके लिए बहुत गौरव की बात है। गौरतलब है कि डा. मग्गो एक सुप्रसिद्ध अंतराष्ट्रीय कॉस्मेटिक शल्य चिकित्सक हैं, जो कि अमेरिका और यूरोप से इस चिकित्सा में प्रशिक्षित हैं, लिहाजा उन्होंने अपना जीवन महिलाओं की निजी चिकित्सकीय समस्याओं के मद्देनजर नारी कल्याण के लिए समर्पित किया है।
उन्होंने जुलाई सन 2019 में निदेशक प्रो. रविकांत के मागर्दशन में संस्थान में रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी डिवीजन की स्थापना की थी। यह डिवीजन एक सुपर स्पेशलिटी डिवीजन है, जिसका उद्देश्य महिलाओं की निजी स्वास्थ्य समस्याओं का निवारण करना है। ऐसी समस्याओं में स्ट्रेस यूरिनरी इनकंटीनेंस, संबंध बनाने में परेशानी, योनि के रास्ते से शरीर के हिस्से का बाहर आना, फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन आदि मुख्यरूप से शामिल हैं।

निदेशक ने बताया कि रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी डिवीजन की ओपीडी सेवाएं महिलाओं के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध होंगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि ऋषिकेश एम्स में दुनियाभर में अपनी तरह की इस पहली चिकित्सा ओपीडी में इस तरह की समस्याओं से पीड़ित महिलाएं आएंगी और विशेषज्ञों को अपनी निजी परेशानियों से अवगत कराकर इन सुपर स्पेशलिटी सेवाओं का लाभ लेंगी। यह सेवाएं ग्रसित महिलाओं को नवजीवन प्रदान करेंगी।
जानें, कब कौन सी ओपीडी होगी संचालित

इस सुपरस्पेशलिटी विभाग की पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स क्लिनिक सोमवार को दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक चलेगा। बताया गया कि उत्तराखंड में बहुत सी महिलाएं बच्चेदानी के बाहर निकलने की समस्या से पीड़ित हैं, क्योंकि यह पहाड़ी क्षेत्र है। लिहाजा इस तकलीफ का सबसे आधुनिक उपचार उत्तराखंड में पहली बार एम्स ऋषिकेश द्वारा स्थापित रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी डिवीजन में उपलब्ध कराया गया है, जिसे साइट स्पेसिफिक रिपेयर कहते हैं, इसमें चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा अमेरिका से दक्षता हासिल की गई है।
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन क्लिनिक, मंगलवार दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक चलेगा। बताया गया कि समाज के कुछ समुदाय इस समस्या से ग्रसित हैं, जिसमें एक महिला के बाहरी यौन अंग नष्ट करके उसका जीवन नष्ट कर दिया जाता है। डॉक्टर नवनीत मग्गो अंतराष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या का उपचार करने के लिए दक्षता हासिल हैं, जो कि इस तरह की समस्या से पीड़ित महिलाओं के लिए वरदान है।

फीमेल सेक्सुअल डिस्फंक्शन क्लिनिक, बुधवार को दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी विभाग की ओपीडी में संचालित किया जाएगा। बताया गया है कि समाज में लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं वैवाहिक परस्पर संबंध बनाने की परेशानी से ग्रस्त हैं, मगर वह चुप्पी साधे रहती हैं। जिसका दुष्प्रभाव अमूमन पारिवारिक ढांचे पर पड़ता है और परिवार टूट जाते हैं। विभाग के चिकित्सकों का इस समस्या से ग्रसित महिलाओं से अनुरोध किया है कि वह अपनी समस्या का समय रहते संपूर्ण इलाज कराएं।

वजाइनल रिजूवनेशन क्लिनिक, शनिवार सुबह 10 से 12 बजे तक संचालित होगा। जिन महिलाओं की योनि का रास्ता बच्चा होने या उम्र के साथ साथ ढीला हो जाता है, वह रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी के इस क्लिनिक का लाभ उठा सकती हैं। बताया गया कि विभाग के विशेषज्ञों द्वारा रेडियोफ्रीक्वेंसी और लेजर जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके महिलाओं की इस समस्या का स्थायी निवारण किया जाएगा।
स्ट्रेस यूरिनरी इनकंटिनेंस क्लिनिक, शुक्रवार दोपहर 2 से 4 बजे तक शुरू किया जा रहा है। चिकित्सकों ने बताया कि स्ट्रेस यूरिनरी इनकंटीनेंस की समस्या में महिलाओं के खांसने, छींकने, हंसने, वजन उठाने पर पेशाब स्वतरू छूट जाता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक तीन में से एक महिला इस परेशानी से पीड़ित है और विज्ञान के अनुसार, इसका सबसे आधुनिक इलाज रिकंस्ट्रक्टिव एवं कॉस्मेटिक गायनेकोलॉजी में उपलब्ध है। डॉ. नवनीत मग्गो के द्वारा इस विषय में लिखे गए विज्ञान पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स और पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं।

ऋषिकेश एम्स में नया आक्सीजन प्लांट हो रहा स्थापित, मिलेगा लाभ

एम्स ऋषिकेश में हवा से ऑक्सीजन उत्पादन करने वाला ’पीएसए ऑक्सीजन प्लांट’ स्थापित किया जा रहा है। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर यह प्लांट कोविड मरीजों के उपचार में विशेष लाभकारी साबित होगा। काफी हद तक संभावना है कि एक माह के भीतर प्लांट से ऑक्सीजन का उत्पादन होने लगेगा।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत की देखरेख में गंभीर किस्म के रोगियों के इलाज हेतु सुविधाओं में इजाफा करते हुए एम्स ऋषिकेश अब स्वयं ही मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन करेगा। इस सुविधा को शुरू करने के लिए डीआरडीओ की मदद से संस्थान में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किया जा रहा है। पीएसए ( प्रेशर स्विंग एडसॉर्प्शन ) तकनीक आधारित इस प्लांट से चैबीस घंटे प्रति मिनट 1000 लीटर ऑक्सीजन गैस का उत्पादन होगा।

ऑक्सीजन प्लांट प्रोजेक्ट के नोडल ऑफिसर डॉक्टर अजय कुमार ने बताया कि कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर की चुनौतियों से निपटने में यह प्लांट विशेष लाभकारी साबित होगा। अभी तक एम्स में भर्ती मरीजों के उपचार के लिए बाह्य क्षेत्र से लिक्विड ऑक्सीजन मंगाकर उसे स्टोर करने की व्यवस्था है और फिर उसे गैस में परिवर्तित कर पाइपलाइन के माध्यम से अस्पताल के विभिन्न वार्डों तक पहुंचाया जाता है। बताया कि पीएम केअर फंड से तैयार हो रहे इस प्लांट से एक महीने के भीतर ऑक्सीजन का उत्पादन शुरू हो जाएगा।

गौरतलब है कि एम्स ऋषिकेश में मौजूदा समय में 30 हजार लीटर क्षमता का लिक्विड ऑक्सीजन स्टोरेज प्लांट स्थापित है। अस्पताल में भर्ती मरीजों को यहीं से ऑक्सीजन की सप्लाई की जाती है। नए ऑक्सीजन प्लांट के स्थापित होने से 15 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन सप्लाई पर एक ही समय में 64 वेन्टिलेटर अतिरिक्त तौर से संचालित किए जा सकेंगे और ऑक्सीजन सप्लाई की क्षमता पहले की अपेक्षा अब डेढ़ गुना तक बढ़ जाएगी।