एम्स में चेजिंग पैराडाइम एफेरेसिस डोनेशन विषय पर हुआ आनलाइन सीएमई का आयोजन

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में विभाग की ओर से ‘‘चेंजिंग पैराडाइम-एफेरेसिस डोनेशन” विषय पर ऑनलाइन सीएमई का आयोजन किया गया। वेब सम्मेलन के माध्यम से विशेषज्ञों ने रक्तदाताओं को एफेरेसिस डोनेशन के बाबत जागरुक किया। उन्होंने कहा कि रक्तदान से दाता को शारीरिक व अन्य किसी भी रूप से कोई दुष्प्रभाव नहीं होता, ऐसा करने से एक व्यक्ति तीन लोगों को जीवनदान दे सकता है। इस दौरान संस्थान की ओर से रक्तवीरों को ई-प्रमाणपत्र प्रदान कर सम्मानित भी किया। इस अवसर पर 50 बार से अधिक स्वैच्छिक रक्तदान करने के लिए पूर्व पार्षद रवि कुमार जैन, पार्षद राजेंद्र सिंह बिष्ट, व्यापार मंडल के अध्यक्ष ललित मोहन मिश्र एवं अधिवक्ता अमित कुमार वत्स व गोपाल नारायण को सम्मानित किया गया।
सीएमई में संस्थान के निदेशक और सीईओ प्रो. रविकांत ने बताया कि रक्तदान के समान कोई दूसरा महान दान नहीं है। उन्होंने बताया कि रक्तदान करने वाला व्यक्ति के इस संकल्प से किसी रक्त की जरुरत से जूझ रहे व्यक्ति को जीवनदान मिल सकता है। रक्तदाताओं के इस सराहनीय कार्य से मरीजों की रक्त की आवश्यकता पूरी हो जाती है।
डीन एकेडमिक्स प्रो. मनोज गुप्ता ने बताया कि स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति सामाजिक जनजागरण में शिक्षाविदों, शिक्षण व सीखने से जुड़ी तमाम गतिविधियों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक नागरिक को नियमितरूप से रक्तदान के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रोफेसर यूबी मिश्रा का मानना है कि अस्पताल में स्थित ब्लड बैंक पर हमेशा मरीजों की रक्त संबंधी मांग पूरी करने का दबाव रहता है। ऐसी स्थिति में स्वैच्छिक रक्तदान करने वालों की अच्छी संख्या होने पर हम आपात स्थिति में जरुरतमंद को रक्त उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
संस्थान के कार्यवाहक चिकित्सा अधीक्षक प्रो. बी. के. बस्तिया ने एम्स के रक्तदान चिकित्सा विभाग की नियमितरूप से रक्तदान शिविरों के आयोजन के लिए सराहना की।

सम्मेलन में विभाग की डॉ. दलजीत कौर और डॉ. आशीष जैन ने बताया कि स्वैच्छिक रक्तदाताओं को एफेरेसिस दान के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। एफेरेसिस खासतौर से प्लेटलेटफेरेसिस के मांग बढ़ रही हैं और इस आवश्यकता को सम्पूर्ण रक्तदाताओं के सहयोग से ही पूरा किया जा सकता है, जिससे उन्हें नियमिततौर पर प्लेटलेटफेरेसिस दाताओं में परिवर्तित किया जा सके। सम्मेलन में डॉ. संजय उप्रेती, डॉ. शीतल मल्होत्रा, डॉ. सुशांत कुमार मेनिया, डॉ. विभा गुप्ता, डॉ. मनीष रतूड़ी, डॉ. विनय कुमार तथा एलुमनाई रेसिडेंट्स डॉक्टर्स ने भी व्याख्यान दिया।

