एम्स ऋषिकेशः अनलॉक के बाद सामान्य रोगियों की संख्या में भारी इजाफा


एम्स ऋषिकेश में ओपीडी सेवाओं ने फिर से तेजी पकड़ ली है। कोविड कर्फ्यू खुलने के बाद यहां ओपीडी मरीजों की संख्या में लगभग तीन गुना तक वृद्धि हो चुकी है। जुलाई के पहले सप्ताह में अब तक 10, 212 मरीज उपचार के लिए एम्स ओपीडी में पहुंच चुके हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या सामान्य रोगों से ग्रसित लोगों की है,जिससे जनरल मेडिसिन और कम्युनिटी एवं फेमिली मेडिसिन विभाग में परीक्षण के लिए पहुंचने वाले मरीजों की संख्या सर्वाधिक है।

अनलॉक के बाद ओपीडी मरीजों की साप्ताहिक संख्या में मई के बाद इस महीने तीन गुना वृद्धि हुई है। एम्स में 1 जुलाई से 7 जुलाई तक ओपीडी मरीजों की इस संख्या में सर्वाधिक 1631 संख्या जनरल मेडिसिन विभाग में स्वास्थ्य जांच कराने वाले रोगियों की है। जबकि दूसरे नंबर पर कम्युनिटी एंड फेमिली मेडिसिन विभाग में 1264 रोगियों ने अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराया। इसके अलावा आर्थो विभाग में 577 और त्वचा रोग विभाग में 507 रोगी जांच के लिए पहुंचे।

निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि उपचार के अभाव में मरीज परेशान न हों, इस विषय पर गंभीरता बरती जा रही है। उन्होंने कहा कि हम सबको कोरोनाकाल की इन्हीं परिस्थितियों में जीवन जीना है। ऐसे में कोरोना संक्रमण से बचाव के मूलमंत्र ’दो गज की दूरी’ और मॉस्क के अनिवार्य इस्तेमाल की शर्तों के साथ एम्स की विभिन्न ओपीडी सेवाओं को फिर से खोल दिया गया है।

एम्स अस्पताल के डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रोफेसर यूबी मिश्रा ने बताया कि कोविड कर्फ्यू के दौरान संक्रमण के अत्यधिक मामले बढ़ने से लोग घर से बाहर निकलने में परहेज कर रहे थे। लिहाजा अब कोविड कर्फ्यू खुलने पर ओपीडी में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या बढ़ना स्वाभाविक है। उन्होंने बताया कि अनलॉक के बाद लगातार बढ़ रहे मरीजों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को देखते हुए लगभग सभी विभागों की ओपीडी फिर से खोल दी गई है। उन्होंने बताया कि प्रतीक्षारत मरीजों की सर्जरी करने के लिए शीघ्र ही ऑपरेशन थियेटर (ओटी) सुविधाएं भी बहाल कर दी जाएंगी।

शुगर बढ़ने पर दोबारा हो सकता है म्यूकर माइकोसिसः एम्स ऋषिकेश

अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद यदि म्यूकर मरीजों ने अपने शुगर लेवल को नियंत्रित रखने में लापरवाही बरती तो उन्हें फिर से म्यूकर माइकोसिस हो सकता है। जिससे उन्हें दोबारा अस्पताल में भर्ती करने की स्थिति आ सकती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश ने ऐसे मरीजों को शुगर लेवल के प्रति सतर्क रहने की सलाह दी है।
म्यूकर ग्रसित मरीजों की संख्या में अब भले ही कमी आने लगी हो, लेकिन शुगर पर नियंत्रण नहीं रखने से ऐसे मरीजों की दिक्कतें फिर से बढ़ सकती हैं। इस बाबत एम्स ऋषिकेश ने सलाह दी है कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी म्यूकर रोगियों को अपने शरीर में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है। गौरतलब है कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान मई माह में म्यूकर माइकोसिस के मामले एकाएक बढ़ गए थे। तब से अभी तक एम्स ऋषिकेश में म्यूकर माइकोसिस के 348 रोगी आ चुके हैं। वर्तमान में यहां कुल 170 म्यूकर रोगियों का उपचार चल रहा है। इनमें से 108 म्यूकर मरीज एम्स अस्पताल में और 62 मरीज आईडीपीएल स्थित राइफलमैन जसवंत सिंह रावत कोविड केयर सेंटर में उपचाराधीन हैं।
एम्स निदेशक रविकांत ने बताया कि जिन लोगों को शुगर की समस्या है, उन्हें म्यूकर माइकोसिस का ज्यादा खतरा है। खासतौर से उन मरीजों को जिन्हें कोविड हुआ है, उन्हें अपने शुगर के प्रति बहुत गंभीरता बरतनी चाहिए। उनका कहना है कि न केवल म्यूकर माइकोसिस, कई अन्य गंभीर बीमारियां भी ब्लड शुगर बढ़ने से होती हैं। बताया कि यह कोई जरूरी नहीं कि जो लोग म्यूकर का उपचार करवाकर डिस्चार्ज हो रहे हैं, उनमें दोबारा म्यूकर नहीं हो सकता। यदि शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ गई तो म्यूकर फंगस फिर से उन्हीं अंगों अथवा शरीर के अन्य अंगों को चपेट में ले सकता है और मरीज को फिर से अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ सकती है। लिहाजा ऐसे मरीजों के लिए अपना ब्लड शुगर नियंत्रित रखना बहुत जरूरी है।
म्यूकर ट्रीटमेंट टीम के हेड और ईएनटी सर्जन डॉ. अमित त्यागी ने इस बाबत बताया कि म्यूकर माइकोसिस के रोगी को एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन से इलाज के लिए सामान्यतौर पर न्यूनतम 3 से 6 सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। उन्होंने बताया कि एम्स में अब तक म्यूकर के 126 रोगियों की एंडोस्कोपिक सर्जरी, 92 रोगियों की तालुका तथा जबड़े से संबंधित मैक्सिलेक्टॉमी सर्जरी और 64 रोगियों की आंख की सर्जरी की जा चुकी है।
डा. त्यागी ने बताया कि जो मरीज आईडीपीएल स्थित राइफलमैन जसवंत सिंह कोविड केयर सेंटर में भर्ती किए जा रहे हैं, उन्हें भोजन एवं उपचार आदि की सुविधा निःशुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। उन्होंने बताया कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान हम सभी को कई प्रकार के अनुभव प्राप्त हुए हैं। इन अनुभवों ने हमें सिखाया है कि म्यूकर माइकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी से बचने के लिए शरीर में शुगर की मात्रा नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है अन्यथा इस खतरनाक बीमारी से बचाव होना बहुत मुश्किल है।

