सुप्रीम कोर्ट ने दिया स्वैच्छिक सेवानिवृति पर एक अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि स्वैच्छिक सेवानिवृति का अधिकार जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं है। सरकार जनहित को ध्यान में रखते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृति की मांग ठुकरा सकती है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा व एस.अब्दुल नजीर की पीठ ने प्रदेश सरकार की अपील स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने डाक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृति की अर्जी स्वीकार करते हुए सेवानिवृत घोषित कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के संशोधित फंडामेंटल रूल-56 की व्याख्या करते हुए कहा कि नियमों के तहत सरकार को स्वैच्छिक सेवानिवृति की अर्जी ठुकराने का अधिकार है। सरकार ने मानव जीवन की आवश्यकताओं और जनहित के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया है। डाक्टर मौलिक अधिकार के तहत सेवानिवृति के हक का दावा कर रहे हैं लेकिन ये अधिकार जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं हो सकता। सेवानिवृति के अधिकार की व्याख्या सरकार द्वारा लोगों को स्वास्थ्य और पोषण उपलब्ध कराने के संवैधानिक दायित्व को साथ रख कर की जाएगी। रोजगार की आजादी, जनहित के आधीन है। नौकरी ज्वाइन करने के बाद इस अधिकार का दावा सिर्फ नियमों के मुताबिक ही किया जा सकता है।

स्वैच्छिक सेवानिवृति पर नियमों के मुताबिक ग्रेच्युटी, पेंशन आदि मिलता है, ऐसे ही जब कर्मचारी की सेवा की आवश्यकता होगी तो नियुक्ति अथारिटी को स्वैच्छिक सेवानिवृति अर्जी अस्वीकार करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह सभी डाक्टरों की सेवानिवृति की अनुमति दे दी जाएगी तो अव्यवस्था उत्पन्न हो जाएगी और सरकारी अस्पताल में कोई भी डाक्टर नहीं बचेगा।

कोर्ट ने कहा कि रूल 56 के तहत स्वैच्छिक सेवानिवृति के नोटिस को तीन महीने बीतने पर सेवानिवृति स्वतरू प्रभावी नही होगी। नियुक्ति अथारिटी या तो नोटिस स्वीकार करेगी या फिर उसे अस्वीकार कर सकती है। कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृति का संपूर्ण अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि पहले ही डॉक्टरों की कमी है। व्यवस्था को सक्षम वरिष्ठों के बगैर नहीं छोड़ा जा सकता। सरकारी अस्पताल में गरीब इलाज कराता है उन्हें खतरे में नहीं डाला सकता। भारत में सरकारी चिकित्सा सेवा गरीबों की जरूरतों को पूरा करती है अन्यथा इस धर्मार्थ कार्य का व्यवसायीकरण हो चुका है। इस स्थिति में लोगों को अच्छे डॉक्टरों की सेवा से वंचित नहीं किया जा सकता।

डॉक्टरों की कमी और इस पेशे के व्यवसायीकरण का ध्यान रखते हुए सरकार ने राज्य चिकित्सा सेवा की क्षमता बनाए रखने के लिए जो फैसला किया है वह नियम सम्मत है। संविधान के तहत हर व्यक्ति का मौलिक कर्तव्य है कि वह जीवित प्राणियों के प्रति दयालुता और मानवता रखे ताकि राष्ट्र लगातार ऊंचाइयों पर पहुंचे। सरकारी चिकित्सा सेवा से बड़े पैमाने पर कूच नहीं हो सकता जैसा इस मामले में दिखाई दे रहा है।

क्या था मामला
उत्तर प्रदेश में प्रांतीय मेडिकल सर्विस में वरिष्ठ पदों पर तैनात डा. अचल सिंह, डा. अजय कुमार तिवारी, डा. राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, डा. राजीव चौधरी ने स्वैच्छिक सेवानिवृति की अर्जी दी। जब सरकार ने उस पर आदेश नहीं किया तो डॉक्टरों ने हाईकोर्ट में याचिका कर स्वैच्छिक सेवानिवृति मांगी जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। सरकार ने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सरकार का कहना था कि डॉक्टरों की कमी को देखते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृति की अर्जी ठुकराई गई है।

503 Service Unavailable

Service Unavailable

The server is temporarily unable to service your request due to maintenance downtime or capacity problems. Please try again later.

Additionally, a 503 Service Unavailable error was encountered while trying to use an ErrorDocument to handle the request.