विरोध के बाद हटा हज दफ्तर से भगवा रंग

यूपी में योगी सरकार हर जगह भगवा रंग को तवज्जो दे रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कूल और बसों के बाद अब योगी सरकार ने लखनऊ स्थित हज कमिटी दफ्तर की बाउंड्री वॉल को भगवा रंग में रंग दिया था, हालांकि विवाद बढ़ने पर योगी सरकार को अपने कदम पीछे खिंचने पड़े। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे लेकर शनिवार को सफाई पेश की।
हज कमेटी दफ्तर की बाउंड्री वॉल को भगवा रंग से रंगे जाने के बाद सरकार की तरफ से सफाई दी गई। योगी सरकार ने सफाई पेश करते हुए कहा कि पुताई करने में ज्यादा गहरे रंग का इस्तेमाल हुआ इसे ठीक किया जा रहा है।

इसके बाद हज कमिघ्टी दफ्तर की बाउंड्री वॉल को फिर से सफेद रंग से पुताई की गई। आपको बता दें कि शुक्रवार को हज कमिटी दफ्तर की बाउंड्री वाल को भगवा रंग में रंगे जाने पर विवाद बढ़ा था। इससे पहले दीवारें सफेद और हल्की हरे रंग में थीं, लेकिन इसकी दीवारों पर गेरुआ रंग चढ़ा दिया गया था।
इस कदम पर राजनीति शुरू हो गई थी। विपक्षी नेताओं और उलेमाओं ने इस कदम का धुर-विरोध किया था। उनका कहना है कि सरकार इस मामले में भी मजहबी जज्बात कुरेदने में जुटी है। आपको बता दें कि इससे पहले भी उत्तरप्रदेश में काफी जगह इस प्रकार का प्रयोग हो चुका है।
इतना ही नहीं यूपी के पुलिस थाने तक भगवा रंग रंगे जाने लगे हैं। लखनऊ के कोतवाली कैसरबाग में भगवाकरण का काम शुरू हुआ है। बिजनौर और आजमगढ़ जिले के बाद राजधानी लखनऊ में भी थाने का भगवाकरण शुरू हुआ है।

यहां दिन की शुरूआत होगी राष्ट्रगीत से

एक तरफ जहां पूरे देश में वंदे मातरम और राष्ट्रगान को लेकर बहस चल रही है। दूसरी ओर हरियाणा के एक गांव ने ऐसा फैसला किया है, जिससे पूरे गांव की दिन की शुरुआत राष्ट्रगान की आवाज से ही होगी। हरियाणा के फरीदाबाद जिले के जाट बहुल भनकपुर गांव में अब रोज सुबह 8 बजे राष्ट्रगान बजेगा, इसके लिए गांव वालों ने 3 लाख रुपये खर्च कर करीब 20 लाउडस्पीकर लगाए जाएंगे।

गांव में करीब 5000 की आबादी है। ऐसा करने वाला भनकपुर हरियाणा का पहला गांव होगा। गुरुवार को गांव के सरपंच सचिन मदोतिया ने इस बात का ऐलान किया। उनके साथ स्थानीय विधायक और अन्य नेता भी मौजूद रहे।

ऐसा बताया जा रहा है कि गांव का सरपंच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि इसके लिए उनके ही घर में एक कंट्रोल रूम बनाया गया है। उनका कहना है कि उन्हें ये आइडिया जब आया, जिस दौरान उन्होंने तेलंगाना के जम्मीकुंटा के बारे में सुना। वहां पर भी लोग अपने दिन की शुरुआत राष्ट्रगान से ही करते हैं।

भनकपुर गांव इससे पहले भी चर्चा का विषय बना रहा है। इस गांव में कुल 22 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, इसके अलावा गांव को स्वच्छता के अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।

गौरतलब है कि राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत को लेकर पिछले कुछ समय से बवाल जारी रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही सिनेमा हॉल में भी फिल्म से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो गया है।