एम्स निदेशक ने की सीएम से शिष्टाचार भेंट, की 200 एकड़ भूमि की मांग

एम्स ऋषिकेश के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की। साथ ही मौके पर एम्स के विस्तारीकरण के लिए 200 एकड़ भूमि की मांग की कर डाली। वहीं, उन्होंने एम्स में कोविड 19 की संभावित तीसरी वेब के मद्देनजर की गई जरुरी तैयारियों से अवगत कराया।

एम्स निदेशक ने सीएम को बताया कि कोविड की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर संस्थान में की गई जरुरी तैयारियों से अवगत कराया, उन्हें बताया गया कि आईडीपीएल में संचालित डीआरडीओ के 400 बेड के अस्पताल के अतिरिक्त थर्ड वेब के मद्देनजर एम्स में मरीजों के लिए बच्चों के लिए 100 बेड का एनआईसीयू व वयस्कों के लिए 200 अतिरिक्त बेड्स का वेंटिलेटर युक्त आईसीयू तैयार किया है। जिसमें वल्र्ड क्लास सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। साथ ही कोविड 19 थर्ड वेब से निबटने के लिए डीआरडीओ के अस्पताल में उपलब्ध चिकित्सकों, नर्सिंग ऑफिसर्स, तकनीकि स्टाफ आदि मैनपावर का उपयोग संस्थान में किया जाएगा। उन्होंने बताया कि चूंकि कोरोना वायरस बार बार अपने स्वरूप में बदलाव कर रहा है और हरबार और अधिक आक्रामकरूप अ​ख्तियार कर रहा है, लिहाजा हमें वेंक्सीनेशन पर जोर देना होगा। साथ ही कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए हमें जब​ तक दोनों डोज नहीं लगें व उसके दो महीने बाद तक भी अनिवार्यरूप से मास्क को पहनना होगा। उन्होंने कहा कि यदि हम सभी लोग यह जरुरी सावधानियां बरतते हैं तो कोविड थर्ड वेब को टाला जा सकता है। बहरहाल एम्स कोविड की तीसरी लहर के मुकाबले व मरीजों को मुकम्मल उपचार देने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
निदेशक ने मुख्यमंत्री को बताया कि एम्स की अब तक करीब आधी परियोजना ही बनकर तैयार हो पाई है। जबकि समग्र परियोजना को धरातल पर उतारने के लिए विस्तारीकरण हेतु संस्थान को 200 एकड़ अतिरिक्त भूमि की नितांत आवश्यकता है। जिसके लिए राज्य सरकार को पूर्व में प्रस्ताव भेजकर भूमि उपलब्ध कराने की मांग की जा चुकी है, मगर अरसे बाद भी इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। जिससे परियोजना का विस्तारीकरण लंबित है। उन्होंने बताया कि इससे मरीजों को कई आवश्यक उपचार देने में तकनीकि दिक्कतें पेश आ रही हैं और कई मर्तबा मरीजों को अतिरिक्त उपचार के लिए अन्यत्र एम्स संस्थानों के लिए रेफर करना पड़ता है। लिहाजा निदेशक एम्स ने उनसे एम्स परियोजना के विस्तारीकरण के लिए जल्द से जल्द 200 एकड़ अतिरिक्त भूमि उपलब्ध कराने का आग्रह किया है।