ऋषिकेशः नशे के रोगियों को मिल सकेगा उच्चस्तरीय उपचार, एम्स में शुरू हुआ एटीएफ

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष-2019 में किए गए एक शोध में यह पाया गया कि उत्तराखंड में तम्बाकू के अलावा सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले नशे के प्रकारों में शराब, कैनाबिस उत्पाद (भांग/गांजा/चरस), ओपिऑइड्स (स्मैक/हेरोइन/कोकेन/ डोडा आदि ) व इन्हेलन्ट्स भी प्रमुखरूप से शामिल है।
इस सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार का नशा करने वाले मौजूदा पुरुष उपभोगकर्ताओं की संख्या शराब से 38.1 प्रतिशत, कैनाबिस उत्पाद से 1.4 प्रतिशत, ओपिऑइड्स से 0.8 प्रतिशत और इन्हेलन्ट्स का इस्तेमाल करने वाले 10 से 17 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 1.7 फीसदी है। देशभर में हर पांच में से एक व्यक्ति शराब और हर 11 में से एक व्यक्ति कैनाबिस नशे का रोगी है, जिन्हें तत्काल उपचार की नितांत आवश्यकता है।
इसके अलावा लगभग 77 लाख भारतियों को ओपिऑइड्स नशे के लिए शीघ्र इलाज शुरू करने की जरुरत है। आजकल देखा गया है कि वयस्क लोग ही नहीं बल्कि बच्चे भी नशे के रोगी बनते जा रहे हैं। इसकी एक अहम वजह है लोगों के जीवन में स्ट्रेस बहुत बढ़ गया है। कोरोना पान्डेमिक के चलते भी इस स्ट्रेस में बहुत बड़ा इजाफा हुआ है। ऐसे लोगों में आम धारणा बन गई है कि नशा करना स्ट्रेस से जूझने और निपटने का एक आसान तरीका है, मगर यह स्ट्रेस को कम अथवा समाप्त करने का सबसे गलत तरीका है।
नशे की शुरुआत आमतौर पर खुद व्यक्ति की इच्छा से, प्रयोग करने की उत्सुकता, दोस्तों के दबाव, पारिवारिक परेशानियों, काम का स्ट्रेस व अन्य परेशानियों से होने की वजह से होती है। मगर एक बार इससे ग्रसित होने पर यह नशे का रोग बन जाता है। नशे की बीमारी केवल एक आदत, इच्छाशक्ति में कमी या कमज़ोरी का कम होना नहीं बल्कि एक काम्प्लेक्स तरीके की दिमागी बीमारी है। नशे से व्यक्ति के दिमाग में अस्थायी एवं स्थायी बायोकैमिकल बदलाव आते हैं, जिसके लिए इलाज की जरुरत पड़ती है।

नशा ग्रस्त व्यक्ति का दिमाग उसका साथ नहीं दे पाता अथवा वह इस नशे की बीमारी से अपने आप कभी भी बाहर नहीं आ पाता। नशे के रोग से बहुत से लोगों का घर- परिवार खराब हो जाता है और प्रतिवर्ष लाखों लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। इसके साथ ही पीड़ित व्यक्ति के आर्थिक, सामाजिक जीवन व रोजमर्रा की जिंदगी पर भी इसका बहुत हद तक दुष्प्रभाव पड़ता है। निदेशक प्रोफेसर रवि कांत के निर्देशन में शुरू की गई एटीएफ सर्विस ऐसे लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है और वह फिर से मुख्यधारा से जुड़कर अपने अमूल्य जीवन को संवार सकते हैं।
एम्स निदेशक ने बताया कि रोगियों को नशे की समस्याओं से दूर करने के लिए एम्स ऋषिकेश ने एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी (ए.टी.एफ.) की शुरुआत की है, जिसमें नशावृत्ति के शिकार रोगियों को परामर्श व उपचार की सभी प्रकार उच्चस्तरीय सुविधाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएंगी। उन्होंने बताया कि संस्थान में इस सुविधा को ए.टी.एफ. एन. डी. डी.टी.सी. एम्स दिल्ली द्वारा समन्वित तथा भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की सहायता से शुरू किया गया है। इस सेवा के शुरू किए जाने का उद्देश्य प्रदेश में नशे से ग्रस्त रोगियों को मुफ्त एवं उच्चस्तरीय उपचार मुहैय्या कराना है। संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं ए.टी.एफ. के नोडल ऑफिसर डा. विशाल धीमान ने बताया कि एम्स में संचालित ए.टी.एफ के तहत, ओपीडी OPD और एडमिशन (IPD) दोनों तरह से इलाज की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
अस्पताल में सभी मरीजों के लिए बिस्तर की सुविधा, सभी प्रकार की आवश्यक दवाएं, अत्याधुनिक उपचार प्रणाली निशुल्क उपलब्ध कराने के साथ ही रोगियों की काउंसलिंग भी की जाएगी। जिसमें उन्हें नशे की तलब को कंट्रोल करने की अलग-अलग तकनीकें बताई जाएंगी, साथ ही रोगियों की मोटिवेशनल इंटरव्यूइंग भी की जाएगी।

