दसवें दिन श्रमिकों की पहली तस्वीर आई सामने

उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे श्रमिकों को सकुशल बाहर निकालने को दिन-रात चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में बचाव और राहत टीमों को आज मंगलवार सुबह बड़ी सफलता मिली है। इंडोस्कोपिक फ्लेक्सी कैमरे की मदद से आज दसवें दिन श्रमिकों की पहली तस्वीर सामने आई है। सभी श्रमिक सकुशल हैं।
रेस्क्यू टीम ने सोमवार देर शाम सुरंग में आर-पार हुए छह इंच व्यास के पाइप के जरिए इंडोस्कोपिक फ्लेक्सी कैमरा सुरंग में डाला था। यह कैमरा सुरंग में फंसे श्रमिकों तक पहुंचा है। कैमरे में अंदर का पूरा परिदृश्य कैद हुआ है। सबसे अच्छी और राहत की खबर यह है कि सभी 41 श्रमिक भाई सकुशल हैं। रेस्क्यू टीम ने श्रमिकों से बात कराने की भी कोशिश की। रेस्क्यू को कमान करने वाले अधिकारियों ने सभी श्रमिकों की एक-एक कर गिनती कराने के लिए भी श्रमिकों तक संदेश भेजा लेकिन वॉकी टॉकी की कनेक्टिविटी इसमें बार बार बाधा बन रही थी।
वीडियो फुटेज साफ नहीं आने पर रेस्क्यू टीम ने अंदर फंसे श्रमिकों से लाउडस्पीकर सन्देश के जरिए कैमरे की स्क्रीन साफ करने को कहा। श्रमिकों ने तुरंत स्क्रीन साफ की तो पूरा परिदृश्य साफ दिखाई दिया। रेस्क्यू अधिकारी सामने चहलकदमी कर रहे श्रमिकों के नाम भी पूछ रहे थे। उसी दौरान तब फोरमैन गब्बर सिंह, हेड ऑपरेटर सुशील एकदम सामने थे।
वहीं, सोमवार को टनल के भीतर छह इंच का दूसरा लाइफलाइन पाइप मजदूरों तक पहुंचा दिया गया था। इस पाइप की मदद से देर शाम मजदूरों के लिए खिचड़ी भेजी गई है।

सुरंग में फंसे श्रमिक महादेव का अपने मामा से बातचीत का ऑडियो आया सामने

सिलक्यारा, उत्तरकाशी में निर्माणाधीन टनल में फंसे 40 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए उत्तराखण्ड सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी है। एक ओर देश के नामी विशेषज्ञों के दल को बुलाकर अत्याधुनिक मशीनों से ड्रिलिंग का काम युद्धस्तर पर चल रहा है, वहीं दूसरी ओर सुरंग में फंसे श्रमिकों का मनोबल बनाए रखने के लिए लगातार उनसे बातचीत की जा रही है, उनका परिजनों से भी संपर्क बना हुआ है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने निर्देश दिए हैं कि किसी भी कीमत पर श्रमिकों और उनके परिजनों का हौसला नहीं टूटना चाहिए।
पुलिस प्रशासन सुरंग में फंसे मजदूरों से हर घंटे संपर्क स्थापित कर रहा है। आज टनल में फंसे 22 वर्षीय महादेव की उसके मामा से बातचीत करवाई गई। ऑडियो में महादेव साफ साफ कह रहा है कि वह और उसके साथी अभी तक सुरक्षित हैं। परिजन उनकी सकुशलता को लेकर चिंता न करें। उनके पास पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री पहुंच रही है। सभी साथी एक दूसरे का हौसला बढ़ा रहे हैं।
इधर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि संकट के वक्त मनोबल ऊंचा रहना चाहिए। ऊंचे आत्मविश्वास से बड़े से बड़ा संकट टल जाता है। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि जितना ज्यादा हो सके सुरंग में फंसे श्रमिकों से संवाद बनाए रहें। सरकार उन्हें सुरक्षित बाहर निकलने के हर संभव प्रयास कर रही है।

11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है इंजीनियरिंग का नायाब नमूना गरतांग गली की सीढ़ियां

भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह रही उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में स्थित ऐतिहासिक गरतांग गली की सीढ़ियों का देश-विदेश के पर्यटक दीदार करने लगे हैं। गरतांग गली की सीढ़ियों का पुनर्निर्माण कार्य जुलाई माह में पूरा किया जा चुका है। इसके बाद से ही ऐसे में रोमांचकारी जगहों पर जाने के शौकीन पर्यटकों के लिए यह जगह एक शानदार विकल्प है।

