16 जनवरी से अब तक एम्स ऋषिकेश में 3554 स्वास्थ्य कर्मियों को लगा कोरोना टीका

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में कोविड19 वैक्सीनेशन के तहत अब तक कुल 3,554 हैल्थ केयर वर्करों को कोविड वैक्सीन लगाई जा चुकी है। टीकाकरण अभियान में तेजी लाने के उद्देश्य से कोविड वैक्सीनेशन सेंटर में अलग-अलग 10 काउंटर स्थापित किए हैं।

गौरतलब है कि देशभर में कोविड वैक्सीन के टीकाकरण की शुरुआत बीते महीने 16 जनवरी से हुई थी। एम्स ऋषिकेश में चलाए जा रहे कोविड टीकाकरण अभियान के तहत फैकल्टी, नर्सिंग ऑफिसर्स, तकनीशियन, सपोर्टिंग स्टाफ, सुरक्षाकर्मियों, सफाई कर्मी और संस्थान के अन्य कर्मचारियों को टीके लगाए जा रहे हैं। एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत ने टीकाकरण अभियान के बाबत बताया कि 16 जनवरी से अब तक संस्थान के 65 प्रतिशत से अधिक स्टाफ को कोविड वैक्सीन लगाई जा चुकी है। उन्होंने कहा कि अभियान की शुरुआत में कोविड एरिया में ड्यूटी दे रहे फ्रंट लाइन हैल्थ केयर वर्करों का प्राथमिकता से टीकाकरण किया गया था। जबकि इसके बाद अब एम्स में कार्यरत अन्य कार्मिकों को भी चरणबद्ध तरीके से टीके लगाए जा रहे हैं।
निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी ने कहा कि भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार प्रत्येक हैल्थ केयर वर्कर को पहले टीके के ठीक 28 दिन बाद दूसरा टीका लगाया जाना है।

उल्लेखनीय है कि एम्स के आयुष भवन में बनाए गए कोविड टीकाकरण केंद्र में इस अभियान को सफल बनाने के लिए कम्युनिटी एंड फेमिली मेडिसिन विभाग विशेष भूमिका निभा रहा है। सीएफएम विभागाध्यक्ष प्रो. वर्तिका सक्सैना जी दैनिक तौर पर स्वयं इस अभियान की माॅनिटरिंग कर रही हैं। प्रो. वर्तिका सक्सैना ने बताया कि संस्थान में कुल 5,632 लोगों का स्टाफ कार्यरत है। जिनमें से अब तक 3,554 लोगों को कोविड वैक्सीन लगाई जा चुकी है। उन्होंने बताया कि टीकाकरण अभियान में तेजी लाने के उद्देश्य से कोविड वैक्सीनेशन सेंटर में बीती 2 फरवरी से 10 अलग-अलग टीकाकरण काउंटरों की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। जिससे कोविड नियमों का पालन करते हुए कम समय में अधिक से अधिक लोगों का टीकाकरण किया जा सके और टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों को किसी प्रकार की असुविधा का सामना नहीं करना पड़े।
उन्होंने कोविड वैक्सीन को पूरी तरह से भरोसेमंद और सुरक्षित बताया। बताया कि सभी लोग स्वैच्छा से कोविड वैक्सीन लगाने के लिए आगे आ रहे हैं। टीकाकरण अभियान के दौरान सीएफएम विभाग की डा. रंजीता कुमारी, डा. महेंद्र सिंह, डा. योगेश बहुरूपी, डा. अजीत भदौरिया आदि मौजूद थे।

सरकारी अस्पताल में है सुविधाओं का अभावः राजकुमार अग्रवाल


राज्य आंदोलनकारी व देवभूमि उत्तरांचल उद्योग व्यापार मंडल के प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा है। ज्ञापन के जरिए उन्होंने राजकीय चिकित्सालय को एम्स ऋषिकेश से संचालित करने की मांग की है।

आज उन्होंने उप जिलाधिकारी ऋषिकेश को ज्ञापन देकर बताया कि ऋषिकेश तथा आसपास के पहाड़ी क्षेत्र की जनता बीमारी के इलाज के लिए राजकीय चिकित्सालय आते है। मगर अस्पताल में चिकित्सकों दवाओं व उपकरणों की कमी के चलते भारी समस्या उठानी पड़ रही है। साथ ही गंभीर रोगियों की देखभाल के लिए कर्मचारियों की नितांत आवश्यकता है, जो कि यहां नहीं है। बताया कि कुंभ, कावड़ यात्रा, चार धाम, हेमकुंड यात्रा जैसे कार्यक्रमों के दौरान बीमार होने पर मरीज इसी अस्पताल का रुख करते हैं उन्होंने कहा कि एम्स ऋषिकेश इस राजकीय चिकित्सालय का प्रबंध करें। जिससे जनता को इसका लाभ मिल सके। ज्ञापन देने वालों में कविता शाह, वेद प्रकाश धींगड़ा, मनीष अग्रवाल, शिव कुमार अग्रवाल, अमित कुमार, हरीश आनंद आदि शामिल रहे।