नशा छोड़ने के इच्छुक लोग इस नंबर से लें सहायता
संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं ए.टी.एफ. के नोडल ऑफिसर डा. विशाल धीमान जी ने बताया कि नशा छोड़ने के इच्छुक लोगों के लिए एम्स के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा हेल्पलाइन नंबर 7456897874 (टेली-एडिक्शन सर्विस) भी जारी किया गया है, जिसमें सोमवार प्रातः 9:00 बजे से शुक्रवार शाम 4:00 बजे तक और शनिवार सुबह 9:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक चिकित्सकीय परामर्श लिया जा सकता है। ए.टी.एफ प्रोजेक्ट का उद्देश्य उत्तराखंड और इसके आसपास के क्षेत्रों को नशखोरी के विरुद्ध लोगों को जागरुक करना और इससे ग्रसित रोगियों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराना है, जिससे वह समाज की मुख्यधारा से जुड़कर अपनी उन्नति के साथ सामान्य जीवन जी सकें।

एम्स के विशेषज्ञों की राय, लाॅकडाउन में स्वास्थ्य के प्रति नहीं बरतें लापरवाही

यदि आप कई दिनों तक एक ही मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो सावधान हो जाइये। आपकी यह लापरवाही म्यूकर माइकोसिस से ग्रसित होने की वजह बन सकती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश ने इस बाबत सलाह दी है कि कोविड19 से सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सूती कपड़े के मास्क को दोबारा पहनने से पहले दैनिकतौर से अवश्य धो लें, यह बेहद जरूरी है।

जून और जुलाई के महीने वातावरण में आर्द्रता बहुत कम हो जाती है। ऐसे में जब हम नाक से सांस लेते हैं तो उसके आगे मास्क लगे होने से मास्क के अन्दर की ओर नमी बनी रहती है। मास्क को लगातार पहने रहने से इस नमी में कीटाणु पनपने लगते हैं और जिससे फंगस के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हो जाता है। फिर नाक और मुंह से होता हुआ यह फंगस धीरे-धीरे शरीर के अन्य अंगों को संक्रमित कर देता है।

एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कान्त ने बताया कि सूती मास्क हमेशा धुले हुए और साफ-सुथरे पहनने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कोई जरूरी नहीं है कि जिसे कोविड नहीं हुआ हो उसे म्यूकर माइकोसिस नहीं हो सकता। नाॅन डिस्पोजल मास्क को दैनिकतौर से साफ नहीं करने वाले लोगों को भी इस बीमारी का खतरा हो सकता है। उन्होंने बताया कि कोविड और म्यूकर माइकोसिस दोनों ही बीमारियों से तभी बचाव संभव है, जब कोविड गाइडलाइनों का पूर्ण पालन करने के साथ साथ मास्क का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। खासतौर से जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर है उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतने की नितांत आवश्यकता है।

कोविड के नोडल अधिकारी डाॅ. पीके पण्डा ने बताया कि लाॅकडाउन के कारण अधिकांश नाॅन कोविड रोगी अपने स्वास्थ्य संबंधी जांचों के प्रति लापरवाह बने हुए हैं। ऐसे में नियमित जांच नहीं कराए जाने से उन्हें अपनी इम्युनिटी और ब्लड में शुगर लेवल की मात्रा का पता नहीं चल पाता। उन्होंने कहा कि म्यूकर माइकोसिस से बचाव के लिए ब्लड में शुगर की मात्रा की रेगुलर जांच कराना जरुरी है। म्यूकर रोगियों के उपचार की सुविधा के बारे में उन्होंने बताया कि ऐसे रोगियों के लिए एम्स में 7 वार्ड बनाए गए हैं। इनमें कुल 185 बेड हैं, जिनमें 65 आईसीयू सुविधा वाले बेड हैं।