बताया गया कि मुख्यमंत्री के स्तर से इस दिशा में जल्द कार्रवाई अमल में लाने की बात कही गई है,जिससे एम्स जैसी परियोजना के विस्तारीकरण में अनावश्यक विलंब से मरीजों को किसी तरह की दिक्कतें नहीं आएं।

कोविड नियमों की अनदेखी करने पर फिर बिगड़ सकते हैं हालात

कोविड गाइडलाइन के पालन को लेकर यदि लोग अब भी लापरवाह बने रहे तो कोरोना का ’डेल्टा वेरिएंट’ तीसरी लहर का कारण बन सकता है। इन हालातों में तीसरी लहर के खतरे को कम करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश ने नागरिकों को कोविड नियमों का पालन गंभीरता से सुनिश्चित करने की सलाह दी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डेल्टा वेरिएंट अभी तक विश्व के 100 देशों में पाया जा चुका है। डेल्टा वेरिएंट को बी. 1.617.2. स्ट्रेन भी कहते हैं। जबकि ’डेल्टा प्लस’ वेरिएंट बी. 1.617.2.1 है। कोरोना वायरस के स्वरूप में आ रहे बदलावों की वजह से ही डेल्टा वायरस बना है।
निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि कोरोना वायरस के अन्य सभी वेरिएंटों की तुलना में डेल्टा प्लस वेरिएंट की वजह से फेफड़ों में कोविड निमोनिया का संक्रमण ज्यादा हो सकता है। यह भी संभावना है कि कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वेरिएंट में एंटीबाॅडी काॅकटेल’ जैसी दवा का भी शत- प्रतिशत असर नहीं हो पाए। लेकिन इतना जरूर है कि वैक्सीन लगा चुके लोगों में इसकी वजह से गंभीर किस्म के संक्रमण का कोई मामला फिलहाल भारत में नहीं मिला है। उन्होंने बताया कि अब तक देश के 12 राज्यों में इसकी पुष्टि हो चुकी है। उन्होंने कहा कि तीसरी लहर डेल्टा प्लस वेरिएंट के कारण आएगी, यह कहना अभी संभव नहीं है। गत माह एम्स ऋषिकेश द्वारा आईसीएमआर को भेजे गए कोविड के 15 सैंपलों में से एक में भी डेल्टा प्लस वेरिएंट की पुष्टि नहीं हुई है। इन सैंपलों को रेन्डम के आधार पर एकत्रित किया गया था।

डेल्टा प्लस की विशेषता
संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. दीप ज्योति कलिता जी का कहना है कि कोरोना एक आरएनए वायरस है। आरएनए वायरस की पहचान है कि यह बार-बार उत्परिवर्तित होकर अपना रूप बदलता है। अभी तक कोरोना के अल्फा, बीटा, डेल्टा और डेल्टा प्लस आदि रूपों की पहचान हो चुकी है। डाॅ. कलिता ने बताया कि डेल्टा प्लस वेरिएंट निचली श्वसन प्रणाली में फेफड़ों की म्यूकोसल कोशिकाओं के लिए घातक हो सकता है।
पहचान और लक्षण
कोविड के नोडल ऑफिसर डाॅ. पी.के. पण्डा जी ने बताया कि कोरोना वायरस तेजी से रूप बदलने में माहिर है। ऐसे में डेल्टा प्लस के कई अन्य मामले और हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि वैक्सीन लगने के बाद भी यदि किसी व्यक्ति में कोविड-19 के लक्षण नजर आ रहे हैं तो उसमें डेल्टा प्लस की संभावनाएं हो सकती हैं। इन हालातों में कोरोना के संदिग्ध वेरिएंट वाले मरीज का सैम्पल आईसीएमआर की प्रयोगशाला में भेजा जाता है। अब तक यह भी देखा गया है कि डेल्टा प्लस वेरिएंट के रोगी में कोविड वैक्सीन ज्यादा प्रभावकारी नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि डेल्टा प्लस वैरिएंट महामारी को रोकने के लिए निम्न 4 चरणों के पालन करने की नितांत आवश्यकता है।
1)- सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कोविड संदिग्ध व कोविड पाॅजिटिव रोगियों की पहचान की जाए। पहचान होने पर संबंधित व्यक्ति को न्यूनतम 7 दिनों के लिए क्वारन्टीन किया जाए। इनमें एचआईवी पाॅजिटिव रोगी, अनियंत्रित डायबिटीज, डायलिसिस कराने वाले क्रोनिक किडनी के रोगी, अंग प्रत्यारोपण वाले रोगी, कैंसर के रोगी, 3 सप्ताह से स्टेरॉयड लेने वाले रोगी और कम प्रतिरक्षा वाले रोगियों को उनकी आरटीपीसीआर रिपोर्ट नेगेटिव आने तक अलग रखा जाना चाहिए। ऐसे रोगियों में कोरोना वायरस लंबे समय तक रहने की प्रबल संभावना होती है।

