अलग-अलग कूड़े का उठान और उपयोग पर कोरिया करेगा सहयोग

नगर निगम ऋषिकेश की संकरी गलियों में अब कूड़ा उठान के लिए ई-रिक्शा का सहारा लिया जाएगा। इसके लिए नगर निगम प्राथमिकता पर काम कर रहा है। शुरुआती चरण में निगम क्षेत्र की गलियां और घर से गलियों के बाहर तक आने की दूरी का आंकलन किया जा रहा है। इसके बाद ही ई-रिक्शा की जरूरत का अंदाजा लग पाएगा। बृहस्पतिवार को मेयर अनिता ममगाईं ने एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) और केईआईटीआई (कोरिया एनवायरमेंट इंडस्ट्री एवं टेक्नालॉजी इंस्टीट्यूट) के प्रतिनिधिमंडल के साथ वार्ता के दौरान यह जानकारी दी। नगर निगम में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर प्री फिजिबिलिटी रिपोर्ट के लिए केईआईटीआई और एडीबी ज्वाइंट मिशन के लिए बैठक आयोजित हुई। इस दौरान तीनों नगर निकायों के जनप्रतिनिधियों तथा क्षेत्र के व्यापारियों, स्कूल प्राध्यापकों आदि ने ऋषिकेश में ठोस अपशिष्ट पदार्थों को लेकर अपने-अपने सुझाव दिए। बता दें कि एडीबी नगर निगम ऋषिकेश को कूड़ा प्रबंधन के लिए फंड जारी कर रहा है जबकि केईआईटीआई से सही तरह से कूड़ा प्रबंधन के लिए सुझाव लिए जा रहे हैं। बैठक में पालिकाध्यक्ष मुनिकीरेती रोशन रतूड़ी, नगर पंचायत जौंक अध्यक्ष माधव अग्रवाल, शहरी विकास विभाग से सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर रवि पांडे, एडीबी से बागेश कुमार, सैमदास गुप्ता, नगर आयुक्त चतर सिंह चैहान, अधिशासी अधिकारी पालिका मुनिकीरेती बद्री प्रसाद भट्ट, केईआईटीआई से स्यूंगडू किम, येचांम जोंग, टाडातेरु ह्यासी, ली सैंग क्यू आदि उपस्थित रहे।


पब्लिक का सहयोग होना जरुरीः प्रो. किम
कोरिया एनविरोनमेंट इंडस्ट्री एवं टेक्नालॉजी इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर व ठोस अपशिष्ट के एक्सपर्ट स्यूंगडू किम ने कहा कि कूड़ा निस्तारण की योजना को पूरा करने के लिए तीन चरण आवश्यक हैं। पहला पब्लिक का साथ, दूसरा टेक्निकल और तीसरा फाइनेंस। उन्होंने कहा कि शुरूआती दौर में छह माह तक इसका रोडमैप तैयार होगा। इसके बाद डीटीआर तैयार होगी। उन्होंने बताया कि कोरिया में नगर का कूड़ा आर्गेनिक, रिसाइकिल तथा डिस्पोजल के रूप में बनता है। वहां घरों से कूड़ा उठान के लिए कूड़ा बैग अलग-अलग साइज में दिए गए हैं। जितना बड़ा बैग होगा, उतना ही ज्यादा चार्ज होगा। उन्होंने बताया कि वहां मंडी से निकलने वाले कूड़े को तुरंत जानवरों को आहार के रूप में दिया जाता है।