म्यूकर माइकोसिस फंगस अक्सर कोविड के लक्षण उभरने के 3 सप्ताह बाद से पनपना शुरू होता है। कमजोर इम्युनिटी और शुगर पेशेंट के लिए यह फंगस सबसे अधिक घातक है। म्यूकर माइकोसिस ट्रीटमेंट टीम के हेड और ईएनटी सर्जन डाॅ. अमित त्यागी का कहना है कि कोविड की दूसरी लहर का पीक टाईम मई का दूसरा सप्ताह था। इस लिहाज से मई अंतिम सप्ताह और जून के पहले सप्ताह तक म्यूकर के मरीजों का ग्राफ तेज गति से बढ़ा था। लेकिन अब इसमें कमी आनी शुरू हो गई है। मई महीने में एम्स में दैनिकतौर पर म्यूकर ग्रसित 7 से 12 पेशेंट आ रहे थे। जबकि अब यह संख्या 4 से 7 प्रतिदिन हो गई है। उन्होंने बताया कि एम्स में अभी तक म्यूकर के कुल 208 पेशेंट आ चुके हैं।

विश्व तम्बाकू निषेध दिवसः प्रत्येक वर्ग की भूमिका से तंबाकू सेवन पर लग सकता है प्रतिबंध


प्रतिवर्ष तंबाकू का सेवन करने वाले दस में से एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, इस पर रोक लगाने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को अपनी भूमिका निभानी होगी। तंबाकू का सेवन न केवल मुंह के कैंसर का कारण है अपितु यह फेफड़ों में भी कैंसर पैदा करता है।

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के अवसर पर अपने संदेश में एम्स निदेशक प्रोफेसर रविकान्त ने कहा कि तम्बाकू हृदय की कोरोनरी वाहिकाओं को प्रभावित करता है। इसकी वजह से हृदय में रक्त की आपूर्ति की कमी हो जाती है। इसे इस्कीमिक या कोरोनरी हृदय रोग कहते हैं। मुंह के कैन्सर का प्रमुख कारण तम्बाकू ही है। सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. एसपी अग्रवाल ने बताया कि तम्बाकू का सेवन करने वाले लोगों में अन्य लोगों की तुलना में कैन्सर का खतरा 6 से 8 गुना ज्यादा होता है। यदि तम्बाकू सेवन करने वाला व्यक्ति शराब का भी आदी हो तो फिर यह खतरा 10 गुना बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि स्कूल-कालेज के अध्यापकों, समाजसेवी संस्थाओं, जनप्रतिनिधियों और समाज के प्रत्येक वर्ग को इस मामले में जागरूकता लाने की आवश्यकता है।

सीएम तीरथ सिंह रावत ने एम्स की गरूड़ टेलीमेडिसिन सेवा का किया शुभारंभ

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने एम्स ऋषिकेश की ओर से शुरू की गई टेलीमेडिसिन सेवा “गरुड़” का उद्घाटन किया। इस टेलीमेडिसिन सेवा के जरिए प्रदेश के सभी 110 तहसीलों में देशभर के 898 ट्रेंड मेडिकल और पेरामेडिकल छात्रों द्वारा मेडिकल सम्बन्धी जानकारी और परामर्श दिया जाएगा। इस सेवा के जरिए प्रदेश की जनता को फोन के माध्यम से ही एक्सपर्ट डॉक्टरों के चिकित्सीय परामर्श मिल सकेगा।

एम्स ऋषिकेश में गरुड़ टेली मेडीसिन सेवा के उद्घाटन के मौके पर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि मेडिकल और पैरामेडिकल के नौजवानों द्वारा एम्स ऋषिकेश की पहल पर यह सराहनीय प्रयास है। कहा कि सरकार लगातार प्रयासरत है कि ज्यादा से ज््यादा चिकित्सकों की तैनाती की जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज के समय में सीमांत क्षेत्रों तक कनेक्टिविटि के साथ हेल्थ सिस्टम मजबूत करना सबसे बड़ी चुनौती है। कहा कि पिछले कुछ दिनों से यह देखने में आया है कि शहरी इलाकों में कोविड की स्थिति स्थिर बनी हुई है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राफ बढ़ रहा है, जिसको लेकर सभी अधिकारियों को यह निर्देश दिए गए हैं कि हर ब्लॉक स्तर तक कंट्रोल रूम बनाए जाएं। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे पूर्व जिला स्तर तक कंट्रोल रूम बनाए जा रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार टेस्टिंग के आंकड़ों को पारदर्शी तरीके से सामने रख रही है। टेस्टिंग नेशनल एवरेज से अधिक है, इससे साफ है कि उत्तराखंड में ज्यादा टेस्टिंग की जा रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि तीसरी लहर के आने से पहले ही जरूरी तैयारी पूरी कर ली जाए, जिसको लेकर पहाड़ के छोटे-छोटे सेंटर पर भी ऑक्सीजन प्लांट लगाने की तैयारी की जा रही है।