2) कहीं भी और किसी को भी कोई सामुहिक सभा की अनुमति हरगिज नहीं दी जाए। विशेष परिस्थियों में यदि अनुमति देना जरुरी हो, तो ऐसी स्थिति में सभी लोग कम से कम 1 मीटर की शारीरिक दूरी बनाए रखें और मास्क अनिवार्यरूप से पहनें। ऐसे स्थानों में वेंटिलेशन और हाथ धोने की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए। हाथों को स्वच्छ रखना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही सामुहिक सभा में प्रतिभाग करने वाले सभी प्रतिभागियों का पहले से टीकाकरण होना भी अनिवार्य है।

3) प्रत्येक व्यक्ति कोविड व्यवहार के 5 प्रमुख नियमों- शारीरिक दूरी बनाए रखना, हाथों की स्वच्छता, स्वच्छ मास्क पहनना, हवादार कमरे में रहना और कोविड टीकाकरण कराने का अनिवार्यरूप से पालन किया जाए।

४) यह जरूरी नहीं कि प्रत्येक कोविड रोगी का उपचार मल्टीपल काॅम्बिनेशन वाली दवाओं से ही किया जाए। पाॅलीफार्मेसी की आवश्यकता के बिना भी संबंधित दवा कोविड मरीज को ठीक कर सकती हैं।

एम्स में अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस के मौके पर नशावृत्ति के प्रति जागरूक किया

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस (इंटरनेशनल डे अगेंस्ट ड्रग एब्यूज एंड इलिसिट ट्रैफकिंग) मनाया गया, इस अवसर पर संस्थान में मरीजों एवं उनके परिजनों, तीमारदारों को विभिन्न पब्लिक एरियाज में सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों का पालन करते हुए नशावृत्ति को लेकर जागरुक किया गया।

निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि संस्थान में संचालित एटीएफ के तहत ओपीडी और एडमिशन, दोनों तरह से उपचार की सुविधाएं उपलब्ध हैं, जो कि मरीजों को निशुल्क दी जा रही हैं। लिहाजा सभी को अपने परिवार या आसपास रहने वाले नशाग्रस्त लोगों को संस्थान में उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ दिलाना चाहिए और ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में योगदान देना चाहिए।
एम्स ऋषिकेश में वर्ल्ड ड्रग दिवस पर आयोजित जनजागरुकता कार्यक्रम में एटीएफ (एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी) से डॉ. तन्मय जोशी ने विभिन्न तरह के नशीले पदार्थों व दृव्यों को लेकर कई तत्थ्य एवं मिथकों के बारे में लोगों को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में कैनाबिस (यानी भांग, गांजा, चरस आदि ) के साथ साथ शामक दवाइयों का गैर चिकित्सकीय उपयोग बहुत अधिक बढ़ गया है। दक्षिण एशियाई देशों के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2019 में हर 100 में से लगभग 3 व्यक्तियों ने कैनाबिस का उपयोग किया था। एटीएफ काउंसलर तेजस्वी ने मरीजों के परिजनों को बताया कि किशोर वर्ग में इन्हेलन्ट्स का प्रयोग पाया जाना बेहद चिंताजनक है।

संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं ए.टी.एफ प्रोजेक्ट के नोडल ऑफिसर डॉ. विशाल धीमान ने बताया कि उत्तराखंड परिक्षेत्र में लगभग 38 फीसदी लोग शराब का सेवन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान लोगों में बढ़ते तनाव व अन्य कारणों के चलते सभी नशीले पदार्थ का सेवन बढ़ा है, जिससे कई अन्य तरह की परेशानियों में भी इजाफा हुआ है।

मनोचिकित्सा विभागाध्यक्ष डा. रवि गुप्ता एवं फैकल्टी मेंबर डॉ. विक्रम रावत ने लोगों को बताया कि आमतौर पर नशा शराब से शुरू होता है और समय के साथ साथ निकोटीन और गांजा की ओर बढ़ता है, यह प्रवृत्ति व्यक्ति को धीरे धीरे हार्ड ड्रग्स की ओर ले जाती है। लिहाजा नशा मनुष्य शरीर के लिए बेहद खतरनाक है, इसीलिए वर्ल्ड ड्रग डे पर लोगों से नशे से जुड़े सभी तथ्यों को साझा करना जरुरी था,जिसे कई परिवारों का जीवन बचाने की ओर एक सार्थक कदम माना जा सकता है।

कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को सभी नशीली वस्तुओं से होने वाले व्यस्न एवं व्यस्न उपचार संबंधी मिथकों के बाबत भी अवगत कराया गया।
उदाहरण- मिथक 1 – नशीली वस्तुओं का व्यस्न स्वैच्छिक होता है। तत्थ्य रू नशीली वस्तुओं का सेवन आमतौर पर मनोरंजन या नवीनता के अनुभव करने के साथ शुरू होता है, मगर यह पदार्थ दिमाग को निरंतर बदलता रहता है जो एक समय के बाद व्यक्ति को नशा लेने के लिए मजबूर कर देता है और उसके बाद कोई भी व्यक्ति उसे लिए बिना नहीं रह सकता। मिथक 2- नशीली वस्तुओं का व्यस्न चरिता या नैतिकता का दोष है। तत्थ्य रू हर नशीली वस्तु एक- दूसरे से अलग होते हुए भी कहीं न कहीं दिमाग के कुछ खास हिस्सों पर समान दुष्प्रभाव डालते हैं, जो उनके मूड अथवा चाल-ढाल में बदलाव ले आता है। यह उस एक या अनेक नशे का सेवन करने का सबसे बड़ा प्रेरक होता है और वह व्यक्ति को इस प्रेरणा के आगे बेबस और लाचार बना देता है।
मिथक 3- सब नशीली वस्तुओं से छुटकारा पाने की एक ही दवा होनी चाहिए। तत्थ्यः हर व्यक्ति अद्वितीय होता है। यदि किन्ही भी दो व्यक्तियों को एक ही बीमारी की वही दवा भी दी जाए जो पहले व्यक्ति को दी गई है, तब भी दोनों में एक सामान फर्क नहीं आता है। हर नशे की अपनी अलग पहचान होती है और इसलिए उसकी उपचार पद्धति भी अलग अलग ही होती है। हर दूसरे व्यक्ति को एक ही नशीली वस्तु अलग-अलग तरह की शारीरिक व मानसिक दिक्कतें देती है। लिहाजा एक ही तरह व दवाओं से सभी मरीजों का उपचार नहीं किया जाता। मिथक 4- व्यस्न का उपचार एक बार में हो जाना चाहिए। तत्थ्यः जब व्यस्न की बीमारी दीर्घकालीन है, तो उपचार में सततरूप से बने रहना उत्तम है। यदि ऐसा नही किया जाता है तो इलाज दोबारा से शुरू करना पड़ेगा। मिथक 5- महज उपचार शुरू कर देने से ही नशे से दूर हो जाएंगे । तत्थ्यः किसी भी नशा ग्रसित रोगी का इलाज शुरू करना पहली सीढ़ी है। मगर आपका और विशेषज्ञों का परस्पर साथ आना आवश्यक है। इलाज में बने रहना सबसे मुख्य बिंदु है, जिससे आप इलाज का अधिक से अधिक फायदा उठा पाएंगे। मिथक 6- शराब पीकर भी काबू में रहा जा सकता है । तत्थ्यः शराब का सेवन करते ही वह आपकी निर्णायक क्षमताओं में सेंध लगा देती है। इसके चलते आप कई ऐसे निर्णय ले सकते हैं, जिनका बाद में खेद हो। अक्सर यह निर्णय आपको गैरकानूनी गतिविधियों में भी सम्मिलित कर सकते हैं। मिथक 7 – गुटका, खैनी, जर्दा, चबाने वाला तम्बाकू शरीर को नुकसान नहीं देता। तत्थ्यः इन सभी वस्तुओं में मनुष्य के शरीर में कर्क रोग उत्पन्न करने वाले केमिकल मिले होते हैं । इनका सेवन करने से मुंह में होने वाली कई तरह की बीमारियां होने का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है, जिनमें मुंह का कैंसर भी शामिल है।

एम्स पहुंचे सांसद नरेश बंसल, वैक्सीनेशन को लेकर एम्स की चिकित्सकीय टीम की प्रशंसा की

