एम्स में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरूपयोग को रोकने संबंधि आनलाइन प्रोग्राम का हुआ शुभारंभ

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में वल्र्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक विधिवत शुरू हो गया। इसमें लोगों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से एंटीबायोटिक के दुरुपयोग से होने वाले शारीरिक नुकसान को लेकर जागरुक किया जाएगा।

एम्स ऋषिकेश में आज निदेशक प्रो. रविकांत ने एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिए सप्ताहव्यापी जनजागरुकता पर आधारित ऑनलाइन प्रोग्राम का विधिवत शुभारंभ किया। उन्होंने बताया कि एंटीबायोटिक दवाओं के उचित उपयोग को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिना किसी वैज्ञानिक आधार के इनका अत्यधिक उपयोग व दुरुपयोग हानिकारक परिणाम दे सकता है।
प्रो. रविकांत ने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण की प्रगति को कम करने के लिए अस्पताल में की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं के दौरान यूनिवर्सल प्रिकॉशन का पालन करना चाहिए। उन्होंने इस जनजागरुकता कार्यक्रम के आयोजन के लिए सामान्य चिकित्सा विभाग के डॉ. पीके पांडा, डीन कॉलेज ऑफ नर्सिंग प्रो. सुरेश कुमार शर्मा व उनकी टीम को बधाई दी।

अस्पताल में क्वालिटी इंप्रूवमेंट के विषय को लेकर डीन (हॉस्पिटल अफेयर्स) ब्रिगेडियर प्रो. यूबी मिश्रा ने “इंटीग्रेटेड एंटीमाइक्रोबियल्स स्टीवार्डशिप” पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम, डायग्नोस्टिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम, इनफेक्शन प्रीवेंशन एंड कंट्रोल प्रोग्राम इसके मुख्य तत्व हैं। उन्होंने जोर दिया कि सभी मेडिकल संस्थानों को इस प्रोग्राम को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन तत्वों पर काम करना चाहिए ताकि यह सकारात्मक रूप से काम कर सके और संक्रमण को रोकने में बड़ी सफलता बना सके।

डीन नर्सिंग प्रो. सुरेश कुमार शर्मा ने “एंटी माइक्रोबियल्स स्टीवार्डशिप प्रैक्टिसेज ” पर सभी नर्सेज को संदेश दिया कि वर्ष 2020 को नर्स और मिडवाइव्स का वर्ष घोषित किया गया है और सीडीसी ने स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में नर्सों के महत्व पर भी जोर दिया है। एंटी माइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए नर्सें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि नर्सिंग ऑफिसर्स रोगी की देखभाल में अधिकतम समय बिताते हैं। उन्होंने सभी नर्सों से शपथ लेने का अनुरोध किया कि हम निश्चितरूप से बिना चिकित्सक के परामर्श से दी गई एंटीमाइक्रोबॉयल दवाओं के उपयोग को हतोत्साहित करेंगे और हमेशा सही खुराक, सही माध्यम और सही अवधि तक देंगे।

डॉ. पीके पांडा ने कहा कि एंटी-माइक्रोबियल को संरक्षित करने के लिए संयुक्त चिकित्सक, फार्मासिस्ट और रोगी से सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं। साथ ही उन्होंने सभी चिकित्सकों को संदेश दिया कि उन्हें अनावश्यक प्रिसक्रिप्शन और बिना किसी संवैधानिक वैज्ञानिक सबूत के दवाई प्रिसक्राइब नहीं करनी चाहिए।

क्लिनिकल फार्माकॉलेजिस्ट प्रोफेसर शैलेंद्र शंकर हाण्डू ने एंटी माइक्रोबियल्स क्या है और इसे कब नहीं लेना चाहिए इस विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एंटी माइक्रोबियल्स संक्रमण से लड़ने के लिए हमारे हथियार हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इन दवाओं के सही उपयोग नहीं होने से यह प्रतिरोध का कारण बन गया है।

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