एम्स के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि एम्स ऋषिकेश द्वारा प्रोजेक्ट गरुड़ के लिए देशभर से मेडिकल और पैरामेडिकल के छात्रों के आवेदन माँगे गए थे, इस प्रोजेक्ट में कुल 1621 छात्रों ने पंजीकरण किया। जिसमें से 898 मेडिकल और पैरामेडिकल के छात्रों को इस प्रोजेक्ट हेतु चयनित किया गया। प्रो. रविकांत ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में एमबीबीएस और बीडीएस के 621 डॉक्टर जबकि पैरामेडिकल कोर्सेज से संबंधित 277 छात्रों को शामिल किया गया है।

इस दौरान स्पीकर प्रेमचंद्र अग्रवाल, विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश, कुसुम कंडवाल, एम्स ऋषिकेश के वरिष्ठ चिकित्सक मौजूद रहे।

सलोनी के लिए किसी देवदूत से कम नहीं ब्लड डोनर ऋषिकेश की टीम

ब्लड डोनर इन ऋषिकेश की टीम के सदस्य शैलेन्द्र कोठारी की बदौलत सड़क दुर्घटना में घायल युवती की जान बच सकी।

दरअसल, बीते रोज टिहरी जिले के ब्यासी चैकी क्षेत्र में एक सड़क दुर्घटना हुई थी। इसमें सलोनी नामक युवती बुरी तरह से घायल हुई। एम्स में भर्ती युवती को चिकित्सकों की टीम ने पैर का आॅपरेशन बताया। मगर, रक्त की कमी के चलते यह आॅपरेशन नहीं किया जा सकता था। ऐसे में सलोनी के परिजनों के सामने ब्लड की कमी हुई।

मगर, परिजनों ने रक्तदान प्रेरक व ब्लड डोनर ऋषिकेश के संस्थापक रोहित बिजल्वाण से संपर्क किया। रोहित ने मामले की गंभीरता को पहचानते हुए अपनी टीम के सदस्य शैलेन्द्र कोठारी से संपर्क किया। रोहित के अनुसार शैलेन्द्र कोठारी का ब्लड ग्रुप एबी नेगेटिव था और यही ब्लड ग्रुप वाला सलोनी को रक्त दे सकता था। रोहित 30 किलोमीटर दूर से डोईवाला निवासी शैलेन्द्र कोठारी को लेकर एम्स पहुंचे। यहां चिकित्सकों ने शैलेन्द्र से एबी नेगेटिव रक्त अर्जित किया। जो सलोनी के लिए उपयुक्त पाया गया। सलोनी के परिजनों ने रक्तदान प्रेरक व उनकी टीम का आभार व्यक्त किया।

एम्स में प्लाज्मा थैरेपी से 146 कोविड पाॅजिटिव मरीजों को किया जा चुका है स्वस्थ

यदि आप कोविड पाॅजिटिव हैं तो घबराएं नहीं। इसके लक्षण पता लगने पर पहले सप्ताह के दौरान यदि प्लाज्मा थैरेपी से उपचार किया जाए, तो कोविड संक्रमण में उपचार की यह तकनीक विशेष लाभकारी होती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में प्लाज्मा थैरेपी पद्धति से अब तक 146 कोविड संक्रमित मरीजों का इलाज किया जा चुका है।

एम्स निदेशक प्रो. रवि कान्त ने इस बाबत बताया कि कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा एंटीबॉडी प्रदान करने का काम करता है। इसके उपयोग से संक्रमित व्यक्तियों में वायरस बेअसर हो जाता है। उन्होंने बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी सूक्ष्म जीव से संक्रमित हो जाता है, तो उसके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसके खिलाफ लड़ने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन करने का काम करती है। यह एंटीबॉडीज रक्त के प्लाज्मा में मौजूद होती है और बीमारी से उबरने की दिशा में अपनी संख्याओं में वृद्धि करती है। इससे वायरस जल्दी समाप्त होने लगते हैं। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया से रिकवरी तेज होने पर पेशेंट जल्दी स्वस्थ हो जाता है। बताया कि संस्थान में प्लाज्मा थैरेपी की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लिहाजा कोरोना से स्वस्थ हो चुके लोगों को दूसरों का जीवन बचाने के लिए प्लाज्मा अवश्य डोनेट करना चाहिए।

ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक (एम्स) की विभागाध्यक्ष डा. गीता नेगी जी ने बताया कि एम्स में अब तक 146 कोविड मरीजों को प्लाज्मा थैरेपी दी जा चुकी है। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति पूरी तरह ठीक होने के बाद प्लाज्मा दान कर सकता है। डोनर के शरीर से एफेरेसिस तकनीक से ब्लड निकालने के बाद प्लाज्मा एकत्रित किया जाता है। ऐफेरेसिस की सुविधा नहीं होने पर सामान्य रक्तदान से भी प्लाज्मा लिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि प्लाज्मा थैरेपी एक ऑफ लेवल थैरेपी है। यदि कोरोना के लक्षण आने के 7 दिनों के दौरान ही इस थैरेपी का उपयोग किया जाए, तो इलाज उपयोगी होता है। उन्होेंने बताया कि स्वस्थ्य व्यक्ति के रक्त में 55 प्रतिशत प्लाज्मा मौजूद रहता है। एम्स ऋषिकेश में प्लाज्मा थैरेपी के लिए सभी संसाधन, उपकरण और प्रशिक्षित स्टाफ उपलब्ध है।

कौन कर सकता है प्लाज्मा दान

कोई भी 18 से 65 आयु वर्ग का कोरोना संक्रमित व्यक्ति संक्रमण के 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। इस प्रक्रिया में एंटीबॉडी टेस्ट कर एंटीबॉडी का लेवल देखा जाता है। ’ए बी’ ब्ल्ड ग्रुप वाला डोनर किसी को भी प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। जबकि ’ओ’ ग्रुप वाला रोगी अन्य किसी भी ग्रुप वाले डोनर का प्लाज्मा ले सकता है। इस थैरेपी को इस्तेमाल करने से पहले डोनर का एंटीबाॅडी टेस्ट किया जाता है। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक विभाग एम्स के डाॅ. आशीष जैन और डाॅ. दलजीत कौर ने बताया कि डोनर के रक्त में एंटीबाॅडी का पर्याप्त मात्रा में होना जरूरी है। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में लगभग 2 घंटे लगते हैं और यह तकनीक पूरी तरह से सुरक्षित है। इससे प्लाज्मा डोनेट करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है।

एम्स में भर्ती सुंदरलाल बहुगुणा के फेफड़ों में मिला संक्रमण

एम्स,ऋषिकेश के कोविड आईसीयू वार्ड में भर्ती पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा के फेफड़ों में संक्रमण पाया गया है। एनआरबीएम मास्क के माध्यम से उन्हें 8 लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है व संस्थान के चिकित्सकों की टीम उनके स्वास्थ्य की निगरानी व उपचार में जुटी है।

बीते मंगलवार को कॉर्डियोलाॅजी विभाग के चिकित्सकों की टीम ने पर्यावरणविद् सुन्दर लाल बहुगुणा की हृदय संबंधी विभिन्न जांचें की थी। इसके अलावा उनके दांएं पैर में सूजन आने की शिकायत पर उनकी डीवीटी स्क्रीनिंग भी की गई थी। उनके स्वास्थ्य के बाबत जानकारी देते हुए एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने बताया कि जांचोपरांत उनके फेफड़ों में संक्रमण पाया गया है। उनका ईको और एचआरसीटी टेस्ट भी किया गया। उन्होंने बताया कि चूंकि पिछले लम्बे समय से उनका घर में बिस्तर पर ही उपचार चल रहा था, ऐसे में उनके शरीर में बेड सोर उभर गए हैं। चिकित्सकों के अनुसार बहरहाल उन्हें एनआरबीएम मास्क द्वारा 8 लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है और बुधवार को उनका सेचुरेशन लेवल 95 प्रतिशत पाया गया। उन्होंने बताया कि कोविड आईसीयू वार्ड में विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम की निगरानी में उनका आवश्यक उपचार जारी है।