राज्य सभा सांसद नरेश बंसल जी ने मंगलवार को एम्स ऋषिकेश स्थित कोविड टीकाकरण केंद्र का निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने संस्थान द्वारा संचालित किए जा रहे कोविड टीकाकरण कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी ली और अभियान में जुटे चिकित्सकों की टीम की सराहना की।
राज्य सभा सांसद नरेश बंसल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के आयुष भवन में पहुंचे। उन्होंने यहां बनाए गए कोविड टीकाकरण केंद्र का निरीक्षण कर संचालित की जा रही व्यवस्थाओं को देखा। इस दौरान आयुष विभाग व कम्युनिटी एंड फेमिली मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर वर्तिका सक्सैना जी ने उन्हें केंद्र में संचालित टीकाकरण कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी दी। प्रो. वर्तिका सक्सैना जी ने बताया कि टीकाकरण के दौरान केंद्र में कोविड गाइडलाइन का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। उन्होंने बताया कि वैक्सीनेशन अभियान की सफलता के लिए केंद्र में आयुष विभाग के अलावा कम्युनिटी एवं फेमिली मेडिसिन विभाग के चिकित्सकों व अन्य स्टाफ की टीम भी टीकाकरण कार्य में जुटी है।
सांसद ने इस दौरान केंद्र में बनाए गए वेटिंग एरिया, पंजीकरण कक्ष, टीकाकरण कक्ष और निगरानी कक्ष आदि की व्यवस्थाएं परखीं और संबंधित जानकारी हासिल की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि एम्स ऋषिकेश, उत्तराखंड का न सिर्फ सबसे बड़ा स्वास्थ्य संस्थान है, बल्कि यहां उच्च प्रशिक्षित चिकित्सकों की टीम भी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध है। ऐसे में केंद्र सरकार के इस अभियान को सफल बनाने में एम्स की भूमिका सराहनीय है। इस अवसर पर सीएफएम विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. प्रदीप अग्रवाल, संस्थान के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल, नर्सिंग सुपरिटेंडेंट घेवर चंद, मनीष शर्मा, भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष कुसुम कंडवाल, मंडल अध्यक्ष दिनेश सती, वीरभद्र मंडल अध्यक्ष अरविंद चैधरी, पार्षद सुंदरी कंडवाल, सुदेश कंडवाल आदि भाजपा कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से सीएम ने ली वैक्सीनेशन की जानकारी

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कारगी चैक के समीप संत निरंकारी भवन में चल रहे कोविड वैक्सीनेशन सेंटर का निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से वैक्सीनेशन की जानकारी ली। निरीक्षण के दौरान सभी व्यवस्थाएं सही पाये जाने पर मुख्यमंत्री ने संतोष व्यक्त किया।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने जानकारी दी कि इस वैक्सीनेशन केन्द्र में 45 वर्ष से अधिक आयु एवं 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों का टीकाकरण हो रहा है। इस अवसर पर जिलाधिकारी देहरादून डॉ. आशीष कुमार श्रीवास्तव भी उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने तत्पश्चात दून अस्पताल में कोविड वैक्सीन की दूसरी डोज ली।

ऋषिकेशः नशे के रोगियों को मिल सकेगा उच्चस्तरीय उपचार, एम्स में शुरू हुआ एटीएफ

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष-2019 में किए गए एक शोध में यह पाया गया कि उत्तराखंड में तम्बाकू के अलावा सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले नशे के प्रकारों में शराब, कैनाबिस उत्पाद (भांग/गांजा/चरस), ओपिऑइड्स (स्मैक/हेरोइन/कोकेन/ डोडा आदि ) व इन्हेलन्ट्स भी प्रमुखरूप से शामिल है।
इस सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार का नशा करने वाले मौजूदा पुरुष उपभोगकर्ताओं की संख्या शराब से 38.1 प्रतिशत, कैनाबिस उत्पाद से 1.4 प्रतिशत, ओपिऑइड्स से 0.8 प्रतिशत और इन्हेलन्ट्स का इस्तेमाल करने वाले 10 से 17 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 1.7 फीसदी है। देशभर में हर पांच में से एक व्यक्ति शराब और हर 11 में से एक व्यक्ति कैनाबिस नशे का रोगी है, जिन्हें तत्काल उपचार की नितांत आवश्यकता है।
इसके अलावा लगभग 77 लाख भारतियों को ओपिऑइड्स नशे के लिए शीघ्र इलाज शुरू करने की जरुरत है। आजकल देखा गया है कि वयस्क लोग ही नहीं बल्कि बच्चे भी नशे के रोगी बनते जा रहे हैं। इसकी एक अहम वजह है लोगों के जीवन में स्ट्रेस बहुत बढ़ गया है। कोरोना पान्डेमिक के चलते भी इस स्ट्रेस में बहुत बड़ा इजाफा हुआ है। ऐसे लोगों में आम धारणा बन गई है कि नशा करना स्ट्रेस से जूझने और निपटने का एक आसान तरीका है, मगर यह स्ट्रेस को कम अथवा समाप्त करने का सबसे गलत तरीका है।
नशे की शुरुआत आमतौर पर खुद व्यक्ति की इच्छा से, प्रयोग करने की उत्सुकता, दोस्तों के दबाव, पारिवारिक परेशानियों, काम का स्ट्रेस व अन्य परेशानियों से होने की वजह से होती है। मगर एक बार इससे ग्रसित होने पर यह नशे का रोग बन जाता है। नशे की बीमारी केवल एक आदत, इच्छाशक्ति में कमी या कमज़ोरी का कम होना नहीं बल्कि एक काम्प्लेक्स तरीके की दिमागी बीमारी है। नशे से व्यक्ति के दिमाग में अस्थायी एवं स्थायी बायोकैमिकल बदलाव आते हैं, जिसके लिए इलाज की जरुरत पड़ती है।