सीसीटीवी कैमरों से रखेंगे नजर
पालिकाध्यक्ष ने बताया कि क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरों के लिए पुलिस को 17 लाख तथा नगर पालिका को 25 लाख रुपए मिले हैं। इन सीसीटीवी कैमरों के जरिए रात में खुले में कूड़ा डालने वालों पर नकेल कसी जा रही है। इसी क्रम में नियमों का उल्लंघन करने वालों पर चालान की कार्रवाई की जा रही है। रोशन रतूड़ी ने बताया कि हमारे यहां सफाई कर्मियों को समय से वेतन जारी किया जा रहा है। इससे कर्मचारियों का मनोबल हमेशा बरकरार रहता है। दूसरी ओर नगर निगम की कार्यप्रणाली पूरी तरह से लचर दिखी। यहां तमाम दावों के बावजूद न तो सड़कों से आवारा पशु हट पाए, आउटसोर्सिंग कर्मियों के बकाया वेतन का मामला भी विवादों में रहा। इसके अलावा तमाम कोशिशों के बावजूद कूड़े का निस्तारण बेहतर ढंग से नहीं हो पा रहा है।


मुनिकीरेती पालिका कूड़ा निस्तारण में अव्वल
नगर पालिका मुनिकीरेती ने स्वच्छता के मामले में नगर निगम ऋषिकेश को आइना दिखाया है। बृहस्पतिवार को निगम में हुई बैठक में पालिकाध्यक्ष रोशन रतूड़ी ने एडीबी और केईआईटीआई की टीम के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश की। उन्होंने बताया कि उनकी पालिका क्षेत्र में प्रति परिवार को 20 रुपये में थैला दिया गया है। पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाने के लिए लोगों में चालान की कार्रवाई के जरिये भय बनाने पर काम किया जा रहा है। क्षेत्र में प्रतिदिन 12 टन कूड़ा एकत्र होता है, इसमें से आठ टन हरिद्वार भेजा जाता है, चार टन को रिसाइकिल कर गड्ढे भरने के उपयोग में लाया जा रहा है। मुनिकीरेती पालिका में प्रत्येक घर में गमला दिया गया है। इसमें गीले कूड़ा का इस्तेमाल खाद के रूप में किया जा रहा है। सूखा कूड़ा पालिकाकर्मी उठाते हैं।

सुझावों पर एक नजर…
– छोटी गलियों से कूड़ा उठान के लिए डिब्बे उपलब्ध कराए जाएं
– कूड़ा डंपिंग की व्यवस्था आबादी क्षेत्र से दूर इलाके में हो
– पॉलिथीन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए
– गंगा नदी में पूजन सामग्री न डाली जाए
– पॉलिथीन की जगह जूट के उत्पाद वितरित कर प्रचलन में लाएं
– गीला कूड़ा और सूखा कूड़ा अलग-अलग उठाया जाए
– वार्डों से कूड़ा उठान से पूर्व गोविंदनगर ट्रंचिंग ग्राउंड से कूड़ा हटाया जाए
– वैकल्पिक तौर पर आईडीपीएल कांवड़ मेला पार्किंग स्थल पर कूड़ा डंप हो
– गीले कूड़े को घर में ही खाद बनाने का हुनर सिखाया जाए
– कूड़े के प्लास्टिक से फर्नीचर बनाने का उपक्रम प्रचलन में लाया जाए