स्वास्थ्य समाचारः वायरल फीवर के लक्षण समझ हल्के में न लें लोग, अधिक पढ़ें…

यदि आपको बुखार और गले में खराश की शिकायत है तो, सतर्क रहें। इस तरह के लक्षणों को वायरल फीवर समझकर इसे हल्के में लेना आपके लिए घातक हो सकता है। वजह यह है कि यह कोरोना संक्रमण के प्रमुख लक्षणों में शामिल है। ऐसे में आपको तत्काल बिना विलंब किए कोविड जांच कराने की आवश्यकता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश ने 20 से 50 वर्ष आयुवर्ग के लोगों को खासतौर से यह सुझाव दिया है कि इन हालातों में वह ’वर्क फ्राॅम होम’ नीति को अपनाएं और सुरक्षित रहें।

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में कुछ लक्षण विशेषरूप से उभर कर आ रहे हैं। एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि मरीज को स्वाद और गन्ध का पता नहीं चलने के अलावा बुखार, गले में खराश व दर्द होना भी कोविड के प्रमुख लक्षण हैं। उन्होंने बताया कि इस बार युवा वर्ग पर कोरोना का असर ज्यादा देखने को मिल रहा है। लिहाजा इससे बचने के लिए 20 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों को खासतौर से सतर्क रहने की आवश्यकता है। सामुदायिक स्तर पर संक्रमण की दर कम करने के लिए जरूरी है कि लोग अपने घरों में ही रहें और बिना किसी ठोस वजह के घर से बाहर हरगिज नहीं निकलें।
एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत ने बताया कि संक्रमण से बचाव के लिए कोविड वैक्सीन विशेष लाभकारी है। ​ऐसे में 45 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोग जल्द से जल्द व अनिवार्यरूप से कोविड वैक्सीन लगवाएं। उनका सुझाव है कि समय रहते वैक्सीन लग जाने से शरीर में वायरस का असर कम होगा और लोग सुरक्षित रहेंगे।

एम्स में कोविड स्क्रीनिंग ओपीडी के प्रभारी और सीएफएम विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. योगेश बहुरूपी का कहना है कि कोविड परीक्षण हेतु एम्स, ऋषिकेश पहुंचने वाले लोगों में बुखार और गले में खराश की शिकायत के मामले प्रमुखता से आ रहे हैं। इसके अलावा लोग यह भी शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें स्वाद और गन्ध का पता नहीं चल रहा है। उन्होंने बताया कि मौसम बदलने के कारण कुछ लोग बुखार-खांसी को सामान्यरूप से ले रहे हैं। लेकिन कोविडकाल में ऐसा करना बिल्कुल सही नहीं है। लिहाजा ऐसे में इस तरह के मामलों को सामान्य रोग के लक्षण मानकर कोविड जांच न कराना घातक हो सकता है।
उन्होंने बताया कि इस प्रकार के कोई भी लक्षण होने पर मरीज को तत्काल कोविड जांच करानी चाहिए। उनके अनुसार अप्रैल महीने में एम्स की कोविड स्क्रीनिंग ओपीडी में 5,287 लोगों ने जांच हेतु कोविड सैंपल दिए थे। जिनमें अधिकांश लोग 20 से 50 आयुवर्ग के ही थे।

उन्होंने बताया कि कोविड के लक्षणों में इनके अलावा सांस लेने में तकलीफ, बुखार और खांसी के लक्षण वाले रोगी भी बड़ी संख्या में एम्स पहुंच रहे हैं। डा. योगेश बहुरूपी ने बताया कि 20 से 50 वर्ष की उम्र के ज्यादातर लोग नौकरी पेशा वाले हैं। जिन्हें आजीविका और रोजगार के लिए दैनिकरूप से घर से बाहर निकलना पड़ता है। उन्होंने सलाह दी है कि ऐसी स्थिति में बहुत जरूरी नहीं हो तो घर से बाहर नहीं निकला जाए।