गरतांग गली की करीब 150 मीटर लंबी सीढ़ियां अब नए रंग में नजर आने लगी हैं। करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी गरतांग गली की सीढ़ियां इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है। इंसान की ऐसी कारीगरी और हिम्मत की मिसाल देश के किसी भी अन्य हिस्से में देखने के लिए नहीं मिलेगी।

1962 भारत-चीन युद्ध के बाद इस लकड़ी की सीढ़ीनुमा पुल को बंद कर दिया गया था, अब करीब 59 सालों बाद वह दोबारा पर्यटकों के लिए खोला गया है। कोरोना गाइडलाइन और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक बार में दस ही लोगों को पुल में भेजा जा रहा है। पेशावर से आए पठानों ने 150 साल पहले इस पुल का निर्माण किया था। आजादी से पहले तिब्बत के साथ व्यापार के लिए उत्तकाशी में नेलांग वैली होते हुए तिब्बत ट्रैक बनाया गया था। यह ट्रैक भैरोंघाटी के नजदीक खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर रास्ता तैयार किया था। इसके जरिए ऊन, चमड़े से बने कपड़े और नमक लेकर तिब्बत से उत्तरकाशी के बाड़ाहाट पहुंचाया जाता था। इस पुल से नेलांग घाटी का रोमांचक दृश्य दिखाई देता है। यह क्षेत्र वनस्पति और वन्यजीवों के लिहाज से काफी समृद्ध है और यहां दुर्लभ पशु जैसे हिम तेंदुआ और ब्लू शीप यानी भरल रहते हैं।

सामरिक दृष्टि से संवेदनशील है नेलांग घाटी
नेलांग घाटी सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है। गरतांग गली भैरव घाटी से नेलांग को जोड़ने वाले पैदल मार्ग पर जाड़ गंगा घाटी में मौजूद है। उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है। सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं।

वहीं, सतपाल महाराज पर्यटन मंत्री उत्तराखंड कहा ने भारत सरकार ने पर्यटकों की आवाजाही पर लगाई थी रोक। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था। यहां के ग्रामीणों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक ही बार पूजा अर्चना के लिए इजाजत दी जाती रही है। इसके बाद देश भर के पर्यटकों के लिए साल 2015 से नेलांग घाटी तक जाने के लिए गृह मंत्रालय भारत सरकार की ओर से इजाजत दी गई।

पर्यटन सचिव ने बताया कि दिलीप जावलकर उत्तराखंड धरोहर संरक्षण के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। इसके तहत नेलांग घाटी में स्थित ऐतिहासिक गरतांग गली की सीढ़ियों का 64 लाख रुपये की लागत से पुनर्निर्माण कार्य पूरा करने के बाद पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। गरतांग गली के खुलने के बाद स्थानीय लोगों और साहसिक पर्यटन से जुड़े लोगों को फायदा मिल रहा है। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह एक मुख्य केंद्र बन रहा है।

वहीं, मयूर दीक्षित, जिलाधिकारी, उत्तरकाशी ने कहा के पुनर्निर्माण कार्यों में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पुरानी शैली में पुननिर्माण कार्यों को जुलाई माह में पूरा कर लिया गया था। कोरोना नियमों और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक बार में दस पर्यटकों को ही प्रवेश दिया जा रहा है।

नेलांग घाटी के आसपास-हर्षिल
हर्षिल, हिमालय की तराई में बसा एक गांव, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां से गंगोत्री की दूरी मात्र 21 किलो मीटर ही बचती है, जो कि हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। गंगोत्री तक रास्ता अपने आप में इतना मनमोहक है कि एक बार से आपका मन नहीं भरेगा।

केदारताल
केदारताल उत्तराखंड में सबसे खूबसूरत झीलों में से एक ताल है। यह गंगोत्री से 18 किमी की दूरी पर स्थित, गढ़वाल हिमालय में दूर केदार ताल निश्चित रूप से साहसिक और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है। केदारताल से केदारगंगा निकलती है जो भागीरथी की एक सहायक नदी है।