खतरे में नैनीताल झील की प्राकृतिक सुदंरता

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नैनीताल। प्रयाग पाण्डे

नैनीताल – देश -दुनिया के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र नैनीताल की खूबसूरत झील इस दौरान अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। मिट्टी-मलबा, कूड़ा-करटक भर जाने से पैदा हुए प्रदूषण के साथ जल स्तर में आई जबरदस्त गिरावट समेत अनेक समस्याओं से जूझ रही नैनी झील के किनारों को अब झील के रखवालों ने ही मिट्टी ,पत्थर और सीमेंट से पाटना शुरू कर दिया है। नैनीताल और आसपास के इलाकों को रोजी-रोटी ,पानी और पहचान देने वाली झील अब खुद यतीम हो गई है।
नैनीताल की झील की कुदरती बनावट में ही इसकी असल खूबसूरती छिपी है। दुर्भाग्य से झील के रखरखाव के लिए जिम्मेदार सरकारी महकमे ही इसकी प्राकृतिक शोभा को बदरंग करने पर आमादा हैं। मजेदार बात यह कि यह क्षरण एशियन विकास बैंक की माली मदद से धरोहरों के संरक्षण के नाम पर हो रहा है। उत्तराखण्ड के पर्यटन महकमे की हेरिटेज भवनों के संरक्षण की एक ऐसी ही योजना नैनी झील के क्षरण की सबब बन गई है।
उत्तराखण्ड के पर्यटन विभाग ने हेरिटेज भवनों को सहेजने के लिए योजना बनाई है। इस योजना के लिए एशियन विकास बैंक से बेहिसाब आर्थिक मदद ली जा रही है। योजना में नैनीताल को भी शामिल किया गया है। योजना के तहत “कल्चर हेरिटेज एंड अर्बन प्लेस मेकिंग इन नैनीताल” नाम से नैनीताल नगर में विभिन्न कामों के लिए तकरीबन अट्ठाइस करोड़ रूपए मंजूर हुए हैं। इन कामों का ठेका दिल्ली की “सिम्पलेक्स” नाम को दिया गया है।
धरोहरों को संरक्षित करने के नाम पर चल रही इस योजना के तहत इन दिनों नैनीताल की मालरोड में तालाब के किनारे स्थित दुर्गा साह नगर पालिका पुस्तकालय के जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। ब्रिटिशकाल में बने बेहद हल्के पुस्तकालय शेड को संरक्षित करने के बहाने तालाब के एक बड़े हिस्से में पत्थरों की चौड़ी दीवार देकर उस हिस्से को मिट्टी-मलबे से पाटने का काम चल रहा है। झील के भीतर इस बेतुके एवं कुरूप निर्माण से झील की प्राकृतिक सुंदरता खतरे में है। निहायत गैर जरूरी और नासमझी भरे इस निर्माण से झील का भौगोलिक क्षेत्रफल और जल संग्रहण क्षमता दोनों का कम होना तय है।
दुर्गा साह नगर पालिका पुस्तकालय का यह शेड करीब एक सौ साल पहले बना था। शुरुआत में यह वाईडब्ल्यूसीए का बोट हाउस था। 1937 में नगर पालिका ने इस शेड को पुस्तकालय के लिए अधिगृहीत कर लिया। यह शेड तालाब के किनारे पत्थर के पिलरों के ऊपर टिका है। इसकी पर्दा दीवारें हल्के टिन से बनाई गई हैं। इस शेड के मूल ढांचे के रहते तालाब के भौगोलिक क्षेत्रफल और जल संग्रहण क्षमता पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ रहा था। इस शेड के नीचे बराबर पानी रहा करता था। पर अब एयर कंडीशन कमरों में बैठे योजनाकारों को इस शेड को संरक्षित करने के वास्ते तालाब के भीतर बदनुमा दीवार लगाने के अलावा और कोई तकनीक नहीं सूझ रही है।
वहीं, दूसरी ओर नैनीताल की झील की देख-रख और रखरखाव के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार लोक निर्माण विभाग ने तल्लीताल क्षेत्र में झील के भीतर एक पक्का कैचपिट बना डाला है। इससे तालाब का न केवल अंदरूनी क्षेत्रफल कम हुआ है, बल्कि जल संग्रहण क्षमता भी घट गई है। लोनिवि के अधिशासी अभियंता एस. के. गर्ग के मुताबिक यह कैचपिट झील में मलबा जाने से रोकने के लिए बनाया गया है। हकीकत यह है कि कैचपिट झील के मौजूद जल स्तर करीब पांच फिट में तालाब में बनाया गया। जबकि इस मौसम में तालाब का जल स्तर साढ़े नौ फिट होना चाहिए था। तालाब का अधिकतम जल स्तर बारह फिट तक रखे जाने की व्यवस्था है। भविष्य में झील में मानक के मुताबिक पानी भरा तो इस कैचपिट का डूबना तय है। ऐसी सूरत में इस कैचपिट की उपयोगिता क्या होगी, इसका जबाब इंजीनियरों के पास नहीं है। गौरतलब बात यह है कि उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने जिले की सभी झीलों के तीस मीटर के दायरे में निर्माण कामों पर पाबंदी लगाने के आदेश दिए हैं।