केजरीवाल का कद आप में सबसे बड़ा

आम आदमी पार्टी की ओर से राज्यसभा चुनाव के लिए जिन तीन लोगों के नाम तय किए गए हैं, उससे साफ है कि पार्टी में केजरीवाल का कद सबसे बड़ा है। पार्टी में केजरीवाल का साफ हस्तक्षेप है। 
आम आदमी पार्टी के ये तीन उम्मीदवारों के नाम के ऐलान से और स्पष्ट हो गया है। यही नहीं इससे इस तथ्य पर भी मुहर लगती है कि जिस-जिस ने भी केजरीवाल से असहमति दिखाई और उनके काम करने के तौर तरीकों पर सवाल उठाए आम आदमी पार्टी के संरक्षक ने उसको निपटा दिया। ऐसे लोगों की काफी लंबी लिस्ट है।
आम आदमी पार्टी के मंचीय कवि कुमार विश्वास केजरीवाल से असहमति रखने के ताजा शिकार हैं। विश्वास और केजरीवाल के बीच कई मुद्दों पर अलग-अलग राय देखने को मिली है। चाहे वो मामला कपिल मिश्रा का हो या अमानतुल्लाह खान का।
केजरीवाल के गुट में कुमार विश्वास को राष्ट्रवादी और बीजेपी से हमदर्दी रखने वाले व्यक्ति के तौर देखा जाता है, जबकि केजरीवाल के राजनीति इसके विरोध में है। हाल के दिनों में विश्वास आप में ढांचागत बदलाव की बात करते रहे हैं। जाहिर है पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को ये बर्दाश्त नहीं होता।कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी में कुमार का विश्वास सिमटता दिख रहा है। हालांकि उनके पास राजस्थान का प्रभार है।

कभी केजरीवाल के पुराने और मजबूत रणनीतिकार रहे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की आम आदमी पार्टी से विदाई बड़ी हृदय विदारक रही। 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद योगेंद्र यादव-प्रशांत भूषण और केजरीवाल के बीच जबरदस्त मतभेद उभरकर सामने आए। हालात ये बन गए कि पार्टियों की बैठकों में नेताओं के बीच गाली गलौज और हाथापाई की नौबत आ गई।
योगेंद्र और प्रशांत भूषण पार्टी से अलग हो गए। दोनों नेता आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे, लेकिन केजरीवाल ने दोनों को पार्टी से बाहर कर दिया। योगेंद्र और प्रशांत ने स्वराज अभियान नाम से एक दल बनाया और दिल्ली में अपनी लड़ाई लड़ने की ठानी।
योगेंद्र यादव की अगुवाई में स्वराज अभियान ने एमसीडी चुनावों में भी हिस्सा लिया, लेकिन उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिली। राज्यसभा के उम्मीदवारों के ऐलान के बाद योगेंद्र और प्रशांत ने ट्वीट कर इसे पार्टी का घोर पतन करार दिया।
कभी दिल्ली में सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने केजरीवाल पर दो करोड़ घूस लेने का सनसनीखेज आरोप लगाया था। 2017 की गर्मियों में कपिल मिश्रा और केजरीवाल टीम के बीच जबरदस्त जंग चलती रही। कपिल को कुमार विश्वास का समर्थन हासिल था और संघर्ष धीरे-धीरे बढ़ता गया। बाद में कपिल मिश्रा बीजेपी की ओर खिसकते गए और विवाद मंद पड़ता गया, लेकिन पूरे मामले में चुप्पी साधे केजरीवाल कपिल मिश्रा के लिए सियासी तौर पर साइलेंट किलर साबित हुए।
केजरीवाल के खिलाफ सबसे पहले बगावती सुर छेड़ने वाले विनोद कुमार बिन्नी ने आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा के खिलाफ सबसे आवाज उठाई और चुनावी मैदान में भी उन्हें चुनौती दी।
कभी दिल्ली में केजरीवाल के साथ मिलकर राजनीति करने वाले बिन्नी ने केजरीवाल की पहली सरकार में मंत्री पद न मिलने के बाद बगावती सुर अपना लिए थे।
इसके बाद अगले चुनाव के लिए पार्टी की ओर से टिकट न मिलने पर उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बाद में बिन्नी को पार्टी से निलंबित कर दिया।

जहां आज तक कोई सीएम नहीं आया, वहां योगी जाएंगे

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए पूरे पांच साल तक नोएडा में कदम नहीं रखा। यूपी की सियासत में एक भ्रम है कि सत्ता में रहते हुए जिस सीएम के कदम नोएडा में पड़े हैं वो दोबारा से सत्ता में वापसी नहीं कर सके। अखिलेश से लेकर मायावती तक इसी भ्रम में पड़ी रही और नोएडा में मुख्यमंत्री रहते हुए कदम नहीं रखा, लेकिन उत्तर प्रदेश के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस अंधविश्वास को धता बताते हुए नोएडा आने का फैसला किया है।
योगी आदित्यनाथ 25 दिसंबर को नोएडा पहुंच रहे हैं। यहां वे मेट्रो को हरी झंडी दिखाएंगे। ये मेट्रो नोएडा के बोटेनिकल गार्डन से दिल्ली के कालका जी तक जाएगी। दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नई मेट्रो लाइन के उद्घाटन समारोह में शामिल होंगे।