ऋ​षिकेश एम्स में 4 साल में बढ़े छह गुना मरीज

बीते 4 वर्षों में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में उत्तराखंड व इसके समीपवर्ती प्रदेशों में ही नहीं वरन समूचे देश में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। हालांकि यहां वर्ष 2013 में वाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) सेवाओं की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन वर्ष 2016 के बाद से इस संस्थान में न केवल विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं जुटाई जानी शुरू की गई, अपितु यह देश का पहला ऐसा सरकारी स्वास्थ्य संस्थान भी बन गया, जहां हैली एम्बुलैंस के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों से आपात स्थिति के मरीजों को सीधे अस्पताल परिसर तक पहुंचाया जा सकता है।
एम्स, ऋषिकेश की बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का ही प्रमाण है कि पिछले 4 वर्षों के दौरान संस्थान की ओपीडी में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या में 6 गुना तक वृद्धि हो चुकी है। जबकि इस दौरान उपचार हेतु अस्पताल में भर्ती किए गए मरीजों की संख्या में 30 गुना बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

गौरतलब है कि ऋषिकेश में एम्स संस्थान की नींव वर्ष 2004 में 1 फरवरी को रखी गई थी। तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री सुषमा स्वराज ने अस्पताल की नींव रखते हुए कहा था कि उत्तराखंड की इस देवभूमि में ’एम्स ऋषिकेश’ राज्यवासियों के लिए भविष्य में वरदान साबित होगा, और हुआ भी वही। निर्माण के बाद धीरे-धीरे एम्स अपने स्वरूप में आया तो शुरुआत में कुछ चिकित्सकों की तैनाती होने के बाद वह दिन भी आया जब 27 मई 2013 से यहां मरीजों के स्वास्थ्य जांच के लिए ओपीडी की सुविधा शुरू कर दी गई।

इसके ठीक 8 महीने बाद 30 दिसंबर- 2013 से एम्स अस्पताल में आंतरिक रोगी विभाग (आईपीडी) और फिर 2 जून 2014 से शल्य चिकित्सा की शुरुआत की गई, इसके बाद यहां न केवल उत्तराखंड बल्कि देश के लगभग दर्जनभर अन्य राज्यों से भी मरीजों ने एम्स ऋषिकेश पहुंचना शुरू कर दिया। ओपीडी में मरीजों की आमद में सतत बढ़ोत्तरी के मद्देनजर वर्ष 2016-17 तक के शुरुआती 4 वर्षों तक अस्पताल प्रशासन विभिन्न स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित करने के लिए प्रयासरत रहा। मगर संस्थान ने स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में रफ्तार वर्ष 2016-17 के बाद ही पकड़ी। संस्थान के निदेशक प्रो. रविकांत के कुशल मार्गदर्शन में यहां न केवल आधुनिक तकनीक आधारित उपचार की सुविधा शुरू हुई अपितु उच्च अनुभवी व विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति के साथ-साथ गरीब से गरीब मरीज को भी बेहतर उपचार मुहैया कराना एम्स का एकमात्र ध्येय बन गया।

वर्ष 2016 के बाद एम्स ऋषिकेश के खाते में साल दर साल कई उपलब्धियां जुड़ती चली गईं। इनमें 100 से अधिक आफ्टरनून क्लीनिकों का संचालन किया जाना विशेष उपलब्धि में शामिल है। इन क्लीनिकों के शुरू होने पर ओपीडी के अलावा प्रतिदिन सैकड़ों मरीज अलग से देखे जाने लगे। यही नहीं पिछले 4 वर्षों के दौरान एम्स की ओपीडी में मरीजों की 6 गुना बढ़ोत्तरी का आंकड़ा दर्ज होना साबित करता है कि एम्स ऋषिकेश द्वारा उपलब्ध कराई जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवाओं के प्रति आमजन में विश्वास लगातार बढ़ रहा है।

आंकड़ों पर गौर करें तो प्रारंभ से वर्ष 2016-17 तक संस्थान की ओपीडी में 4 लाख 48 हजार 932 मरीजों का पंजीकरण किया गया था। जबकि इसके बाद के चार साल के समयांतराल में 31 दिसंबर- 2020 तक ओपीडी में पंजीकृत मरीजों का आंकड़ा 28 लाख 11 हजार 105 हो चुका है।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि गरीब से गरीब व्यक्ति का समुचित और बेहतर उपचार करने के लिए एम्स संस्थान संकल्पबद्ध है। उन्होंने बताया कि आमजन और खासकर गरीब पृष्ठभूमि के लोगों की चिकित्सा सुविधा के लिए पिछले 4 वर्षों के समयांतराल में एम्स में 100 से अधिक नए क्लीनिक शुरू किए गए हैं। जिनमें लंग कैंसर, ब्रोनिकल अस्थमा, काॅर्डियक इलैक्ट्रोफिजियोलाॅजी, एआरटी, पीडियाट्रिक डेर्मोटोलाॅजी, सीओपीडी, काॅर्निया, काॅस्मेटिक, फीवर, ग्लूकोमा, हार्ट फेलियर, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट, स्पेशियल इमरजेंसी मेडिसिन, स्पोर्ट्स इंजरी, स्लीप डिस्ऑर्डर, सर्जिकल ओंकोलॉजी क्लीनिक जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण क्लीनिक शामिल हैं।