गंगोत्री और हिमालय घाटी का फोटो संग्रहालय विश्व को किया समर्पित

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत ने गंगोत्री धाम में पूजा अर्चना की। इस दौरान मुख्यमंत्री ने बताया कि उन्होंने गंगोत्री धाम में मां गंगा से प्रदेश की खुशहाली व समृद्धि की कामना की।
इसके बाद मुख्यमत्री और केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री ने तपोवनम् कुटी, गंगोत्री में संयुक्त रूप से स्वामी सुंदरानंद के नवनिर्मित तपोवन हिरण्यगर्भ कलादीर्घा एवं तपोवनम् हिरण्यगर्भ मंदिर और ध्यान केन्द्र का उद्घाटन किया। हिरण्यगर्भ कलादीर्घा में स्वामी सुंदरानंद ने 1948 से अब तक गंगोत्री, हिमालय और उपला टकनौर की संस्कृति और परंपरा को तस्वीरों में कैद किया है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर 81 करोड़ 19 लाख 68 हजार रूपये की विभिन्न विकास योजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण भी किया।

शिलान्यास की गई योजनाओं में कुवां कफनोल राड़ी मोटर मार्ग लागत 168.92, राजगढ़ी से मस्सू मोटर मार्ग लागत 106.03, राष्ट्रीय राजमार्ग से डंडालगांव तक मोटर मार्ग निर्माण लागत 50.00, स्याना चट्टी से कुंसाला मोटर मार्ग में सतह सुधार तथा क्षतिग्रस्त दिवारों व स्कवरों का पुनः निर्माण लागत 85.96, भाटिया प्रथम में पार्किग स्थल का निर्माण लागत 32.76, नाकुरी सिंगोट मोटर मार्ग के किमी 5,6,7 मंे चैड़ीकरण व डामरीकरण कार्य लागत 280.62, हरेथी से जिनेथ होते हुए पटारा स्यालना तक मोटर मार्ग का नव निर्माण लागत 210.60, ब्रहमखाल से मंडियासारी-मसौन मोटरमार्ग का निर्माण लागत 322.85, ज्ञानसू साल्ड मोटर मार्ग से उपला बस्ती ज्ञानसू तक मोटर मार्ग का निर्माण लागत 273.60, डुण्डा देवीदार से खटटूखाल तक मोटर मार्ग निर्माण 254.03, धनारी से पीपली थाती बैंड से धारकोट मुसड़गांव तक मोटर मार्ग का पुनः निर्माण कार्य व डामरीकरण व 24 मीटर स्पान का स्टील गार्डर सेतु सहित कार्य लागत 354.29, कमद अयारखाल मोटर मार्ग के किमी 1 से 5 तक डामरीकरण का कार्य लागत 411.57, द्वारी रेथल मोटर मार्ग का डामरीकरण का कार्य लागत 209.54, भटवाड़ी में मीनी स्टेडियम रेथल पंहुच मार्ग का डामरीकरण व विस्तार कार्य 330.26 इन्दरा टिपरी के कण्डारा खोल से दिवारी खोल तक मोटर मार्ग नव निर्माण कार्य 118.33, बादसी गोपाल गोलोकघाम मोटर मार्ग से खाण्ड तक मोटर मार्ग का नव निर्माण कार्य लागत 131.11, आराकोट कलीच थुनारा डामटी मोटर मार्ग का निर्माण 221.80, टिकोची पुल से झाकूली दूचाणू कण्डासी धार मोटर मार्ग का निर्माण लागत 440.00, कलीच थुनारा डामटी अवशेष मोटर मार्ग का विस्तार 175.00 स्यानाचट्टी से निसणी मोटर मार्ग लागत 380.16, पुजार गांव से पाली मोटर मार्ग लागत 278.51, स्यालना डांग सरतली मोटर मार्ग स्टेज 2 लागत 158.11, राजकीय आयुर्वेेदिक चिकित्सालय चमियारी भवन निर्माण का कार्य लागत 88.67, नौगांव पुरोला मोटर मार्ग के किमी 2 से थली लागत 623.3 कुल 57 करोड़ 5 लाख 75 हजार शामिल है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वामी जी का संकलन आने वाली पीढ़ी के लिए विश्व धरोहर हैं। स्वामी जी की 72 वर्ष की तपस्या का संग्रह आज विश्व को समर्पित हो गया है। स्वामी जी की तस्वीरें हिमालय को करीब से देखने के लिए पूर्ण सहयोग करेंगी। साथ ही हमारे वैज्ञानिकों और हिमालयन शोधकर्ताओं के लिए यह एक संजीवनी का कार्य करेगा। उन्होंन कहा कि स्वामी सुंदरानंद ने गंगोत्री धाम में एक विश्व धरोहर दी है, जिसका सरक्षंण किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने स्वामी सुंदरानंद के स्वास्थ्य का हालचाल भी जाना।
केंद्रीय जलशक्ति मंत्री ने कहा कि हमें गंगा की निर्मलता और इसके प्रवाह को सरंक्षित करना है। जिसके लिए गंगा किनारे रहने वाले 45 करोड़ लोगों को भी अपना कर्तव्य समझना चाहिए। सभी देशवासी मिलकर गंगा की निर्मलता और स्वच्छता को बनाये रखेंगे, तब जाकर गंगा की सेवा पूर्ण होगी। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को अक्षुण बनाएं रखने में साधु समाज का अहम योगदान रहा है। हिमालय की विशालता गंगा की पवित्रता विश्व में अद्वितीय है। उन्होंने कहा कि विश्व के अनेक लोग हिमालय व गंगा पर शोध करने आते हैं, इस कला दिर्घा के चित्रों यदि ठीक से देखा व समझा जाए तो निश्चित ही हिमालय के दर्शन एक ही स्थान पर हो सकते है।
इस अवसर पर स्वामी सुंदरानंद ऑटोग्राफी पुस्तक का भी विमोचन किया गया। इस अवसर पर विधायक गोपाल सिंह रावत, स्वामी सुन्दरानन्द महाराज, स्वामी राघवाचार्य महाराज, जिलाधिकारी डॉ. आशीष चैहान, पुलिस अधीक्षक पंकज भट्ट सहित देश विदेश से आये श्रद्धालु, साधु संत आदि उपस्थित थे।