बता दें कि अखिलेश को उसी टोटके का डर से तमाम मुख्यमंत्री नोएडा आने से कतराते रहे। उन्होंने पांच साल तक सत्ता में रहते हुए एक बार भी नोएडा में कदम नहीं रखा। इसके बावजूद 2017 के विधानसभा चुनाव में वो अपनी सत्ता को बरकरार नहीं रख सके हैं।

मायावती 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं, लेकिन इन पांच सालों में मायावती ने नोएडा में कदम तक नहीं रखा। जबकि ग्रेटर नोएडा के दादरी के पास उनका पैतृक गांव है।
इसके बावजूद वे नहीं आई। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने कार्यकाल में नोएडा को सजाने सँवारने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। अंबेडकर पार्क से लेकर नोएडा एक्सप्रेस वे भी बनवाया। हालांकि, एक बार मायावती यहां आई थी, लेकिन उनकी सत्ता चली गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ दोनों नोएडा आ रहे हैं। अब देखना होगा कि क्या यह अंधविश्वास महज एक भ्रम रह जाता है या सच साबित होगा।

अगले माह जनवरी से 2000 रूपये के कैशलेस पर नहीं देना होगा एक्स्ट्रा चार्ज

डेबिट कार्ड से किसी दुकान पर 2000 रुपये तक की खरीदारी करने पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) के तौर पर कोई एक्स्ट्रा चार्ज नहीं देना होगा। यह चार्ज केंद्र सरकार दो साल तक स्वयं ही वहन करेगी।

डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से उठाया जा रहा यह कदम अगले साल जनवरी से लागू होगा। केंद्रीय कैबिनेट की मीटिंग में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि यह व्यवस्था ठीक से लागू हो, इसके लिए एक कमेटी बनाई गई है। उन्होंने कहा कि देश में डिजिटल ट्रांजैक्शन में लगातार बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल-सितंबर-2017 में केवल डेबिट कार्ड से दो लाख 18 हजार, 700 करोड़ का कैशलेस लेनदेन हुआ है।

अगर यही रफ्तार रही तो इस वित्त वर्ष के अंत तक यह चार लाख 37 हजार करोड़ का हो जाएगा। उन्होंने इसके साथ ही बताया कि सरकार देश केा एक ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने के लिए लगातार नये प्रयास कर रही है और देश इसकी तरफ अग्रसर हो रहा है।

बता दें कि इससे पहले आरबीआई ने एमडीआर चार्जेज घटा दिए थे। इनको लेकर कारोबारियों ने आपत्ति जताई थी। कारोबारियों का कहना था कि इससे व्यापारियों का खर्च बढ़ेगा। इसको देखते हुए ही सरकार ने यह कदम उठाया है।

एमडीआर क्या है?

मर्चेंट डिस्काउंट रेट वह रेट है, जो बैंक किसी भी दुकानदार अथवा कारोबारी से कार्ड पेमेंट सेवा के लिए लेता है। ज्यादातर कारोबारी एमडीआर चार्जेज का भार ग्राहकों डालते हैं और बैंकों को दी जाने वाली फीस का अपनी जेब पर भार कम करने के लिए ग्राहकों से भी इसके बूते फीस वसूलते हैं।

तलाक, तलाक, तलाक पर होगी सजा, जाने कौन से है प्रावधान?

तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट से बैन किए जाने के बाद मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। तीन तलाक के खिलाफ सख्त कानून वाले बिल को कैबिनेट की मंजूरी शुक्रवार को मिल गई। इस बिल के तहत अगर कोई शख्स एक समय में अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है, तो वह गैरजमानती अपराध माना जाएगा और उसे तीन साल की सजा भी हो सकती है।

बता दें कि मोदी सरकार ने इस बिल को लाने का तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के बैन किए जाने के बाद भी लगातार तीन तलाक के मामले हो रहे हैं। कानून में तीन तलाक को लेकर सजा का कोई प्रावधान नहीं था। इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ सख्त कानून बनाने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है।

मोदी सरकार द्वारा लाए जा रहे बिल के प्रारुप को सभी राज्य सरकारों भेजा गया था और राज्यों की राय मांगी गई थी। इसमें बीजेपी शासित ज्यादातर राज्यों ने इस पर मंजूरी दे दी है। इनमें असम, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने मंजूरी दे दी हैं।

तीन तलाक के खिलाफ बिल में यह प्रावधान है कि एक वक्त में तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा।

दूसरा यह कि एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा। ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है। यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आएगा।

तीसरा यह कि ड्रॉफ्ट बिल के मुताबिक एक बार में तीन तलाक या तलाक ए बिद्दत पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से गुहार लगाने की शक्ति देगा।

चौथा यह कि पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है। मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला लेंगे।
यह प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा।

राहुल के नेतृत्व में कई दल आ सकते है करीब

राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभालते ही अब चर्चा 2019 के लोकसभा चुनाव पर भी शुरू हो गई है। राहुल ने गुजरात में चुनाव प्रचार करने के बाद अध्यक्ष के तौर पर अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में भविष्य की रूपरेखा पर संक्षिप्त जानकारी दी। तो वहीं इससे पहले बिहार के पूर्व सीएम और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी राहुल को विपक्षी एकता के नेता के तौर स्वीकार्यता के संकेत दे चुके हैं।

ऐसे में अब राहुल की कोशिश भी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत होते जनाधार को विपक्षी एकता के साथ तोड़ने की रहेगी। 12 दिसम्बर को आरएसएस के गढ़ नागपुर में एक ऐसी कोशिश भी देखने को मिली। जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की दोस्ती एक बार फिर ट्रैक पर लौटती नजर आई।

किसानों की कर्जमाफी पर महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ नागपुर में दोनों दलों ने संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण ने बताया कि 2019 में कांग्रेस और एनसीपी मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर डाली।

आगामी लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ गठबंधन पर एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि दोनों पार्टियों को यूनाइटेड रहना चाहिए और 2019 में उनकी सरकार आएगी। इस घोषणा के साथ ही एनसीपी ने बीजेपी के प्रति अपने सख्त तेवर भी दिखाने शुरू कर दिए हैं।

वहीं शरद पवार ने किसानों से राज्य सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया और कहा कि सरकार जब तक किसानों का कर्ज माफ नहीं करती, तब तक किसान न तो बिजली का बिल भरें और न ही बैंकों का कर्ज चुकाएं।

यूपीए में सहयोगी रही एनसीपी ने अपना स्टैंड लगभग क्लीयर कर दिया है. लेकिन अब लेफ्ट समेत दूसरे विपक्षी दलों को साथ लाना राहुल की रणनीति का हिस्सा बन सकता है। यूपी में 2017 का विधानसभा चुनाव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की दोस्ती में लड़ने वाले राहुल के लिए उन्हें 2019 में साथ लाना आसान माना जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ बसपा भी कांग्रेस को सरकार में समर्थन दे चुकी है।

वहीं बिहार, बंगाल और केरल की बात की जाए तो लालू कांग्रेस के सहयोग के साफ संकेत दे चुके हैं। केरल में बीजेपी ने ताकत फूंकी हुई है और आरएसएस नेताओं की हत्याओं को राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाया है। जिसने वहां सत्ताधारी लेफ्ट के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। पहले भी कांग्रेस को लेफ्ट का समर्थन मिलता रहा है। ऐसे में राहुल वाम दलों को एकजुट लाकर भी बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ आती-जाती रही हैं। ऐसे में राहुल उन्हें भी साधने को भरपूर कोशिश करेंगे।

राहुल के सामने जहां कांग्रेस संगठन को नया रूप देने और उसमें जान फूंकने का चौलेंज है, वहीं 2014 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाले एनडीए और बीजेपी के खिलाफ विपक्षी खेमों को एकजुट करना भी उनके लिए बड़ा टास्क रहेगा।

व्यभिचार के लिये सिर्फ पुरूषों को सजा देने वाले कानून की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट

विवाहित महिला किसी गैर मर्द से शारीरिक संबंध बनाए तो सिर्फ उस मर्द को सजा क्यों? सुप्रीम कोर्ट इससे जुड़े कानून की समीक्षा करेगा। इस मसले पर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इस केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।