निदेशक ने बताया कि वर्ष 2018 सितंबर माह में शुरू हुई ’आयुष्मान भारत’ योजना के तहत 31 जनवरी-2021 तक 35 हजार 350 मरीजों का उपचार किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि देश जब कोविड 19 वैश्विक महामारी के दौरान कोरोना संक्रमितों के इलाज के प्रति एम्स ऋषिकेश ने दो कदम आगे बढ़कर अपनी पूरी जिम्मेदारी का निर्वहन किया व इस आपात स्थिति में संस्थान के चिकित्सकों, नर्सिंग ऑफिसरों, टेक्नीशियनों सहित सभी फ्रंटलाइन वर्करों ने कोविड संक्रमण के जोखिम की परवाह किए बिना अपना संपूर्ण समय मरीजों की सेवा व उनकी जीवनरक्षा के प्रयासों में लगाया।

एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने पिछले 4 वर्षों के दौरान संस्थान की तमाम उपलब्धियों पर विस्तृत प्रकाश डाला व बताया कि वर्ष 2016-17 तक एम्स में महज 3 ऑपरेशन थियेटर की सुविधा उपलब्ध थी, यह संख्या वर्तमान में बढ़कर 54 ऑपरेशन थियेटर हो गई है। ऐसे में नए ऑपरेशन थियेटरों के स्थापित होने से एक ही समय में कई मरीजों की एकसाथ सर्जरी की जा सकती हैं। अस्पताल में ज्यादा ऑपरेशन थियेटर होने से अब एक ही दिन में कई मरीजों का जीवन बचाया जा सकता है।

बकौल, एम्स निदेशक अस्पताल में पहले मात्र 300 बेड थे। जिनकी संख्या बढ़कर अब 960 हो गई है। सततरूप से सुविधाओं के विस्तारीकरण के मद्देनजर ऋषिकेश एम्स अस्पताल में समूचे उत्तराखंड ही नहीं वरन हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, मेघालय, पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, केरला, हरियाणा, जम्मू एंड कश्मीर, झारखंड आदि राज्यों के मरीजों ने स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाया है। लगातार बढ़ रहे मरीजों के दबाव के मद्देनजर भारत सरकार से लगातार संपर्क कर उच्च अनुभवी व विशेषज्ञ फैकल्टी सदस्यों की नियुक्ति बढ़ाई गई। एम्स निदेशक प्रो. रविकांत के अनुसार वर्तमान में संस्थान में 246 फैकल्टी मेंबर मौजूद हैं, जबकि संस्थान में उनकी ज्वाइनिंग के समय यह संख्या महज 94 थी। एम्स के खाते में दर्ज हो रही नित नई-नई उपलब्धियों के लिए निदेशक ने अपने कर्मठ व अनुभवी चिकित्सकों व नर्सिंग स्टाफ की सराहना की, साथ ही उन्होंने संस्थान को उत्तरोत्तर प्रगति के सोपान पर पहुंचाने के लिए सभी कर्मचारियों के सतत योगदान को मुक्तकंठ से सराहा।

राम मंदिर के निर्माण के लिए एक माह का वेतन देकर एम्स निदेशक ने पत्नी सहित पेश की मिशाल

अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए एम्स ऋषिकेश में कार्यरत चिकित्सक व अन्य कर्मचारी भी सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं। मंदिर निर्माण के लिए जनसहभागिता सुनिश्चित करने के लिए जुटी विभिन्न संगठनों के प्रति​निधियों का कहना है कि ​संस्थान में कार्यरत कर्मचारी उन्हें अपनी सामर्थ्य अनुसार आर्थिक सहयोग प्रदान कर रहे हैं। इस अभियान के तहत एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत व उनकी धर्मपत्नी वरिष्ठ सर्जन प्रोफेसर बीना रवि ने अपनी एक-एक महीने की तनख्वाह दानस्वरूप भेंट की है।
गौरतलब है कि इन दिनों विभिन्न संस्थाएं भव्य मंदिर निर्माण को लेकर जनसहयोग की अपील कर रही हैं,जिसके तहत विभिन्न इलाकों में लोगों से आर्थिक सहयोग एकत्रित किया जा रहा है। नेशनल मेडिकोज एसोसिएशन एम्स शाखा इसके लिए आगे आई है।

नेशनल मेडिकोज एसोसिएशन की शाखा अध्यक्ष डा. मीनाक्षी धर व आरडीए के अध्यक्ष डा. विनोद ने बताया कि संस्थान के फैकल्टी, चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों से सहयोग राशि एकत्रित की जा रही है।

डा. विनोद के अनुसार लोग इस कार्य में अपने स्तर पर भी बढ़चढ़कर प्रतिभाग कर रहे हैं। बताया कि कई लोग अभियान से जुड़े सदस्यों से संपर्क कर अपनी सामर्थ्य अनुसार सहयोग राशि प्रदान कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि अब तक काफी संख्या में चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ, एमबीबीएस व नर्सिंग छात्र-छात्राओं के साथ ही संस्थान के सुरक्षाकर्मी व अन्य स्टाफ के लोग उन्हें आर्थिक सहयोग प्रदान कर रशीद प्राप्त कर चुके हैं।

इसी क्रम में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत व वरिष्ठ शल्य चिकित्सक प्रो.बीना रवि ने अपनी एक- एक माह की तनख्वाह दानस्वरूप भेंट कर सहभागिता की है।
इस अभियान में डा.रविराज, डा.जितेंद्र, डा.आनंद, डा.अजय, डा.शिशिरा,कौशल, संकेत, रवेंद्र,बलराज, नवीन, दिव्यांश आदि सक्रिय रूप से प्रतिभाग कर रहे हैं।