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के लिए विशेष फंड की व्यवस्था होः बलूनी

उत्तराखंड से राज्यसभा सदस्य और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने उत्तराखंड में हो रहे भारी पलायन की समस्या के निदान के उद्देश्य से उत्तराखंड के दस पर्वतीय जिलों के लिए आगामी बजट में विशेष फंड के प्रावधान की माग की है। बलूनी ने इस सिलसिले में नई दिल्ली में मंगलवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भेंट की।
सासद बलूनी ने केंद्रीय वित्त मंत्री से भेंट के दौरान कहा कि उत्तराखंड में पलायन के कारण सैकड़ों गाव निर्जन (घोस्ट विलेज) घोषित हो चुके हैं और यह क्रम अब भी तेजी से जारी है। इस भयावह समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार के सहयोग की आवश्यकता है ताकि मूलभूत सुविधाओं और सामान्य से रोजगार के लिए होने वाले पलायन के उन्मूलन के लिए धरातल पर व्यवहारिक नीति बन सके और ठोस कार्य हो सके। उत्तराखंड के पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर, अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़ तथा नैनीताल जिलों का पर्वतीय क्षेत्र पलायन की समस्या से अत्यधिक ग्रस्त है।
सासद बलूनी ने कहा की आगामी बजट में अगर उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के लिए विशेष फंड की व्यवस्था होती है तो यह राज्य के लिए मील का पत्थर साबित होगा और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस हिमालयी राज्य के लिए जीवनदान भी होगा। उन्होंने कहा कि वह इस क्रम में विभिन्न मंत्रालयों और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों से संवाद कर इस कड़ी को आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर ढाचागत अवस्थापना विकास के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो वह पलायन रोकने में कारगर होगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि केंद्र सरकार इस विषय में गंभीरता से विचार करेगी।

बारिश के चलते तालुका मार्ग बंद

उत्तराकशी के मोरी क्षेत्र में भारी बारिश के कारण हालरा गदेरा उफान पर आ गया। खड्ड उफान पर होने से सांकरी तालुका मोटर मार्ग बंद हो गया। इससे क्षेत्र के चार गांव की आवाजाही पूर्ण रूप से ठप हो गई। ग्रामीण अपने घरों में कैद होकर रह गए हैं।
जनपद मुख्यालय के सीमांत विकासखंड मोरी में बारिश ने लोगों का जन जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। बीते कई दिनों से जारी मूसलाधार बारिश के कारण जहां कई गांव के संपर्क मार्ग क्षतिग्रस्त हो गए, वहीं मंगलवार देर रात को हुई भारी बारिश के चलते सांकरी-तालुका मोटर मार्ग पर हालरा खड्ड उफान पर आने से मार्ग पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया।
गदेरे के उफान पर आने से सड़क पर बना पुल भी क्षतिग्रस्त हो गया। इससे ओसला, पंवाड़ी, गंगाड़, ढाटमीर, तालुका आदि गांव का संपर्क तहसील मुख्यालय से कट गया। ग्रामीण उमराव सिंह चौहान, बचन सिंह पंवार ने बताया कि मार्ग बंद होने के कारण वह अपने दैनिक कार्यों को नहीं कर पा रहे हैं। वहीं क्षेत्र की नगदी फसलों को बाजार तक नही पहुंचा पा रहे हैं। जिससे उनको काफी परेशानी उठानी पड़ रही है।

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