औरत को मुकदमे से छूट हासिल है
दरअसल, एडल्ट्री यानी व्यभिचार की परिभाषा तय करने वाली आईपीसी की धारा 497 में सिर्फ मर्द को सजा का प्रावधान है। किसी विवाहित महिला से उसके पति की मर्जी के बिना संबंध बनाने वाले मर्द को पांच साल तक की सजा हो सकती है, लेकिन महिला पर कोई कार्रवाई नहीं होती। याचिकाकर्ता ने इसे भेदभाव भरा कानून बताया है।
केरल के जोसफ शाइन की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि 150 साल पुराना ये कानून मौजूदा दौर में बेमतलब है। ये उस समय का कानून है जब महिलाओं की स्थिति बहुत कमजोर थी। इसलिए, व्यभिचार के मामलों में उन्हें पीड़ित का दर्जा दे दिया गया।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि आज औरतें पहले से मजबूत हैं। अगर वो अपनी इच्छा से दूसरे मर्द से संबंध बनाती हैं, तो मुकदमा सिर्फ उस मर्द पर नहीं चलना चाहिए। औरत को किसी भी कार्रवाई से छूट दे देना समानता के अधिकार के खिलाफ है।
बेंच ने इस दलील से सहमति जताते हुए कहा, आपराधिक कानून लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता, लेकिन ये धारा एक अपवाद है। इस पर विचार की जरूरत है। कोर्ट ने ये भी कहा कि पति की मंजूरी से किसी और से संबंध बनाने पर इस धारा का लागू न होना भी दिखाता है कि औरत को एक संपत्ति की तरह लिया गया है।
पत्नी को शिकायत का अधिकार नहीं
याचिकाकर्ता ने बताया कि 1971 में लॉ कमीशन और 2003 में जस्टिस मलिमथ आयोग आईपीसी 497 में बदलाव की सिफारिश कर चुके हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने कानून में संशोधन नहीं किया।
कोर्ट में ये सवाल भी उठा कि आईपीसी 497 के तहत पति तो अपनी पत्नी के व्यभिचार की शिकायत कर सकता है, लेकिन पति के ऐसे संबंधों की शिकायत पत्नी नहीं कर सकती। कोर्ट ने माना कि मौजूदा हालात में ये कानून न कहीं पुरुष से तो कहीं महिला से भेदभाव करता है।
इससे पहले 1954, 2004 और 2008 में आए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट आईपीसी 497 में बदलाव की मांग को ठुकरा चुका है। ऐसे में नई याचिका पर पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई हो सकती है।

बाबरी मस्जिद के विध्वंस की बरसी, मौलाना बोले दोबारा बने मस्जिद


बजरंग दल व विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाबरी विध्वंस की 25वीं बरसी को शौर्य दिवस के रूप में मनाया। इसके लिये उन्होंने जगह-जगह भारी संख्या में जुलुस भी निकाला। इस दौरान संस्कृत कॉलेज कैंपस से संगठन के कार्यकर्ता डीजे की धुन व ढोल नगाड़े लिये भी दिखाई दिये। डीजे पर प्रभु राम जी की सेना चली आदि भजनों पर कार्यकर्ता झुमते नजर आये।
सुरक्षा का लेकर अलर्ट था प्रशासन
बाबरी विध्वंस की 25 वीं बरसी पर बजरंग दल व विश्वहिंदू परिषद द्वारा आयोजित शौर्य दिवस व विशाल जुलूस को लेकर प्रशासन भी पूरी तरह से मुस्तैद था। शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर पुलिस बल की भारी तैनाती के साथ-साथ एहतियात के तौर पर एसएसबी के जवानों को भी तैनात किया गया था। जुलूस के साथ-साथ पुलिसकर्मी व एसएसबी के जवान भी चल रहे थे।