लेप्रोस्कोपी सर्जरी व बेहतर तरीके से टांके लगाने का प्रशिक्षु चिकित्सकों ने लिया प्रशिक्षण

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में आयोजित शिविर में कनिष्ठ व प्रशिक्षु चिकित्सकों ने लेप्रोस्कोपी सर्जरी व बेहतर तरीके से टांके लगाने के गुर सीखे। बताया गया कि यह प्रशिक्षण एक सप्ताह तक जारी रहेगा। जिसमें ईएनटी, सर्जिकल ओंकोलॉजी, गाइनी, जनरल सर्जरी विभाग के कनिष्ठ चिकित्सकों, एमबीबीएस के विद्यार्थियों आदि को प्रशिक्षित किया जाएगा।

एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत की देखरेख में जॉनसन एंड जॉनसन इंस्टीट्यूट के सहयोग से ऑन व्हील प्रोग्राम के तहत सिमुलेशन कौशल के लिए तैयार कि​ए गए स्पेशल सचल वाहन में इस शिविर का आयोजित किया गया। बताया कि सिमुलेशन ​स्किल से फैकल्टी व रेजिडेंट्स चिकित्सकों को प्रशिक्षण मिलेगा, जिससे वह अपने कार्यक्षेत्र में दक्षता हासिल करेंगे व अभ्यास से वह अपना कार्य कुशलता से कर सकेंगे। लिहाजा यह दक्षता प्रत्येक व्यक्ति में होनी चाहिए जो कि जरुरी है।
प्रशिक्षण कार्यशाला के माध्यम से प्रतिदिन क्रमवार सामान्य शल्य चिकित्सा विभाग, नाक कान गला विभाग, अस्थि रोग विभाग, स्त्री एवं प्रसूति विभाग, कैंसर शल्य ​चिकित्सा विभाग आदि के रेजिडेंट डॉक्टर्स, एमबीबीएस छात्र-छात्राएं बेहतर तरीके से टांके लगाने के साथ ही लेप्रोस्कोपी सर्जरी स्किल में दक्षता हासिल करेंगे।
इस अवसर पर जनरल सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो. सोमप्रकाश बासू ने बताया ​कि शल्य चिकित्सा एक विषय है जिसमें ज्ञान के साथ साथ कला और अनुभव की आवश्यकता होती है। लिहाजा यह प्रशिक्षण कार्यक्रम कनिष्ठ चिकित्सकों, रेजिडेंट डॉक्टरों के कौशल और आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी में मददगार साबित होगा।
उन्होंने बताया कि सिमुलेशन आधारित प्रशिक्षण चिकित्सकों के ज्ञान और कौशल को विकसित करने में सहायक सिद्ध होता है। इस अवसर पर जनरल सर्जरी विभाग की वरिष्ठ सर्जन व आईबीसीसी प्रमुख प्रोफेसर बीना रवि, डीन( एकेडमिक) प्रो. मनोज गुप्ता, डीन (हॉस्पिटल अफेयर्स ) प्रो. यूबी मिश्रा, डा. अनुभा अग्रवाल, डा. प्रतीक शारदा, जॉनसन एंड जॉनसन की ओर से सुमित कौशिक, संदीप राणा आदि मौजूद थे।

पीएपीवीसी व दिल में छेद की सफल सर्जरी कर दिया जीवनदान

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश के सीटीवीएस विभाग के चिकित्सकों ने राजस्थान निवासी एक व्यक्ति के जन्मजात दिल में छेद होने से साइनस विनोसस डिफैक्ट बीमारी की जटिल सर्जरी कर उसे जीवनदान दिया है। एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत ने चिकित्सकीय टीम की सफलतापूर्वक जटिल सर्जरी को अंजाम देने के लिए प्रशंसा की है।

निदेशक एम्स प्रो. रवि कांत ने बताया कि हम अस्पताल में वर्ल्ड क्लास सुपरस्पेशलिटी सेवाएं उपलब्ध कराने की दिशा में अग्रसर हैं। उन्होंने बताया कि संस्थान का प्रयास है कि यहां विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जाएं​, जिससे उत्तराखंड व समीपवर्ती राज्यों के मरीजों को उपचार के लिए दिल्ली, चंडीगढ़ जैसे महानगरों में परेशान नहीं होना पड़े।
गौरतलब है कि राजस्थान निवासी एक व्यक्ति जो कि पिछले दो महीने से सांस फूलने की बीमारी से पीड़ित थे। एम्स अस्पताल में जांच करने पर पता चला कि उनके दिल में जन्म से छेद है,जिसकी उन्हें अभी तक कोई जानकारी नहीं थी। इसके चलते उनके स्वच्छ खून की नसें गलत खाने (भाग) में खुल रही हैं। इसे मेडिकल साइंस में साईनस विनोसस डिफैक्ट एवं पी.ए.पी वीसी के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने राजस्थान में कई चिकित्सकों से संपर्क कर इस बाबत परामर्श लिया। जहां मालूमात हुआ कि ऑपरेशन कराने के बाद मरीज को पेसमेकर की आवश्यकता पड़ सकती है। इसके बाद उन्होंने इस बीमारी से निजात पाने के लिए एम्स ऋषिकेश के सीटीवीएस विभाग के चिकित्सकों से संपर्क साधा, विभाग के शल्य चिकित्सक डा. अनीष गुप्ता जो कि जन्मजात हृदय संबंधी बीमारियों के विशेषज्ञ शल्य चिकित्सक हैं।

