ऋषिकेशः खैरी का दिन के बाद थोकदार फिल्म में भी ओपनिंग में थियेटर रहा पैक


दिगंबर प्रोडक्शन के बैनर तले बनी गढ़वाली फिल्म थोकदार का रामा पैलेस में पहला शो का शुभारंभ मुख्यातिथि ब्लाक प्रमुख भगवान सिंह पोखरियाल, अंतरराष्ट्रीय गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे नेगी, समाजसेवी लक्ष्मण सिंह चौहान ने फीता काटकर किया।

मुख्य अतिथि भगवान सिंह पोखरियाल ने कहा कि, फिल्म के माध्यम से विलुप्त हो रही गढ़वाली संस्कृति और रीति रिवाजों को नई पहचान मिलेगी। साथ ही इससे नई युवा पीढ़ी गढ़वाल की संस्कृति से रूबरू होंगी।

तमाम कलाकारों की मोजूदगी में बुराई पर अच्छाई की जीत और परिवार के संस्कारों को दर्शाती गढ़वाली फीचर फिल्म थोकदार देखने के लिए सिनेमाघर में दर्शकों की जबरदस्त भीड़ उमड़ी। दिगंबर प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म की निर्माता ममता रावत जबकि निर्देशक देबू रावत हैं। निर्देशक देबू रावत ने बताया कि उन्हें बेहद खुशी है कि देहरादून एवं कोटद्वार के बाद ऋषिकेश में भी दर्शकों का खूब प्यार फिल्म के प्रति आज देखने को मिला है। फिल्म के शो हाउसफुल होने से कलाकारों का भी काफी उत्साह बढ़ रहा है।

इस मौके पर ग्राम प्रधान सोबन सिंह कैंतुरा, कमलजीत कौर, महावीर उपाध्याय, अमर खत्री,शमा पंवार, पूर्व जिला पंचायत सदस्य अनिता राणा, उप प्रधान शैलेन्द्र रांगड़, हुकुम रांगड़, हरीश पैन्यूली, अम्बर गुरुंग, जय भट्ट, मंजीत सिंह, जीवन चौहान, अनिता पोखरियाल, उमा कैंतुरा सहित फिल्म के अभिनता राजेश मालगुड़ी, रणवीर चौहान, अभिनेत्री शिवानी भंडारी, गायक लेखराज भंडारी, राजेन्द्र सिंह नेगी, रोशन उपाध्यय, सतेंद्र चौहान, अरुण बडोनी एवं फिल्म को सपोर्ट करने विशेष रूप से पहुंची उत्तराखंड की लोकप्रिय अभिनेत्री गीता उनियाल प्रमुख रूप से शामिल रही।

रामा पैलेज से एक जुलाई से दिखाई जायेगी गढ़वाली फिल्म खैरी का दिन

आंचलिक फिल्मों के जरिए हमारी संस्कृति को पहचान मिलती है, इनसे हमारी संस्कृति को और करीब से जानने का अवसर मिलता है। यह बात एआईसीसी के सदस्य जयेंद्र रमेाला ने कही।

बता दें कि एक जुलाई से रामा पैलेस ऋषिकेश में प्रदर्शित होने वाली गढ़वाली फ़िल्म’ ’खैंरी का दिन’ के पहले शो शुभारम्भ कांग्रेस नेता जयेन्द्र रमोला करेंगे।

कांग्रेस नेता जयेन्द्र रमोला ने बताया कि पूरे हिन्दुस्तान में हर प्रदेश में अपनी बोली व अपनी भाषा से पहचान है परन्तु उत्तराखण्ड में आज भी हमें अपनी बोली को भाषा का दर्जा दिलाने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि हम लोग स्वयं अपनी गढ़वाली बोली में बात करने में हिचक महसूस करते हैं परन्तु उत्तराखण्ड के स्थानीय कलाकार आज फ़िल्मों के माध्यम से अपनी भाषा व संस्कृति को बचाने का कार्य कर रहे हैं और हमें इनको प्रोत्साहित करना चाहिये।

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