बरसी पर चस्पा मिले विवादित पोस्टर
बाबरी मस्जिद दोबारा तामीर करो। आल इंडिया इमाम कौंसिल शामली के नाम से चस्पा पोस्टर में लिखा कि बाबरी पर कोई समझौता नहीं, 25 साल से इंसाफ की मुंतजिर। दोबारा तामीर ही इंसाफ है। बाबरी के मुजरिमों पर कानूनी कार्रवाई की जाए। बताया गया कि एक संगठन के नाम से अब से पहले भी प्रधानमंत्री के बारे में अशोभनीय टिप्पणी वाले पोस्टर चस्पा हुए थे। सीओ कैराना राजेश तिवारी का कहना है कि विवादित पोस्टरों की जांच कराई जाएगी। दोषियों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
वाम मोर्चा ने मनाया काला दिवस
बाबरी मस्जिद विध्वंस के विरोध में वाममोर्चा ने सयुंक्त रूप से काला दिवस मनाया। इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि भाजपा धर्म के नाम पर लोगों में नफरत फैला कर देश की एकता और अखंडता को तोड़ना चाहती है। गोरक्षा के नाम पर हत्या करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। जिससे ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि गुजरात चुनाव में जनता के ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाकर मंदिर तथा जनेऊ तक को मुख्य मुद्दा बनाया जा रहा है। भाजपा हिन्दुत्व के नाम पर सत्ता हाशिल करना चाहती है।
दोबारा बने बाबरी मस्जिद
ऑल इंडिया इमाम्स के पश्चिम उत्तर प्रदेश अध्यक्ष मौलाना शादाब ने कहा कि 6 दिसंबर 1992 में पांच सौ साल पुरानी बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया गया था। अभी तक उस जगह पर दोबारा मस्जिद की तामीर नहीं हुई है। यह मामला अदालत में विचाराधीन है और उम्मीद है कि इसमें सभी मुसलमानों की जीत मिलेगी। उन्होंने सभी मुसलमानों से गैर अदालत राय या बयानबाजी करने से मना किया।

जानिए राहुल गांधी की ताजपोशी का दिन

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी की ताजपोशी का दिन तय हो गया है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में इस बाबत एक प्रस्ताव पास कर दिया गया है। बैठक में पार्टी के सांगठनिक चुनावों और राहुल के अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को लेकर चर्चा हुई।
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नोटिफिकेशन एक दिसंबर को जारी होगा। 11 दिसंबर नाम वापसी का आखिरी दिन होगा। अगर राहुल के अलावा कोई और उम्मीदवार हुआ तो 16 दिसंबर को मतदान होगा। वोटों की गिनती 19 दिसंबर को होगी। ऐसे में माना जा रहा कि राहुल के अध्यक्ष बनने का ऐलान 19 दिसंबर को होगा। हालांकि बैठक में शामिल एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने दावा किया कि राहुल गांधी 11 दिसंबर को ही कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएंगे।

कांग्रेस महासचिव अंबिका सोनी ने कहा कि गुजरात में चुनावी प्रचार की सफलता का श्रेय और नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दे पर विपक्ष की सफल अगुवाई का श्रेय कांग्रेस उपाध्यक्ष को जाता है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि राहुल गांधी ने आगे बढ़कर अगुवाई की है और बहुत ही क्षमतावान नेता हैं। आजाद ने कहा कि ये कुछ ही दिनों की बात है, जब पार्टी को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। राहुल गांधी आगे बढ़कर पार्टी का नेतृत्व करेंगे।
इस बीच लोकसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि वर्किंग कमिटी की बैठक में निर्णय होने की उम्मीद है। हम सब पार्टी अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के नेतृत्व के लिए तैयार हैं। इसके साथ ही सभी प्रदेशों के इंचार्ज भी इसमें हिस्सा लेंगे।
गौरतलब है इस चुनावी प्रक्रिया से पहले ही तमाम राज्यों में कांग्रेस के सदस्यों का चयन करने के लिए पोलिंग हो चुकी है। लगभग सभी राज्यों ने कांग्रेस अध्यक्ष के लिए राहुल गांधी का नाम सर्वसम्मति से पारित भी किया है। ऐसे में तमाम राज्यों के इंचार्ज राज्य इकाइयों के प्रस्ताव को भी भी पेश करेंगे।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस केंद्रीय चुनाव समिति की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रस्तावित तारीख समिति ने कांग्रेस अध्यक्ष को दे दी है। हालांकि समिति इसमें बदलाव कर सकती है।
अगर कांग्रेस अध्यक्ष के लिए सिर्फ राहुल गांधी ही नॉमिनेशन भरते हैं और कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं होता तो इसका मतलब है एक दिसंबर ही को डिक्लेयर कर दिया जाएगा की कि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए हैं।