20 से 50 आयुवर्ग के लोगों को नौकरी पेशे के लिए हररोज घर से बाहर निकलना पड़ता है। लिहाजा इस उम्र के लोगों में संक्रमण की ज्यादा शिकायत मिल रही है। इस मामले में एम्स ने सुझाव दिया है कि संक्रमण से बचाव के लिए इस उम्र के लोगों को ’वर्क फ्राॅम होम’ की नीति पर काम करने की आवश्यकता है। सीएफएम विभाग के डाॅ. योगेश बहुरूपी ने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर का यह समय बेहद जोखिम वाला समय है। युवा वर्ग को उनकी सलाह दी कि बिना किसी ठोस वजह से घर से बाहर नहीं निकलें। जीवन को सुरक्षित रखने के लिए बहुत जरूरी है कि सब लोग घर में रहें और सुरक्षित रहें।

कोविड को देखते हुए एम्स ऋषिकेश ने आरक्षित किए 300 से अधिक बेड


कोविड-19 के तेजी से बढ़ते संक्रमण के मद्देनजर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश ने सोमवार को ओपीडी सेवाओं को बंद करने का निर्णय लिया है। मरीजों की सुविधा के लिए संस्थान की ओर से टेलिमेडिसिन सेवाएं शुरू की गई हैं, लिहाजा अब सभी सामान्य रोगों से ग्रसित मरीज टेलिमेडिसिन ओपीडी के माध्यम से संबंधित चिकित्सकों से जरुरी परामर्श ले सकेंगे। इसके साथ ही कोविड संक्रमण से ग्रसित मरीजों के उपचार के लिए एम्स अस्पताल प्रशासन ने 300 से अधिक बेड आरक्षित किए हैं। बताया गया है कि आवश्कता पड़ने पर इनकी संख्या 500 तक की जाएगी।

कोरोना वायरस से ग्रसित मरीजों की लगातार में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है, जिसके चलते निदेशक प्रो. रवि कांत की देखरेख में एम्स अस्पताल प्रशासन ने कुछ व्यवस्थाओं में बदलाव किया है। जिनके तहत अस्पताल में जनरल ओपीडी को बंद कर, अब टेलिमेडिसिन ओपीडी के माध्यम से मरीजों को परामर्श दिया जाना शामिल है। इस बाबत एम्स के डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रो. यूबी मिश्रा ने बताया कि तेजी से फैल रहे कोविड संक्रमण को देखते हुए संस्थान में जनरल ओपीडी सेवाएं स्थगित करने का निर्णय लिया गया है।
ऐसे में सामान्य रोगों से ग्रस्त सभी मरीज अब टेलिमेडिसिन ओपीडी के माध्यम से देखे जाएंगे। जबकि अस्पताल की इमरजेंसी सेवा पूर्व की भांति 24 घंटे जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि लोगों को अनावश्यक परेशानी से बचने के लिए एम्स द्वारा संचालित की जा रही टेलिमेडिसिन ओपीडी सेवाओं का लाभ लेना चाहिए। इससे मरीजों को संबंधित बीमारी के लिए घर बैठे चिकित्सकीय परामर्श भी मिल सकेगा और वह अनावश्यकरूप से घर से बाहर निकलकर कोविड संक्रमण से भी सुरक्षित रह सकेंगे।

कोविड के तीब्र गति से बढ़ते संक्रमण के प्रति आगाह करते हुए कम्युनिटी और फेमिली मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. योगेश बहुरूपी ने बताया कि कोविड की दूसरी लहर पहली लहर से कईगुना अधिक घातक है लिहाजा प्रत्येक व्यक्ति को इसकी गंभीरता को समझना होगा और भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा जारी कोविड गाइडलाइन का शब्दशरू पालन करना होगा।

इसके अलावा हम सभी को अधिकांश समय खासकर सार्वजनिक स्थानों पर हरहाल में मास्क के साथ रहने की आदत भी डालनी होगी। उनके अनुसार कोविड से बचाव का पहला उपाय मास्क का इस्तेमाल ही है। उन्होंने बताया कि आपस में दो गज की दूरी बनाए रखने और वैक्सीन लगवाने से कोविड संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही सुझाव दिया कि शरीर में किसी भी प्रकार के असामान्य लक्षण नजर आने पर तत्काल चिकित्सक से परामर्श लें।

टेलीमेडिसिन ओपीडी में चित्र में उल्लेखित विभिन्न विभागों द्वारा सेवाएं दी जाएंगी। टेलीमेडिसिन हेल्पलाइन नंबर 1800 180 4278, 7454989545, 9621539863 जारी किए गए हैं।

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