उन्होंने डा. अजेय मिश्रा व डा. यश श्रीवास्तव से परामर्श के बाद उनकी इस हाईरिस्क सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। जिसके बाद अब उक्त व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ हैं। डा. अनीष ने बताया कि यदि वक्त रहते यह ऑपरेशन नहीं किया जता तो यह बीमारी लाइलाज हो सकती थी, जिससे मरीज का हार्ट फेल हो सकता था।
हार्ट सर्जरी कराने वाले मरीज ने इस ऑपरेशन के लिए एम्स निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी का आभार व्यक्त किया है,जिनके अथक प्रयासों की बदौलत उत्तराखंड में ऐसी सुपरस्पेशलिटी सेवाएं एम्स ऋषिकेश में उपलब्ध हो पाई हैं एवं गरीब व बीमारी से दुखी मरीजों को दिल्ली अथवा चंडीगढ़ के अस्पतालों में इलाज के लिए धक्के नहीं खाने पड़ रहे हैं।

साथ ही मरीज ने ऑपरेशन को अंजाम देने वाली चिकित्सकीय टीम के सदस्य नर्सिंग ऑफिसर केशव, गौरव, सबरी नाथन, कलई मणी व तुहीन के साथ साथ वार्ड में भर्ती के दौरान उनका खयाल रखने वाले नर्सिंग ऑफिसर धन सिंह, प्रियंका आदि का भी आभार जताया है।

उत्कृष्ट सेवा योगदान सम्मान से एम्स ऋषिकेश को सीएम ने किया सम्मानित

उत्तराखंड सरकार की ओर से आयोजित समारोह में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश को अटल आयुष्मान योजनाध्आयुष्मान भारत योजना के सफल संचालन के लिए उत्कृष्ट सेवा योगदान सम्मान से नवाजा गया है। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर योगदान के लिए एम्स ऋषिकेश की प्रशंसा की और संस्थान को आगे भी मरीजों की सेवा के लिए इसी तरह से सतत प्रयास जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
देहरादून स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय में राज्य सरकार की ओर से उत्कृष्ट सेवा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अटल आयुष्मान योजना के बेहतर ढंग से संचालन के लिए एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत को उत्कृष्ट सेवा योगदान पुरस्कार प्रदान किया। समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में एम्स ऋषिकेश महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। जो कि प्रशंसनीय कार्य है। उन्होंने कहा ​कि जन स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए यदि एम्स प्रशासन की ओर से कभी कोई परामर्श अथवा योजना का प्रस्ताव दिया जाता है तो राज्य सरकार उस पर प्राथमिकता के आधार पर विचार करेगी और उसके क्रियान्वयन के लिए हरसंभव सहयोग किया जाएगा।

इस अवसर पर एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने अटल आयुष्मान योजना के रूप में उत्तराखंड के लोगों को हैल्थ इंश्योरेंस प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री का आभार जताया, कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवा की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने जनस्वास्थ्य के लिए प्रतिबद्धता के साथ इस तरह के प्रगतिशील कदम उठाने के लिए मुख्यमंत्री व सरकार को बधाई दी। कहा ​कि देश के अन्य राज्यों को भी जनस्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मामले में उत्तराखंड सरकार का अनुसरण करना चाहिए। बताया कि किसी भी देश की जीडीपी वहां के लोगों के हैल्थ स्टेटस पर निर्भर होती है। लिहाजा एम्स स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर प्रतिबद्धता से कार्य कर रहा है।

निदेशक एम्स प्रो. रवि कांत ने बताया कि इस योजना के अंतर्गत उपचार कराने के लिए एम्स आने वाले मरीजों को संस्थान द्वारा हरसंभव सहयोग किया जाता है,जिससे मरीजों को जल्द से जल्द स्वास्थ्य लाभ मिल सके।

गौरतलब है कि संस्थान में अब तक आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत कुल 35,229 मरीजों का सफलतापूर्वक उपचार किया जा चुका है। जिसमें अटल आयुष्मान योजना के तहत 28,911 मरीजों और आयुष्मान भारत योजना में 6,318 मरीजों का इलाज किया जा चुका है। समारोह में एम्स के आयुष्मान भारत योजना के प्रभारी डा. अरुण गोयल, डा. पूर्वी कुलश्रेष्ठा आदि मौजूद थे।

एम्स ऋषिकेश में अब कराएं बिना सर्जरी के पथरी का उपचार

पथरी स्टोन की समस्या से जूझ रहे रोगियों के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश की ओर से अच्छी खबर है। संस्थान में अब बिना सर्जरी के भी गुर्दे की पथरी का इलाज संभव हो सकेगा। एम्स में अति अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित इस सुविधा का विस्तार करते हुए एडवांस यूरोलाॅजी सेंटर स्थापित कर सेवाओं की शुरुआत कर दी गई है। बताया गया है कि यह उपचार आयुष्मान भारत योजना में शामिल है।

लगातार आधुनिकतम तकनीकियों और मेडिकल सुविधाओं में इजाफा कर रहे एम्स ऋषिकेश ने यूरोलाॅजी विभाग में अति आधुनिक मशीनों को स्थापित कर मरीजों की सुविधा के मद्देनजर यूरोलाॅजिकल सेवाओं में विस्तार किया है।

इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कांत ने कहा कि मरीजों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराना एम्स की प्राथमिकता है। उन्होंने बताया कि एडवांस यूरोलाॅजी सेंटर में बिना सर्जरी किए अथवा बिना चीरा लगाए गुर्दे की पथरी के उपचार की सुविधा शुरू कर दी गई है। लिहाजा अब एम्स अस्पताल में उपलब्ध नई तकनीक और सुविधाओं से पथरी तोड़ने के लिए मरीज को बेहोश करने की आवश्यकता नहीं होगी। बताया कि उच्च तकनीक आधारित इस नई सुविधा के शुरू होने से गुर्दे की पथरी का इलाज कराने वाले मरीज को उसी दिन अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस सेंटर के वीडियो यूरोडायनेमिक यूनिट में यूरिन की रुकावट संबंधी सभी तरह के परीक्षण आसानी से हो सकेंगे और इस प्रक्रिया में मरीज को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी।

संस्थान के यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डाॅ. अंकुर मित्तल ने इस बाबत बताया कि एडवांस यूरोलाॅजी सेन्टर एक समर्पित केंद्र के रूप में कार्य करेगा। इस केंद्र में यूरोलाॅजी से संबंधित सभी तरह की अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं और सर्जिकल की सुविधाएं मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि इस नए केंद्र में अतिरिक्त काॅर्पोरल शाॅक वेव लिथोट्रिप्सी सुविधा उपलब्ध है। जिससे किडनी में स्थित अधिकतम डेढ़ सेमी. आकार की पथरी को बिना ऑपरेशन के तोड़ा जा सकता है। यह तकनीक बहुत ही सटीक और सुविधाजनक है।
डा. मित्तल ने बताया कि इससे मूत्र की पथरी को भी आसानी से हटाया जा सकता है। इस तकनीक से रोगी को बेहोश करने के लिए एनेस्थीसिया देने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। ईएसडब्ल्यूएल शाॅक वेव उत्पन्न करके मूत्र में स्थित पथरी को छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है जो मूत्र मार्ग से आसानी से बाहर निकल जाते हैं। उन्होंने बताया कि एडवांस यूरोलाॅजी सेंटर में आधुनिक व नवीनतम उच्च तकनीक वाली डोर्नियर डेल्टा-2 मशीन लगाई गई है। साथ ही यहां मूत्र पथ की बीमारियों की जांच के लिए यूरोडायनेमिक्स परीक्षण की सुविधा के अलावा एडवांस वीडियो और एंबुलेटरी यूरोडायनामिक्स सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

इस अवसर पर डीन एकेडेमिक प्रोफेसद मनोज गुप्ता, मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रो. लतिका मोहन,डीन हॉस्पिटल अफेयर्स प्रो. यूबी मिश्रा, आईबीसीसी की प्रमुख वरिष्ठ सर्जन डा. बीना रवि, डा. मधुर उनियाल, यूरोलाॅजी विभाग के प्रोफेसर एके मंडल, डा. विकास पंवार, डा. सुनील कुमार, डा. शेंकी सिंह, डा. रूद्रा आदि मौजूद थे।

यह हैं एडवांस यूरोलाॅजी सेंटर की विशेषताएं
सेंटर में एक्स-रे, मिक्ट्युरेटिंग सिस्टोयूरेथोग्राम (एमसीयूजी), रेट्रोग्रेड यूरेथ्रोग्राम (आरयूजी), नेफ्रोस्टोग्राम, अल्ट्रासाउंड, ट्रांस-रेक्टल अल्ट्रासाउंड (टीआरयूएस) गाइडेड प्रोस्टेट बायोप्सी तथा इमेज गाइडेड थैराप्यूटिक प्रक्रियाओं की सुविधा उपलब्ध है। इसके लिए यहां नवीनतम इमेजिंग उपकरण, अल्ट्रासाउंड मशीन व सी-आर्म फ्लोरोस्कोपी मशीनें स्थापित की गई हैं।

इस तरह होगा उपचार आसान
यह मशीनें गुर्दे, मूत्राशय, मूत्रमार्ग और प्रोस्टेट में किसी भी मूत्र संबंधी विकार का पता लगा सकती हैं। जिससे उपचार करने में आसानी होती है और मरीज को आईपीडी में भर्ती किए बिना सभी आपातकालीन प्रक्रियाओं को डे-केयर में ही किया जा सकता है। इस सेंटर में एक ही छत के नीचे सभी सुविधाएं उपलब्ध होने से मरीजों की दिक्कतें कम होंगी और उनका समय भी बचेगा। निकट भविष्य में यह केंद्र यूरोलॉजी के लिए नैदानिक सेवाएं प्रदान करने में सहायक होगा। एडवांस यूरोलाॅजी सेंटर में सेवाएं शुरू होने से मूत्र संबंधी विकारों के इलाज के लिए किसी भी मरीज को उत्तराखंड से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