नशा ग्रस्त व्यक्ति का दिमाग उसका साथ नहीं दे पाता अथवा वह इस नशे की बीमारी से अपने आप कभी भी बाहर नहीं आ पाता। नशे के रोग से बहुत से लोगों का घर- परिवार खराब हो जाता है और प्रतिवर्ष लाखों लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। इसके साथ ही पीड़ित व्यक्ति के आर्थिक, सामाजिक जीवन व रोजमर्रा की जिंदगी पर भी इसका बहुत हद तक दुष्प्रभाव पड़ता है। निदेशक प्रोफेसर रवि कांत के निर्देशन में शुरू की गई एटीएफ सर्विस ऐसे लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है और वह फिर से मुख्यधारा से जुड़कर अपने अमूल्य जीवन को संवार सकते हैं।
एम्स निदेशक ने बताया कि रोगियों को नशे की समस्याओं से दूर करने के लिए एम्स ऋषिकेश ने एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी (ए.टी.एफ.) की शुरुआत की है, जिसमें नशावृत्ति के शिकार रोगियों को परामर्श व उपचार की सभी प्रकार उच्चस्तरीय सुविधाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएंगी। उन्होंने बताया कि संस्थान में इस सुविधा को ए.टी.एफ. एन. डी. डी.टी.सी. एम्स दिल्ली द्वारा समन्वित तथा भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की सहायता से शुरू किया गया है। इस सेवा के शुरू किए जाने का उद्देश्य प्रदेश में नशे से ग्रस्त रोगियों को मुफ्त एवं उच्चस्तरीय उपचार मुहैय्या कराना है। संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं ए.टी.एफ. के नोडल ऑफिसर डा. विशाल धीमान ने बताया कि एम्स में संचालित ए.टी.एफ के तहत, ओपीडी OPD और एडमिशन (IPD) दोनों तरह से इलाज की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
अस्पताल में सभी मरीजों के लिए बिस्तर की सुविधा, सभी प्रकार की आवश्यक दवाएं, अत्याधुनिक उपचार प्रणाली निशुल्क उपलब्ध कराने के साथ ही रोगियों की काउंसलिंग भी की जाएगी। जिसमें उन्हें नशे की तलब को कंट्रोल करने की अलग-अलग तकनीकें बताई जाएंगी, साथ ही रोगियों की मोटिवेशनल इंटरव्यूइंग भी की जाएगी।

नशा छोड़ने के इच्छुक लोग इस नंबर से लें सहायता
संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं ए.टी.एफ. के नोडल ऑफिसर डा. विशाल धीमान जी ने बताया कि नशा छोड़ने के इच्छुक लोगों के लिए एम्स के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा हेल्पलाइन नंबर 7456897874 (टेली-एडिक्शन सर्विस) भी जारी किया गया है, जिसमें सोमवार प्रातः 9:00 बजे से शुक्रवार शाम 4:00 बजे तक और शनिवार सुबह 9:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक चिकित्सकीय परामर्श लिया जा सकता है। ए.टी.एफ प्रोजेक्ट का उद्देश्य उत्तराखंड और इसके आसपास के क्षेत्रों को नशखोरी के विरुद्ध लोगों को जागरुक करना और इससे ग्रसित रोगियों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराना है, जिससे वह समाज की मुख्यधारा से जुड़कर अपनी उन्नति के साथ सामान्य जीवन जी सकें।

एम्स के विशेषज्ञों की राय, लाॅकडाउन में स्वास्थ्य के प्रति नहीं बरतें लापरवाही

यदि आप कई दिनों तक एक ही मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो सावधान हो जाइये। आपकी यह लापरवाही म्यूकर माइकोसिस से ग्रसित होने की वजह बन सकती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश ने इस बाबत सलाह दी है कि कोविड19 से सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सूती कपड़े के मास्क को दोबारा पहनने से पहले दैनिकतौर से अवश्य धो लें, यह बेहद जरूरी है।

जून और जुलाई के महीने वातावरण में आर्द्रता बहुत कम हो जाती है। ऐसे में जब हम नाक से सांस लेते हैं तो उसके आगे मास्क लगे होने से मास्क के अन्दर की ओर नमी बनी रहती है। मास्क को लगातार पहने रहने से इस नमी में कीटाणु पनपने लगते हैं और जिससे फंगस के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हो जाता है। फिर नाक और मुंह से होता हुआ यह फंगस धीरे-धीरे शरीर के अन्य अंगों को संक्रमित कर देता है।

एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कान्त ने बताया कि सूती मास्क हमेशा धुले हुए और साफ-सुथरे पहनने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कोई जरूरी नहीं है कि जिसे कोविड नहीं हुआ हो उसे म्यूकर माइकोसिस नहीं हो सकता। नाॅन डिस्पोजल मास्क को दैनिकतौर से साफ नहीं करने वाले लोगों को भी इस बीमारी का खतरा हो सकता है। उन्होंने बताया कि कोविड और म्यूकर माइकोसिस दोनों ही बीमारियों से तभी बचाव संभव है, जब कोविड गाइडलाइनों का पूर्ण पालन करने के साथ साथ मास्क का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। खासतौर से जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर है उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतने की नितांत आवश्यकता है।

कोविड के नोडल अधिकारी डाॅ. पीके पण्डा ने बताया कि लाॅकडाउन के कारण अधिकांश नाॅन कोविड रोगी अपने स्वास्थ्य संबंधी जांचों के प्रति लापरवाह बने हुए हैं। ऐसे में नियमित जांच नहीं कराए जाने से उन्हें अपनी इम्युनिटी और ब्लड में शुगर लेवल की मात्रा का पता नहीं चल पाता। उन्होंने कहा कि म्यूकर माइकोसिस से बचाव के लिए ब्लड में शुगर की मात्रा की रेगुलर जांच कराना जरुरी है। म्यूकर रोगियों के उपचार की सुविधा के बारे में उन्होंने बताया कि ऐसे रोगियों के लिए एम्स में 7 वार्ड बनाए गए हैं। इनमें कुल 185 बेड हैं, जिनमें 65 आईसीयू सुविधा वाले बेड हैं।

म्यूकर माइकोसिस फंगस अक्सर कोविड के लक्षण उभरने के 3 सप्ताह बाद से पनपना शुरू होता है। कमजोर इम्युनिटी और शुगर पेशेंट के लिए यह फंगस सबसे अधिक घातक है। म्यूकर माइकोसिस ट्रीटमेंट टीम के हेड और ईएनटी सर्जन डाॅ. अमित त्यागी का कहना है कि कोविड की दूसरी लहर का पीक टाईम मई का दूसरा सप्ताह था। इस लिहाज से मई अंतिम सप्ताह और जून के पहले सप्ताह तक म्यूकर के मरीजों का ग्राफ तेज गति से बढ़ा था। लेकिन अब इसमें कमी आनी शुरू हो गई है। मई महीने में एम्स में दैनिकतौर पर म्यूकर ग्रसित 7 से 12 पेशेंट आ रहे थे। जबकि अब यह संख्या 4 से 7 प्रतिदिन हो गई है। उन्होंने बताया कि एम्स में अभी तक म्यूकर के कुल 208 पेशेंट आ चुके हैं।

एम्स में आयोजित वेबिनार में बच्चों के बढ़ते मोटापे पर चिंता व्यक्त की गई

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में बच्चों में बढ़ते मोटापे की वृद्धि को रोकने के लिए जंक फूड पैकेजों में चीनी, नमक व वसा के चेतावनी लेवल को दर्शाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने कहा कि इस मामले में ठोस नीति बनाने की नितांत आवश्यकता है। एम्स ऋषिकेश ने वेबिनार के माध्यम से पैकेज फूड्स में चीनी, नमक और वसा के चेतावनी लेवल को दर्शाने के लिए जनजागरुकता मुहिम की शुरुआत की है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में होने वाली मोटापे की वृद्धि स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक है। राष्ट्रीय स्तर के इस वेबीनार में देश के विभिन्न मेडिकल संस्थानों के स्वास्थ्य विशेषज्ञों और चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया। उन्होंने बताया कि जंक फूड में चीनी, नमक और वसा पर चेतावनी लेबल और इनकी मात्रा का उल्लेख होने से भारत में बच्चों में बढ़ती मोटापे की वृद्धि को रोका जा सकता है। संस्थान के डीन एकेडमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने कहा कि चिकित्सक होने के नाते हम सभी को इस समस्या को समझना होगा। इस स्थिति को रोकने के लिए अकेले बच्चे या उनके परिवार वाले ही नहीं बल्कि नीति निर्माताओं, खाद्य उद्योग और चिकित्सकों का सामुहिक कर्तव्य है।

क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बिलियरी साइंसेज के प्रोफेसर उमेश कपिल का कहना है कि जंक फूड वाले पैकेजों में भारत को नमक, चीनी और संतृप्त वसा के लिए स्पष्ट कट ऑफ स्थापित करने की आवश्यकता है। डब्ल्यूएचओ ने फ्रंट ऑफ पैकेजिंग लेबलिंग (एफओपीएल) को एक नीति के रूप में पहचाना है। इस नीति के लागू होने से बच्चों और उपभोक्ताओं को सूचना के साथ स्वस्थ भोजन का विकल्प चयन करने में मदद मिलेगी। एम्स ऋषिकेश में इस प्रोजेक्ट का संचालन कम्यूनिटी एवं फेमिली मेडिसिन विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डा. प्रदीप अग्रवाल कर रहे हैं।