अटल जी के जाने से एक युग का अंत हो गयाः नमो

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गुरूवार को निधन हो गया। भारत रत्न अटल जी का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली रहा कि हर कोई चाहे वह कोई भी राजनैतिक संगठन हो या फिर कोई आम नागरिक। सभी को उनके जाने का गहरा सदमा लगा है। उन्होंने दिल्ली स्थित एम्स में अंतिम सांसे ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान से उत्तराखंड भी शोक में डूब गया। शासन ने सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। श्रद्धांजलि स्वरूप शुक्रवार राज्य में सरकारी कार्यालय व शिक्षण संस्थान बंद रहेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर कहा कि उनका जाना पिता के खोने जैसा है। मां भारती के सच्चे सपूत थे अटल जी। उनका विराट व्यक्तित्व था। अटल जी के जाने से एक युग का अंत हो गया है।

वाजपेयी के निधन पर प्रख्यात गायिका लता मंगेशकर ने कहा, मुझे ऐसा लगता है कि एक साधु पुरुष चला गया है। वह अच्छे लेखक और कवि थे। लोग उनका भाषण सुनने के लिए तरसते थे, वह एक सच्चे और अच्छे इंसान थे। उन्होंने कहा, वाजपेयी के निधन पर मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा।

वे पिछले दो महीने से ज्यादा समय से एम्स के बिस्तर पर थे और मौत से उनकी ‘ठनी’ हुई थी, हालांकि आज शाम पांच बजकर पांच मिनट पर उन्होंने अलग रास्ता चुना और ‘काल के कपाल पर लिखकर’ वे इस दुनिया से कूच कर गए। उनके खुद के शब्दों में ‘मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं’।

तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी अस्वस्थता के चलते लंबे समय से सार्वजनिक जीवन से दूर थे। वे डिमेंशिया नाम की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। 2009 से ही वे व्हीलचेयर पर थे, देशवासियों ने उन्हें अंतिम बार 2015 में 27 मार्च को देखा, जब तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भारत माता के इस सच्चे सपूत को भारत रत्न से सम्मानित करने उनके आवास पर पहुंचे।

दो महीने पहले वाजपेयी की तबीयत और ज्यादा खराब हो गई। यूरिन में इन्फेक्शन के चलते 11 जून को उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित बीजेपी और देश की अलग-अलग पार्टियों के नेता और अनेक गणमान्य हस्तियां उनका हालचाल जानने पहुंचीं. उनके समर्थक लगातार उनकी सलामती की दुआ कर रहे थे, हालांकि कुदरत को शायद कुछ और मंजूर था।

अटल बिहारी वाजपेयी देश की सक्रिय राजनीति में पांच दशक से ज्यादा समय तक रहे। वे देश के पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1952 में लड़ा, हालांकि पहली जीत उन्हें 1957 में मिली। तब से 2009 तक वे लगातार संसदीय राजनीति में बने रहे। 1977 में वे पहली बार मंत्री बने, जबकि 1996 में वे 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री भी रहे।

हालांकि 1998 में उन्हें एक बार फिर पीएम बनने का मौका मिला। उनकी ये सरकार भी सिर्फ 13 महीने चली लेकिन इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के बहुमत वाली सरकार बनी और वाजपेयी ने पीएम के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया। वर्ष 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में वे लखनऊ से लोकसभा सदस्य चुने गए।

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