एम्स ऋषिकेशः में अब ’स्पोर्ट्स इंजरी क्लीनिक’ की सुविधा भी उपलब्ध

उत्तराखंड के युवाओं और खेल प्रतिभाओं के लिए अच्छी खबर है। स्पोर्टस इंजरी के दौरान चोटिल होने वाले खिलाड़ियों व युवाओं के उपचार की सुविधा के लिए अब एम्स ऋषिकेश में स्पोर्ट्स इंजरी क्लीनिक की सुविधा शुरू कर दी गई है। संस्थान में उपलब्ध इस सुविधा का खासतौर से उन खिलाड़ियों को मिल सकेगा जो खेल के दौरान चोटिल अथवा गंभीर घायल हो जाते हैं।

राज्य में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, मगर अभी तक खेल आयोजनों में खिलाड़ियों द्वारा अपने प्रदर्शन के दौरान कईमर्तबा उनके घुटने, कंधे और कूल्हे के लीगामेंट्स, साकेट से संबंधित चोट लगने पर उन्हें उत्तराखंड में बेहतर इलाज नहीं मिल पाता था। वजह उत्तराखंड में अभी तक स्पोर्ट्स इंजरी के समुचित उपचार के लिए कोई विशेष अस्पताल अथवा क्लीनिक नहीं था और न ही अभी तक यहां स्पोर्ट्स इंजरी के समुचित इलाज की ही सुविधा थी। मगर अब एम्स ऋषिकेश में यह सुविधा शुरू हो गई है। जिसके तहत प्रथम चरण में संस्थान में ’विशेष स्पोर्ट्स इंजरी क्लीनिक’ का संचालन शुरू किया गया है। यहां स्पष्ट कर दें कि विभिन्न खेलों में प्रदर्शन के दौरान या किसी वाहन दुर्घटना में घायल लोगों के घुटने, कंधे और कूल्हे के लीगामेंट्स अथवा साकेट का इलाज एम्स ऋषिकेश में पहले से उपलब्ध है। जबकि इसी कड़ी में अब संस्थान द्वारा खिलाड़ियों से जुड़े ऐसे मामलों के मद्देनजर एक स्पेशल ’स्पोर्ट्स इंजरी क्लीनिक’ की शुरुआत की गई है।

निदेशक एम्स प्रो. रविकांत ने इस बाबत बताया कि खिलाड़ियों और युवाओं में इस तरह की समस्याएं आम होती जा रही हैं। लिहाजा इस दिक्कतों को देखते हुए एम्स में शीघ्र ही ’स्पोर्ट्स इंजरी सेंटर’ खोला जाना प्रस्तावित है। जिसके अंतर्गत पहले चरण में स्पोर्ट्स इंजरी क्लीनिक की सुविधा शुरू की गई है। कि स्पोर्ट्स इंजरी क्लीनिक में मरीजों के उपचार के लिए ट्रामा सर्जरी विभाग, ऑर्थोपेडिक्स विभाग और फिजिकल मेडिकल विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सकों की संयुक्त टीम उपलब्ध कराई गई है। जिससे स्पोर्ट्स इंजरी से ग्रसित राज्य के खिलाड़ियों और युवाओं का एम्स ऋषिकेश में ही समुचित इलाज किया जा सके।

निदेशक प्रो. रवि कांत जी के अनुसार उत्तराखंड एवं अन्य राज्यों के आर्मी ट्रेनिंग सेंटर और स्पोर्ट्स ट्रेनिंग सेंटर के सहयोग से सेना के जवानों, खिलाड़ियों तथा अन्य लोगों को इस केंद्र में विशेष प्राथमिकता दी जाएगी।

इस बाबत विस्तृत जानकारी देते हुए ट्रामा सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद कमर आजम ने बताया कि स्पोर्ट्स इंजरी को लिगामेन्ट्स इंजरी भी कहा जाता है। लिगामेन्ट्स इंजरी के दौरान व्यक्ति का घुटना टूट जाना अथवा उसके घुटनों के जोड़ों का संतुलन बिगड़ जाने की समस्या प्रमुख है। इसके अलावा कई बार घुटनों के ज्वाइन्ट्स भी अपनी जगह से खिसक जाते हैं। यह जोड़ एक हड्डी को दूसरी हड्डी से आपस में जोड़ने का काम करते हैं। मगर एक्सरे या सीटी स्कैन में इसका पता नहीं चल पाता है।

प्रो. आजम ने बताया कि जब मरीज की हड्डी घिस जाती है तो बाद में उसे उस जगह दर्द होने लगता है। स्पोर्ट्स इंजरी क्लीनिक में ऐसे ही लोगों का इलाज किया जाएगा। संबंधित रोगी स्पोर्ट्स इंजरी की ओपीडी में अपनी जांच करा सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस स्पेशल क्लिनिक में पंजीकरण की सुविधा के लिए शीघ्र ही एक व्हाट्सएप नंबर जारी किया जाएगा। उन्होंने बताया कि स्पोर्ट्स इंजरी के मरीजों का इलाज संस्थान में पूर्व से ही किया जा रहा है। लेकिन सेवाओं के विस्तारीकरण के तहत अब विभाग द्वारा विशेष स्पोर्ट्स इंजरी क्लीनिक शुरू किया गया है। यह क्लीनिक दैनिकतौर पर ओपीडी के समय संचालित होगा। उन्होंने बताया कि साईकिलिंग, स्केटिंग, क्रिकेट, फुटबॉल, वाॅलीबॉल, बास्केटबॉल आदि खेलों में जिन खिलाड़ियों का घुटना अथवा कोहनी टूट जाती है, उन्हें इस सुविधा से विशेष लाभ होगा। खिलाड़ियों के लिए गेट ट्रेनिंग लैब अथवा रोबोटिक रिहैब मशीन भी एम्स में उपलब्ध है। प्रो. आजम ने बताया कि बीते वर्ष 2020 में एम्स के ट्रामा विभाग में 438 लोगों की लिगामेन्ट्स सर्जरी की जा चुकी है। जबकि पिछले ढाई साल के दौरान लिगामेन्ट्स इंजरी वाले लगभग 2000 लोगों का उपचार किया गया है। जिनमें ज्यादातर मामले बाइक से गिरकर अथवा फिसलकर घुटना टूट जाने की शिकायत वाले लोगों के रहे हैं। उन्होंने बताया कि आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थियों के लिए यह उपचार योजना के तहत निःशुल्क उपलब्ध है।

