गैरजरूरी विभागों के कार्मिक घर से करेंगे काम, जरूरत पड़ी तो आना होगा

तीन मई तक उत्तराखंड में सिर्फ आवश्यक सेवाएं देने वाले शासकीय कार्यालय ही खोले जाएंगे। यह आदेश मुख्य सचिव उत्पल कुमार ने जारी किए है। आदेश के अनुसार केवल अति आवश्यक सेवाओं से संबंधित अफसर और कार्मिक कार्यालयों में आएंगे। अन्य विभागों के कार्मिक घर से ही काम करेंगे। जरूरत पड़ने पर उन्हें बुलाया जा सकता है।

मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की ओर से रविवार को सरकारी कार्यालयों को खोलने के संबंध में आदेश जारी किया गया। उन्होंने आदेश में लिखा है कि कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने तीन मई तक लॉकडाउन बढ़ाया है। उत्तराखंड सरकार ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर 18 मार्च को शासनादेश जारी किया था। इस शासनादेश को सरकार ने 19 मई से 25 मई तक के लिए प्रभावी किया था।

इसके अनुसार सभी अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव, प्रभारी सचिव, विभागाध्यक्षों तथा कार्यालय अध्यक्षों को निर्देशित किया था कि केवल उन्हीं कार्मिकों को कार्यालय में बुलाया जाना है, जिसकी अति आवश्यकता है। शेष कार्मिकों को घर से ही काम करने की अनुमति रहेगी। सभी कर्मचारियों को दूरभाष पर उपलब्ध रहने के निर्देश दिए थे। आपात स्थिति में किसी भी कर्मचारी को बुलाने का प्रावधान भी था।

इसी आदेश को शासन ने 20 अप्रैल से तीन मई तक के लिए दोबारा प्रभावी कर दिया है। इसके अनुसार केवल आवश्यक सेवाओं के कर्मचारी ही कार्यालयों में आएंगे। सचिवालय सहित वही अन्य कार्यालय खुलेंगे जो सीधे आवश्यक सेवाओं से जुड़े हैं।
यह रहेगा प्रावधान
– केवल आवश्यक सेवाएं पुलिस, स्वास्थ्य, परिवहन, खाद्य आपूर्ति, विद्युत, पेयजल, सफाई व्यवस्था आदि से संबंधित दफ्तर खुलेंगे।
– शेष विभागों के कार्मिकों को आफिस आने पर रहेगी रोक।
– दूरभाष पर सभी कर्मिक अपने उच्च अधिकारियों से संपर्क में रहेंगे।
– आवश्यकता पड़ने पर किसी भी कार्मिक को आना पड़ेगा दफ्तर।
– जिलाधिकारी किसी भी विभाग के कार्मिक को कोविड-19 की रोकथाम से संबंधित ड्यूटी में
कर सकते हैं तैनात।

ओबीसी प्रमाण पत्र को हर तीन साल में नवीनीकरण को लेकर समाज कल्याण विभाग को मिले निर्देश

राज्य में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के जाति प्रमाण पत्र के हर तीन साल में नवीनीकरण (रिन्यू) कराने की बाध्यता हटाने की तैयारी चल रही है। शासन स्तर पर इस प्रस्ताव पर मंथन शुरू हो गया है। इसके लिए समाज कल्याण विभाग को निर्देश मिले है कि वह प्रस्ताव बनाकर शासन को रिपोर्ट भेजे। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने इसकी पुष्टि की है।
जानकारी के मुताबिक राज्य में पूर्व में ओबीसी जाति प्रमाण पत्र के नवीनीकरण की अवधि छह महीने थी। विजय बहुगुणा सरकार ने इस अवधि को बढ़ाकर तीन साल कर दिया था। मगर, अब जाति प्रमाण पत्र से समय सीमा हटाने की मांग हो रही है।

यह भी है वजह
ओबीसी जाति प्रमाण पत्र की तीन साल की बाध्यता के पीछे की सबसे प्रमुख वजह केंद्र व प्रदेश सरकार की छात्रवृत्ति व अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लाभ और सरकार नौकरियों में आवेदन व साक्षात्कार से जुड़ी है। इस वर्ग से जुड़े लोगों का तर्क है कि प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी में जुटे अभ्यर्थी कई बार प्रमाणपत्र का समय पर नवीनीकरण कराना भूल जाते हैं।

इससे कई बार उनका चयन इस आधार पर लटक जाता है कि उन्होंने ओबीसी जाति प्रमाण पत्र को रिन्यू नहीं कराया। इसके अलावा यही समस्या अन्य योजनाओं में आ रही है। इस मामले में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह का कहना है कि ओबीसी जाति प्रमाण पत्र की तीन साल की बाध्यता समाप्त करने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। इसमें चूंकि क्रीमिलेयर की बात आती है। इसे देखना आवश्यक होता है। इसी वजह से इसमें रेगुलर इंटरवल पर सर्टिफिकेट बनवाने की जरूरत होती है। इस बारे में विचार हो रहा है। हम चाहते हैं कि कोई ऐसा हल निकले कि ओबीसी के अभ्यर्थियों को कम से कम परेशानी हो।