स्पोर्ट्स लिगामेन्ट्स इंजरी के लक्षण-
लिगामेन्ट्स इंजरी होने पर एक हड्डी को दूसरी हड्डी से जोड़ने वाले घुटने का जोड़ टूट जाता है। जिससे चलते समय पैरों का बेलेंस बिगड़ना, व्यक्ति का संतुलित होकर न चल पाना, कंधा दर्द करना, सीढ़ी चढ़ने-उतरने में दिक्कत होना, पैरों से लचक कर चलना, हाथ का ठीक तरह से ऊपर न उठना और काम करते हुए हड्डी में दर्द रहना इसके प्रमुख लक्षण हैं।

पोषण जागरूकता कार्यक्रम के तहत मरीज व तीमारदारों को दी स्वस्थ्य दिनचर्या की जानकारी

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश की ओपीडी में मरीजों के लिए स्वस्थ खानपान तथा स्वस्थ जीवन के लिए पोषण जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान की आहार एवं पोषण विशेषज्ञ द्वारा मरीजों व उनके तीमारदारों को सही खानपान और दिनचर्या की जानकारी दी गई।
निदेशक प्रो. रविकांत ने बताया कि आहार एवं पोषण का महत्व हमारी सामान्य जीवनशैली में कितना अहम होता है। कहा कि सही पोषण नहीं मिलने पर होने वाले रोगों जैसे चयापचय (मैटावोलिज्म) रोगों की रोकथाम में सही पोषण के महत्व पर भी प्रकाश डाला।

संस्थान की ओपीडी में आने वाले मरीजों के लिए डीन एकेडमिक एवं रेडिएशन ओंकोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मनोज गुप्ता की देखरेख में स्वस्थ जीवन के लिए पोषण जनजागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। ने बताया कि स्वस्थ्य भोजन से ही हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है तथा सही भोजन से ही हमारा शारीरिक तथा आर्थिक विकास होता है। कार्यक्रम में एम्स फैकल्टी तथा न्यूट्रिशन सोसायटी ऑफ इंडिया की सदस्य प्रो. सत्यवती राणा, डॉ. किरण मीणा व डाॅ. अनु अग्रवाल ने भी विशेषरूप से प्रतिभाग किया।

इस अवसर पर डिपार्टमेंट ऑफ रेडिएशन ओंकोलॉजी की आहार एवं पोषण विशेषज्ञ डा. अनु अग्रवाल ने ओपीडी में आए मरीजों तथा उनके तीमारदारों को पोषण तथा जीवनशैली को लेकर जागरुक किया। उन्होंने मरीजों को खाद्य पदार्थों के समूहों की विस्तृत जानकारी दी और बताया कि हमारे खाने के साथ खाद्य समूहों को किस प्रकार से अपने प्रतिदिन के आहार में लेना चाहिए। जिसमें उन्होंने खान समूह जैसे अनाज, दाल फल सब्जियों घी तेल चीनी तथा मेवे के अलग अलग प्रकार के बारे में बताया कि किस तरह से इन सभी खाद्य पदार्थों के सभी प्रकार को अपने आहार में सुनिश्चित किया जाए।

इस अवसर पर उन्होंने खाद्य समूह के बाबत बताया कि इन खाद्य समूहों के उपयोग से किस प्रकार से हम अपने शरीर में सामान्य पोषण तत्वों की कमी को पूरा कर सकते हैं। इस मौक पर उन्होंने भोजन से मिलने वाले पोषण तत्व जैसे कार्बोहाईड्रेट्स, प्रोटीन्स, रेशे, पानी तथा सुक्ष्म पोषण तत्व जैसे बिटामिन्स, खनिज पदार्थ की उपयोगिता के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी।
सही जीवनशैली के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने मरीजों को बताया कि सुबह सोकर उठने से लेकर रात्रि विश्राम से पहले तक किस तरह से अपने खाने को छोटे छोटे मील्स में विभाजित करें तथा भोजन के बाद की जाने वाली क्रियाओं वॉकिंग आदि पर भी चर्चा की, ताकि मरीज मोटापे तथा भविष्य में होने वाली चयापचय संबंधी बीमारियों से अपनेआप को सुरक्षित कर सके। साथ ही मरीजों को यह भी बताया गया ​कि घर से बाहर निकलते वक्त, अस्पताल आते वक्त अथा अस्पताल में कुछ दिन रुकने की स्थिति में किस तरह का आहार को व्यवस्थित करना चाहिए जिससे हमारे शरीर को सभी तरह के पोषण तत्व मिल सकें।

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